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शनिवार, अगस्त 14, 2010

चोरी का एक और कारनामा "चर्चा मंच-245" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")



बलिदानों से है मिली, आजादी अनमोल।
इस माटी को कर नमन, जहर न इसमें घोल।।
आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ-
आज भी दोहों से सुशोभित चर्चा मंच!



साईंस ब्लागर्स अशोसियेशन ने विज्ञानं लेखन में कदाचार के मुद्दे पर लेखकों को 
निरंतर आगाह किया है  लोगों को फिर भी मगर शर्म नहीं आती ...
साहित्यिक चोरी का ताज...

साहित्यिक चोरी करें, बिना रोक और टोक।
चोरी की घटनाओं पर, कौन लगाए रोक। 


 कजरी भले ही पावस गीत के रूप में गायी जाती हो पर लोक रंजन के साथ ही इसने लोक जीवन के विभिन्न पक्षों में सामाजिक चेतना की अलख जगाने का भी कार्य किया है। कजरी...

कजरी में भी गूँज रहे हैं, आजादी के बोल।
सासाजिक समरसता के, त्यौहार बहुत अनमोल।।



इस सोने के देश में, सौ करोड़ इन्सान
तीज और त्यौहार हैं, भारत माँ की शान।।


मरू भूमि राजस्थान ...बरसों सूखी पड़ी धरा के साथ सामंजस्य स्थापित करते यहाँ के वासियों ने अपनी जीवटता से अपने लोक उत्सवों और रंग बिरंगे परिधानों से गिने चुने...


संस्मरण की श्रृंखला, रोचक सुखद ललाम।
दूध और पानी सदा, देता है आराम।।

 जब बच्‍चे छोटे थे , तो जिस कॉलोनी में उनका पालन पोषण हुआ , वहां दूध की व्‍यवस्‍था बिल्‍कुल अच्‍छी नहीं थी। दूध का व्‍यवसाय करने वाले घर घर पानी मिला दूध पह...



मन है मन्दिर ईश का, पाहन में भगवान।
जो कण-कण में रम रहा, वो ही तो है राम।।

अभी कुछ दिन पहले मुझे ये ख्याल आया था कि खाली दिमाग कवि का घर ..
.ये बात कही तो मैंने बहुत ही लाईट मूड में थी. पर फिर हाल ही में ,
आजकल के कवियों पर पढी ए..

परेशान हर व्यक्ति है, किन्तु वतन आजाद।
ऐसे जंगलराज में, कहाँ करें फरियाद।। 

स्वतंत्रता दिवस पर विशेष : कितनी शर्मनाक है हमारी व्यवस्था स्वतंत्रता के पश्चात भी हमारी पुलिस व्यवस्था व न्याय व्यवस्था में सुधार होने के बजाए कितनी गिरावट आई है उसका तजा तरीन उदहारण बाराबंकी जनपद में कृष्णा नाम .

पहले केवल कान थे, अब हो गई जबान।
दीवारों को देखकर, घरभर है हैरान।।
मेरे घर की दीवालों ने बातें करना सीख लिया है गूंगे कमरे के आलों ने कुछ-कुछ कहना सीख लिया है अब उतना भी ना तन्हा होता जब मैं तन्हा होता हूँ.. तन्हाई ने ...
..

जीवाणु के वार से, बचा नही है कोय।
ऐसी धरती ढूँढ लो, जहाँ कीट नही होय।।

बैक्टीरिया या वायरस का नाम सुनते ही कँपकँपी आना किसी के लिए भी स्वाभाविक है, 
क्यों कि हम सब की सामान्यत यह धारण है कि जीवाणु रोग उत्पति के कारण है,
र इनका...


जल्दी ही भर जायेंगे, बाहर के सब घाव।
किन्तु कोई नही भूलता, छल-बल का बर्ताव ।। 


दिल पर लगे घाव को अब छुपाये कैसे, 
मन में बसी यादों को अब भुलाये कैसे, 
काश कोई जादू हो और उम्मीदों के फूल खिले, 
और हमारे संग सारा जग मुस्कुराता चले !


गीत-गजल के साथ में, सुन्दर-सुन्दर भाव ।
लेकिन सागर तीर पर, मिली न शीतल छाँव।।
** *रेत पर चल रहे हैं कदम जमा जमा कर न जाने कौन सी लहर हो तूफाँ से हाथ मिलाये हुए 
किसी को पँख मिले हैं परवाज़ के लिये किन्हीं क़दमों को सरकने की गर्मी भी न ...
.

मन की और मस्तिष्क की, गाथा बहुत विचित्र।
मस्तक करता है मनन, मन का भिन्न चरित्र।।

इस मस्तिष्क की भी , एक निराली कहानी है , 
कभी स्थिर रह नहीं पाता, विचारों का भार लिए है , 
शांत कभी न हो पाता , कई विचारों का सागर है , कुछ प्रसन्न कर देते हैं...


सास-बहू के आचरण, दिये खूब बिखराय।
छोटी सी इस कथा ने, मर्म  दिया समझाय।।
 *केंद्र* *लघुकथा -सत्येन्द्र झा* 
उसकी माँ और पत्नी में छत्तीस का आंकड़ा था। 
बेचारा थका-मांदा जब शाम को घर आये तो पत्नी दरवाज़े पर से ही माँ के प्रति वि...



नुक्कड़ के सहयगियों, सुन लो कान लगाय।
नियम-व्यवस्था मानकर, नुक्कड़ दो चमकाय।।
मैंने कुछ दिन पूर्व विनम्र निवेदन किया था कि अन्‍य ब्‍लॉग पर लगाई गई 
अपनी पोस्‍टें नुक्‍कड़ पर पूरी प्रकाशित न किया करें 
और जब उसके कुछ अंश का उल्‍लेख करें...
.

जिनको फूलों ने दिये, जख्म हजारों बार।
काँटों पर कैसे करें, बतलाओ इतबार।।

कुछ पल का मिलना फिर बिछड़ जाना क्या जरूरी है ? 
कुछ देर रुके होते दो बात की होती 
कुछ अपनी कही होती कुछ मेरी सुनी होती
 कुछ दर्द लिया होता कुछ दर्द दिया होता...

स्वरोदय विज्ञान का, सुन्दर किया बखान।
नासिकाओं के श्वाँस का, वर्णन ललित-ललाम।।

*अंक-4*** *स्वरोदय विज्ञान*** [image: मेरा फोटो]आचार्य परशुराम राय [image: image]
 हमारी साँसें दोनों नासिकाओं से हमेशा नहीं चलतीं। ये कभी बायीं नासिका से...

माधव की चर्चा तो बाल चर्चा मंच पर भी लगी होगी।
 मामा के साथ कोलोनी के मंदिर गया , वहाँ जय श्री राम का उदघोष हो रहा था . पंडित जी में मेरे ललाट पर तिलक लगा दिया . तिलक बहुत ही जबरदस्त था, इतना जबरदस्त की ...
.

सबको ही बू आ रही, कोई न देता ध्यान।
क्या ऐसे ही बनेगा, भारत देश महान।।
रोज़ बामुश्किल यह शहर संभलता है सांझ ढलते फिर धूँ-धूँ कर जलता है . 
रहनुमा आँकड़ों ने जब से हाल पूछा है बेहोशी के आलम मे भी उछलता है . 
हो रही है चहलकदम... ...
अपने भारत देश में, भाँति-भाँति के लोग।
कुछ तो करते योग हैं, कुछ अपनाते भोग।।
इस कदर को जिंदगी को क्यूँ उलझाते हैं लोग
हैं जहाँ मुश्किले वहीं क्यूँ दिल लगते हैं लोग ॥ 
अनसुलझी पहेली बन के रह गयी जिन्दगी , 
फिर क्यूँ नही इस पहेली को सुलझ...
.

कल की चर्चा करेंगे, आदरणीय मनोज।
सुन्दर-सुन्दर लिंक को, वो लेते हैं खोज।।

9 टिप्‍पणियां:

  1. दोहों भरी चर्चा मैं बहुत आनंद आया |बधाई
    मेरी कविता आज के चर्चा मंच मैं शामिल करने के लिए आभार |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  2. आप तो बस कमाल करते हैं...
    हमेशा की तरह...बहुत सुन्दर चर्चा..
    आभार...

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही मनभावन दोहावली से सुसज्जित चर्चा की है……………आभार्।

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह्! शास्त्री जी...एकदम मनभावन चर्चा!

    जवाब देंहटाएं
  5. चर्चा मंच के चर्चा का अन्दाज निराला है
    बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं

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