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मंगलवार, नवंबर 09, 2010

ज़िंदगी के रूप , समीकरण और उद्दघोष …साप्ताहिक काव्य मंच –24 …चर्चा मंच 333

नमस्कार , पिछला सप्ताह त्योहारों में बीता ….ब्लॉग्स पर भी दीपावली की चमक दिखाई दी …..इस दीपोत्सव पर बहुत अच्छे संदेशों से सजी रचनाएँ पढने को मिलीं …सभी पाठकों के लिए कामना है कि जीवन में यूँ ही प्रकाश रहे … लेकिन इस प्रकाश को बनाये रखने के लिए हमें स्वयं ही प्रयास करने होंगे ….मुँह में राम और बगल में छुरी ले कर हम केवल अन्धकार को ही निमंत्रण देते हैं …..अत: हमें अपने अंतस को प्रकाशित करना है …आज की चर्चा प्रारम्भ करते हैं कुछ ऐसे ही भावों से सजे शास्त्री जी के इस गीत से ………..
मेरा फोटो
डा०  रूपचन्द्र शास्त्री जी बहुत सुन्दर भावों से सजी रचना लाये हैं …..जिसमें वह कहना चाहते हैं कि उनका मन ऐसे लोगों से नहीं मिलता जो मात्र दिखावा करते हों ….जीवन में श्रम के महत्त्व को बताते हुए कहते हैं कि मेहनतकश लोंग ही सुख की नींद पाते हैं …
मेरा  अन्तर  नहीं  मिलता  है
अन्तर रखने वालों से, मेरा अन्तर नही मिलता है।
जब आती है हवा, तभी बूटा-पत्ता हिलता है।।
जीवन कभी कठोर कठिन है, कभी सरल सा है,
भोजन अमृत-तुल्य कभी है, कभी गरल सा है,
माली बिना किसी उपवन में, फूल नही खिलता हैं।
जब आती है हवा, तभी बूटा-पत्ता हिलता है।।

  बीना अवस्थी जी की एक ओजपूर्ण  रचना पढ़िए मनोज ब्लॉग पर ..उद्धोष
शक्ति का आह्वान कर अब क्रान्ति को आवाज दे।
हिल उठे दिग्गज धरा सब तू छेड़ ऐसा राग दे।
रूप नायक के लिखे ग्रन्थ सारे नष्ट कर दे,
विरह की वो अश्रुगाथा महाउदधि को भेंट दे दे,
द्वेष के फैले तिमिर में प्रीति के दीपक जला दे,
अज्ञान की काली निशा में ज्ञान का आलोक भर दे,
आज तो अवसर खड़ा है युद्ध का उद्घोष कर दे।
 दिगंबर नासवा जी एक तरही गज़ल ले कर आये हैं …. 
                     
                      महके उफक महके ज़मीं हर सू खिली है चाँदनी
                      तुझको नही देखा कभी देखी तेरी जादूगरी
                        सहरा शहर बस्ती डगर उँचे महल ये झोंपड़ी 
                         जलते रहें दीपक सदा काइम रहे ये रोशनी
                        है इश्क़ ही मेरी इबादत इश्क़ है मेरा खुदा 
                              दानिश नही आलिम नही मुल्ला हू 
न मैं मौलवी
स्वप्न मंजूषा जी एक    अप्रत्याशित दुर्घटना ....  को बहुत मार्मिक शब्दों में बयाँ कर रही हैं …..जिसे पढ़ कर पता चलता है कि समाज में कैसी कैसी हैवानियत फैली हुई है …
सुना है,  
शायद... आज वो पकड़ी गई...
उसका नकारा पति, आवारा देवर, और वहशी ससुर
उसे बाल से पकड़ कर घसीटते हुए ले आये होंगे
लात, घूसे, जूते से मारा होगा 
सास की दहकती आँखें,
उस दहकते हुए सरिये से कहाँ कम रही  होगी,
वाणी शर्मा जी किसी को सुकून के लिए  दर - बदर भटकने की बात कह रही हैं ….लेकिन आ ही गया ..भले ही देर से आया हो …बहुत खूबसूरत गज़ल कही है …

दर पर उसकी भी आया मगर देर से बहुत .

तलाश -ए -सुकूँ में भटका किया दर -बदर
दर पर उसके भी आया मगर देर से बहुत .....
जागा किया तमाम शब् जिस के इन्तजार में
नींद से जागा वो भी मगर देर से बहुत .....

रचना दीक्षित  आज सारे समीकरण को एक नया रूप दे रही हैं ….नारी हमेशा पुरुषों के गणित पर चली है …पर अब उसे अपने अस्तित्व को बताने के लिए कुछ नए समीकरण 
बनाने होंगे ….

याद नहीं पर जाने कब से सुनती आई हूँ.
सुहागिन औरतें रखती हैं निर्जला,
करवा चौथ का उपवास,
अपने पति की लम्बी आयु के लिए,
मैंने भी रखे कितने ही .
ओम आर्य
ओम् आर्य जी यादों को समेट लाये हैं अपनी कविता में …पर न जाने उनको लगता है कि बार बार वो बीच में टूटती सी है ….चाँद पर लिखी जाने वाली कविता ....

आज दिवाली के दिन
तारों से भरी धरती के बीच चाँद सिर्फ ख्याल में है
आतिशबाजियों के शोर
ख्यालों में खलल डालते हैं
और चाँद पे लिखी जाती कविता बीच-बीच में टूटती है
 मेरा फोटो
वंदना गुप्ता जी  स्वयं को जान गयी हैं और अब उनको किसी से कोई अपेक्षा नहीं है ..इसी लिए कह रही हैं कि    फिर  मैं क्यों ढूंढूं अवलंबन

मै
अपने आप से
बेहद खुश
फिर किसलिये
ढूँढूँ अवलम्बन
मुझे मेरा "मै" भटकाता नही
उसके सिवा कुछ रास आता नही
My Photo
स्वराज्य करुण  अपनी कविता से ओबामा जी का अभिनन्दन कर रहे हैं ….एक व्यंग कविता पढ़िए

स्वागत है ओबामा जी !


आईए, आईए  स्वागत है,-
                                              भारत की धरती पर स्वागत है आपका ओबामा जी /
                                              हम भारत वालों को भूलने की
                                              आदत है ,पर आपको तो
                                              याद होगा - आपकी धरती पर
                                              हमारे आज़ाद मुल्क के
                                              बड़े -बड़े स्वनाम-धन्य
                                              नेताओं का उतारा गया था पजामा जी /
                                              फिर भी कोई बात नही ,
                                              बेफिक्र और बेख़ौफ़ आईए  ओबामा जी /
My Photo
इस बार अना जी बहुत खामोशी से खामोशी को बुलाते हुए अपनी बात कह रही हैं ..लेकिन नि:शब्द  हो कर ….
खामोश हम तुम
बात ज़िन्दगी से
आँखों ने कुछ कहा
धड़कन सुन रही है

धरती से अम्बर तक
नि:शब्द संगीत है
मौसम की शोखियाँ भी
आज चुप-चुप सी है
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मयंक गोस्वामी जी अपने प्रेम को केवल अभिव्यक्ति तक ही पहुंचा पाए हैं ….पढ़िए वो आगे क्या कहते हैं …प्रेम

प्रेम
शायद तुम्हारे  लिए
आसक्ति रहा हो,
पर मेरे लिए
कभी अभिव्यक्ति  से आगे,
बढ़ ही नहीं पाया |
जब पीछे देखता हूँ,
तो पाता हूँ,
कि छूट गया है,
बहुत कुछ जो हो सकता है .
My Photo बेजी  जैसन  मेरी  कठपुतलियां  पर  ऐसी क्षणिकाएं लायीं  हैं जिनका शीर्षक दिया है ..
वो कविता जो नहीं लिखी
1.
लहर लहर
पहर पहर
कशाकशी,खलबली
जो कविता गुँथ रही
वही कहीं बिखर गई
2
वो भाव
जले सिके हुए
गरम थे
जब सील गए
परोसती कैसे ?
My Photoक्षितिजा  जी इस शायद  में बहुत संवेदनशीलता को समेट लायी हैं …हर दृश्य एक मार्मिक चित्रण प्रस्तुत कर रहा है …

क्यूँ मद्धम सी हो चली हर उम्मीद की रौशनी
....................अंधेरों से लड़ता कोई चिराग़
शायद, बुझ गया है कहीं.........................
ख़ामोशी चीर गई इंसानियत तेरे वजूद को
......................रोता  बिलखता भूखा बच्चा
शायद, सो गया है कहीं...........................
 मेरा फोटो
वंदना शुक्ल जी  पीड़ित हैं परम्पराओं की  अवहेलानाओं  से ……वक्त के साथ साथ सफर में बदलाव आता है …आप भी उनकी पीड़ा  के भागीदार बने .


अव्यक्त वेदनाओं के प्रस्फुटन सा  स्वर, सारंगी का!
न जाने क्यूँ ,जब भी सुनती हूँ ',बैचेन होती हूँ !
लगता है ज्यूँ ,  इतिहास की  अंधेरी सुरंग में ,
चली जा रही हूँ मै ,जहाँ रोशनी में कैद  हैं ,अँधेरे अब भी!,
कसे तारों पे घूमता  कमज़ोर ''गज'जैसे,
जीवन  के सच पर,निस्सारता के दोहराव
My Photo मजाल साहब लाये हैं एक खूबसूरत सी गज़ल …जीवन में धीरज रखने की प्रेरणा देती हुई …
थोड़ा शायराना हुआ जाये ...

कमज़ोर हो के ढह  जा,
गुरूर उस ज गह जा !
बदजुबानी से तो अच्छा,
चुप रहके थोड़ा सह जा !
तुझसे बहुत पटती है,
फुर्सत तू संग ही रह जा
images (19) अर्चना जी ऊब  और दूब पर ज़िंदगी को एक नया बिम्ब दे कर अपनी बात कह रही हैं …आप भी जाने कि ज़िंदगी के प्रति उनका क्या नजरिया है ? …

ज़िंदगी का कटोरा
बीत रहे हैं दिन
लिए हुए हाथों में कटोरा
भीख मांगते हुए जिंदगी से,
जिंदगी की!
रोज देखती हूँ कटोरे को
उलट कर , पलट कर,
सीधा कर, झुका कर।
कोई बूँद है क्या इसमें,
किसी रस की?
मेरा फोटो यश ( वंत )  जी दीपावली के बाद  जब दीपक जल चुके , रोशनी हो गयी , आतिशबाजी के तमाशे भी कर लिए  तब वो किसको धन्यवाद  कर रहे हैं ….आप उनकी रचना पढ़ें …

जब दीपों से जगमग
हो रहा था अपना घर -आँगन
जब आतिशबाजी से गूँज रहा था
क्या धरती और क्या गगन
जब मुस्कराहट थी हमारे चेहरों पर
उल्लास द्विगुणित तन मन में
द्वारे द्वारे दीप दीप जले जब
लक्ष्मी पूजन ,अर्चन, वंदन में
My Photo
अतुल सिंह ज़िंदगी को परिभाषित करते हुए बता रहे हैं कि कब ज़िंदगी जन्नत बन जाती है और कब दोजख …
ज़िंदगी  के रूप
जाने क्या क्या रंग दिखलाती है ज़िंदगी,
पल में गम,पल में खुशी दे जाती है ज़िंदगी,
गुजरती रहती है अविरत बहती सरिता की तरह,
ना एक पल भी ठहराव दिखलाती है ज़िंदगी"
विश्वगाथा  पर पढ़िए इस बार मंजुला , ममता और रेणु की कविताओं को -


 
निर्झरी बन फूटती पाताल से
कोपलें बन नग्न रुखी डाल से
                                 खोज लेती हैं सुधा पाषाण में
                                    जिंदगी रूकती नहीं चट्टान में

  
ज़िंदगी है तुझसे मेरी
बेताबियों की शामों-शहर से
न थी मैं वाकिफ दर्द जिगर से-1
गुज़री नहीं मैं तो कभी भी
प्यार की दिलकश राहें गुजर से-2



थाली भर अँधेरे को पाटने के
लिये
काफी है मुट्ठी भर
रोशनी या जरुरत पङेगी एक
चाइनीज झालर की।
काव्य - प्रसंग ....कवियों का ब्लॉग   इस ब्लॉग को परमेन्द्र सिंह जी चलाते हैं …इस पर आप पढ़ें सिमी बहबहानी की रचना …….

इरान की शेरनी के नाम से मशहूर 83 वर्षीय सिमीं बहबहानी आज के ईरानी काव्य जगत कीसर्वाधिक सम्मानित कवियित्री हैं..अपने समय के खूब चर्चित और सम्मानित लेखक माता पिता कीसंतान सिमीं को बचपन से ही कविता लिखने का शौक लग गया…..

फूल को कुचल डालने का समय आ गया है

फूल को कुचल डालने का समय आ गया है
अब और टाल मटोल मत करो
बस हाथ में थामो हंसिया
और दृढ कदमों से आगे बढ़ो..
देखो तो हरा भरा मैदान दूर दूर तक
ट्यूलिप के फूलों से लदा पड़ा है
मेरा फोटो
अनुपमा पाठक इस बार मेरा प्रिय विषय लायी हैं …मौन की भाषा ….और दीपों का मद्धिम प्रकाश …जीवन की आपा - धापी में आप भी उनके विचार पढ़िए ..
दीपों के मद्धिम प्रकाश में..
आवाजों की गूँज में
मौन की भाषा पहचानी जाये!
दीपों के मद्धिम प्रकाश में
अदृश्य सी दुनिया ज़रा जानी जाये!
My Photoअनामिका जी  बहुत चिंतित हैं देश के भविष्य के लिए ….वो शिक्षा सम्बन्धी या यह कहना ज्यादा उचित होगा कि शिक्षकों से सम्बंधित समस्या को आपके सामने रख रही हैं …और पूछ रही हैं कि --
क्या ऐसे होगा देश का निर्माण ? ?
चाहते नीव हो देश की
सुदृढ और परिपक्व
बने भविष्य देश का
उज्जवल और कर्मठ .
बताते अभिभावक खुद को
देकर गलत संस्कार और प्यार
निभाते हैं फ़र्ज़ ये, देकर
देश को अविकसित बाढ़.
मेरा फोटोचर्चा का समापन आज मैं रश्मि जी की एक अत्यंत विचारणीय रचना के साथ करना चाहूंगी ….स्त्री प्रेम में एक मर्यादा की रेखा अंकित कर कुछ बिम्ब बना लेती है …जैसे सीता , राधा , यशोधरा …पर पुरुष कोई बिम्ब क्यों नहीं बनाता है ? आप कुछ कहना चाहेंगे ?????
अधिकार वजूद का
एक स्त्री प्रेम में
राधा बन जाती है
खींच लेती है एक रेखा प्रेम की
एक मर्यादित रेखा
सीमित हो जाती है उसकी दृष्टि
एक साथ वह कई विम्ब बन जाती है
आज बस इतना ही ….उम्मीद है आपको कविताओं का चयन पसंद आएगा …आपके सुझाव और प्रतिक्रियाएं चर्चाकार का मनोबल  बढ़ाती हैं … आपके सुझावों का हमेशा स्वागत है …तो फिर मिलते हैं अगले सप्ताह…मंगलवार को कविताओं का नया खजाना ले कर ….नमस्कार ……संगीता स्वरुप

30 टिप्‍पणियां:

  1. Charcha manch ki shuruat se to parichit tha lekin Aaj ise achhi tarah padhne ke bad aisa laga ki ise bar-bar padhta rahun.Shirshak sarthak laga. Good Morning.

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  2. वाह-वाह संगीता जी!
    चर्चा का रूप बहुत ही प्यारा लग रहा है आज तो!
    --
    यह सब आपके श्रम का ही कमाल है!
    --
    सुन्दर सजा हुआ है मंगलवार का काव्यमंच!

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  3. बहुत मेहनत से सजाया है आपने आज के इस गुलदस्ते को . सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक हैं.
    आपने मुझे भी जगह दी ,इसके लिए ह्रदय से आभार .

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  4. हमेशा की तरह कविताओं , गजलों सी ही खूबसूरत चर्चा ...
    कई लिंक्स तो नियमित पढ़ती ही हूँ ...कुछ नए ब्लॉग्स भी मिले ...
    चर्चा में शामिल किये जाने का बहुत आभार !

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  5. कुछ तो पढ़ चुके है, कुछ बाकी है, अभी देख लेतें है...

    बढिया चर्चा, जारी रखिये ....

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  6. बहुत सुन्दर चर्चा... और सुन्दर सुसज्जित और आकर्षित भी करती है पढ़ने के लिए ... संगीता जी शुभकामनायें ..

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  7. काव्य की तमाम विधाओं का मज़ा एक साथ मिला

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  8. संगीताजी,

    "चर्चा मंच" के द्वारा सभी ब्लॉग से सर्वोत्तम रचनाओं को जिस तरह से ढूंढकर रखा जाता है, वाकई काबिल-ऐ-तारीफ़ है | बहुत ही सुन्दर रचनाओं के ज़रिए हम नए ब्लॉग से भी परिचित होते हैं...

    किन शब्दों में शुक्रिया अदा करूँ? आगे बढ़ो... हम है न...!

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  9. मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद! बेहतरीन प्रस्तुतिकरण के साथ ही यहाँ शामिल की गयीं सभी रचनाएँ बहुत ही अच्छी हैं.

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  10. बहुत अच्छी चर्चा रही संगीता जी ... तकरीबन सारे लिंक्स में हो आई ... बेहतरीन रचनाएँ पढने को मिलीं ... आपका बहुत बहुत धन्यवाद

    मेरी रचना शामिल करने के लिए भी शुक्रिया ....

    शुभकामनाएं ...

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  11. बहुत अच्छे लिंक्स लगाये हैं ………………बहुत सुन्दर चर्चा …………………ज्यादातर पढ लिये हैं…………आभार्।

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  12. मेहनत, लगन और निष्ठा झलकती है इस चर्चा में। बहुत सुंदर चयन, अच्छी चर्चा।

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  13. वाह वाह वाह कितनी सुन्दर लिंक्स मिले और कितनी खूबसूरती से सजे हुए .कितनी मेहनत करती हो आप.

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  14. सुंदर एवं सार्थक चर्चा।

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  15. दी सादर नमस्ते
    बहुत दिनो बाद यहाँ का रुख हो पाया है
    क्या करे जॉब ही कुछ ऐसा है
    आज आप की चर्चा मंच पर भी नजरें टिकने का समय मिला और बहुत खुसी हुई कितना रोमांच कितने उत्साह से सारे बंधू रचते जा रहे है एक सी एक अद्भुत रचनाये ...
    और आपको बहुत बहुत धन्य बाद दूंगा की आप सब को ढूंड ढूंड कर एक ही धागे पिरो कर जिस तरह हमें परोसती है ....
    बहुत प्यार आता है/ प्यार झलकता है
    जैसे
    एक माँ अच्छी अच्छी डिश बना कर अपने परिवार को परोशती है ..love u. thanku so much

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  16. संगीता जी अच्छी लगी चर्चा. लगभग सभी विषय शामिल हो गए. कुछ ने लिंक मिले हैं वहां जा कर पूरी पोस्ट पढ़ती हूँ. मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए आपका आभार

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  17. बहुत अच्छे लिंक्स …………बहुत सुन्दर चर्चा …………………आभार्।

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  18. लाजवाब चर्चा ... बहुत से नए लिंक मिले हैं ... शुक्रिया मुझे भी आज की चर्चा में शामिल करने का ...

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  19. बहुत अच्छे लिंक्स. सुंदर एवं सार्थक चर्चा. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  20. arey bbhai apni pravisthi pravishth kaise karte hai koi hame bhi guid karey..

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  21. बहुत अच्छे लिंक मिले कुछ पढ़ने को रह गए हैं अब उन पर जाना आसान हो जायेगा.

    आपकी मेहनत चर्चा को चार चाँद लगा रही है. मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभारी हूँ.

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  22. बेहतरीन प्रस्तुति .बधाई !

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  23. सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक है......सुन्दर चर्चा

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"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

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