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रविवार, अगस्त 08, 2010

रविवासरीय (०८.०८.२०१०) चर्चा

नमस्कार मित्रों!

रुकते थमते से ये कदम

सप्तरंगी प्रेम पर सप्तरंगी प्रेम

' ब्लॉग पर प्रस्तुत है आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती शिखा वार्ष्णेय जी की कविता 'रुकते थमते से ये कदम'.
रुकते थमते से ये कदम
अनकही कहानी कहते हैं
यूँ ही मन में जो उमड़ रहीं
ख्यालों की रवानी कहते हैं
रुकते थमते.....

My Photoदिल्ली की अदालत में विकलांग बच्चों की मां को दो बरस की छुट्टी

भाषा,शिक्षा और रोज़गार पर शिक्षामित्र बता रहे हैं कि

दिल्ली की अदालतों में कार्यरत महिलाक र्मियों को केन्द्र सरकार से राहत भरा पैगाम मिला है। सरकार ने विकलांग बच्चों की देखभाल के लिए महिला कर्मचारियों को अधिकतम दो वर्ष तक का अवकाश देने की व्यवस्था की है । केन्द्र के कार्मिक , जनशिकायत व पेंशन(कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग) मंत्रालय की अनुशंसा पर डिस्ट्रिक्ट एवं सेशन जज की तरफ से सरकुलर जारी कर संबंधित विभागों को इस बाबत सूचित कर दिया गया है। दरअसल महिला क र्मचारियों को पहले से ही बच्चों की देखभाल के लिए अतिरिक्त अवकाश दिए जाने का प्रावधान रहा है। लेकिन महिला कर्मचारियों के हिसाब से यह अवधि उनके लिए नाकाफी थी। विशेषकर जिन महिला कर्मचारियों के कंधों पर अपने विकलांग बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी है। मंत्रालय ने इन्ही मसलों पर विचार करते हुए अवकाश अवधि 730 दिन की तय की है।

सुदूर संवेदन (Remote Sensing) (संस्मरण)

मनोभूमि पर Manish बता रहें कि

    बहुत साल पहले, जब हम डेढ़-दो फुट के रहे होंगे… तब की बात है  नानी जी के कच्चे घर में इधर उधर लुढ़कता रहता था… सभी ने कोशिश तो बहुत की थी कि मैं चलना सीख जाऊँ लेकिन हम ज़रा आलसी टाइप के थे… जल्दी कैसे सीख सकते हैं… सामान्यतः 9 महीने के 10 दिन आगे पीछे बच्चे जन्म ले ही लेते हैं… लेकिन हमने 10 महीने से भी 10 दिन ज्यादा का समय लिया था… मम्मी जी डर रही थी कि कहीं तुलसीदास फिर से न जन्म ले लें यह तो अच्छा हुआ था कि दाँत नही निकले थे…

साहित्य की थारी

शिल्पकार के मुख से सुनिए ललित शर्मा द्वारा

कवि रामेश्वर शर्मा जी का एक गीत
शिल्पकारसाहित्य की थारी
पुस्तक के पृष्ठों में सजी कविता की फ़ुलवारी है
प्यारे शब्द फ़ूलों जैसे पंक्ति क्यारी-क्यारी है।
गीत-गीतिका, कवित्त, सवैया,मुक्तक,छंद कविता
दोहा,सोरठा,चौपाई,कुंडलियाँ,  काव्य सरिता
अतुकांत छणिकाओं की ये साध्य रचना प्यारी है।

प्रदूषण

राजभाषा हिंदी पर संगीता स्वरुप ( गीत ) की प्रस्तुति

 

                                                         

जीवन के आधार वृक्ष हैं ,

                                                                                                       

जीवन के ये अमृत हैं                                                                              

फिर भी मानव ने देखो,                                                                         

इसमें विष बोया है.                                                                               

स्वार्थ मनुष्य का हर पल                                                                        

उसके आगे आया है                                                                              

अपने हाथों ही उसने                                                                              

अपना गला दबाया है

ताऊ टी वी का "पति पीटो रियलिटी शो": ताऊ पर बरसे ताई के लट्ठ

Gyan Darpan ज्ञान दर्पण पर Ratan Singh Shekhawat बता रहे हैं

आजकल देश के विभिन्न टी वी चेनलों पर रियलिटी शो चल रहे है तो अपने अनोखे प्रोग्रामों के लिए कुख्यात ताऊ टी वी चेनल कैसे पीछे रह सकता है इसीलिए इसी क्रम में ताऊ टी वी ने भी "पति पीटो रियलिटी शो "का आयोजन शुरू कर रखा ,इसके लिए कुछ प्रतिभागी तो ताऊ टी वी हाउस में पहुँच कर पत्नियों से पिट भी चुके थे उन्ही पिटे हुए किसी पति ने हाउस से भागकर ताई को ताऊ टी वी की इस करतूत की जानकारी दे दी ,ताई को जब रियलिटी शो के कार्यक्रम में भाग लेने की पात्रता के लिए लट्ठ चलाने की योग्यता होनी चाहिए पता चला तो यह सोच कर कि अब भला ताई से ज्यादा इस काम में कौन निपुण हो सकता है सो ताई भी अपना जर्मन मेड लट्ठ लेकर हाउस में आ धमकी | ताई को अचानक सामने देख ताऊ ने रमलू सियार को इशारा कर हाउस के सभी केमरे बंद करवा दिए पर ताई को तो केमरों से कोई मतलब ही नहीं था उसे तो बस वहां लट्ठ चला अव्वल आकर सिर्फ ये दर्शाना था कि लट्ठ चलाने में ताई का कोई मुकाबला नहीं |

प्रकाश एक तरंग : वेग, गति समय व अवधि

"हिन्दी भारत" पर डॉ.कविता वाचक्नवी

मौलिक विज्ञानलेखन लेखन के तहत

गतांक से आगे  बता रही हैं

प्रकाश सूर्य से पृथ्वी तक कितने समय में और कैसे पहुँचता है?
विश्वमोहन तिवारी (भू.पू. एयर वाईस मार्शल)

प्रकाश का वेग अनंत नहीं है जैसा कि प्राचीन काल में समझा जाता था। यह सच है कि उसका वेग हमारे लिये अकल्पनीय रूप से अधिक है, सामान्य घटनाओं के लिये अनंत-सा ही है - शून्य में प्रकाश का वेग ३ लाख कि.मी. प्रति सै. है। और प्रकाश का एक गुण बहुत ही विचित्र है। यदि हम एक बहुत तीव्र राकैट में बैठ कर जा रहे हों जिसका वेग १ लाख कि.मी. प्रति सैकैण्ड है, और हम उसमें एक टार्च से प्रकाश सामने की ओर फ़ेंकें तब उस प्रकाश का वेग ४ लाख कि. मी. प्रति सैकैण्ड न होकर ३ लाख कि. मी. प्रति सैकैण्ड ही रहेगा। और यदि उस राकैट से हम प्रकाश पीछे की ओर फ़ेंकें, तब भी उसका वेग २ लाख कि.मी. प्रति सैकैण्ड न होकर वही ३ लाख कि. मी. प्रति सैकैण्ड होगा।

My Photoइफ़ बास इज़ रांग?

अमीर धरती गरीब लोग पर Anil Pusadkar प्रस्तुत कर रहे हैं

एक छोटी सी पोस्ट। यदि आफ़िस मे बास ही गेम खेलने लगे तो वो बाकी लोगों को कैसे मना करेगा?संजीत ने आगे लिखा कि हमको जवाब मांगता है बास!जवाब तो मैं उसे कल ही दे देता मगर रात ज्यादा हो गई थी इसलिये सोचा आज उठते ही गुरू/चेले टू-इन-वन को जवाब दिया जाये,मगर जवाब देते-देते रात हो ही गई।तो संजीत बाबू कभी हमने एक पोस्टर देखा था एक अखबार के दफ़्तर में।उस पर लिखा था दफ़्तर के दो रूल यानी नियम।पहला बास इज़ आलवेज़ राईट और दूसरा इफ़ बास इज़ रांग सी रूल नम्बर वन।तो समझ गये ना संजीत बाबू कि हम अगर गेम भी खेलें तो वो काम की श्रेणी मे आयेगा और अगर बाकी लोग काम भी करें तो वो खेल ही कहलायेगा।ठीक वैसे ही जैसे नेता कर रहे हैं जनता के साथ और जो जनता करती है वो तो खेल ही ना लोकतंत्र के साथ,देश के साथ और तो और खुद के साथ।और नेता जो करते है वो काम है सिर्फ़ काम्।क्यों सही कहा ना!

मेरा फोटो'ज्‍योतिषीय योग' की पुस्‍तकों में स्थित 'पंच महापुरूष योग'

गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष पर संगीता पुरी बता रहीं हैं

ज्‍योतिष शास्‍त्र की 'ज्‍योतिषीय योग' की पुस्‍तकों में 'पंच महापुरूष योग' का वर्णन है , जिनके नाम रूचक , भद्र , हंस , मालब्‍य और शश हैं। इन पांचों में कोई एक योग होने पर भी जातक महापुरूष होता है एवं देश विदेश में कीर्ति लाभ कर पाता है। मंगल अपनी राशि का होकर मूल त्रिकोण में अथवा उच्‍च राशि का होकर केन्‍द्र में स्थित हों , तो रूचक योग , बुध अपनी राशि का होकर मूल त्रिकोण में  अथवा उच्‍च राशि का होकर केन्‍द्र में स्थित हो तो भद्र योग , बृहस्‍पति अपनी राशि का होकर मूल त्रिकोण में अथवा उच्‍च राशि का होकर केन्‍द्र में स्थित हो , तो हंस योग , शुक्र अपनी राशि का होकर मूल त्रिकोण में अथवा उच्‍च राशि का होकर केन्‍द्र में स्थित हो , तो मालब्‍य योग तथा शनि अपनी राशि का होकर मूल त्रिकोण या उच्‍च राशि का होकर केन्‍द्र में स्थित हो , तो जन्‍मकुंडली में शश योग बनता है।

My Photoहिन्दू मुस्लिम भाई-भाई??

सम्वेदना के स्वर पर सम्वेदना के स्वर कहते हैं

कितनी आसानी से आए दिन, बहुसंख्यक शब्द का प्रयोग, हिंदू धर्म के मानने वालों के लिये किया जाता है और अल्प संख्यक शब्द का इस्तेमाल आमतौर पर मुस्लिम धर्म को मानने वालों के लिये किया जाता है! यह प्रयोग यही दिखाता है कि धार्मिक पहचान हमारे मन-मस्तिष्क में कितनी गहरी पैठी हुई है. वरना हम कहते धार्मिक बहुसंख्यक या धार्मिक अल्पसंख्यक.

अब बढ़ना बन्द

न दैन्यं न पलायनम् पर  प्रवीण पाण्डेय कहते हैं

ज्ञानी कहते हैं कि जीवन में शारीरिक ढलान बाद में आता है, उससे सम्बन्धित मानसिक ढलान पहले ही प्रारम्भ हो जाता है। किसी क्रिकेटर को 35 वर्ष कि उम्र में सन्यास लेते हुये देखते है और मानसिक रूप से उसके साथ स्वयं भी सन्यास ले लेते हैं। ऐसा लगता है कि हमारा शरीर भी अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के लिये ही बना था और अब उसका कोई उपयोग नहीं। घर में एक दो बड़े निर्णय लेकर स्वयं को प्रबुद्ध समझने लगते हैं और मानसिक गुरुता में खेलना या व्यायाम कम कर देते हैं। एक दो समस्यायें आ जायें तो आयु तीव्रतम बढ़ जाती है और स्वयं को प्रौढ़ मानने लगते हैं, खेलना बन्द। यदि बच्चे बड़े होने लगें तो लगता है कि हम वृद्ध हो गये और अब बच्चों के खेलने के दिन हैं, अब परमार्थ कर लिया जायें, पुनः खेलना बन्द। कोई कार्य में व्यस्त, कोई धनोपार्जन में व्यस्त, व्यस्तता हुयी और शारीरिक श्रम बन्द।

मेरा फोटो“आया है चौमास!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

उच्चारण पर डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक की प्रस्तुति                                               

खेतों में हरियाली लेकर आया है चौमास!
जीवन में खुशहाली लेकर आया है चौमास!!
सन-सन, सन-सन चलती पुरुवा, जिउरा लेत हिलोर,
इन्द्रधनुष के रंग देखकर, नाचे मनका मोर,
पकवानों की थाली लेकर आया है चौमास!
जीवन में खुशहाली लेकर आया है चौमास!!

My Photoजहाँ ईश्वर को लिखी जाती है पाती

डाकिया डाक लाया पर KK Yadav कहते हैं

आपने वो वाली कहानी तो सुनी ही होगी, जिसमें एक किसान पैसों के लिए भगवान को पत्र लिखता है और उसका विश्वास कायम रखने के लिए पोस्टमास्टर अपने स्टाफ से पैसे एकत्र कर उसे मनीआर्डर करता है। दुर्भाग्यवश, पूरे पैसे एकत्र नहीं हो पाते और अंतत: किसान डाकिये पर ही शक करता है कि उसने ही पैसे निकाल लिए होंगे, क्योंकि भगवान जी कम पैसे कैसे भेज सकते हैं.

किलक उठा मन : रावेंद्रकुमार रवि की एक बालकविता

सरस पायस पर रावेंद्रकुमार रवि की बाल कविता                                           

किलक उठा मन
बादल मशकें
भर-भर लाए
सागर के पानी से नभ में!
लगे छिड़कने
फिर यह पानी
वे धरती के हर उपवन में!

 

18 टिप्‍पणियां:

  1. रविवासरीय चर्चा बहुत सुन्दर रही!
    --
    बहुत-बहुत आभार!

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  2. मनोज जी,
    कवि रामेश्वर शर्मा जी के गीत की चर्चा के लिए शुभकामनाएं।
    आभार

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  3. सार्थक चिट्टा चर्चा ! आभार आपका !

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  4. बहुत बढिया चर्चा…………………आभार्।

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  5. बड़ी अच्छी चर्चा रही. सुन्दर लिंक. सुन्दर रचनाएं. आनंद आ गया. धन्यवाद्.

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  6. भाषा,शिक्षा और रोज़गार की पोस्ट लेने के लिए आभार। कुछ अन्य महत्वपूर्ण आलेख छूट जाते अगर आपने उनका लिंक यहां न दिया होता।

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  7. मनोज जी चर्चा बहुत सुन्दर रही ..शुभकामनाये.

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