सर्ग-1 भाग-1 "अथ शांता"
मनोज कुमार has left a new comment on "भगवान् राम की सहोदरा (बहन) : भगवती शांता परम":
भारत की हर दूसरी बहन यूं ही तमाम कुर्बानी देने के बावजूद गुमनाम बनी रहती है। शांता की किस्मत में भी ऐसी ही कुर्बानी थी। बावजूद इसके कि वो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र की बहन थी और रामजन्म को संभव बनाने के लिए उसने बड़ा बलिदान दिया था। इस गुमनाम पात्र जो लेकर एक छोटी सी कविता रचने की सोची थी। कर न पाया। आप तो पूरा काव्य ही रच रहे हैं। शुभकामनाएं।
जय-जय जय विघ्नेश, पूर्ण कथा कर पावनी ||1||
वन्दऊँ गुरुवर श्रेष्ठ, कृपा पाय के मूढ़ मति,
यह गँवार ठठ-ठेठ, काव्य-साधना में रमा ||2||
पुस्तक परिचय -------" मेरे गीत " / गीतकार --- सतीश सक्सेना
संगीता स्वरुप ( गीत )
कुछ दिन पूर्व सतीश सक्सेना जी
के सौजन्य से मुझे उनकी पुस्तक " मेरे गीत " मिली और मुझे उसे गहनता से
पढ़ने का अवसर भी मिल गया । सतीश जी ब्लॉग जगत की ऐसी शख्सियत हैं जो
परिचय की मोहताज नहीं है । आज अधिकांश रूप से जब छंदमुक्त रचनाएँ लिखी
जा रही हैं उस समय उनके लिखे भावपूर्ण गीत मन को बहुत सुकून देते हैं ।
उनके गीतों और भावों से परिचय तो उनके ब्लॉग पर होता रहा है लेकिन
पुस्तक के रूप में उनके गीतों को पढ़ना एक सुखद अनुभव रहा । पुस्तक
पढ़ते हुये यह तो निश्चय ही पता चल गया कि सतीश जी एक बहुत भावुक और कोमल
हृदय के इंसान हैं ।
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ठीक है फिर शामी कित्थे
मिलना है ते केडे टेम. रिंग करना, हूँन चलदा हाँ.
जी ये जिंदादिल लोग ठहाकों
के बीच अपना रिटायर्ड जीवन व्यतीत रहे हैं....
तय कीजिए ६० साल के जवान या बूढ़े.
जय राम जी की.
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कोंपलों के लिए
कुश्वंश
कुछ शब्द
मन में घुमड़ते मानसून बनकर कुछ शब्द पसरे सड़क पर जूनून बनकर | लेखा- जोखा...Sarasमेरे हिस्से की धूप यह दुनिया शिशुपालों से भरी पड़ी है - किस किस के पापों का हिसाब रखूँ..? हाँ ....मैं कृष्ण नहीं हूँ - मै हूँ एक आम आदमी- जो ऐसे ही लोगों द्वारा - हर कदम पर शोषित- इसी आस में जी रहा है कि - "वह" तो हिसाब रख ही रहा होगा इनके कुकर्मों का .... लेकिन फिर..... |
मेरी रचना पुष्पों की माला
Dr.J.P.Tiwari
हे चिन्तक! तुझे प्रणाम!!, आज प्राप्त हुए मुझे,'अनुभूति के विभिन्न सोपान'.
चाहता हूँ उन्हें दीप मालाओं से सजा दूँ, क्योकि अब पूरे हुए मेरे अरमान,
होती है जब मन में हलचल, तो करती है यह यात्रा: संदेह से सत्य तक का.
देख गुरु-शिष्य बदलते समीकरण, आया ध्यान 'समीकरण: तम और प्रकाश का.
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हर सरकारी योजना का नाम गांधी या नेहरु.....गिनेचुने लोगो के नाम पर ही क्यों रखी जाती है ? क्या ये गिनेचुने ही लोग भारत में रहते है ? या ये ही शहीद हुये ? या आजतक ये ही महान हुये ?
Admin Deep
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फदील अल-अज्ज़वी की कविता
मनोज पटेल
पढ़ते-पढ़ते
*आज फदील अल-अज्ज़वी की एक कविता... *
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*ईश्वर और शैतान : फदील अल-अज्ज़वी *
(अनुवाद : मनोज पटेल)
पहले अध्याय में हम बात करते हैं
उस शैतान के बारे में जो चुनौती देता है ईश्वर को.
दूसरे अध्याय में
शैतान को स्वर्ग से निकाले जाने के बारे में.
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1
बिखरें रंग
फूलों से झरे हुए
धूप फागुनी
सजा जमीं आकाश
जग मनभावन ।
| कोई चिड़िया नहीं बोलतीऊँचे बड़े मकानों मे कोई चिड़िया नहीं बोलती सूने रोशनदानों में। कुछ छीटें मेरी यादों के कुछ धब्बे सबके |
(1)
गरज हमारी देख के, गरज-गरज घन खूब ।
बिन बरसे वापस हुवे, धमा-चौकड़ी ऊब ।
धमा-चौकड़ी ऊब, खेत-खलिहान तपे हैं ।
तपते सड़क मकान, जीव भगवान् जपे है ।
त्राहिमाम हे राम, पसीना छूटे भारी ।
भीगे ना अरमान, भीगती देह हमारी ।।
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"चाँद मान भी जा "
Sushil
चाँद सितारे चाहता, भंवरा खुश्बू फूल ।
लगता फिर से हिल गई, है दिमाग की चूल ।
है दिमाग की चूल, गधे सी सोच बना ले ।
सीवर में हर बार, चोंच की लोट लगा ले ।
लिस्ट हाथ में थाम, बाम माथे पे मलना ।
निपटाओ हर काम, चाल न कहीं बदलना ।।
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छुपा खंजर नही देखा
जो हर सर को झुका दे ख़ुद पे ऐसा दर नहीं देखा।
जो झुकने से रहा हो यूँ भी तो इक सर नहीं देखा।। पहुँच जाता कोई वाँ पे जहां ईसा का रुत्बा है, कोई बिस्तर नहीं छोड़ा के वो बिस्तर नहीं देखा। |
आरक्षण : आधार जातिगत, कारण राजनैतिक |
अनुराग, रौशनी के प्रति!
बस एक नैसर्गिक अनुराग हो रौशनी के प्रति
तो स्वतः ही जीवन कुसुमित हो जाता है उज्जवल पक्षों के प्रभाव से नित सवेरा आता है |
सोने के बाद कोई नहीं आया : एक लघु कथा
रंजीत
उस साल बहुत बारिश हुई थी।
नदी-खेत एकारनल हो गये थे। कोशी के कछार में बनैया सूअरों का प्रकोप कुछ
ज्यादा ही हो गया था। रात में सूअर के झूंड आते और मकई की फसल उजाड़ देते ।
किसानों को मचान बनाकर रात भर पहरा देना पड़ता था। उस किसान के घर में दो ही
समांग थे- बाप और बेटा। |
हाहाकारदिनकरजी जीवन दर्पण भाग - १२
दिनकर जी लिखते हैं.....
मधुर जीवन हुआ कुछ प्राण ! जब से
लगा धोने व्यथा का भार हूँ मैं,
रुदन अनमोल धन कवि का, इसीसे
पिरोता आंसुओं का हार हूँ मैं.
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नहीं रहे मेहँदी हसन (चर्चा -910 )
श्रृद्धा-सुमन समर्पित सादर, गजलों के सम्राट को |
मेंहदी मोहक गजल गायकी, करती गुंजित घाट को | मुर्दे भी जिन्दा-दिल होते, सुनिए प्यारे पाठकों - इक दिन तो सबको जाना है, छोड़ जगत के हाट को || "खरबूजों का मौसम आया" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
खरबूजे को देखकर, बदले रविकर रंग ।
पर पानी-पानी हुआ, बिन पानी है दंग।
उत्तरांचल कोयल, कोयला इत गर्माया ।
करिए खुब आनंद, सदा किलकारी गूंजे ।
सिखा सिखाया मास्टर, नहीं सका कुछ सीख ।
रहा पिछड़ता रेस में, रही निकलती चीख ।
रही निकलती चीख, भीख में राय मिल रही ।
करिए कुछ श्रीमान , पैर की जमीं हिल रही ।
दाई हॉकर कुकर, साथ किस्मत लिखवाया ।
करते क्यूँकर सफ़र, नहीं क्यूँ सिखा सिखाया ।।
दिव्या जीवन दिव्यतम, दो वर्षों का ब्लॉग ।
लोहा लेती लोक से, पिघलाई ना आग ।
पिघलाई ना आग, शर्त पे अपने जीती ।
जीती खुद के युद्ध, गरल भी खुद से पीती ।
लिखते रहो सटीक, देश हित रविकर हव्या ।
मानव का कल्याण, बधाई डाक्टर दिव्या ।।
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न्यूरोन सर्किटों में सुधार ला सकता है योग
veerubhai
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चेहरा-ए-इन्सान के पीछे भी चेहरा.......
लोग शक करने लगे हैं बाग़बाँ पर.
वक़्त ऐसा आ पड़ा है गुलसिताँ पर.
चेहरा-ए-इन्सान के पीछे भी चेहरा,
हम करें किस पर यकीं आख़िर यहाँ पर.
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दिन भर की तुम्हारी चुप
रात भर गूंजती रही ज़हन में गीली मिट्टी सी तुम्हारी महक दस्तक देती रही साँसों पे अनमनी सी तुम्हारी छुअन छूती रही उँगलियों को दबी हुई तुम्हारी आहट टहलाती रही पैरों में बेचैनी |
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कवि पूरे पागल हुवे, यही सही एहसास । घूरे के दिन बहुरते, रविकर के भी काश । रविकर के भी काश, हमें भी कहीं छपाओ । बिगड़े अब ''ईमान'', चलो अब "तो आ जाओ"। बन जाता कवि भूत, जहाँ घर खाली घूरे । करके कर्म अभूत, करें कविवर दिन पूरे ।।
(परिवार गाँव गया हुआ है )
सुदृश्यप्रतुल वशिष्ठदर्शन-प्राशन
पलक लपक मनमथ परख, झपक करत रति कैद।
नयन शयन कर न सकत, चतुर बुलावें बैद ।।
कमजोर नज़र
Maheshwari kaneri
अभिव्यंजना
मस्त मस्त दो पंक्तियाँ, भरे अनोखे भाव ।
दीदी बहुत बधाइयां, गूढ़ दृष्टि पा जाव ।। |
“DEATH IS A FISHERMAN” – BY BENJAMIN FRANKLIN अनुवाद-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक” |
दुनिया एक सरोवर है, और मृत्यु इक मछुआरा है! हम मछली हैं अवश-विवश सी, हमें जाल ने मारा है!! मछुआरे को हम जीवों पर कभी दया नही आती है! हमें पकड़कर खा जाने को, मौत नही घबराती है!! |
विहंगम है आज की चर्चा धन्यवाद
जवाब देंहटाएंविभिन्न विषयों पर कई लिंक्स से सजा चर्चा मंच बहुत आकर्षक है |
जवाब देंहटाएंआशा
विभिन्न विषयों पर कई लिंक्स से सजा चर्चा मंच बहुत आकर्षक है |
जवाब देंहटाएंआशा
काव्यमयी फुहार..
जवाब देंहटाएंरविकर जी!
जवाब देंहटाएंआज तो आपकी चर्चा पूरे रंग में है।
रंगों की फुहार है,
बहार ही बहार है,
आभार व्यक्त करता हूँ आपका!
अभी अभी चक्कर लगा के आया है
जवाब देंहटाएंनयी उर्जा भर के लौट के आया है
चर्चामंच कुछ नये अंदाज में सजाया है
आभार है कुछ हमारी भी ला के सुनाया है ।
अच्छे लिंक्स.धन्यवाद मुझे शामिल करने के लिए,रविकर जी.
जवाब देंहटाएंरविकर जी बहुत ही सुन्दर अंदाज में सजाया हैआप ने ये आज का चर्चामंच...मुझे शामिल करने के लिए आभार...
जवाब देंहटाएंsunder links...din bhar mein dheer dheere padhugi
जवाब देंहटाएंgoonjti chuppi ko shamil karne ke liye abhaar
Naaz
बहुत ही बढिया चर्चा लिंक्स की ... आभार
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है इतने सारे लिंक आभार
जवाब देंहटाएंbahut sundar charcha umdaa sootr.aabhar ravikar ji.
जवाब देंहटाएं्रोचक लिंक संयोजन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स !
जवाब देंहटाएंआभार !
बहुत सुंदर रोचक लिंक्स ,,
जवाब देंहटाएंअच्छी रही चर्चा.
जवाब देंहटाएंaabhar is charcha manch ko ham tak pahuchane k liye.
जवाब देंहटाएंdhanywad jo aapne rajbhasha se mere lekh 'DINKAR' ji ko yahan sthan diya.
Ravikar ji, Thanks for the wonderful links provided here in the charcha.
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