गम को हँस कर पी लेते हैं।
अगर फैसले गैरों पे टाले न होते,
चलो चलें लेकर हम जीवन का अभिनव रथ,
नहीं मौन से बड़ा कोई तप,
हारे का है राम-नाम जप,
अधरों को हम सीं लेते हैं।
तरस नहीं कोई खाता है,
बलि का बकरा चिल्लाता है,
अंधेरी नगरी में आकर,
सूरज थोड़ा शर्माता है,
अधरों पर
बद से बदतर सबके हाल.
मक्कारों को काजू-पिस्ते,
रिश्वत ईश्वर भी लेते हैं।
जाने कितने मोड़ मिलेंगे,
रण में भी रणछोड़ मिलेंगे,
निर्धनता कितनी रकीब है,
भवसागर में मगर अकेला,