मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका सबका स्वागत करता हूँ! प्रस्तुत है आपके ही शब्दों में आपकी पोस्ट की चर्चा!
खेतों में पड़ गयी दरारें, कब आयेंगी नेह फुहारें,
माइक्रोसोफ्ट ने अपने नए ऑपरेटिंग सिस्टम विंडोज 8 की ओर एक और कदम बढ़ा दिया है और जारी किया है अपने इस ऑपरेटिंग सिस्टम का Windows 8 Release Preview संस्करण । तो देर किस बात की है समय के साथ चलिए और अपने पी.सी पर लगाइए विण्डो-8....! क्या इस समस्या का कोई हल है? इक ग़ज़ल कुछ बीमार थी... मर्ज़ क्या था पता नहीं... शेर दिन-बदिन कमजोर होते जा रहे थे... तरन्नुम की जाने कितनी शीशियाँ ख़त्म हो गयी... पर कोई फ़ायदा न हुआ...!
उनकी सोच का पैनापन देखिये ...मैं तो चाँद गुलाब और झीलों पर ठहरी हूँ मगर वहाँ तो चेहरों पर भी फसल उग आती है मैं तो अभी उथले सागर में मोती ढूँढ रही हूँ मगर वहाँ तो बंजर जमीन पर भी हरियाली छाती है....! यादें भर शेष रह गईं...सपनों की चंचलता बहुत कुछ *** *सागर की उर्मियों सी *** *भुला न पाई उन्हें *** *कोशिश भी तो नहीं की |*** *बार बार उनका आना *** *हर बार कोई संदेशा लाना *** *मुझे बहा ले जाता *** *किसी अनजान दुनिया में | कर चुके तुम नसीहतें हम को ......हम तो चलते हैं लो ख़ुदा हाफ़िज़ बुतकदे के बुतों ख़ुदा हाफ़िज़ कर चुके तुम नसीहतें हम को जाओ बस नासेहो ख़ुदा हाफ़िज़ आज कुछ और तरह पर उन की सुनते हैं गुफ़्तगू ख़ुदा हाफ़िज़....!
मुर्दे को दफन करने आए थे लेकिन मुर्दे का दिन अपना लिया...हमारे देश भारत की सब से बड़ी विशेषता यह है कि हम अनेकता में एकता का प्रदर्शन करते हैं। आज तक भारत के नागरिक परस्पर एक दूसरे से प्रेम, सद्व्यवहार, और सहानुभूति का मआमला करते हैं। "फिर से-लंबी रातें उसकी यादें" कृति- मोहित पाण्डेय"ओम" फिर से आज एकाकीपन है, फिर से रोया ये तन मन है| फिर से रात नहीं गुजरी, यादो से आंखे फिर नम है|| फिर से मैं खुद को भूल गया....! तुम मानो या नहीं ...पर कोई तो है सर्वशक्तिमान जो सबल बनाता है निर्बल को तुम्हारी हर आवाज़ को सुनता है पलटकर जवाब भी देता है तुम समझ पाओ या नहीं देख पाओ या नहीं पर कोई तो है ... ! तेरी हस्ती तेरी बस्ती, मेरा कोई न ठिकाना है, तू मालिक तूने ही रहना, मैंने तो आना जाना है.....! हरिगीतिका छंद देखिए-मौसम के लिए... गोरी सजी दुल्हन बनी है, नैन शर्मीले बने| लाली हया की छा रही है, हाथ बर्फीले बने|| जाना सजन के संग में है, यह विदा की रात है| इन थरथराते से लबों पर, अनकही इक बात है| विष-दन्त गिरे ,विष- भाव मरे * *विष-हीन कभी तो हो जाएँ - * *जस चन्दन स्वीकार नहीं विष* *हम चन्दन सम हो जाएँ -* * * * स्निग्ध, विनीत, हृदय की वीथी...! दूर... बेहद दूर जिन्दगी की उन जख्मी सी मुडेरों पर तेरी याद की धुंधली सी तश्वीर में जो आंसू के धब्बे हैं ...मेरे हैं, याद कर तैने जमाने की नज़रें चुरा कर एक दिन इसको पोंछा था अपने ही आँचल से सफ़र में गुमशुदा मुझको न कहना गुमराह तुम ...!
दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक....लगे गुरु को ठण्ड, अलावी बने सहारा - चेले चैले हो रहे, ले मुगदर का रूप | दोनों हाथों भांजते, पर सम्बन्ध अनूप | पर सम्बन्ध अनूप, परसु से भय ना लागे | त्यागा जब से कूप, गोलियां भर भर दागे | आए थे जब खाली थे हाथ न बोझ कोई कन्धों पर. ज़िंदगी की राह में सभी की खुशी और चाहतें करने पूरी बढ़ाते रहे बोझ कंधे की पोटली का. नहीं महसूस हुआ भार इस आशा में कि कर लेंगे साझा सब कंधे भार इस पोटली का. ...! दूर... बेहद दूर जिन्दगी की उन जख्मी सी मुडेरों पर....तेरी याद की धुंधली सी तश्वीर में जो आंसू के धब्बे हैं ...मेरे हैं, याद कर तैने जमाने की नज़रें चुरा कर एक दिन इसको पोंछा था अपने ही आँचल से सफ़र में गुमशुदा मुझको न कहना गुमराह तुम थीं सोच कर मुझको बताना...! अकेलापन, कितना मधुर सुहाना लगता है, ये अकेलापन कोलाहल से दूर मन भागता सा प्रतीत होता है, असख्य महल बनते बिगड़ते और धरासायी होते है, न रिश्तों खिचाव और न कोई भर्मित आस्था इक अलौकिक बंधनों से..! गिला किससे करूँ ,फरियाद भी कोई सुनता नही * *हूँ वक्त का, मुरझाया फूल ,जिसे कोई चुनता नही |* *--अकेला * समय का कालचक्र ....!!! मैं वो गुज़रे ज़माने की चीज़ हूँ जो रख के, कोने में भुला दी जाती है तब उस...!*उस किताब में उसके लिखे सारे नज़्म थे * *और साथ में गुलाब की वो आखिरी पंखुरिया * * * *सुना है आज किताब भी जल गया और पंखुरिया उसके मज़ार पर हैं ...पुस्तकें मिलीं...विगत सप्ताह दो महत्वपूर्ण पुस्तकों की मानार्थ प्रतियां प्रकाशकों की ओर से मिली. पहली पुस्तक अनिल पुसदकरजी की क्यों जाऊं बस्तर मरने तथा दूसरी सतीश सक्सेना जी की मेरे गीत है .ये दोनों ही पुस्तकें जानी मानी शख्सियतों और ब्लागरों की लिखी हैं . अभी निकाय निर्वाचनों में अतिशय व्यस्तता के कारण इन्हें पढ़ तो नहीं पाया हूँ .मगर पुस्तक के आने पर उसके रैपर को खोलकर मुख्य पृष्ठ निहारने ओर एक सरसरी निगाह से पन्नों को पलटने का लोभ भला कहाँ संवरण हो पाता है . सो यह कृत्य तो सहज ही संपन्न हो गया....! ....गरीब हूँ मैं - रोटी के लिए घूमता रहता हूँ , इधर उधर , पाँव छिल जाते है , रुकता नही हूँ मगर , दिल से देगा मुझे कोई उसे भगवान् उसे बहुत देगा मेरी दुआ है सभी के लिए.....L धूल - अभी कल की ही बात है थोडा सा रद्दी कपडा मैंने भिगोया पानी में पोछ ( साफ़ ) डाले सारे धूल जो जमे थे मेरे घर के खिडकियों के शीशे पर...! ख्वाब की किरचें.. - वक़्त ने मेरी बाहं थाम कर मेरी हथेली पर अश्क के दो कतरे बिखेर दिए मेरे सवाल पर बोला ये अश्क नहीं बिखरे ख्वाब की किरचे हे सभांल कर रखो....! पहले मजा फिर सजा ..... या फिर .....आजकल दाद , खाज , खुजली मिटाने वाली कंपनी का एक विज्ञापन मेरी आँखों के सामने बार-बार आ रहा है , विज्ञापन की एक बात बार-बार मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित ....! सिगरेट यह बला आई कहां से? क्या है इसके कानून? -*तम्बाकू निषेध दिवस पर *विशेष, सिगरेट कहां स आई ? सिगरेट बनाने की मशीन का विकास 1750 से 1800 ईस्वी के बीच हुआ....! जलधि विशाल...आज गंगा दशहरा के पर्व पर - जलधि विशाल तरंगित ऊर्मि नीलांचल नाद झंकृत धरणी कल-कल झिन्झिन झंकृत सरिता पारावार विहारिणी गंगा तरल तरंगिनी त्रिभुवन तारिनी शंकर जटा विराजे वाहिनी....!
मौत से कह दूंगा, रुक जा दो घड़ी, आने वाला है ज़माना प्यार का - सांस में सुर सनसनाना प्यार का ज़िन्दगी है ताना बाना प्यार का मौत से कह दूंगा, रुक जा दो घड़ी आने वाला है ज़माना प्यार का...! पॉश खेल .. - विशुद्ध साहित्य हमारा कुछ उस एलिट खेल की तरह है जिसमें कुछ सुसज्जित लोग खेलते हैं अपने ही खेमे में बजाते हैं ताली एक दूसरे के लिए ही पीछे चलते हैं....! कुछ तो ब्लॉगर कहेंगे, ब्लॉगरों का काम है कहना ...जी हाँ यही सच है...! शाम होते ही टल्ली हो जाता है अन्ना का गांव ... - मुझे लगता था कि अब अन्ना के बारे में मैं बहुत लिख चुका हूं, बंद किया जाए ये सब, क्योंकि अन्ना और उनकी टीम की असलियत लगभग सामने आ चुकी है...! खट्टी-मीठी फेसबुक -इन्टरनेट ने आज अपनी पहुंच आम आदमी तक बना ली है | विकसित देशों में तो यह पहले ही काफी प्रचलित था , अब भारत जैसे विकासशील देशों में भी इसका प्रयोग करने वाले...! "गुण आ गये हैं नीम के देखो तो बेल में" (देवदत्त "प्रसून") -*कितनी हैं ख़ामियाँ यहाँ आपस के मेल में।* *मशगूल रिश्ते-नाते हैं छल-बल के खेल मे....! अपने लिए - ***वे अपने लिए नारी की हरेक परत से गुज़रना चाहते हैं सकल पदार्थ प्यार , अनुभूतियाँ , चमत्कार ,बाज़ार , सरंक्षण , सभी कुछ अपनी सांसों में ...! तराने सुहाने....आइये आज आपको एक और सुमधुर गीत सुनवाती हूँ ! जेलर फिल्म के लिए इसे लता मंगेशकर ने गाया है ! जितने मीठे बोल हैं उतनी ही मीठी धुन भी है....! 'चीनी' , मेरी जान ,तुम कहाँ खो गयी हो ? - ये कहानी महँगी हो रही शक्कर पर नहीं बल्कि महँगी हो रही 'मिठास' पर है। एक लड़की जिसका पति उसे प्यार से 'चीनी' बुलाता है, उसकी कहानी है ये...!
इस लिंक को जरुर पढ़े....! भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने जैसे ही अपने ब्लाग में बीजेपी :आडवाणी को रिटायर होने की सलाह देने वाले अंशुमान हैं कौन?....! ना खुशी, ना ग़म.... - पिछले ९ सालों में उस बाज़ार के सारे भिखारी अब शक्ल से पहचाने जाने लगे हैं। वो बूढ़े दादा..जिनके पास गुदड़ियों का एक पूरा भंडार है....! कब और कैसे? - आज के समय की तकनीकी ने कुछ लोगों के लिए दिन रात काम करते रहना संभव बना दिया है। तकनीकी के कारण हमें काम करने के लिए कार्यस्थल पर ही रुकना आवश्यक नहीं है...! भोजन छ्न्द :) - अनजाने ही छ्न्द गढ़ गये चर्चा मीठी मीठी बहा पसीना रोटी भीगी तपती रही अंगीठी। जोर हाथ के बेलन घूमे चौकी खटपट सीखी ताल दे रही चूड़ी खनखन जिह्वा नाचे भूखी।..
|
आज की चर्चा बहुत मन भावन है |
जवाब देंहटाएंआशा
समुन्नत ,संजीदा प्रयास ..........सिद्धहस्त हाथो से ....सदर आभार सर !
जवाब देंहटाएंsundar charcha ,,,,,
जवाब देंहटाएंसप्ताहान्त के लिये पर्याप्त आहार..
जवाब देंहटाएंसदर आभार
जवाब देंहटाएंbahut aabhaar shashtri ji
जवाब देंहटाएंacchi rachnao ke saath hamaari rachna kobhi sankalit karne ka
saadar
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर चर्चा ,,,,,
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिये आभार,,,,,,
RESENT POST ,,,, फुहार....: प्यार हो गया है ,,,,,,
rochak charcha sundar links
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंNice.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया विस्तृत चर्चा ... काफी अच्छे लिंकों का समावेश इस वार्ता में किया गया है ... आभार
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्री जी ! इतने मधुर एवं सुन्दर गीत का कम से कम आपने तो नोटिस लिया ! वरना मैं तो चकित थी कि औरंगजेब के शहर में तो मैं रहती हूँ लेकिन संगीत के प्रति रूचि एवं लगाव अन्य सभी का समाप्त हो गया सा लगता है ! ना तो किसीने इसे सुना ना ही प्रतिक्रिया दी ! आभारी हूँ आपने इसे चर्चामंच के लिए चयनित किया !
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा !
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छे लिंक्स चयन किये हैं आपने ...आभार ।
जवाब देंहटाएंAre waah kitni nadiyan mil rahi hai is sangam tat par..mere talaab ka paani bhi isme milaya..bahut abhaar...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंक्स संयोजन...रोचक चर्चा....आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंबहूत हि बढीया चर्चा मंच
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स बेहतरीन है...
कई नए लिंक्स मिले. आभार.
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा... बढ़िया लिंक्स...
जवाब देंहटाएंसादर आभार.
सुंदर चर्चा और बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट "सिगरेट यह बला आई कहां से? क्या है इसके कानून? " को शामिल करने के लिये आपका आभार.
man ko bha gayi....sabhi links badhiya
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिंक्स..सुन्दर सार्थक चर्चा प्रस्तुति ..आभार !
जवाब देंहटाएंGreat links... Many many thanks Sir.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा खूबसूरत लिंक्स!!!
जवाब देंहटाएंG R E A T . . .
जवाब देंहटाएंअभी चर्चा मंच देख पाई क्योंकि सवेरे से नेट नहीं चल रहा था...शानदार चर्चा...ढेर सारे लिंक्स मिले...आभार !!
जवाब देंहटाएं