आ गयी सोमवार की चर्चा .............कुछ हास्य के साथ. चर्चा है चर्चा ..........काफी हैं चर्चा .............चर्चा के पीछे आप ही छुपे हैं जरा सा पर्दा उठाइए और देखिये
हवा में लटका मनुष्य, और हाथ से आती फूलों की खुशबू --यह क्या है ?
जादू के अलावा और क्या होगा ?
पानी का कैनवस
जिसमे सब बह गया
लिपस्टिक से छू लो तुम ...........संसार में बबाल कर दो
...वे आँखें आज भी नम है!
आँखों में नामी दिल में तूफ़ान सा है
जया केतकी और रेणु सिंह
जानिए इनकी संवेदनाएं
१) संवेदनाएं
अब कहाँ रहीं ?
२) साहस जीने का……
सहास से जीने वालों की कभी हार नहीं होती
" क्या करूँ ...छोड़ना चाहते हैं , छूटता नहीं है "
उम्र के निशाँ तो पड़ते ही हैं
भूजा
बूझो तो जाने
फ़िक्शन
इस फिक्शन में तो कुछ और ही पक रहा है
" पल जो हमने साथ गुजारे थे.. "
आज भी यादों की धरोहर हैं
कविता पहले एक सार्थक व्यक्तव्य होती है !
ये तो पता नहीं क्या होती है ..........हमारे लिए तो कविता बस कविता होती है
हर माह नया घोटाला कर
हर माह क्यूँ रोज नया घोटाला कर ............किसमे दम है जो रोक कर दिखा दे ............ये देश है घोटालेबाजों का ,अलबेलों का मस्तानों का ............फिर किसका डर ?
दीपावली के नाम पर दे दे बाबा
बस अब यही बाकी रह गया था
बचपन के दिन
बचपन के दिन भी क्या दिन थे
बचपन में 'जहां' और भी हैं ....: राजेश उत्साही
बिलकुल सही कहा
कविता
सही अर्थों में यही तो है कविता
मैं दिवाली देखना चाहता हूं
मैं दिवाली देखना चाहता हूं
वक्त को मुड़कर देखने तो दे
कसूर !!!!
कसूर !!!!
किसका ?
मर्द घर में खुशी-खुशी बैठने को राजी: महिलाएं दफ्तर का काम संभाल रहीं
मर्द घर में खुशी-खुशी बैठने को राजी: महिलाएं दफ्तर का काम संभाल रहीं
बस अब ये दिन यहाँ भी दूर नहीं
आशिक़ को नसीहत
बन्द दरवाजे
जो एक बार बंद हो जाएँ तो कहाँ खुलते हैंपैसों की परेशानी से निजात पायें
तो ये भी आजमायेंशाम फिर से मुस्कराने लगी
शायद किसी की याद फिर से आने लगीराहें मन की
अजब गज़ब होती हैंआशिक़ को नसीहत
क्या खूब दी है
दीपावली: दीप-अष्टम्
ऐसा दीप सभी जलायें
बेहतर खुदा..
किले में कविता:'कौन खबर ले किले की'
वक्त वक्त की बात हैजवाब होने पर भी
एक दिन ये खुशबू जरूर फैलेगीऐसा दीप सभी जलायें
बेहतर खुदा..
सबके प्यारे हैं मगर बेजुबान हैं
अब दीजिये इजाज़त ...........अगले सोमवार फिर मिलती हूँ तब तक आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षारत ..........
अब दीजिये इजाज़त ...........अगले सोमवार फिर मिलती हूँ तब तक आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षारत ..........
nice
जवाब देंहटाएंआज सबसे पहले सुमन जी ने इस चर्चा पर
जवाब देंहटाएंनाइस का ठप्पा लगा दिया है!
क्योकि चर्चा बहुत सुन्दर तरीके से मन लगाकर की गई है!
Bahut sunder charcha.... achhe links ki charcha...dhanywad
जवाब देंहटाएंसुंदर चयन!
जवाब देंहटाएंसंक्षेप में वृहत चर्चा
जवाब देंहटाएंवंदना जी। आभार कि एक बार फिर मैं आपकी नजरों में आया।
जवाब देंहटाएंनिसंदेह यह काम बहुत मेहनत का है। मैं पहले भी सुझाव देता रहा हूं और आज फिर दे रहा हूं। अच्छा होगा कि आप हर केवल पांच पोस्ट ही चुनकर लगाएं,लेकिन उनके बारे में अपने नजरिए से भी एक टिप्पणी साथ में लिखें कि उन्हें क्यों पढ़ा जाना चाहिए। मुझे लगता है कि इससे न केवल चर्चा मंच का महत्व बढ़ेगा वरन् चर्चा मंच पर आने के लिए एक आकर्षण होगा।
बहुत सुंदर ..
जवाब देंहटाएंसर्व प्रथम आपको और *चर्चा-मंच* को धन्यवाद कि इस नाचीज़ की ग़ज़ल को आपने चर्चा में स्थान दिया अभी तक अन्य 3-4 लिन्कों को मैंने देखा है सभी अच्छे लगे। मैं भी रजेश उत्साही जी के इस बात से सहमत हूं कि लिन्क्स आप जितने भी जोड़ें पर उन पर *चर्चा-मंच* के कर्णाधारों का कमेन्टस हो तो मंच की उपयोगिता सार्थकता के नये आयाम तामीर करेगी।
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच ने ब्लॉग्गिंग जगत में कमेंट्स के कम होते हालात में चर्चा करके लोगों को तक अच्छी लिंक पहुंचाने का ये तरीका बहुत पसंद आया. साथ ही आज मरे एक कविता को यहाँ तक लाने और याद करने का वन्दना जी और शास्त्री जी का आभार.कविता पर कुछ ज्य़ादा अच्छी से टिप्पणी करी होती तो बेहतर होता. खैर
जवाब देंहटाएं--
सादर,
माणिक;संस्कृतिकर्मी
17,शिवलोक कालोनी,संगम मार्ग, चितौडगढ़ (राजस्थान)-312001
Cell:-09460711896,http://apnimaati.com
My Audio Work link http://soundcloud.com/manikji
bahut mehnat ki hai .aaj aaram kijiyega .sabhi links achchhe hai .
जवाब देंहटाएंलोगो ने पसंद किया ..भूंजा ...एक खाद्य पदार्थ है ...जिसमे सिर्फ कार्बोह्य्द्रेट होता है ....वसा /प्रोटीन /नमी ...कुछ नहीं रहते ...वंदना जी का आभार ..आज के रिश्ते सिर्फ दिखावे
जवाब देंहटाएंबढ़िया links लगाई है आपने
जवाब देंहटाएंवंदना जी बहुत सुन्दर चर्चा , साफ़ स्वच्छ .. और लिंक बहुत अच्छे. .. धन्यवाद इस संदर परिचर्चा के लिए ..
जवाब देंहटाएंवंदना जी और चर्चामंच दोनों का शुक्रिया , साथ साथ दिए गए कमेंट्स से विनोद का पुट आ गया है , ये मेरा पहला ब्लॉग(कविताओं का) है , जब भी मैं कोई रचना पोस्ट करती हूँ , पलट कर चिट्ठा-जगत पर ताजा रचनाएं पढने के लिए जाती हूँ तो देखती हूँ कि १७ या २१ लोग इसे पढ़ रहे हैं मगर टिप्पणी एक भी नहीं आती , थोड़ा हतोत्साहित होती हूँ कि शायद अच्छा नहीं लिखा , पर जब चर्चामंच या कोई अन्य अपने ब्लॉग पर एड करता है तो कोई कान में फुसफुसाता है कि तुम इतना बुरा भी नहीं लिखतीं ...वैसे टिप्पणी के लिए या कीर्ति के लिए लिखना तो दिशा भ्रमित करने जैसा है ...हम तो लिखते हैं कि कुछ कदम चल पायें , वर्ना रुक गए थे जिन्दगी की रफ़्तार देखते हुए ...
जवाब देंहटाएंsundar charcha....
जवाब देंहटाएंnice links!
regards,
बहुत अच्छी और सार्थक चर्चा ..काफी लिंक्स पर घूम आई हूँ :)
जवाब देंहटाएंDhanywad Vandnaji
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत में अभी नया आया हूँ.. पहले बार चर्चा मंच पर.. यह अंदाज पसंद आया.. एक ब्लॉग पर इतने बढ़िया लिंक.. इस कांसेप्ट ने मन मोह लिया और बंदना जी की प्रस्तुति ने..
जवाब देंहटाएं:) बहुत रोचक चर्चा वंदना जी !
जवाब देंहटाएंवंदना जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया आपने अपने चर्चामंच में मेरी रचना को स्थान दिया जिससे मुझे बहुत ही प्यारे प्यारे कमेंट्स मिले। धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत उम्दा लिंक्स दिये हैं आपने, वन्दना जी ! कुछ बहुत प्यारी रचनायें मिलीं पढने को। और बहुत धन्यवाद कि आपने मेरी गज़ल को अपनी चर्चा में स्थान दिया।
जवाब देंहटाएंचर्चामंच से जुडे सभी सुधीजनों को साधुवाद!
वंदना जी,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा, बहुत बढ़िया लिंक्स देने के लिए घन्यवाद. आभार.
सादर
डोरोथी.
बेहतरीन लिंक्स. अच्छी चर्चा लगाने के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंइस बार के लिंक अच्छे लगे वंदना जी ! हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा, बढ़िया लिंक्स --घन्यवाद.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद वंदना जी
जवाब देंहटाएंबेहतर संकलन
अरे वाह , सबसे पहले । शुक्रिया वंदना जी ।
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