नमस्कार . हाज़िर हूँ मंगलवार की साप्ताहिक काव्य चर्चा ले कर ..अपनी बात न कहते हुए सीधे चर्चा शुरू करती हूँ …..लिंक्स पर जाने के लिए आप चित्र पर भी क्लिक कर सकते हैं …काव्य मंच को मैंने रंगोली से प्रारम्भ किया है …हाँलांकि दीपावली को बीते १० दिन बीत चुके हैं ….लेकिन अचानक ही कल मेरा इस ब्लॉग पर जाना हुआ ….और वहाँ वंदना जी ने दीपावली का कुछ ऐसा नज़ारा प्रस्तुत किया हुआ था कि यहाँ कोई कविता न होते हुए भी मुझे लगा कि यह ब्लॉग हमारे पाठक ज़रूर देखें … वंदना जी के शब्दों में -- |
एक दीपावली ऐसी भी .....खुशियों और आशाओं के नये दीप जलाने आई ये दीपावली का त्यौहार कैसे गुजर गया , पता ही नहीं चला. चलिए आपको आज आई.आई.टी. खड़गपुर में दीपावली कैसे मनाई गयी, यह दिखाती हूँ. हमारे यहाँ दीपावली के लिए तैयारी महीने-भर पहले से ही शुरू हो जाती है. यहाँ हर वर्ष छात्रावासों में रहनेवाले छात्रों के लिए रंगोली व दीप-प्रज्वलन (आम बोल-चाल में 'इलू' जो कि illumination से बना है) की प्रतियोगिता होती है. अब आप सोच रहे होगे इसमें कौन सी नयी बात है? बात है, जिसे मैं आपको छायाचित्रों के माध्यम से ही समझा सकती हूँ. तभी आप समझ सकते है कि क्यूँ हम छात्र महीने भर पहले से कमर कस लेते है. पहले आप रंगोली का मजा लीजिए-- मैं आपको केवल एक -एक चित्र दिखा रही हूँ ….बाकी आप ब्लॉग पर जा कर देखिये और दांतों तले उंगलियां दबाइए …
ब्लॉग पर आपको २५- ३० रंगोली के चित्र मिलेंगे और यह इल्युमिनेशन कैसे बनाये जाते हैं उसका पता भी चलेगा …. |
![]() प्याज़ बन कर रह गया है आदमी .. मौन स्वर है सुप्त हर अंतःकरण सत्य का होता रहा प्रतिदिन हरण रक्त के संबंध झूठे हो गए काल का बदला हुवा है व्याकरण खेल सत्ता का है उनके बीच में कुर्सियां तो हैं महज़ हस्तांतरण |
![]() कब आएगी गीत लिखने की वेला कह सकुगां कब मुक्त हो कर मुक्तक लेखनी को विराम लगा किसी ने जैसे नजर लगा दी व्याकुलता क्यों नहीं जो सृजन का आधार बनती वो लकड़ियाँ कहाँ हैं? |
![]() मजे़ की बात है जिनका, हमेशा ध्यान रखते हैं। वोही अपने निशाने पर, हमारी जान रखते हैं। मुहब्बत, फूल, खुशियाँ,पोटली भर के दुआओं की, सदा हम साथ में अपने, यही सामान रखते हैं । | ज्ञान चंद मर्मज्ञ मनोज ब्लॉग पर एक विशेष कविता लाये हैं….. बाल दिवस… व्यवस्था की विसंगतियों को दर्शाती एक संवेदनशील रचना … शहर की पीली बत्तियों वाली वीरान रात, और सड़कों पर फैले सन्नाटों के बिस्तर पर लेटे, कई मासूम अनसुलझे उदास सवालात ! याद आया, उस दिन मंदिर के पास टूटी पड़ी थीं कुछ मूर्तियाँ, शायद ये वही टुकड़े हैं भागवान के ! |
'भाव-तरंगिनी' - कुछ बिसरे कलम का मंथनइस ब्लॉग पर जाने माने कवियों कि रचनाएँ प्रकाशित होती हैं …इस बार आप पढ़िए काका हाथरसी की रचना जय बोलो बेईमान की………..![]() ऊपर सत्याचार है भीतर भ्रष्टाचार झूठों के घर पंडित बाँचें कथा सत्य भगवान की जय बोलो बेईमान की! लोकतंत्र के पेड़ पर कौआ करें किलोल टेप-रिकार्डर में भरे चमगादड़ के बोल नित्य नयी योजना बनतीं जन-जन के कल्यान की जय बोलो बेईमान की! |
![]() एम० वर्मा जी आज की विषम परिस्थितियों में बहुत सार्थक प्रश्न पूछ रहे हैं कि बात यह नहीं कि वो मरा कैसे …..आश्चर्य तो यह है कि वो ( आम आदमी ) अब तक जिन्दा ही कैसे था सुबह होने से पहले ही जिसके लिये शाम हो गयी खुले गटर की आदमकद साजिशें कैसे नाकाम हो गयीं !? |
कभी-कभी सन्नाटों में खामोश पत्थर भी चीखते हैं, हवाएं सीटियाँ बजाती हैं, पत्ते मीठा राग सुनाते हैं, वर्षा की बूँदें संगीत का अतीन्द्रिय सुख देती हैं, फूलों की पंखुड़ियां हवा की लय पर थरथराती हैं और बहुत कुछ अनकहा कह जाती हैं ! | यह कविता घर के बर्तनों के नाम धोते हैं जिन्हें छोटे छोटे हाथ हर रोज हमारे घरों में गर्मी,बरसात या फिर कडकडाती ठंड में. उन झाडुओं के नाम जिन्हें मजबूती से पकड़ कर बुहारी जाती है संगमरमरी फर्श और पूरी ताकत झोंक दी जाती है पोंछे से उसे चमकाने में |
![]() स्वागत है तुम्हारा देख रहे हो मित्र? लालित्य अटा पड़ा है, हर पुष्प-वृंत-निकुंज पर| सुथराई अलसाई है, दूब के बिछौने पर| चींटियों की जिप्सियाँ, लगी हैं फिर खोदने, जडें महुआ की| |
![]() पग भर ज़मीन दृग भर अंबर तलाशने में पूरी उमर खपा दी इक घर तलाशने में पल प्यार के गँवाए बस देखने में दरपन श्रृंगार के गँवाए जेवर तलाशने में करते रहे हैं वादा वो ताज के लिए पर अटके हुए हैं संगेमरमर तलाशने में | ![]() पलकों के सपने ब्लॉग पर लायी हैं एक अलग ही अंदाज़ की रचना ..लक्ष्य नहीं मैं व्यक्तित्व में मेरे थोडा गुरुत्व करता आकृष्ट तुम्हारा प्रभुत्व . निजता मेरी लगे भली तुमको देती कुछ खलबली . |
माँ की संदूकचीमाँ तेरी सीख की संदूकची, कितना कुछ होता था इस मे तेरे आँचल की छाँव की कुछ कतलियाँ ममता से भरी कुछ किरणे दुख दर्द के दिनों मे जीने का सहारा धूप के कुछ टुकडे,जो देते कडी सीख ,जीवन के लिये कुछ जरूरी नियम |
![]() कभी-कभी सारा दृश्य बदल जाता है संसार मुर्दाघर सा लगता है लोगबाग बस दौड़ती हुई लाशें कभी-कभी लगता है यहां कुछ जिंदा नहीं है कुछ मुर्दाखोर हैं | ![]() न चाहने पर बहुत क्रूर होता है प्रेम मुस्कुरा के मांग लेता है, मुस्कुराहटें चकनाचूर कर देता है सपनीला भविष्य जहरीले शूल चुभोता है औ सिल देता है होठ छीन लेता है, उड़ान रोप देता है यथार्थ पैरों में |
![]() गुस्सा बहुत बुरा है ...इसमें ज़हर छुपा है मीठी बोली से सीखो तुम, दुश्मन का भी मन हरना जल्दी से सीखो बच्चों तुम, गुस्से पर काबू करना। बाती जलती अगर दिए में, घर रोशन कर देती है बने आग अगर फैलकर, तहस नहस कर देती है। बहुत बड़ा खतरा है बच्चों, गुस्सा बेकाबू रहना जल्दी से सीखो बच्चों तुम, गुस्से पर काबू करना। |
![]() जिन्दगी ! एक उलझा हुआ प्रश्न; मौत! एक शाश्वत सत्ये! इंसान ! जिन्दगी से मौत तक का सफ़र पूरा करने में लगा रहता हे, | ![]() याद आयी वो बात उनके जाते ही जो कहना चाहे उन्हें बार बार घिर आयी बरसात उनके जाते ही, मिट गए क़दमों के निशाँ दूर तक बिखर गए जज़्बात उनके जाते ही, अहसास-ऐ-ज़िन्दगी का इल्म हुवा थम सी गई हयात उनके जाते ही, |
रचनाकार पर पढ़िए इस बार दीप्ति परमार की दो कविताएँ ---संवेदना और स्वार्थ के खेल में
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![]() बाल दिवस पर सीखो आज ... बच्चों, इतनी सी है बात बाल दिवस पर सीखो आज सदा-सदा तुम चलते जाना पढ़ते-लिखते, बढ़ते जाना बाधाओं से डर मत जाना सच्चाई का देना साथ बच्चों इतनी सी है बात बाल दिवस पर सीखो आज | ![]() माँ के लिए ....एक खत तुम अब भी बेखयाली में रात को मेज़ पर यूँ ही मेरे हिस्से की थाली भी सजा देती ही होगी ना तुम अब भी मेरे कमरे की सफाई करती तो होगी मेरी चीज़ों को करीने से लगा देती होगी न कोई कागज़ का पुर्जा फर्श पर बिखरा जो मिल जाए उसे वापस मेरी किताब में रख देती होगी न |
![]() ना जाने क्यूँ अतिक्रमण करते हैं हम कभी ज़मीन का कभी अधिकारों का कभी भावनाओं का तो कभी मर्यादाओं का |
![]() गम कहूँ या हँसी ,लगता है कि झोंका है कहता हूँ तो तन्हाई, देखता हूँ तो मौका है. कहता है वफ़ा जिसको,लगता है कि धोखा है तू है कहाँ खुद का ,फिर किसका भरोसा है. माना जिसे हकीकत,वस शब्दों का घेरा है अँधेरा है कहा जिसको, नामौजूद सबेरा है | ![]() बरस गए मेघ, रज कण में तृण की पुलकावली भर तुहिन कणों से उसके , अभिसिंचित हो उठे तरुवर लिख कवित्त, विरुदावली गाते ,लेखनी श्रेष्ठ कविवर पादप, विटपि, विरल विजन में, भीग रहे नख -सर प्रेम सुधा को ले अंक में ,स्वनाम धन्य हो रहे सरोवर कृतार्थ भाव मानती धरा,खग कुल -कुल गाते सस्वर |
![]() मेज पर फैली आधी रात की चांदनी किसी अवसाद या वितृष्णा का संकेत नहीं थी. फूलों के रंग वाली बेलों से सजी ढ़लुवां पहाड़ियां के कंधों पर अपना सर रखे हुए वह अक्सर एक स्पर्श को जी सकती थी. |
![]() धरातल डगमगाना जानता है, फ़लक ग़ुस्सा दिखाना जानता है. सुनामी से चला हमको पता ये, समन्दर भी डराना जानता है. बड़े साइंस दां बनते हो बन लो , ख़ुदा भी आज़माना जानता है |
![]() मैंने नहीं किया तुमसे कभी किसी बात पर गिला शिकवा ना कभी खाई कोई कसम और ना ही बाध्य किया तुम्हे ! मैंने मचलकर , कभी नहीं कि , किसी जिद्दी बच्चे सी कोई ख्वाहिश , ना ही कभी जताया , तुम पर अपना अधिकार | ![]() कोठरी के कैद परिंदे.. आप भी इन परिंदों को ज़रा पहचानिये .. समुद्र किनारे लहरों के बीच बालू की रेत पर- तूफान की आहट से तैरते पत्तों की तरह महलों से आती चिंगारी में दिल उभरता है खामोश! ढलती शाम की लालिमा रात को बेचैन करती है |
त्रिपुरारी शर्मा के ब्लॉग तन्हा फ़लक पर पढ़िए मुक्ति बोध की तीन रचनाएँ --
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पंडित जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिवस पर पढ़िए राजभाषा ब्लॉग पर -------सच्ची श्रद्धांजली कहलाये तुम दूत शांति के अग्रदूत तुम विश्व-शांति के जियो और जीने दो के समर्थक विरोधी तुम जाति- पाँति के . तुमने देखे थे कुछ सपने स्वतंत्र भारत के थे अपने अग्रणी राष्ट्र बनाने को प्रयास किये थे कुछ अपने | ![]() अशोक सिंह जी को हर चीज़ , हर नज़ारा बदला स लग रहा है …. सब-कुछ कुछ बदला सा है ... कितने अरसे बाद मिले हो, मन से बाहर तुम निकले हो कितने सावन, पतझर, मौसम, सब बेमानी बीता सा है ! सब-कुछ कुछ बदला सा है ! मैं ऊपर से इंसान वही, चेहरा वो, मुस्कान वही, पर अंतर्मन की दबी कूक में, दर्द तुम्हारे जैसा है ! सब-कुछ कुछ बदला सा है ! |
आशा जी न सागर पर लिख रही हैं न आसमाँ पर …लिख रही हैं ऐसे हृदय पर जो सागर से भी गहरा और आसमां से भी विस्तृत है ….है तू क्या ? है तू क्या मैं समझ नहीं पाती , एक हवा का झोका , भी सह नहीं पाता , खिले गुलाब की पंखुड़ी सा , इधर उधर बिखर जाता | है नाजुक इतना कि , दर्द तक सहन नहीं होता , |
![]() सुन्दर-सुन्दर गाय हमारी। काली गइया कितनी प्यारी।। जब इसको आवाज लगाओ। काली कह कर इसे बुलाओ।।। तब यह झटपट आ जाती है। अम्मा कह कर रम्भाती है।। |
आज की चर्चा यहीं समाप्त करती हूँ ….आशा है कि आपको यह चयन अच्छा लगा होगा …आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है ….फिर मिलते हैं अगले मंगलवार को एक नयी काव्य-मंजूषा को लेकर ….नमस्कार .. संगीता स्वरुप |
आपकी इस चर्चा का विशेष इंतज़ार रहता है ...
जवाब देंहटाएंपिछले दिनों अनियमितता के कारण बहुत से छोटे हुए लिंक्स का पता यही मिलने की सम्भावना है ...
हमेशा की तरह बहुत सुन्दर काव्य चर्चा ....
आभार !
बहुत अच्छी और बहुत लगन से सजाई | पढ़ने के लिए बहुत सी लिंक्स दे दी हें|बहुत बहुत बधाई आज के चर्चा मंच संयोजन के लिए |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंआशा
nice
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स के साथ बहुत ही सुन्दर और सार्थक चर्चा !
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा. एक से बढ़ कर एक लिनक्स. वन्दना जी की कविता 'अतिक्रमण', रामपती जी की कविता ' लक्ष्य नहीं मैं', वर्मा जी कि कविता' वह जिन्दा कैसे रहा' , मयंक जी की कविता 'गौ माता' , मनोज ब्लॉग पर मर्मज्ञ जी की कविता विशेष प्रभावित की.
जवाब देंहटाएंआपका मंच सजाने का अंदाज़ निराला है,एक एक चीज़ अलग और आकर्षक.इस बार के लिंक्स बहुत प्यारे हैं. मुझे स्थान दिया कृतज्ञ हूँ.
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी और बेहतरीन रचनाओं के साथ आज की चर्चा की शुरुआत बहुत रुचिकर है.
जवाब देंहटाएंIIT खड़गपुर के छात्रों का प्रयास बहुत ही सराहनीय है जिसे वंदना जी ने अपने ब्लॉग पर हम सब के साथ साझा किया है.
हाथ से बनायी गयी रंगोलियों को देखकर लगता है जैसे कैनवास पर बनायी गयी पेंटिंग्स हों.
इन सब के अतिरिक्त मीनू खरे जी की कविता और निर्मला कपिला जी की कविता समाज को सन्देश और एक सीख देती हुई कविताएँ हैं.वंदना गुप्ता जी,शिल्पी जी,नंदिनी जी और मयंक जी की कविता विशेष रूप से अच्छी लगीं.
हमेशा की तरह सुन्दर काव्य पुष्पों से गुंथी माला रूपी चर्चा . मुझ अकिंचन की कविता को चर्चा में स्थान देने के लिए आभार .
जवाब देंहटाएंaap to mujhe important sa feel kara deti ho....luv u dadi
जवाब देंहटाएंaur kitne saare links de diye padhne ko...ye accha hai. dhoondne ki mehnat aap karein, aur hamein meethe ber khaane ko milein ;) hihi
too good, have a great day
`चर्चा मंच`विचारों के सम्प्रेषण का एक सार्थक और विस्तृत मंच है !
जवाब देंहटाएंइस मंच पर स्थान देकर मुझे उत्साहित करने हेतु धन्यवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
www.marmagya.blogspot.com
बहुत सुन्दर काव्य चर्चा ....बेहतरीन लिंक्स
जवाब देंहटाएंबहुत ही संयोजित काव्य चर्चा. विविध विषयों की कविताओं से आपने इसे सजाया है. रंगोली बेहद लुभावनी है . शुभकामना.
जवाब देंहटाएंsarthak charcha !
जवाब देंहटाएंसंगीता जी .. बहुत अच्छे लिंक...अभी कुछ लिंक में गयी.. रंगोली बहुत भाई.. और भी कई..अभी एक एक लिंक देख रही हूँ... चर्चा में मजा आ गया.. शुभ दिवस
जवाब देंहटाएं7/10
जवाब देंहटाएंचिटठा चर्चा का स्तर और सौन्दर्य निरंतर निखरता जा रहा है. बहुत श्रमसाध्य कार्य है जो कि स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है.
अगर यूँ ही चिटठा चर्चा का स्वरुप बना रहा तो यहाँ आना हर पाठक की अनिवार्यता बन जायेगी. आपका कार्य सराहना के लायक है.
बहुत सुन्दर लिंक्स लगाये हैं ……………काफ़ी लिंक्स पर हो आई हूँ। सार्थक चर्चा और खासकर रंगोली बेहद खूबसूरत लगी अगर ना देखती तो कुछ मिस हो जाता।
जवाब देंहटाएंaap itni mehnat se charcha sajatee hain ki poora hafta intzaar karna nahi khalta .na jane kahan kahan se dhoondh kar nayaab links lekar aati hain .
जवाब देंहटाएंbahut sundar charcha.
लाजवाब चर्चा ... बहुत से नए लिंक ... शुक्रिया मुझे भी शामिल करने के लिए ...
जवाब देंहटाएंवहुत अच्छा इंतजाम किया गया है, इस चर्चा मंच के रूप में
जवाब देंहटाएंएक नए ब्लॉगर को कुछ चुनिन्दा लिंक्स देख पाने के लिए काफी प्रयास करने पड़ते है ,जो कम समय में संभव नहीं हो पाता है ,
पर चूँकि आपने चुने हुए ब्लोग्स एक ही जगह पर लाकर रख दिए है सो भरपूर आनंद उठा सका
आपके इस प्रयास के लिए वेहद आभारी हूँ .
इस माध्यम से काफी अच्छी रचनाओं से मुलाकात भी हो सकी .
साथ ही साथ मेरी रचना को आपने इस मंच पर प्रस्तुत किया, सो भी आभारी हूँ .
सुन्दर और बेहतरीन लिंक्स, मनभावन रंगोली और सार्थक चर्चा के साथ कविताओं का विषय वैविध्य बहुत अच्छा लगा । चर्चा मंच में मेरी रचना को शामिल करने के लिए शुक्रिया ।
जवाब देंहटाएंदीप्ति परमार
सुन्दर और सार्थक चर्चा, अच्छे लिंक्स के साथ मनभावन रंगोली एवं रचनाओं का चिषय वैविध्य बहुत अच्छा लगा । मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए शुक्रिया ।
जवाब देंहटाएंदीप्ति परमार
बेहद रुचिकर चर्चा
जवाब देंहटाएंउम्दा तरीका
1. ब्लाग4वार्ता :83 लिंक्स
2. मिसफ़िट पर बेडरूम
3. प्रेम दिवस पर सबसे ज़रूरी बात प्रेम ही संसार की नींव है
लिंक न खुलें तो सूचना पर अंकित ब्लाग के नाम पर क्लिक कीजिये
काफी सारे अच्छे लिंक्स मिल गए यहाँ पर. आज रात को आराम से बैठ कर देखेगे. चर्चा मंच में पोस्ट शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद भी!
जवाब देंहटाएंविस्तार से की गई इस बहुरंगी चर्चा के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंआपकी हर चर्चा में आपकी मेहनत परिलक्षित होती है. बेहतरीन लिंक्स का चुनाव और चर्चा का अनुपम सौंदर्य देखने को मिलता है जो हर बार आपसे आकांक्षाये और बढ़ा देता है.और आप हमारी इन बढ़ी हुई आकांक्षाओं को हर बार पूर्णता प्रदान करती हैं.
जवाब देंहटाएंइस सुंदर और श्रेष्ठतम चर्चा के लिए आपको हार्दिक बधाई.
sundar chayan... saargarbhit charcha!
जवाब देंहटाएंregards,
bahut acchi rahi ye charcha masi.. Shaandaar rachnayein padhne ko mili..
जवाब देंहटाएंbahut acchi rahi ye charcha masi.. Shaandaar rachnayein padhne ko mili..
जवाब देंहटाएंइसे कहते हैं निःस्वार्थ सेवा...!
जवाब देंहटाएंसाप्ताहिक चर्चा मन्च का इंतजार सभी काव्य प्रेमियों को रह्ता है, खासतौर पर आपकी चर्चा का अन्दाज निराला है और समग्रता से युक्त होती है.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
एक बार फिर आपने अपनी लगन, मेहनत और श्रेष्ठ चयन का सबूत पेश किया है। आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा ....बेहतरीन लिंक्स मिले .हम पाठकों के लिए बहुत मेहनत की है आपने ...आभार !
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को इस चर्चा में स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!!
मिनिस्टर का लड़का फ़ैल हो। क्या वो मिनिस्टर उसे गोली मार देगा ? क्लिक कीजिये और पढ़िए पूरी कहानी और एक टिपण्णी छोड़ देना।
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