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रविवार, अप्रैल 11, 2010

"सबसे गर्म हो सकता है 2010" (चर्चाकार-मनोज कुमार)

चर्चा मंच : अंक - 118
नमस्कार मित्रों!

मैं मनोज कुमार शनिवार को पोस्ट किए गये चिट्ठों से

कुछ चिट्ठों की चर्चा लेकर इस मंच पर हाज़िर हूँ।

जलवायु परिवर्तनगर्मी काफ़ी बढ़ गई है। अन्य वर्षों की तुलना में इस वर्ष कुछ ज़्यादा ही गर्मी पड़ रही है। अभी तो अप्रैल शुरु ही हुई है। आगे क्या होगा! ब्रितानी मौसम विभाग का कहना है कि इस वर्ष औसत वैश्विक तापमान नई ऊंचाई तक पहुँच सकता है। मानव जनित कारणों और अल-नीनो के प्रभाव की वजह से ऐसा हो सकता है।
एक दिलचस्प बात और है कि जहाँ वर्ष 2010 के सबसे गर्म वर्ष होने की बात कही जा रही है यह दुनिया भर में सबसे अधिक भीगा हुआ या सबसे अधिक बारिश वाला वर्ष भी हो सकता है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि गर्मी से ज़्यादा आर्द्रता पैदा होगी और इसके फलस्वरुप अधिक बारिश भी होगी।

मेरा फोटो
अजय झा जी कह रहे हैं

दो घडी,
चांद से ,
गुफ़्तगू क्या कर ली,
सितारे बुरा मान गए ॥



कभी नकाबों में रहें,
कभी परदों में ,
कितनी ही कर ली कोशिश ,
आईने हर बार पहचान गए ॥
मेरा फोटोस्वप्निल कुमार 'आतिश' एक बहुत ही प्यारी गज़ल प्रस्तुत कर रहे हैं

मुझमे तुझमे कभी बनी है ?
बात बात में तनातनी है

आंच लगेगी धुआँ लगेगा
आतिश के घर आगजनी है

एक से बढ़कर उम्दा शे’रों से सजी ग़ज़ल क़ाबिले-तारीफ़ है। आप पढ़िए और दाद दीजिए।
पंकज शर्मा प्रस्तुत कर रहें हैं एक लघु कथा मांग नहीं सकता न!
बस-स्टैंड पर खड़ा हुआ वह बस का इंतज़ार कर रहा था। उसके सामने खड़ी बस में बैठा एक आदमी पकौड़े खा रहा था। उसने खाते-खाते पकौड़े का एक टुकड़ा करीब दस साल के उस लड़के के हाथ पर धर दिया, जो कुछ देर से उसकी सीटवाली खिड़की के पास हाथ फैलाए खड़ा था। उसे
यह देखकर हैरानी हुई कि लड़के ने झट से वह टुकड़ा अपनी शर्ट की जेब में डाल लिया। उसने ऐसा क्यों किया पढ़िए सरस पायस पर एक बहुत मार्मिक लघु कथा के ज़रिए।
कुछ और तस्वीरें.2
बिहार के सबसे ज्यादा आर्सेनिक प्रभावित भोजपुर जिले में पिछले कुछ दिनों के अंदर 50 ऐसे बच्चों के मामले मीडिया में छाये हुए हैं जिनकी आँखों का नूर कोख में ही चला गया है। भोजपुर, बिहार में सबसे अधिक आर्सेनिक प्रभावित जिलों में से एक है। पिछले साल बिहार में कराये गए एक सर्वे में 15 जिलों के भूजल में आर्सेनिक के स्तर में खतरनाक वृद्धि दर्ज की गई थी। आर्सेनिक प्रभावित 15 जिलों के 57 विकास खंडों के भूजल में आर्सेनिक की भारी मात्रा पायी गई थी। दीपक ’मशाल’ एक बहुत ही जानकारी भरा आलेख आंखों को बेनूर कर रहा पानी के ज़रिए मसी कगद पर बता रहें कि सूनी धरती, सूखी धरती से जब पानी बहुत नीचे चला जाता है तब पानी कम, खतरनाक केमिकल ज्यादा मिलने लगते हैं। तभी पानी में फ्लोराइड, नाइट्रेट, आर्सेनिक और अब तो यूरेनियम भी मिलने लगा है। जब पानी आसमान से बरसता है तब उसमें कोई जहर नहीं होता।
My Photo
सम्वेदना के स्वर पर एक बहुत ही अच्छी बहस किरण खेर – मुर्गा लड़ाई में घुसी शेरनी प्रस्तुत की गई है। अपना मत रखते हुए किरण खेर कह रही हैं आज संस्क्रति Guilt और Shame को केन्द्र मे रखकर चल रही है। इंसान Guilt झेल लेता है क्योंकि वह उसके अंदर होता है. लेकिन Shame एक सामजिक पीड़ा है, जो अधिक कष्ट पहुँचाती है।
अभी हाल ही में अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्राध्यापक द्वारा की गई आत्महत्या इस बात का सबूत है। वह आदमी अपने guilt के साथ रह रहा था, लेकिन मीडिया ने एक्स्पोज़ करके उसे shame के दलदल में धकेल दिया. नतीजा आपके सामने है। वह अपराधी था या नहीं, ये बहस का मुद्दा हो सकता है, लेकिन उसके अपराध की सज़ा कम से कम मौत तो नहीं ही हो सकती। बहुत बेबाक और सटीक टिप्पणी की है।
मेरा फोटोब्लॉग में आजकल कई लोग ब्लॉग लिखना छोड़ने की बात करते हैं। उनके लिए डरो मत डटे रहो का नारा दे रहे हैं बोले तो बिंदास। कहते हैं “
अगर समाज के अलग-अलग कई वर्गों से निकलने वाले संकेतों को मैंने सही समझा है. तो आने वाले समय में ब्लॉग ठीक उसी तरह से छाने जा रहा हैं जिस तरह अचानक मोबाइल की आंधी आई और सब पर छा गई...
.कुछ दशक बाद जब ब्लॉग की दुनिया पर रिर्सच की जाएगी तो लिखा जाएगा कि 21वीं सदी के पहले दशक के आखिरी साल का दौर ब्लॉग्स के जमने और व्यवस्थित होने का था..ब्लॉगर आत्मसंतुष्टि के लिए लिखने के साथ-साथ समाज से जुड़े मुद्दों से भी अनजान नहीं थे, समाज से जुड़ने की छटपटाहट थी....और उसे खुद पर ही सोचने को मजबूर पर भी लोगो का ध्यान खीचने की कोशिश करने लगे थे..भले ही कुछ लोग झगड़े टंटे में पड़े रहते थे...तो उस समय हमारे पैरो के निशान तलाशेगा समय.....आप क्यों इस महत्वपूर्ण समय में पलायन-पलायन खेलते हैं...तो है मेरे मित्रों पलायन न करो.....न दैन्यं, न पलायन....टिके रहो, डटे रहो...” उनके इस मत पर झा जी की राय है “आपने बेबाक हो कर सब कुछ कह दिया और बिल्कुल सच कह दिया “।
“स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, हम इसे लेकर रहेंगे”, “तूम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूगा”..ये सब तो बस नारे हैं, नारों का क्या। क्या हम वाकई में आजाद हो चुके हैं? संविधान तो आजादी की पूरी गारंटी देता है, उसकी हिफाजत के लिए एक पूरा तंत्र खड़ा है, फौज है, असलहा है....फिर हाथ में बंदूक लेकर खूनी क्रांति की बात करने वाले तथाकथित बागी क्यों? क्यों? क्यों? इस प्रश्‍न के साथ इयत्ता पर आलोक नंदन पूछ रहे हैं मौजूं दुनिया इतनी डरावनी क्यूं हैं?
आंखों के सामने अंधेरा छाने पर चारों ओर अंधकार ही दिखता है, मनिषियों ने बंद आंखों से रोशनी की तलाश की है...और गहन अंधकार में पड़े लोगों के पथ पर रोशनी बिखेरी हैं....आंखे बंद कर लेता हूं...शायद कोई रश्मि फूटे...क्या यह अंधकार से भागना है?? या फिर खुद से? मैं तो बस इतना ही कहूँगा कि इस ज़बरदस्त लेखन के ज़रिए आपने आपने विषय की मूलभूत अंतर्वस्तु को उसकी समूची विलक्षणता के साथ बोधगम्य बना दिया है।
देखा
कहा था ना
कभी मैंने
एक वक़्त
आएगा
जब तेरे
अरमाँ जवाँ होंगे
और मेरे
वक़्त की
कब्र में
तेरे ही हाथों
दफ़न हो
चुके होंगे


इस कवित्ता पर अपने विचार व्यक्त करते हुए शास्त्री जी कहते हैं
आपने बहुत ही गहरी बात
कह दी है इस रचना में! 200वीं पोस्ट के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएँ! आप हकीकत लिखती रहें, .. और हम पढ़ते रहें, हमेशा! हमारी बी यही कामना है!

बहुत बहुत बधाई ! अनन्त शुभकामनाएं ।
My Photoबे-तख़ल्लुस मनु लॉंग ड्राइव के दौरान भावनाओं का सुंदर चित्रण प्रस्तुत कर रहे हैं। सच है कभी कभी छोटी छोटी ख़ुशियां हमें वो एह्सास दे जाती हैं जिन का कोई मोल नहीं होता। बड़े ही रोचक और सरस शैली में लिखे इस संस्मरण पर अमिताभ श्रीवास्तव का कहना है “
जिन्दगी के उबड-खाबड रास्ते हों या सीधे-सपाट से..., लांग ड्राईव है। पूरे जीवनभर...इस लांग ड्राईव में कोई रुकावटे न हो, सिर्फ आनंद हो, बाइक हो, और मिरर आपकी तरफ ही मुडा हो, ट्रेफिक जीवन का राग है, चलता रहेगा जी। बडे बडे ट्रक, ब्ल्यु लाईन की खतरनाक बसें...अपना रास्ता खुद अख्तियार करेंगी, आपकी ड्राईव..अनवरत..खुशियों से भरी-पूरी रहे..., आमीन।”
My Photoआज की वस्तविकता को दर्शाता सतीश पंचम जी की ये कविता बहुत ही सुंदर है। कविता की अंतिम पंक्तियां देखिए
'ख़बरनवीसी' का है ये आलम,
शहीदों के घर था मातम
रो रही थी संगिनी,
रो रहे थे बच्चे
मईया बिलख रही थी,
गईया भी चुप खडी थी
थी देहरी भी सूनी-सूनी,
रस्ते भी चुप पडे थे

पूछा जो हमने उनसे कि
'यह' कैसा 'दस्तूर' है
सदमें में है सारा आलम
और ख़बरों में 'फितूर' है
कहने लगे पलटकर
अरे 'यह',
'यह' तो 'ग़ज़क़' है ।


ग़ज़क़ = वह चीज जो शराब पीने के बाद मुँह का स्वाद बदलने के लिये खाई जाती है।
इस पर गिरिजेश जी का कहना है
'पंच' कविता। सारे नरेशन के बाद जब अंतिम वाक्य में 'ग़ज़क़' आता है तो अर्थों का अम्बार सा खुल जाता है। पाठक स्तब्ध रह जाता है और फिर धीरे धीरे तीव्रता पकड़ता है प्रश्न जनित कोलाहल ...देर तक खदबदाता रहता है।

इस कविता/
'ग़ज़क़'
में बिल्कुल भिन्न स्वाद है, यह खलल पैदा करता है, विचलन पैदा करता है।
28032010085आदिकाल से बहती आ रही पाप विमोचिनी गंगा अपने उद्गम गंगोत्री से भागीरथी रूप में आरंभ होती है। यह महाशक्तिशाली नदी देवप्रयाग में अलकनंदा से संगम के बाद गंगा के रूप में पहचानी जाती है। लगभग 300 किलोमीटर तक नटखट बालिका की तरह अठखेलियाँ करती, गंगा तीर्थनगरी हरिद्वार पहुंचती है। उसी गंगा का सागर से संगम पश्चिम बंगाल के गंगा सागर क्षेत्र में होता है। हर साल मकर सक्रांति पर्व पर महाकुंभ जैसा पर्व यहां लगता है। गंगासागर श्रेष्‍ठ तीर्थ क्षेत्र है। पहले यहां आने जाने की सुविधा उतनी नहीं थी। अतः यह लोकोक्ति प्रचलित हो गई।
सारे तीर्थ बार बार |गंगा सागर एक बार||
मनोज कुमार अपने यात्रा संस्मरण के साथ-साथ रोचक जानकारी भी दे रहें हैं।
मेरा फोटोआभासी ब्लॉग संसार की स्वतंत्रता, उन्मुक्तता और सक्रिय हिन्दी ब्लॉगरों की कम संख्या - इन यथार्थों ने 'आभासी' से जुड़ी सुविधाओं, सहूलियतों को तनु किया है। नियमित ब्लॉगर मिलन से अलग तरह के मित्र मंडल तैयार हुए हैं। कई ब्लॉगर पहले से एक दूसरे को जानते रहे हैं। स्वाभाविक ही है कि नजदीकियाँ प्रगाढ़ हों, दूरियाँ घटें लेकिन एक नकारात्मक पक्ष सामने आया है - वस्तुनिष्ठता का क्षय। वास्तविक दुनिया का नकार पक्ष यहाँ भी मुखरित हो चला है। हो भी क्यों न, अधिक मीठे में कीड़े लगते ही हैं। गिरिजेश राव के ये शब्द एक
कटु सत्य है पर हम भावनाओं में बहकर यह सब ध्यान नहीं रखते हैं। वे कहते हैं
आप की मित्रता यदि ब्लॉग माध्यम से जुड़ने के बाद घटित हुई है तो एक अपील है कि समग्र हित में थोड़ी दूरी, थोड़ा अलगाव बनाए रखें ताकि वस्तुनिष्ठता बनी रहे। व्यक्ति निष्ठा, प्रेम, घृणा आदि आप की अभिव्यक्ति पर ऐसे न सवार हों जाँय कि उनके बोझ तले आप की अभिव्यक्ति घुटे और फिर एक दिन आप साजो समान बाँध कर चलते बनें। साथ ही सलाह भी देते हैं कि
इतने निकट न हों कि आप के साँसों की दुर्गन्ध एक दूसरे को सताने लगे।
My Photo१९८४ की लिखी एक रचना सूरज का महज एक तपन लेकर आये हैं एम. वर्मा जी।
सार्थक प्रयत्न
कभी भी निष्फल नही होता
उजास की किरण
देर-सबेर
हम तक भी पहुँचेगी
आखिर कब तक
गर्म हौसलों को
ठंडी बर्फ़ की परतें
छुपा सकती हैं भला
कब तक ......

आस्था और आशावादिता से भरपूर स्वर इस कविता में मुखरित हुए हैं।
My Photoजी.के. अवधिया जी का कहना है
हिन्दी ब्लोगिंग शुरू करना आसान है किन्तु इसमें बने रहना बहुत बड़े दिल गुर्दे का काम है। बहुत सी चोटें, मिलती हैं बेगानों से भी और अपनों से भी। चोटें भी ऐसी कि असहनीय। इन चोटों को सहन करना सभी के वश की बात नहीं होती। लोग टूट जाते हैं। यह हिन्दी ब्लोग जगत है ही ऐसा कि लोग अपने स्वार्थवश दो अभिन्न लोगों को भिन्न करने का प्रयास करने लगते हैं और सुप्रयास सफल हो या न हो किन्तु कुप्रयास तो सफल ही होता है। मैं तो इनकी बातों से शत-प्रतिशत सहमत हूँ। और ये चर्चा मंच पर आकर थैंकलेस काम हाथ में लेना तो मुझे लगता गुर्दे के अंदर जो नेफ़्रोन होती है उससे भी जटिल काम है। इस आलेख पर पहली टिप्पणी आई है चर्चामंच के कर्ता-धर्ता शास्त्री जी की, कहते हैं, “हौंसला अफजाई के लिए शुक्रिया!”
My Photoपलायनवादी प्रवृत्ति का सम्मान नहीं होता चाहे कितने ही अच्छे मन से क्यों न हुआ हो ! लोग इसे कायरता ही मानेंगे और अंततः उपहास ही होगा ! जो कुछ पिछ्ले दिनों घटित हुआ और ब्लॉगर मित्र इस क्षेत्र से विदा कर गये उस घटना ने अजीत गुप्त जी को यह विचार प्रस्तुत करने को विवश किया कि जिन्‍दगी सतत संघर्ष का दूसरा नाम है। शान्ति कहीं नहीं है। एक संघर्ष समाप्‍त होगा तो दूसरा तैयार है। इसलिए संघर्षों को टालों मत। भिड़ जाओ। नहीं तो एक और दो कर-कर के ये एकत्र होते जाएंगे और आपको दबोच लेंगे? उनके इस आलेख पर विचार शून्य जी का कहना हैं “मुझे भी अक्सर लगता है की हमें दर्द देने वाले मर्द बनाने की जगह दर्दों को अपने आंचल में समेट लेने वाली औरत बनाने की कोशिश करनी चाहिए।”
हरि शर्मा - १९८६क्यों जाना पड़ा ललित भाई को ब्लॉगिंग से? बता रहे हैं हरि शर्मा। इस विषय पर जहां एक ओर शास्त्री जी को यह “जल्दी में उठाया गया निराशाजनक कदम!” लगता है वहीं दूसरी ओर अविनाश जि को “इसमें अवश्‍य ही कोई साजिश छिपी हुई महसूस हो रही है।”
My Photoमहफ़ूज़ भाई पिछले दिनों की अपनी व्यस्तताओं और उपलब्धियों को बताते हुए कह रहे हैं कि “इस ब्लॉग जगत ने मुझे हर रिश्ता दिया है. माँ नहीं है मेरी, लेकिन आज मेरे पास ब्लॉग जगत के द्वारा जो रिश्ता बना है मेरा उससे माँ कि कमी अब नहीं महसूस होती है. अब तो मैं यहाँ धन्यवाद के लिए नाम भी नहीं लिख सकता हूँ क्यूंकि इतने सिर्फ नाम लिखने के लिए मुझे चार पोस्ट लिखनी पड़ेगी. मैं तो सबके प्यार से अभीभूत हूँ।”
हम तो यही कहेंगे कि आप यूं ही आगे बढ़ते रहें निरन्तर. ऐसे ही व्यक्ति बने रहें हमेशा. यही शुभकामनाओं के साथ। और आपाकी बात से पूरा इत्तेफ़ाक रखते हैं कि ख़ुशियां बांटने से बढ़ती है .. नफ़रत का क्या काम?
My Photoआज सीरियस ब्लॉगिंग ज़्यादा हुई है इसलिए यह मंच भी अपनी गंभीरता की पराकाष्ठा पर पहुंच चुका है। आइए थोड़ी नोकझोंक, थोड़ी दिल्लगी, थोड़ी बंदगी और थोड़ा इमोशनल अत्याचार हो जाए। ब्लॉग के मैदान में भी क्रिकेट की तरह हर कैटेगरी के खिलाड़ी मिल जाएंगे। कुछ टेस्ट मैच की तरह टुक-टुक कर देर तक खेलने वाले, कुछ वन डे मैच की तरह मौके की नजाकत समझ कर शाट लगाने वाले और कुछ ट्वेंटी-ट्वेंटी स्टाइल में हमेशा चौके-छक्के लगाने के मूड में रहने वाले।
कुछ अच्छे खेल पर एक्साइटेड हो हर्ष ध्वनि करते हैं तो कुछ बात बात पर नोकझोंक करने को आतुर रहते हैं। राजू बिन्दास को लगता है कि लोग ब्लॉगिंग की शुरुआत तो अक्सर स्वान्त:सुखाय या अभिव्यक्ति के लिए करते हैं लेकिन जब उन पर कमेंट बरसने लगते हैं, तो उनके अंदर के क्रियेटिव किड की भूख बढ़ जाती है और वो कुछ भी खाकर कुछ भी उगलने और उगलवाने पर उतारू हो जाता है। आगे बता हैं कि किसी अच्छे भले लेखक का दिमाग खराब करने में टिप्पीबाजों की बड़ी भूमिका होती है. कोई कैसा भी लिखे, हर पोस्ट पर ये टिप्पणीबाज वॉह-वाह, शानदार पोस्ट, नाइस, एक्सेलेंट, बधाई, ऐसा ही लिखते रहें, जैसे चालू कमेंट कर अपना राग एक ही सुर में आलापते रहतें हैं।
इस पोस्ट पर नेशन वाइड बहस कैसे हो? यह न सिर्फ़ गिरिजेश जी की मांग है बल्कि इस मंच की तरफ़ से हमारा भी आह्वान है। एक नहीं अनेक नाइस चपत तो खा ही चुकें हैं, एक नाइस का चटका मैं भी लगा ही देता हूँ … अ नाइस पोस्ट!!
My Photo४००वीं पोस्ट पूरा करके डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने सोच विचार कर दो निर्णय लिए। एक तो आज की पोस्ट से सम्बन्धित, यह पोस्ट समर्पित कर रहे हैं युवा कवि हेमन्त को, जो एक दुर्घटना का शिकार होकर हम सबसेबहुत-बहुत दूर चला गया। जाने के बाद भी वह अपने परिपक्व विचारों को कविताओं के रूप में छोड़ गया था। इस पोस्ट के साथ ही टिप्पणी की सुविधा फिर शुरू की जा रही है। निर्णय इसके साथ कि वे अभी भी टिप्पणी के आदान-प्रदान के खेल से बाहर रहे हैं और बाहर ही रहेंगे।
सब कुछ वैसे ही होगा...जैसा अभी है
मेरे रहते।
हाँ तब ये अजूबा जरूर होगा
कि मेरी तस्वीर पर होगी चंदन की माला
और सामने अगरबत्ती
जो नहीं जली मेरे रहते!
मेरा परिचय यहाँ भी है!और अंत में डा. रूपचंद्र शास्त्री “मयंक” की कुछ पंक्तियां
सपनों के सागर में गोते खाना इतना ठीक नहीं,
कब तक खारे पानी से अपने मन को भरमाओगे!
टूटे-फूटे छन्दों को तुम कब तक यों दुहराओगे!!

तितलीं, भँवरे, मधुमक्खी का वीराने में काम नही,
कागज के फूलों से कब तक अपना दिल बहलाओगे!
टूटे-फूटे छन्दों को तुम कब तक यों दुहराओगे!

21 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन उम्दा चर्चा...आनन्द आया.

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  2. बेहतरीन उम्दा चर्चा...आनन्द आया.

    जय भीम

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  3. बहुत बढिया उम्दा चर्चा.…………………आभार्।

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  4. मनोज जी आपका अभारी हूं मेरी पोस्ट को चर्चामंच में शामिल करने के लिए....आपके इस मंच पर आकर ब्लॉग दर ब्लॉग पर की जाने वाली अवारगी पर कुछ रोक लगेगी और समय की भी बचत होगी...एक साथ कई ब्लॉगर को एक जगह सहेजने के लिए आपका शुक्रगुजार रहेंगे सब...

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  5. इस सुन्दर चर्चा के लिए
    मनोज कुमार जी का आभार व्यक्त करता हूँ!

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  6. बहुत ही बढ़िया लिंक मिले।
    शानदार चर्चा।

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  7. मनोज भइया जी!
    आपने बहुत ही सुन्दर चर्चा की है!
    चर्चा मंच पर आपका स्वागत करती हूँ!

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  8. आज की चर्चा में बहुत ही बढ़िया लिंक निले!
    कलेवर भी बदला हुआ है मगर अच्छा लग रहा है!

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  9. इतने अच्छे और शब्दों की प्रतिक्रियास्वरूप प्राप्ति की मैंने कल्पना भी नहीं की थी। बहुत अपनापन मिला-सा लग रहा है।
    धन्यवाद!
    प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ...
    मनोज

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  10. 400 वीं पोस्ट और हेमंत की कविता लगाने के लिए आभार..........
    आपने तो इसे हमसे ज्यादा लोगों तक पहुंचा दिया.
    जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

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