"चर्चा मंच" अंक - 112 |
चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक” |
"चर्चा मंच" के लिए आज अपराह्न की चर्चा तो हमारे मित्रों ने आज सुबह की चर्चा में अपने लिंक चस्पा करके दे दी और अपनी डिमाण्ड भिजवा दी! |
खैर आपको निराश नहीं करूँगा! आप देख लें, अपने-अपने लिंकों को- टिप्पणी करने अवश्य आना! यदि सम्भव हुआ तो देर शाम को ही सही एक चर्चा की तो और भी गुञ्जाइश है ना! |
हो गई लिंकों की चर्चा पूरी! सानिया मिर्जा बोले या न बोले! लेकिन हमारे लिए तो है, बहुत जरूरी!! जय हिन्द!! |
ये लिंक तो किसी तरकश में से निकले तीर की तरह लग रहे हैं!
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मेरे मन को भाई : ख़ुशियों की बरसात!
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संपादक : सरस पायस
अनोखी चर्चा लिन्को की
जवाब देंहटाएंबधाई हो।
वाह .. इतने सारे लिंक्स !!
जवाब देंहटाएंमास्टर जी के उपयोगी लिंक हैं यह इकट्ठे ! आभार ।
जवाब देंहटाएंचर्चा लिन्को की ..... वाह .....
जवाब देंहटाएंIs bar ki charcha kuchh alag se lagi. Laga hi nahin ki yah Mayank ji dwara ki gai charcha hai, prayojit charcha lagi.
जवाब देंहटाएंachcha kaaraya hai
जवाब देंहटाएंलिंक ही लिंक!!
जवाब देंहटाएंहा हा हा हा शास्त्री जी ..मा स्साब ने तो पहले ही बहुत सारे ब्लोग्स पर ..पूरी प्रायमरी क्लास खोल आए हैं ..आज की चर्चा आपने उन्हीं के लिंक्स को डेडिकेट करके बहुत ही अच्छा काम किया ।
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
सार्थक आलेखन मिला लिंक्स के ज़रिये शुक्रिया जी
जवाब देंहटाएंवाह लिंल ही लिंक. बहुते बढिया.
जवाब देंहटाएंरामराम.
वाह जी वाह !
जवाब देंहटाएंआज तो पूरे के पूरे हमारे स्कूल को ही चिपका दिया आपने !
अब प्रायोजित चर्चा का आरोप आप पर लगे ...तो हम क्या कहें ? :)
यह तो होना ही था |
भाई प्रवीण त्रिवेदी जी!
जवाब देंहटाएंमुझे इन लिंकों पर लगी पोस्ट्स उपयोगी जान पड़ी!
इसलिए आपके नाम यह विशेष चर्चा लगा दी!
बिन खर्चा बढिया चर्चा!!
जवाब देंहटाएंमजेदार...
एक ही तरकश में ये ढेर सारे भरे हुए तीर कुछ समझ नहीं आए? क्या कोई नया अंदाज है?
जवाब देंहटाएंcharcha ka ye andaz bhi bahut hi bhaya.
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