Followers



Search This Blog

Friday, April 09, 2010

“मूर्खता का महीना और गधा करे शोर” (चर्चा मंच)

"चर्चा मंच" अंक - 116
चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक
"चर्चा मंच" की शुरुआत आज हम
नुक्कड़  और
JHAROKHA
की पोस्ट
दोस्ती के नाम 
से करते हैं! जिसमें श्रीमती पूनम श्रीवास्तव जी ने कहा है कि गलतफहमियो से दोस्ती में दरार आ जाती है-

                                    
मूर्खता का महीना और गधा करे शोर (अविनाश वाचस्‍पति) - शुरू हुआ है देखो अभी बीतता भी नहीं है कभी बीत जाएगा तब भी रीतेगा नहीं कभी रीतने पर भी कोई जीतेगा क्‍या कभी ? करना है इमेज पर क्लिक मेज पर नहीं ठकठकाना ...

दोस्ती के नाम
  नजदीकियां भी बन जाती हैं दूरियां, जब आपस में यूं ही हो जाती हैं गलतफ़हमियां। क्यूं मूक सी दीवार खड़ी है आज दिलों के दरमियां, कल तक जो डाले हाथों में हाथ करते थे खूब बातियां। भरोसे और विश्वास से ही चलती हैं जिन्दगानियां, इनके बगैर तो जिन्दगी हो जाती हैं
JHAROKHA
  JHAROKHA


भारतीय नागरिक - Indian Citizen


तस्वीर बोलती है... तस्वीरें भी बोलती हैं. मैं सोच रहा हूं कि चित्रों के लिये एक और ब्लाग बना लूं. कैसा आइडिया है सर जी.. अख्तर साहब, नाराज मत होइयेगा, बाकी धर्मस्थलों के अतिक्..
श्री ओम आर्य मौन के खाली घर में-
बता रहे हैं कि जरूरते किस प्रकार खून का पानी कर देती हैं- 

जरूरतें, विश्वास और सपना
जब तुम घोंप आये उसकी पीठ में छुरा मैंने देखाउ सके खून में पानी बहुत था जिन मामूली जरूरतों को लेकर तुम घोंप आये छुरा उन्ही जरूरतों ने कर दिया था उसका खून पानी**तुम बार-बार खोओगे विश्वास कहीं सुरक्षित रख केवे इधर-उधर हो जाते हैंरोजमर्रा कीकुछेक जरूरी चीजों के………….
मौन के खाली घर मे- ओम आर्य 
ओम आर्य


मेरी भावनायें...


गिरते हैं शहंशाह ही मैदाने जंग में हम तो हमेशा तलवार की धार पर साथ चले जब मैं कटी तो तुम भी लहुलुहान थे मैंने तुम्हें पट्टी बाँधी तुमने मुझे और प्यार के इस मरहम से मुस्कुराने लगे जब मेर...
युवा दखल  में
अशोक कुमार पाण्डेय ने 
अपनी श्रद्धाञ्जलि में विलाप के स्वर देते हुए
 नक्सलियों के अमानवीय कृत्य की 
भर्तस्ना करते हुए कहा है-


श्रद्धांजलि के स्वर में विलाप
  कौन चाहता है इन चिरागों को बुझाना?  मुझे भी दुख है उन ग़रीब जवानों की असमय मृत्यु पर…  तब भी होता है जब कहीं दुबकी सी ख़बर  होती है कि आठ नक्सली मारे गये...  तब भी जब दंगे में मारे गयी लाशें अख़बारों में लहू बहाती…….
युवा दखल   अशोक कुमार पाण्डेय


ज्योतिष की सार्थकता


ज्योतिष इन्सान को परिस्थितिजन्य विवशताओं से मुक्त होने का मार्ग दिखाता है!!!!!! प्रकृ्ति यानि--संतुलन। यह वस्तुत: वह अवस्था है जहाँ व्यवस्था अपने शुद्ध रूप में रहती है। असंतुलन, अव्यवस्था जैसी व्यवस्थायें विकृ्तियाँ मानी जाती हैं। हमार...
ताऊजी डॉट कॉम 
वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता मे : श्री रविकांत पांडेय - प्रिय ब्लागर मित्रगणों, हमें वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता के लिये निरंतर बहुत से मित्रों की प्रविष्टियां प्राप्त हो रही हैं. जिनकी भी रचनाएं शामिल की गई है...

लेखक परिचय :-
परिचय तो बस इतना है कि एक मुसाफ़िर जो खुद अपनी तलाश में है। फिलहाल आई. आई. टी. कानपुर में शोधरत। शेष कविवर प्रसाद के शब्दों में-
’छोटे से अपने जीवन की क्या बड़ी कथायें आज कहूं
क्या ये अच्छा नहीं, औरों की सुनता मैं मौन रहूं"
रवि मन पर आज श्री
रावेंद्रकुमार रवि ने 
साहित्यिक शब्दों से सुसज्जित 
अपनी 20 साल पुरानी रचना को प्रकाशित किया है- 
रवि मन

कैसे भूल जाऊँ? : रावेंद्रकुमार रवि - कैसे भूल जाऊँ? नहीं भूल सकता - केश-परिमल के नीहार में भ्रमर-सा खो जाना! झुकी पलकों की छाँव में पथिक-सा सो जाना! नहीं भूल पाता - रूप-जलधि की लह...
ज़िंदगी के मेले में श्री बी.एस.पाबला जी ने 
रात के नजारे सजाए है!
बीयर की दीवानगी ….के साथ-
  
ज़िंदगी के मेले

भिलाई के युवकों द्वारा निर्मित विश्व रिकॉर्ड की रजत जयंती: बीयर की दीवानगी, मोटरसाइकिल का बिगड़ना और रात का वह नज़ारा - भारत से रवानगी के बाद विदेशी धरती पर पहला कदम और मिस्त्र, इटली, ऑस्ट्रिया होते हुए मोटरसाइकिल पर विश्व भ्रमण का कीर्तिमान बनाने वाले भिलाई के दो नवयुवक रवा...


मिसफिट:सीधीबात
गुलदस्ता-ए-शायरी में 
सुश्री बबली बता रही है कि 
किसी से बिना सोचे-समझे दिल मत लगा बैठना-
GULDASTE - E - SHAYARI

- मुश्किल है किसीको समझ पाना, समझे बिना किसीसे  क्या दिल लगाना, आसान है किसी को प्यार करना, पर मुश्किल है किसी का प्यार पाना !
सुश्री वन्दना गुप्ता जी के एक प्रयास पर 
कथा पूर्ण हो गई है- 
एक प्रयास vandana gupta
ये मोड़ किस मोड़ पर ? ..............अंतिम भाग - गतांक से आगे ..................... अब निशि मंझधार में फँसी थी जिसका कोई साहिल ना था. अब उसे समझ आ रहा था घर , परिवार , पति , बच्चों का महत्त्व. अब उसे लग रह...
आप यहाँ इस समस्या का 
समाधान पा सकते हैं-
अमीर धरती गरीब लोग
 My Photoविवाह के समय पत्नी बायीं तरफ़ और पति दायीं तरफ़ क्यों बैठते हैं? - आज छोटी सी पोस्ट।हल्कि-फ़ुल्की,निर्मल आनंद के लिये।सभी से निवेदन है कि इसे उसी रूप मे ले।एक सवाल उठाया गया था दोस्तों के सत्संग में।सवाल ऐसा था जिससे मेरा द...
मजहब और खुदा का वास्ता देकर लगातार झूठ पर झूठ, 
और फिर सब कुछ कबूल ! 
का भेद आखिर श्री पी,सी,गोदियाल जी ने 
खोल ही दिया-

अंधड़ !
My Photo
बस एक ख़याल यूँ ही... - मजहब और खुदा का वास्ता देकर लगातार झूठ पर झूठ, और फिर सब कुछ कबूल ! हम तो यह भी नहीं पूछते कि पहले क्यों ना-नुकुर कर रहे थे जनाब ?और बन्दे की हिम्मत देखिय...
अदा जी लेकर आई हैं आज कुछ बढ़िया क्षणिकाएँ- 
image
काव्य मंजूषा

क्षणिकाएँ... - *एक्सपोर्ट .. * उसके खेतों में उपजे चावल अमेरिका एक्सपोर्ट हो गए और उसके बच्चे आज बिन खाए ही सो गए *रोटी...* मालकिन ने उसे आज रोटी नहीं दी थी क्योंकि...

झा जी कहिन
 
पूरे अंतरजाल में खुले सांड की तरह विचरते हैं , देखिए फ़िर हम कैसी चर्चा करते हैं , …….पोस्ट, पत्रिका, वीडियो, बज ….सब माल है जी .. - सबसे पहले चलते हैं बीबीसी ब्लोग्स की ओर देखिए क्या कह रहे हैं विनोद वर्मा जी हाइवे पर हम्माम [image: विनोद वर्मा] विनोद वर्मा | मंगलवार, 06 अप्रैल 2...


यशस्वी
उत्तराखंड की लोक संस्कृति है जागर कुमाउंनी संस्कृति के विविध रंग हैं जिनमें से एक है यहां की ‘जागर’। उत्तराखंड में ग्वेल, गंगानाथ, हरू, सैम, भोलानाथ, कलविष्ट आदि लोक देवता हैं और जब पूजा के...
अरे वाह…! 
यहाँ भी तो एक सुन्दर प्रेम गीत है-
Gyanvani

लिख ही दूँगी फिर से प्रेम गीत .... - लिख ही दूँगी फिर कोई प्रेम गीत अभी जरा दामन सुलझा लूं .... ख्वाब मचान चढ़े थे कदम मगर जमीन पर ही तो थे आसमान की झिरियों से झांकती थी टिप - टिप बूँदें भीगा..
लतीफे और हास्य का मज़ा लेने के लिए पढ़ें-

देशनामा
   
आंखों देखा भ्रम...खुशदीप - एक बुज़ुर्ग ट्रेन पर अपने 25 साल के बेटे के साथ यात्रा कर रहे थे... ट्रेन स्टेशन को छोड़ने के लिए तैयार थी... सभी यात्री सीटों पर अपना सामान व्यवस्थित क...
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से.....
जब एक हिन्दू माँ अपने बच्चे को नमाज़ के समय 
मस्जिद भेज देती...( भाग-दो ) 
- *मुझे याद है , मेरी माँ, जो एक हिन्दू महिला है, शुद्ध शाकाहारी परिवार,
शाम के नमाज़ के समय घर के गोद वाले बच्चों को भी, बड़े बच्चों के साथ मस्जिद भेज देत...


नन्हा मन


थैंक्यू अंकल अमर ( कविता ) *नमस्कार ,* *नन्हामन की नई सजावट और परिकल्पना देखकर किसी की भी पहली आवाज निकलेगी....वा......ओ.ओ.ओ.ओ.ओ.ओ.ओ.ओ । और इसे सजाने संवारने का पूरा श्रेय है डा. अमर...
कबीरा खडा़ बाज़ार में

ब्लॉगजगत का "DASHING GUY " :अनिल कान्त का साक्षात्कार - ब्लॉगप्रहरी ने अनिल कान्त को संपर्क किया और कई महत्वपूर्ण विषयों पर उनके विचार आमंत्रित किये. पेश है अनिल कान्त का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू ... *1 आपने ब्लाग...
के.सी.वर्मा जी आपको लेकर चलते हैं-

कंक्रीट के जंगलों में...!!! - कंक्रीट के जंगलों में ,इंसानियत खो गयी , इन्सान हो गये पत्थर के ,जिन्दगी कंक्रीट हो गयी । अब नही बहते आंसूं यहाँ ,किसी के लिए , इन पत्थरों के आंसूओं को, ये ...
अमेरिका में बैठे दीपक मशाल जी का 
दिल भी आहत हुआ है-
मसि-कागद
एक निहायत जरूरी पोस्ट, ये कोई मजाक नहीं------>>>दीपक 'मशाल' - नक्सली समस्या पर जो विचार मैं लिखना चाहता था और जो सवाल उठाना चाहता था वो कुछ तो गुस्से की वजह से सोच नहीं पाया और कुछ समयाभाव में... लेकिन आज एक ऐसी पोस्ट..
पढ़िय़े यह पोस्ट और देखिए 
एक मजेदार टिप्पणी-
जिसमें इन्होने उनका दम नाप लिया है-

"मेरी पुस्तक - प्रकाशित रचनाएँ : प्रेम फ़र्रुखाबादी"
उनकी रचना में नहीं जितना उनमें दम है -
उनकी रचना में नहीं जितना उनमें दम है।
उनके आगे तो मित्र क्या ठर्रा क्या रम है।
टिपण्णी करने जाता सिर पे पाँव रखे हुए
 मुहब्बत के लिए ये मेहनत बहुत कम है। ...

टिप्पणी

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक said...



उनके गानों को तुम कब तक गाओगे!
कब तक अपने मन को तुम भरमाओगे!
सपनों मे खो जाना इतना ठीक नही.
खारे सागर में कब तक उतराओगे!

8 April 2010 8:41 PM



Hasyakavi Albela Khatri




मुम्बई, राउरकेला, कोलकाता, लखनऊ और जयपुर के ब्लोगर्स से मिलने का संयोग बन सकता है एक बार फिर काव्य- यात्रा पर निकल रहा हूँ । शायद फिर कुछ ब्लोगर मित्रों से मुलाक़ात हो जाये । इस बार का टूर इस प्रकार है : 08 से 09 एप्रिल - मुम्बई 10 ...
अंतर्मंथन

विश्व स्वास्थ्य दिवस पर मिला , डॉक्टरों को सम्मान --- - सतयुग , त्रेता युग, द्वापर युग और अब कलयुग । कलयुग यानि काला युग। काला धंधा , काला धन , काला अंतर्मन । यही तो है कलयुग का प्रभाव। इस प्रभाव से कोई भी क्षेत्...
नवगीत की पाठशाला में
"आतंक का शाया" के नाम से 
कार्यशाला-8 का आग़ाज़ हो चुका है-






कार्यशाला : ०८ : आतंक का साया आतंक का साया कार्यशाला : ०७ की अपार सफलता के लिए इसमें प्रतिभाग करनेवाले सभी नवगीतकार विशेष बधाई के पात्र हैं। नवगीत की पाठशाला में आयोज्य आठवीं कार्यशाला क..




और अन्त में दोहे भी देख लीजिए-
हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर
दोहा श्रृंखला (दोहा क्रमांक ८३) - *लडकी घर से दूर है,* *लड़का बसा विदेश . * *ममता सिसके गाँव में.* *बदला यूँ परिवेश .. * *- विजय तिवारी "किसलय "*

अब दीजिए आज्ञा!

23 comments:

  1. शास्त्री जी बहुत मेहनत का काम कर रहे हैं सभी चर्चाकार और ये निश्चित ही ब्लागजगत की उन्नति के लिये आवश्यक प्रयास है।आभार आपका।

    ReplyDelete
  2. शास्त्री जी बहुत मेहनत का काम कर रहे हैं सभी चर्चाकार और ये निश्चित ही ब्लागजगत की उन्नति के लिये आवश्यक प्रयास है।आभार आपका।

    ReplyDelete
  3. शास्त्री जी विस्तृत चर्चा और बढ़िया लिंक देने के लिए आभार...

    लेकिन आज तो मैंने सीरियस पोस्ट लिखी थी...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  4. बहुत अच्छे लिंक्स के साथ विस्तृत चर्चा ...
    चर्चा में शामिल किये जाने का बहुत आभार ...!!

    ReplyDelete
  5. बढ़िया और विस्तृत चर्चा...नए लिंक्स भी मिले...आभार

    ReplyDelete
  6. मूर्खता का महीना और गधा भला शोर कैसे नहीं करेगा , उसने कंप्यूटर जो सीख लिया है और स्कूल से पहले ही दिन टीचर की आंख बचा कर भाग निकला तो भला शोर कैसे नहीं करेगा । विश्वास न हो तो देखिए नन्हामन पर
    गधे नें सीख लिया कंप्यूटर
    http://nanhaman.blogspot.com/2010/03/blog-post_26.html
    गधे नें बस्ता एक लिया
    http://nanhaman.blogspot.com/2010/03/blog-post_8826.html

    ReplyDelete
  7. शास्त्री जी आपने बहुत ही सुन्दरता से विस्तारित रूप से चर्चा किया है जो बहुत अच्छा लगा! मेरी शायरी चर्चा पर लाने के लिए शुक्रिया!

    ReplyDelete
  8. बेहद सुन्दर च विस्तृ्त चर्चा शास्त्री जी!!
    आभार्!

    ReplyDelete
  9. शास्त्री जी विस्तृत चर्चा और बढ़िया लिंक देने के लिए आभार...

    ReplyDelete
  10. विस्तृत चर्चा और बढ़िया लिंक सब एक ही जगह सुलभ हो जाता है……………आभार्।

    ReplyDelete
  11. Aapki mehnat bilkul pratyaksh hai is post me.. abhar

    ReplyDelete
  12. मेरी पोस्ट शामिल करने के लिये आभार…पूरी चर्चा ही उपयोगी है…

    ReplyDelete
  13. चर्चा के लिए आभार.
    - विजय

    ReplyDelete
  14. आज की चर्चा
    विस्तृत होने के बाद भी
    शुरू से अंत तक अपने यौवन को
    बनाए रखने में सफल रही है!
    --
    इतनी सशक्त और नियमित चर्चाएँ तो
    केवल "चर्चा मंच" पर ही देखने को मिलती हैं!

    ReplyDelete
  15. देर से आने के लिए क्षमा...
    बहुत अच्छी चर्चा...अच्छे लिंक हैं...
    मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए धन्यबाद....

    ReplyDelete
  16. विस्तृत चर्चा और बढ़िया चर्चा

    ReplyDelete
  17. शास्त्री जी, को मेरा हार्दिक धन्यवाद की उन्होंने मेरी रचना को चर्चा-मंच के लायक समझा ..आभार

    ReplyDelete
  18. ये तो महा चर्चा हो गई शास्त्री जी ।
    बड़ी मेहनत का काम किया है आपने ।
    आभार।

    ReplyDelete
  19. बेहतरीन चर्चा...खूब लिंक्स..बधाई.

    *********************
    "शब्द-शिखर" के एक साथ दो शतक पूरे !!

    ReplyDelete
  20. आज सभी से आग्रह की मेरी पोस्‍ट जरूर पढे। मैं ऐसा कभी लिखती नहीं हूँ लेकिन आज लिखने को मजबूर हूँ।

    ReplyDelete
  21. मेरे अपने सभी सुधि पाठक ,सुधि श्रोता और नवोदित, वरिष्ठ,तथा मेरे समय साथ के सभी गीतकार,नवगीतकार और साहित्यिक मित्रों को समर्पित आज का यह नया गीत विद्रूप यथार्थ की धरातल पर सामाजिक व्यवस्था और प्रबंधन की चरमराती लचर तानाशाही के कुरूप चहरे की मुक्म्मल बदलाव की जरूत महसूस करता हुआ नवगीत !
    साहित्यिक संध्या की सुन्दरतम शीतल बासंती बेला में निवेदित कर रहा हूँ !आपकी प्रतिक्रियाएं ही इस चर्चा और पहल को सार्थक दिशाओं का सहित्यिक बिम्ब दिखाने में सक्षम होंगी !

    और आवाहन करता हूँ "हिंदी साहित्य के केंद्रमें नवगीत" के सवर्धन और सशक्तिकरण के विविध आयामों से जुड़ने और सहभागिता निर्वहन हेतु !आपने लेख /और नवगीत पढ़ा मुझे बहुत खुश हो रही है मेरे युवा मित्रों की सुन्दर सोच /भाव बोध /और दृष्टि मेरे भारत माँ की आँचल की ठंडी ठंडी छाँव और सोंधी सोंधी मिटटी की खुशबु अपने गुमराह होते पुत्रों को सचेत करती हुई माँ भारती ममता का स्नेह व दुलार निछावर करने हेतु भाव बिह्वल माँ की करूँणा समझ पा रहे हैं और शनै शैने अपने कर्म पथ पर वापसी के लिए अपने क़दमों को गति देने को तत्पर है!.....

    समय आज
    सहमत नहीं दिखता
    बिन मालिक की फ़ौज
    खाली तर्कस
    धरे पिठाहीं
    धनुष हाथ के टूटे !
    युद्ध विरत
    योद्धाओं के
    मनसूबे पढ़ पढ़
    बेखौप चील
    आजादी के
    रह रह अस्थी पंजर लूटे !
    ढोल नगाड़े
    हाँथ तोड़ते
    मुंह का अखरा
    कंठ में अरझा
    बेबस आँख
    उदास हुई हैं,
    गूंगी बहरी
    रातें
    पलकों ठहरी
    खिड़की कान धरे
    दिन की दहशत
    हिचकी प्यास हुई हैं,
    दुध दोहनियाँ
    तक्षक मालिक
    खामोश सिसकियाँ
    शैशव जी भर जीते
    गाय बंधी
    लाचार के खूंटे !
    समय आज
    सहमत नहीं दिखता
    बिन मालिक की फ़ौज
    खाली तर्कस
    धरे पिठाहीं
    धनुष हाथ के टूटे !
    युद्ध विरत
    योद्धाओं के
    मनसूबे पढ़ पढ़
    बेखौप चील
    आजादी के
    रह रह अस्थी पंजर लूटे !
    सूखा कर्ज
    बाढ़ की विपदा
    गूलर छालें
    पेट उतारी
    जैसे खेतों
    खलिहानों की ज्याबर,
    अब राज
    पथों पर
    पाँव कांपते
    तरह तरह
    सिर बोझ लगानें
    नाहर कुत्ते हैं कद्दावर,
    हवन कुंड का
    धुंआँ देखकर
    बुझते
    चूल्हों के घर
    रट रट के महाभारत
    फुग्गों जैसे फूटे !
    समय आज
    सहमत नहीं दिखता
    बिन मालिक की फ़ौज
    खाली तर्कस
    धरे पिठाहीं
    धनुष हाथ के टूटे !
    युद्ध विरत
    योद्धाओं के
    मनसूबे पढ़ पढ़
    बेखौप चील
    आजादी के
    रह रह अस्थी पंजर लूटे !
    डुगडुगी बजाकर
    आज लुटेरा
    लूट रहा है
    इंद्रजाल के
    वसीभूत
    हंस हंस कर हम लुटते,
    अंजुरी भरी
    भभूत
    अफ़सोस करें
    किस बाजू से
    पंजीरी सा
    धर्म ध्वजाओं में बंटते,
    पँडाओं की
    चाँडाल चौकड़ी
    खुशगवार
    ताबीज दिखाकर
    महुआ जैसे
    आँगन आँगन कूटे !
    समय आज
    सहमत नहीं दिखता
    बिन मालिक की फ़ौज
    खाली तर्कस
    धरे पिठाहीं
    धनुष हाथ के टूटे !
    युद्ध विरत
    योद्धाओं के
    मनसूबे पढ़ पढ़
    बेखौप चील
    आजादी के
    रह रह अस्थी पंजर लूटे !
    भोलानाथ
    डॉराधा कृष्णन स्कूल के बगल में
    अन अच्.-७ कटनी रोड मैहर
    जिला सतना मध्य प्रदेश .भारत
    संपर्क – 8989139763

    ReplyDelete

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।