- प्रसव सी होती है पीड़ादिमाग में रेंगता है कीड़ा---------------------------------------------------आज सबसे पहले देखिए ये दो मन भावन१. घरपंछी लौटतेघौंसले में है बच्चेघर आ गया |२. सावनऋतु सावननभ में फैले रंगमनभावन |---------------------------------------------------अब आपके जानिबबागीचे में खिली खिली,इक नन्ही मासूम कली, ...---------------------------------------------------
जिंदगी जीना भी एक कला
इक दिन जिंदगी से................ मैने शिकायत जो ये की ........ तो उसने भी हंसके हमसे ये कह दिया ? कोंन कहता है जिंदगी हंसी नहीं होती एक बार आजमा के तो देखो ....--------------------------------------------------------दीवाली - एक लोककथाविद्या विंदु सिंह एक साहुकार की लड़की थी। वह रोज़ पीपल में जल चढ़ाने जाती थी। पीपल में से लक्ष्मी जी निकलतीं, कभी आग के रंग की, कभी गुलाबी रंग की। वे रोज़ उस लड़की से कहतीं कि तुम मेरी बहन बन जाओ। एक दिन लड़की ने कहा कि ‘अच्छा, अपने पिताजी से पूछ कर कल बन जाऊंगी।’ ...--------------------------------------------------------सपना
छोटी सी है एक बच्ची ;अक्ल की नहीं है वह कच्ची;नाम है उसका सपना ;सब को समझती है वो अपना......--------------------------------------------------------एक देशभक्त से हमने पूछा बताओ तुम्हारा सपना क्या है...--------------------------------------------------------
कार्टून : टाटा को भी !!?????
बामुलाहिजा >> Cartoon by Kirtish Bhatt--------------------------------------------------------
धार्मिक रीति रिवाजों के दौरान पशु पक्षियों की बर्बर ,नृशंस हत्या हमें अपने असभ्य और आदिम अतीत की याद दिलाती है .यह मुद्दा मुझे गहरे संवेदित करता रहा है .वैदिक काल में अश्वमेध यज्ञ के दौरान पशु बलि दी जाती थी ..आज भी आसाम के कामाख्या मंदिर या बनारस के सन्निकट विन्ध्याचल देवी के मंदिर में भैंसों और बकरों की बलि दी जाती है ..भारत में अन्य कई उत्सव ...
..और मैं बलि का बकरा बन गया ...... !
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चूहा ले आया बंदूक, सोचा,
अब ना होगी चूक।........
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आज तुम बहुत याद आये क्युं ?
नहीं जानती....
--------------------------------------------------------आज मनोज कुमार जी नेकी समीक्षा प्रस्तुत की है!--------------------------------------------------------उन्मना परआज प्रस्तुत है श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना "किरण" की यह रचना-ले समस्त अंतर का प्यार आई हूँ मैं तेरे द्वार,...--------------------------------------------------------पर छपी है! शायद इसमें आपका नाम भी हो!--------------------------------------------------------के नाम से एक नया ब्लॉग भीहिन्दी ब्लॉगिस्तान में शामिल हुआ है!--------------------------------------------------------बस्तियों में बस्तेबस्तों में बसतीं पुस्तकेंबस्तों में हैं बस्तियां भीइन बस्तियों में से पढ़-लिख बनती हैं हस्तियां।