"आज विनीत चाचा का जन्मदिन है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
चलो बाबा बर्फानी के द्वार
आदि
देव महादेव स्वयंभू पशुपति नीलकंठ भगवान आशुतोष शंकर भोले भंडारी को
सहस्त्रों नामों से स्तुति कर पुकारा जाता है। शास्त्रों में जगह-जगह पर
भगवान शिव के महात्म्य का वर्णन मिलता है। ऋग्वेद में भी शिवजी का गुणगान
मिलता है।
श्री अमरनाथ धाम एक ऐसा शिव धाम है जिसके संबंध में मान्यता है कि भगवान शिव साक्षात श्री अमरनाथ गुफा में विराजमान रहते हैं।
भगवान् राम की सहोदरा (बहन) : भगवती शांता परम-4
"अब कुमुद खिलने लगेंगे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')आज नभ पर बादलों का है ठिकाना।
हो गया अपने यहाँ मौसम सुहाना।।
कल तलक लू चल रही थी,
धूप से भू जल रही थी,
आज हैं रिमझिम फुहारें,
लौट आयी हैं बहारें,
बुन लिया है पंछियों ने आशियाना।
हो गया अपने यहाँ मौसम सुहाना।। |
ऋतु आये जो शरद, साल हो जाए देखे -दिनेश की दिल्लगीमौलाना मुलायम और दिग्गी राजा पाकिस्तान में प्रधानमंत्री पद के मजबूत उम्मीदवार
अच्छा भला विचार है, प्यारे मित्र हरेश ।
ममता इस प्रस्ताव को, करवाएगी पेश ।
करवाएगी पेश, देश फिर बने अखंडित ।
मिटिहै झंझट क्लेश, आप भी महिमा मंडित ।
जागे हिन्दुस्थान, सुबह फिर इक अजान पर ।
बचता रक्षा फंड, भरोसा तालिबान पर ।।
लिएंडर मोदी !!!
गत भूपति नीतीश की, मोदी पेस विशेष |
जोड़ीदारों की खड़ी, खटिया सम्मुख रेस | खटिया सम्मुख रेस, स्वार्थ मद अहंकार है | जाय भाड़ में देश, जीभ में बड़ी धार है | रविकर करिए गर्व, बनो न किन्तु घमण्डी | तुलोगे कौड़ी मोल, अगर प्रभु मारा डंडी || तेरे मेरे बीच की .....
देखें सुन्दर चित्र तो, लगता बड़ा विचित्र ।
ताक रहा अपलक झलक, मनसा किन्तु पवित्र ।
मनसा किन्तु पवित्र, झलकती कैंडिल लाइट ।
किरणें स्वर्ण बिखेर, करे हैं फ्यूचर ब्राइट ।
दूर बसे सौ मील, मीत कर्मों के लेखे ।
"उल्लूक टाईम्स "
खोजा खाजी कर रहे, रहट-हटी पति एक |
पांच साल का वक्त, बुढ़ायेगा वो जैसे |गोल गोल घूमा करे, कुआं बीच में छेंक | कुआं बीच में छेंक, अधर्मी खोजो सेक्युलर | जात-पांत से दूर, काटता जाए चक्कर | उसको करूँ विरक्त, ढूँढ़ कर दूजे भैंसे || |
अंधकार बढ़ता ही जाता है ,अब तो ये अँधेरा भी
खुद में ही घुटा जाता है ,बहुत से अंतर्द्वंद जब आपके ह्रदय में ,दे गवाही
आपके गुनाह की ,तब अवसाद बढ़ता ही जाता है ,और आपके अंदर का इंसान बहुत
छटपटाता हैन सोता न जागता है ,न रोता न हँसता है,न कुछ कहता न ही सुनता
है,बेबात की उलझनों में
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श्रीमद भगवत में गंगावतरण की कथा है।
प्राचीन काल की बात है। अयोध्या में इक्ष्वाकु वंश के राजा सगर राज करते थे। वे
बड़े ही प्रतापी, दयालु, धर्मात्मा और प्रजा हितैषी थे।
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झिझक मिटाएँ सिंहगर्जन आसन से
Kumar Radharaman
स्वास्थ्य
-व्यावहारिक रूप से आदमी में दो तरह की प्रवृत्ति होती हैं- *अंतर्मुखी *और *
बहिर्मुखी*.
-सिंहगर्जन आसन का नियमित अभ्यास अंतर्मुखी प्रतिभा वाले बच्चों के लिए विशेष
रूप से लाभकारी हैं क्योंकि यह उनकी छुपी हुई प्रतिभाओं को सामने लाने में
मददगार है
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मन का सच्चा होना !!!समझ पाना सबके लिए संभव नहीं जब तक सृजन न किया हो उसने रची न गई हो कोई रचना उसके द्वारा भला उसका बिखरना कैसे समझ सकता है वो! |
वटवृक्ष
ऋता शेखर 'मधु'
जन्म - पटना में। शिक्षा- एम० एस० सी० (वनस्पति शास्त्र),बी० एड०
। प्रकाशन-
अंतर्जाल पर अनेक वेबसाइटों पर रचनाएँ प्रकाशित। जापानी छंदों जैसे हाइकु,
ताँका आदि में विशेष रुचि। लघुकथाएँ एवं छंदमुक्त कविताएँ भी प्रकाशित
होती रही हैं। स्वयं के दो चिट्ठे- मधुर गुंजन एवं हिंदी हाइगा
(हरिगीतिका छंद)
वसुधा मिली थी भोर से जब, ओढ़ चुनरी लाल सी।
पनघट चली राधा लजीली, हंसिनी की चाल सी।। इत वो ठिठोली कर रही थी, गोपियों के साथ में । नटखट कन्हैया उत छुपे थे, कंकड़ी ले हाथ में ।१। |
जो होती अलबेली नार
वन्दना
*जो होती अलबेली नार *
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करती साज श्रृंगार *
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प्रियतम की बाट जोहती*
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नैनो मे उनकी छवि दिखती *
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कपोलों पर हया की लाली दिखती *
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अधरों पर सावन आ बरसता *
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माथे पर सिंदूरी टीका सजता *
*
जो प्रियतम के मन मे बसता *
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जीवन सात सुरों सा बजता *
*जो होती अलबेली नार*
*तिरछी चितवन से उन्हें रिझाती*
*नयन बाण से घायल कर जाती*
*हिरनी सी चाल चल जाती*
*मतवारी गजगामिनी कहाती *
*प्रियतम के मन को भा जाती *
*गाता जीवन मेघ मल्हार*
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*जो होती अलबेली नार*
*बिना हाव भाव के भी*
*प्रियतम के मन में बस जाती *
*अपनी प्रीत से उन्हें मनाती*
*उनकी सांसें बन जाती *
*जीवन रेखा कहलाती *
*पाता जीवन पूर्ण..ज़ख्म…जो फूलों ने दिये |
हँसुवा की शादी लगी, पर नितीश की रीत-दिनेश की दिल्लगी
DR. ANWER JAMAL
Blog News
हँसुवा की शादी लगी, पर नितीश की रीत ।
आ'मोदी मद में रहे, गा खुरपी के गीत ।
गा खुरपी के गीत, स्वार्थ का भैया चक्कर ।
युद्ध-काल यह शीत, डाल इंजन में शक्कर ।
करते खेल खराब, तीर से कई निशाने ।
ram ram bhai
टापा भारत ने सही, अब है नम्बर एक |
मधुमेह कैंसर भ्रष्टता, हुई मार्केट ब्लैक | हुई मार्केट ब्लैक, रसोई माँ की रोई | रोटी सरसों साग, आग चूल्हे की खोई | जारी भागमभाग, रास्ता कितना नापा | सब रोगों का बाप, किन्तु है यही मुटापा || सखी बरखा
Saras
मेरे हिस्से की धूप भीग पसीने से रही, मानसून अब भेज | मानसून अब भेज, धरा धारे जल-धारा | जीव-जंतु अकुलान, सरस कर सहज सहारा | पद के सुन्दर भाव, दिखाओ प्रभु जी नरमी | यह तीखी सी धूप, थामिए भीषण गरमी || "जवान के साथ जा जवान हो जा "Sushil"उल्लूक टाईम्स "
अपने अपने दर्द की, रहे दवा सब खोज ।
कुछ तो दुआ-भभूत में, कुछ कसरत से रोज ।
कुछ कसरत से रोज, पोज लख ओज बढाते ।
पर बीबी के डोज, जुल्म कुछ ऐसा ढाते ।
भीगी बिल्ली भूख, देखती चूहे सपने ।
गेंहू और गुलाब, छांटते खूसट अपने ।। कासे कहे...डॉ. जेन्नी शबनम
लम्हों का सफ़र
काव्य मंजूषा
दो शब्दों की पंक्तियाँ, ढाती जुल्म अपार ।
पीर पराई कर रही, शब्दों का व्यापार ।
शब्दों का व्यापार, सफ़र लम्हों का चालू ।
सावन मोती प्यार, सीप-मन श्रृद्धा पा लूं ।
पर तडपे मन-व्यग्र, ढूँढ़ता सच्चा हमदम ।
ताप लगे अति तेज, बचा ले बिखरी शबनम ।। यहाँ, ऐसा ही होता है ...(संस्मरण)अदा
सरल कनाडा पुलिस है, विकट-काल में शांत ।
आलोकित परिसर करे, स्वत: शांत हर भ्रांत ।
स्वत: शांत हर भ्रांत, प्रांत भारत के लेकिन ।
रहे सशंकित साधु , हेल्प लगती नामुमकिन ।
चढ़ा चढावा ढेर, करो फिर हेरा-फेरी ।
आँखे रहें तरेर, किन्तु दुर्जन की चेरी ।।हिलोर(पुरुषोत्तम पाण्डेय)जाले मीता ने जीता हृदय, जो टूटा दो बार | प्रथम मौत साजिश करे, दूजा पुत्र विचार | दूजा पुत्र विचार, जिया इतिहास दुबारा | दे जाता वह दर्द, पुत्र पर जीवन वारा | कंप्यूटर जन-जाल, पुन: दे गया सुबीता | चमत्कार परनाम, मिला मीता मनमीता || फिर कली बना दो
कैसा अंतर्द्वंद यह, कैसा यह संताप |
प्रीति नहीं अपनाय, गुजारिश ठुकराते हो |चाहूँ तुम्हे पुकारना, पर रहती चुपचाप | पर रहती चुपचाप, अश्रु-धारा को धारा | रही रास्ता नाप, पुकारी नहीं दुबारा | पोता भाई पुत्र, इन्हें ही अपनाते हो | |
पहली बारिश में...
देवेन्द्र पाण्डेय
रात अचानक
बड़े शहर की तंग गलियों में बसे
छोटे-छोटे कमरों में रहने वाले
जले भुने घरों ने
जोर की अंगड़ाई ली
दुनियाँ दिखाने वाले जादुई डिब्बे को देखना छोड़
खोल दिये
गली की ओर
हमेशा हिकारत की नज़रों से देखने वाले
बंद खिड़कियों के
दोनो पल्ले
मिट्टी की सोंधी खुशबू ने कराया एहसास
हम धरती के प्राणी हैं !
प्रयत अंतर में पतित विचार...
प्रतुल वशिष्ठ
दर्शन-प्राशन
दर्शन-प्राशन
अरी अप्सरे अनल अवदात
शिथिल कर देने वाली वात
आपके अंगों का आकार
ध्यान आते ही गिरता धात।
देख तेरे मनमोहक प्रोत
नयन बन गये हमारे श्रोत
लिपटते हैं तन-चन्दन जान
सर्प,
सुन्दरता का पा स्रोत।
आपको डसने को तैयार
नयन,
लिपटे करते फुत्कार
किन्तु भ्रम में 'अहि-तिय-अहिवात'
स्वयं का कर लेते संहार।
बहुत शानदार लिंकों का चयन किया है आपने आज की चर्चा में!
जवाब देंहटाएंआपका आभार...रविकर जी!
अच्छी और सटीक लिंक्स |आशा
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सूत्र...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर लिंक्स .
जवाब देंहटाएंरविकर जी! आपका आभार .
रविकर जब दुकान सजाता है
जवाब देंहटाएंहर पकवान के बारे में भी
बताता चला जाता है
खाने का मजा इसीलिये
चार गुना बढ़ जाता है ।
आभार !!!!
सुन्दर,व्यवस्थित चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ...आभार
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार सटीक लिंकों का चयन,,,आभार
जवाब देंहटाएंbahut acchi links hai sir
जवाब देंहटाएंरविकर जी! शानदार लिंकों का चयन !!!!!!
जवाब देंहटाएंअच्छी रंग - विरंगी चर्चा.
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स ...
जवाब देंहटाएंरविकर जी! मेरे दोहे को काव्यात्मक टिप्पणी सहित चर्चामंच में शामिल करने लिये अत्यंत आभार...
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार लिंकों का चयन
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा... सुन्दर लिंक्स...
जवाब देंहटाएंसादर आभार.
shaandar charcha behtreen links aabhar ravikar ji.
जवाब देंहटाएंबढ़िया वार्ता !
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा खूबसूरत और ढेर सारे लिंक्स
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को इस ब्लॉग में स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार रविकर जी ....और चर्चा भी उम्दा रही ....!
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