मित्रों! रविकर जी इन दिनों प्रवास पर हैं, इसलिए शुक्रवार का चर्चा मंच मुझे ही सजाना है। आज देखिए कुछ अद्यतन लिंको के साथ सबसे चर्चित और सर्वाधिक टिप्पणी प्राप्त चर्चा को! |
सबसे पहले कुछ अद्यतन लिंक देखिए! |
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अब देखिए सबसे अधिक चर्चित “मिलिए कुछ महिला ब्लॉगर्स से” (चर्चा मंच-260) |
आज के चर्चामंच में कुछ जानी-मानी ब्लॉगराओं से आपको परिचित कराता हूँ! |
सबसे पहले मिलिए- Ontario : Ottawa : Canada में प्रवासी भारतीय ब्लॉगर स्वप्नमञ्जूषा शैल “अदा” से- इनके ब्लॉग हैं- संतोष शैल काव्य मंजूषा ब्लॉग रेडियो Radio Ada इनकी आज की पोस्ट है- काव्य मंजूषा रामायण की चौपाइयाँ.... (यह प्रविष्ठी मैं दोबारा डाल रही हूँ... इस कविता को मैंने उस दिन लिखा था, जिस दिन मेरे बड़े बेटे मयंक शेखर का जन्म हुआ था, याद है मुझे इसे लिखकर जैसे ही मैंने पूरा किया था डाक्टर साहिबा ने मेरे हाथ से मेरी कलम और नोटबुक लगभग छीन ही लिया था, और धमकी दी थी...कोई लिखना पढ़ना नहीं है अभी...बस आराम करो...:):) जैसे उन्होंने कहा और मैं मान गई..:):) हा हा हा .. और आज फिर वही दिन आया है, २७ अगस्त, मेरे बड़े बेटे मयंक का जन्मदिन है, उस पल अस्पताल के कमरे में चार पीढियाँ विद्यमान थी, नवजात, मेरी नानी, मेरी माँ और मैं, मेरी नानी के मुखारविंद पर जो ज्योति मैंने देखी थी, उसे शब्द देना मेरे वश की बात न तब थी न अब है, लेकिन मेरा प्रयास ज़रूर है आपका आशीर्वाद चाहिए मयंक के लिए, उसी मयंक के लिए जिसका चित्रांकन आप सब देख चुके हैं...) खुरदरी हथेलियाँ, रामायण की चौपाइयाँ, श्वेत बिखरे कुंतल, सत्य की आभा लिए हुए उम्र की डयोड़ियाँ, फलाँगती फलाँगती क्षीण होती काया फिर भी, संघर्ष और अनुभव का स्तंभ बने हुए तभी !! नवागत को, युवा से लेकर, अधेड़ ने, बूढ़ी जर्जर पीढ़ी के हाथों में रखा हाथों के बदलते ही, पीढ़ियों का अंतराल दिखा सुस्त धमनियाँ जाग गयीं, मानसून के छीटों सी देदीप्यमान हो गयीं झुर्रियाँ आनन की बाहर से ही मुझे, चश्मे के अन्दर का कोहरा नज़र आया था, शायद, बुझती आँखों में बचपन तैर गया था नवागत पीढ़ी, निश्चिंत, निडर, हथेली पर, चौपाइयाँ सोखती रही, रामायण की !! और ऊष्मा मातृत्व की लुटाती रहीं, हम तीनों - नानी, माँ और मैं ! और अब एक गीत...आज का गीत है प्रज्ञा और उसके पापा की आवाज़ में.... प्रज्ञा की तरफ से उसके भईया के लिए...हा हा हा... |
अब मिलिए इन्दौर (मध्य प्रदेश) indore/Khargone : M.P : India की ब्लॉगर अर्चना चावजी से-इनके ब्लॉग हैं- मिसफिट:सीधीबात मेरे मन की ये अपने बारे में लिखती हैं- मै, सबसे पहले एक बेटी,फ़िर बहन,फ़िर सहेली,फ़िर पत्नी,फ़िर बहू, फ़िर माँ,फ़िर पिता,फ़िर वार्डन, फ़िर स्पोर्ट्स टीचर और फ़िलहाल "ब्लॊगर" के किरदार को निभाती हुई,"ईश्वर" द्वारा रचित "जीवन" नामक नाटक की एक पात्र। ये है इनकी अद्यतन पोस्ट मेरे मन की सीख फिर वही-पर सौ आने सही आज फिर एक पुरानी पोस्ट जिसे किसी ने पढ़ा नहीं था ............ ऐसी कोई लाइने नही है मेरे पास, जिनमे हो कुछ अलग, या कुछ खास, पता नही लोग ऐसा क्या लिख देते है, जिसे पढ़कर सब उन्हें कवि कह देते है, आज तक नया कुछ नही पढने में आया है, जो माता -पिता ने बताया - वही सबने दोहराया है, शायद इसलिए, क्योकि जब वे कहते है, तब समय रहते हम उन्हें नही सुनते है, उनके "जाने" के बाद, परिस्तिथियों से लड़कर , या डरकर , हम उन्हें याद करके, अपना सिर धुनते है। मैंने भी उन्हें सुना और उनसे सीखाहै, और अपने अनुभवों को आधार बना कर फ़िर वही लिखा है --- १.सदा सच बोलो। २.सबका आदर करो। ३.बिना पूछे किसी की चीज को मत छुओ। ४.किसी को दुःख मत दो। ५.समय पर अपना काम करो। ६.रोज किसी एक व्यक्ति की मदद करो। ७.अपने हर अच्छे कार्य के लिए ईश्वर को धन्यवाद् दो और बुरे के लिए माफ़ी मांगो। posted by Archana at 7:02 AM on Aug 27, 2010 |
अब मिलिए- पेटरवार , बोकारो : झारखंड : India की चिर-परिचित ज्योतिषाचार्या संगीता पुरी जी से- ये अपने बारे में लिखती हैं- पोस्ट-ग्रेज्युएट डिग्री ली है अर्थशास्त्र में .. पर सारा जीवन समर्पित कर दिया ज्योतिष को .. अपने बारे में कुछ खास नहीं बताने को अभी तक .. ज्योतिष का गम्भीर अध्ययन-मनन करके उसमे से वैज्ञानिक तथ्यों को निकलने में सफ़लता पाते रहना .. बस सकारात्मक सोंच रखती हूं .. सकारात्मक काम करती हूं .. हर जगह सकारात्मक सोंच देखना चाहती हूं .. आकाश को छूने के सपने हैं मेरे .. और उसे हकीकत में बदलने को प्रयासरत हूं .. सफलता का इंतजार है। इनके ब्लॉग हैं- My Blogs Team Members गत्यात्मक चिंतन गत्यात्मक ज्योतिष सीखें 'गत्यात्मक ज्योतिष' फलित ज्योतिष : सच या झूठ विद्यासागर महथा ब्लॉग 4 वार्ता शिवम् मिश्रा गिरीश बिल्लोरे Yashwant Mehta "Yash" मास्टर जी ताऊ रामपुरिया ललित शर्मा-للت شرما राजीव तनेजा राजकुमार ग्वालानी सूर्यकान्त गुप्ता हमारा खत्री समाज हमारा जिला बोकारो और यह रही इनकी अद्यतन पोस्ट- शुक्रवार, २७ अगस्त २०१० काश हम बच्चे ही होते .. धर्म के नाम पर तो न लडते !! बात पिछले नवरात्र की है , मेरी छोटी बहन को कंजिका पूजन के लिए कुछ बच्चियों की जरूरत थी। इन दिनों में कंजिका ओं की संख्या कम होने के कारण मांग काफी बढ़ जाती है। मुहल्ले के सारे घरों में घूमने से तो अच्छा है , किसी स्कूल से बच्चियां मंगवा ली जाएं। यही सोंचकर मेरी बहन ने मुहल्ले के ही नर्सरी स्कूल की शिक्षिका से लंच ब्रेक में कक्षा की सात बच्चियों को उसके यहां भेज देने को कहा। उस वक्त मेरी बहन की बच्ची बब्बी भी उसी स्कूल में नर्सरी की छात्रा थी। शिक्षिका को कहकर वह घर आकर वह अष्टमी की पूजा की तैयारी में व्यस्त हो गयी। अभी वह पूजा में व्यस्त ही थी कि दोपहर में छह बच्चियों के साथ बब्बी खूब रोती हुई घर पहुंची। मेरी बहन घबडायी हुई बाहर आकर उसे चुप कराते हुए रोने का कारण पूछा। उसने बतलाया कि उसकी मैडम ने उसकी एक खास दोस्त हेमा को यहां नहीं आने दिया। वह सुबक सुबक कर रो रही थी और कहे जा रही थी, 'मेरे ही घर की पार्टी , मैने घर लाने के लिए हेमा का हाथ भी पकडा , पर मैडम ने मेरे हाथ से उसे छुडाते हुए कहा ,'हेमा नहीं जाएगी'। वो इतना रो रही थी कि बाकी का कार्यक्रम पूरा करना मेरी बहन के लिए संभव नहीं था। वह सब काम छोडकर बगल में ही स्थित उस स्कूल में पहूंची। उसके पूछने पर शिक्षिका ने बताया कि हेमा मुस्लिम है , हिंदू धर्म से जुडे कार्यक्रम की वजह से आपके या हेमा के परिवार वालों को आपत्ति होती , इसलिए मैने उसे नहीं भेजा। मेरी बहन भी किंकर्तब्यविमूढ ही थी कि उसके पति कह उठे, 'पूजा करने और प्रसाद खिलाने का किसी धर्म से क्या लेना देना, उसे बुला लो।' मेरी बहन भी इससे सहमत थी , पर हेमा के मम्मी पापा को कहीं बुरा न लग जाए , इसलिए उनकी स्वीकृति लेना आवश्यक था। संयोग था कि हेमा के माता पिता भी खुले दिमाग के थे और उसे इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने की स्वीकृति मिल गयी। बहन जब हेमा को साथ लेकर आयी , तो बब्बी की खुशी का ठिकाना न था। उसने फिर से अपनी सहेली का हाथ पकडा , उसे बैठाया और पूजा होने से लेकर खिलाने पिलाने तक के पूरे कार्यक्रम के दौरान उसके साथ ही साथ रही। इस पूरे वाकये को सुनने के बाद मैं यही सोंच रही थी कि रोकर ही सही , एक 4 वर्ष की बच्ची अपने दोस्त के लिए , उसे अधिकार दिलाने के लिए प्रयत्नशील रही। छोटी सी बच्ची के जीवन में धर्म का कोई स्थान न होते हुए भी उसने अपने दोस्ती के धर्म का पालन किया। बडों को भी सही रास्ते पर चलने को मजबूर कर दिया। ऐसी घटनाओं को सुनने के बाद हम तो यही कह सकते हैं कि काश हम भी बच्चे ही होते !! प्रस्तुतकर्ता संगीता पुरी पर ६:१७ अपराह्न |
अब आपको मिलवाता हूँ उत्तराखण्ड कूर्माञ्चल हल्दवानी की मास्टरनी साहिबा शेफाली पाण्डे से- ये अपने बारे में लिखती हैं- मैं अंग्रेज़ी, अर्थशास्त्र एवं शिक्षा-शास्त्र (एम. एड.) विषयों से स्नातकोत्तर हूँ, लेकिन मेरे प्राण हिंदी में बसते हैं| उत्तराखंड के ग्रामीण अंचल के एक सरकारी विद्यालय में कार्यरत, मैं अंग्रेजी की अध्यापिका हूँ| मेरा निवास-स्थान हल्द्वानी, ज़िला नैनीताल, उत्तराखंड है| अपने आस-पास घटित होने वाली घटनाओं से मुझे लिखने की प्रेरणा मिलती है| बचपन में कविताओं से शुरू हुई मेरी लेखन-यात्रा कहानियों, लघुकथाओं इत्यादि से गुज़रते हुए 'व्यंग्य' नामक पड़ाव पर पहुँच चुकी है| मेरे व्यंग्य-लेखन से यदि किसी को कोई कष्ट या दुःख पहुंचे तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ| इनके ब्लॉग हैं- My Blogs Team Members नुक्कड़ उपदेश सक्सेना सुशील कुमार रवीन्द्र प्रभात rashmi ravija संजीव शर्माSadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " राजेश उत्साही नमिता राकेशतेजेन्द्र शर्मा सतीश चन्द्र सत्यार्थी बलराम अग्रवाल इरशाद अली shamavarsha अविनाश वाचस्पति Atul CHATURVEDI सुनील गज्जाणी HEY PRABHU YEH TERA PATH कमल शर्मा sareetha 79 more हँसते रहो हँसाते रहो आलोक सिंह "साहिल" अविनाश वाचस्पति आनन्द पाठक sanju अविनाशराजीव तनेजा सुशील कुमार छौक्कर सुशील कुमार पवन *चंदन* Kirtish Bhatt, Cartoonist कुमाउँनी चेली मास्टरनी-नामा पिताजी वेदिका डॉ. कमलकांत बुधकर डॉ.कविता वाचक्नवी Dr.Kavita VachaknaveePD आलोक सिंह "साहिल" ललित शर्मा-للت شرما गिरीश बिल्लोरे डा.सुभाष रायडॉ. मोनिका शर्मा दिलीप कवठेकर विष्णु बैरागी संगीता पुरी Dev हरिराम नरेन्द्र व्यास रेखा श्रीवास्तव बलराम अग्रवाल पवन *चंदन* राजीव तनेजा 34 more स्मृति-दीर्घा ... संगीता पुरी पवन *चंदन* आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' कमल शर्मा सुशील कुमारAlok Shankar राजीव तनेजा H P SHARMA Arun Kumar Jha कथाकारUdan Tashtari राजेश उत्साही "Aks" अजित वडनेरकर उमाशंकर मिश्र राजीव रंजन प्रसाद Rati yehsilsila सिद्धार्थ जोशी Sidharth Joshi 14 more यह रही इनकी अद्यतन पोस्ट-कुमाउँनी चेली बृहस्पतिवार, २६ अगस्त २०१० कितने कब्रिस्तान ? मेरी आँखें बहुत सुखद सपना देख रही हैं | सरकारी स्कूलों में जगह - जगह पड़े गड्ढे वाले फर्श के स्थान पर सुन्दर टाइल वाले फर्श हैं | उन गड्ढों में से साँप, बिच्छू, जोंक इत्यादि निकल कर कक्षाओं में भ्रमण नहीं कर रहे हैं | जर्जर, खस्ताहाल, टपकती दीवारों की जगह मज़बूत और सुन्दर रंग - रोगन करी हुई दीवारों ने ले ली है | दीवारों का चूना बच्चों की पीठ में नहीं चिपक रहा है | दीमक के वजह से भूरी हो गई दीवारें अब अपने असली रंग में लौट आई हैं | अब बरसात के मौसम में कक्षाओं के अन्दर छाता लगाकर नहीं बैठना पड़ता | खिड़की और दरवाज़े तक आश्चर्यजनक रूप से सही सलामत हैं | कुण्डियों में ताले लग पा रहे हैं | बैठने के लिए फटी - चिथड़ी चटाई की जगह सुन्दर और सजावटी फर्नीचर कक्षाओं की शोभा बढ़ा रहे हैं | पीले मरियल बल्ब जो हर हफ्ते तथाकथित अदृश्य ताकतों द्वारा गायब कर दिए जाते हैं, की जगह कभी ना निकलने वाली हेलोज़न लाइटें जगमगाने लगी है | बाबा आदम के ज़माने के पंखे, जिनका होना न होना बराबर है, बरसात में जिनके नीचे बैठने के लिए बच्चों को मना किया जाता है कि ना जाने कब सिर पर गिर पड़े, की जगह आधुनिक तेज़ हवा वाले पंखो ने ले ली है | मेरे सपने भी इतने समझदार हैं कि कूलर और ए. सी. के बारे में भूल कर भी नहीं सोच रहे हैं | इन भविष्य के निर्माताओं की झुकी हुई गर्दन और रीढ़ की हड्डी कुर्सी - मेज में बैठने के कारण सीधी हो गई है | कुर्सियों से निकलने वाली बड़ी - बड़ी कीलें कपड़ों को फाड़ना भूल चुकी हैं | बैठने पर शर्म से मुँह छिपा रही हैं | ब्लेक बोर्ड मात्र नाम का ब्लैक ना होकर वास्तव में ब्लैक हो गया है | कक्षाओं में रोज़ झाड़ू लगता है |शौचालय साफ़ सुथरे हैं | अब उनमे आँख और नाक बंद करके नहीं जाना पड़ता | कक्षा - कक्षों में इतनी जगह हो गई है कि इन भविष्य के नागरिकों के सिरों ने एक दूसरे से टकराने से इनकार कर दिया है | जुओं का पारस्परिक आवागमन बंद हो गया है | स्कूलों के लिए आया हुआ धन वाकई स्कूल के निर्माण और मरम्मत के कार्य में लग रहा है | उन रुपयों से प्रधानाचार्य के बेटे की मोटर साइकिल, इंजीनियर की नई कार, ठेकेदार की लड़की की शादी, निर्माण समिति के सदस्यों के कैमरे वाले मोबाइल नहीं आ रहे हैं | सबसे आश्चर्य की बात यह रही कि स्थानीय विधायक, जिनकी कृपा से धन अवमुक्त हुआ, का दस प्रतिशत के लिए आने वाला अनिवार्य फ़ोन नहीं आया | कीट - पतंगों के छोंके के बिना रोज़ साफ़ - सुथरा मिड डे मील बन रहा है | विद्यालय के चौकीदार की पाली गई बकरियां और मुर्गियां, दाल और चावल पर मुँह नहीं मार रही हैं | इन्हें वह उसी दिन खरीद कर लाया था जिस दिन से स्कूल में भोजन बनना शुरू हुआ था | सवर्ण जाति के बच्चे अनुसूचित जाति की भोजनमाता के हाथ से बिना अलग पंक्ति बनाए और बिना नाक - भौं सिकोड़े खुशी - खुशी भोजन कर रहे हैं | अध्यापकगण जनगणना, बालगणना, पशुगणना, बी. पी. एल. कार्ड, बी.एल. ओ. ड्यूटी, निर्वाचन नामावली, फोटो पहचान पत्र, मिड डे मील का रजिस्टर भरने के बजाय सिर्फ़ अध्यापन का कार्य कर रहे हैं | कतिपय अध्यापकों ने एल. आई. सी. की पोलिसी, आर. डी. , म्युचुअल फंडों के फंदों में साथी अध्यापकों को कसना छोड़ दिया है | ट्यूशन खोरी लुप्तप्राय हो गई है | ब्राह्मण अद्यापकों द्वारा जजमानी और कर्मकांड करना बंद कर दिया गया है | नौनिहालों को ''कुत्तों, कमीनों, हरामजादों, तुम्हारी बुद्धि में गोबर भरा हुआ है, पता नहीं कैसे - कैसे घरों से आते हो '' कहने के स्थान पर ''प्यारे बच्चों'', ''डार्लिंग'', ''हनी'' के संबोधन से संबोधित किया जा रहा है | अध्यापकों के चेहरों पर चौबीसों घंटे टपकने वाली मनहूसियत का स्थान आत्मीयता से भरी प्यारी सी मुस्कान ने ले लिया है | डंडों की जगह हाथों में फूल बरसने लगे हैं | कक्षाओं में यदा - कदा ठहाकों की आवाज़ भी सुनाई दे रही है | पढ़ाई के समय मोबाइल पर बातें करने के किये अंतरात्मा स्वयं को धिक्कार रही है | स्टाफ ट्रांसफर, इन्क्रीमेंट, प्रमोशन, हड़ताल, गुटबाजी, वेतनमान, डी. ए. के स्थान पर शिक्षण की नई तकनीकों और पाठ को किस तरह सरल करके पढ़ाया जाए, के विषय में चर्चा और बहस कर रहे हैं | अधिकारी वर्ग मात्र खाना - पूरी करने के लिए आस - पास के स्कूलों का दौरा करने के बजाय दूर - दराज के स्कूलों पर भी दृष्टिपात करने का कष्ट उठा रहे हैं | सब समय से स्कूल आ रहे हैं | फ्रेंच लीव मुँह छिपा कर वापिस फ्रांस चली गई है | निर्धन छात्रों के लिए आए हुए रुपयों से दावतों का दौर ख़त्म हो चुका है | अत्यधिक निर्धन बच्चों की फीस सब मिल जुल कर भर रहे हैं | पैसों के अभाव में किसी को स्कूल छोड़ने की ज़रुरत नहीं रही | सारे बच्चों के तन पर बिना फटे और उधडे हुए कपड़े हैं | पैरों में बिना छेद वाले जूते - मोज़े विराजमान हैं | सिरों में तेल डाला हुआ है और बाल जटा जैसे ना होकर करीने से बने हुए हैं | कड़कते जाड़े में कोई बच्चा बिना स्वेटर के दांत किटकिटाता नज़र नहीं आ रहा है | फीस लाने में देरी हो जाने पर बालों को काटे जाने की प्रथा समाप्त हो चुकी है | माता - पिता अपने बच्चों के भविष्य के लिए चिंतित हो गए हैं | हर महीने स्कूल आकर उनकी प्रगति एवं गतिविधियों की जानकारी ले रहे हैं |बच्चों के बस्ते रोजाना चेक हो रहे हैं | एक हफ्ते में धुलने वाली यूनिफ़ॉर्म रोज़ धुल रही है | उन पर प्रेस भी हो रही है | भविष्य के नागरिक ''भविष्य में क्या बनना चाहते हो?" पूछने पर मरियल स्वर में ''पोलीटेक्निक, आई. टी. आई., फार्मेसी या बी.टी.सी. करेंगे'' कहने के स्थान पर जोशो - खरोश के साथ ''बी. टेक., एम्.बी. ए., पी.एम्.टी. करेंगे'' कह रहे हैं | भारत के भाग्यविधाताओं को अब खाली पेट स्कूल नहीं आना पड़ता | प्रार्थना स्थल पर छात्राएं धड़ाधड करके बेहोश नहीं हो रही हैं | उनके शरीर पर देवी माताओं ने आकर कब्जा करना बंद कर दिया है, ना ही कोई विज्ञान का अध्यापक उनकी झाड़ - फूंक, पूजा - अर्चना करके उन्हें भभूत लगा कर शांत कर रहा है | एक और सपना साथ - साथ चल रहा है | मलबे में दबे हुए अठारह मासूम बच्चों के लिए सारे स्कूलों में शोक सभाएं की जा रही हैं | स्कूलों में छुट्टी होने पर कोई खुश नहीं हो रहा है | लोग ह्रदय से दुखी हैं | दूसरे धर्मों को मानने वाले स्कूल यह नहीं कह रहे हैं ''इस स्कूल के बच्चे वन्दे - मातरम् गाते थे अतः हम इनके लिए शोक नहीं करेंगे '' ना ही किसी के मुँह से यह सुनाई दे रहा है कि '' अरे! बच्चे पैदा करना तो इनका कुटीर उद्योग है, फिर कर लेंगे | इन्हें मुआवज़े की इतनी तगड़ी रकम मिल गई यही क्या कम है'' विद्यालय कब्रिस्तान के बजाय फिर से विद्या के स्थान बन गए हैं, जहाँ से वास्तव में विद्यार्थी निकल रहे हैं, विद्यार्थियों की अर्थियां नहीं | प्रस्तुतकर्ता शेफाली पाण्डे |
अब मिलिए-दिल्ली की श्रीमती संगीता स्वरूप जी से- ये अपने बारे में लिखती हैं- कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ... मन के भावों को कैसे सब तक पहुँचाऊँ कुछ लिखूं या फिर कुछ गाऊँ । चिंतन हो जब किसी बात पर और मन में मंथन चलता हो उन भावों को लिख कर मैं शब्दों में तिरोहित कर जाऊं । सोच - विचारों की शक्ति जब कुछ उथल -पुथल सा करती हो उन भावों को गढ़ कर मैं अपनी बात सुना जाऊँ जो दिखता है आस - पास मन उससे उद्वेलित होता है उन भावों को साक्ष्य रूप दे मैं कविता सी कह जाऊं. इनके ब्लॉग हैं- बिखरे मोती गीत.......मेरी अनुभूतियाँ और यह रही इनकी अद्यतन पोस्ट- गीत.......मेरी अनुभूतियाँ नीला आसमान मैं - आसमान हूँ , एक ऐसा आसमान जहाँ बहुत से बादल आ कर इकट्ठे हो गए हैं छा गई है बदली और आसमान का रंग काला पड़ गया है। ये बदली हैं तनाव की , चिंता की उकताहट और चिडचिडाहट की बस इंतज़ार है कि एक गर्जना हो उन्माद की और - ये सारे बादल छंट जाएँ जब बरस जायेंगे ये सब तो तुम पाओगे एक स्वच्छ , चमकता हुआ नीला आसमान... |
हमारी अगली ब्लॉगर हैं - डॉ.(श्रीमती) अजित गुप्ता ये अपने बारे में लिखती हैं- शब्द साधना राह कठिन/ शब्द-शब्द से दीप बनेंगे/ तमस रात में लिख देंगे/ शब्दों में ना बेर भरेंगे। इनके ब्लॉग हैं- अजित गुप्ता का कोना शहर से बाहर जाना एक ब्लागर का और ब्लागिंग से दूर होने के मायने – मैं ग्वालियर जा रही हूँ –अजित गुप्ता मैं देखती हूँ कि अक्सर लोग शहर से बाहर जाने पर या काम की व्यस्तता के कारण ब्लाग पर सूचना देते हैं कि हम इतने दिनों के लिए बाहर हैं या फिर व्यस्त हैं। ब्लागिंग के प्रारम्भिक दिनों में मुझे समझ नहीं आता था कि लोग ऐसा क्यों लिखते हैं? किसी को क्या फर्क पड़ेगा कि आप घर में हैं या बाहर? लेकिन अब ब्लागिंग के दस्तूर समझ आने लगे हैं। जैसे किसी बगिया में फूल महक रहे हों या फिर किसी खेत में फसल लहलहा रही हो तब फूलों से मकरंद पीने को मधुमक्खियां और फसल के कीड़े खाने के लिए चिड़ियाएं खेत में आती हैं और उनके चहकने और गुनगुन करने से जीवन्तता आती है। फसल चिड़ियों के गुनगुनाने से ही बढ़ती है। यदि दो-तीन दिन भी चिडिया खेत में या बगीचे में नहीं आए तो मायूसी सी छा जाती है। बागवान और किसान भी ध्यान रखता है कि कौन सी चिडिया खेत में रोज आ रही है और कौन सी नहीं। ऐसे ही ब्लागिंग का हाल है। हमने पोस्ट लिखी, यानी की आपकी पोस्ट आपके ब्लाग पर फसल की तरह लहलहाने लगी है और अब आपको इंतजार है कि चिड़ियाएं आंएं और आपकी पोस्ट पर अपनी गुनगुन करके जाए। इतनी लम्बी अपनी बात कहने का अर्थ केवल इतना भर है कि आपको ध्यान रहता है कि किस व्यक्ति ने मेरी पोस्ट पर टिप्पणी की है या नहीं। आपको बुरा लगने लगता है कि क्या बात है फला व्यक्ति मेरी पोस्ट पर क्यों नहीं आया? लेकिन वह बेचारा तो आपकी नाराजी से अनजान कहीं अपने काम में व्यस्त है। इसलिए आपकी नाराजी नहीं बने कि हमारे ब्लाग पर मेरी टिप्पणी क्यों नहीं है? इसलिए मैं आपको बता दूं कि मैं आज ग्वालियर जा रही हूँ और वहाँ से तीन दिन बाद वापस आऊँगी। इन दिनों की पोस्ट को मैं मिस करूँगी और मेरी टिप्पणियों का आप। आने के बाद मिलते हैं। |
अब नम्बर आता है दिल्ली की ही ब्लॉगर श्रीमती वन्दना गुप्ता का- ये अपने बारे में लिखती हैं- मैं एक गृहिणी हूँ। मुझे पढ़ने-लिखने का शौक है तथा झूठ से मुझे सख्त नफरत है। मैं जो भी महसूस करती हूँ, निर्भयता से उसे लिखती हूँ। अपनी प्रशंसा करना मुझे आता नही इसलिए मुझे अपने बारे में सभी मित्रों की टिप्पणियों पर कोई एतराज भी नही होता है। मेरा ब्लॉग पढ़कर आप नि:संकोच मेरी त्रुटियों को अवश्य बताएँ। मैं विश्वास दिलाती हूँ कि हरेक ब्लॉगर मित्र के अच्छे स्रजन की अवश्य सराहना करूँगी। ज़ाल-जगतरूपी महासागर की मैं तो मात्र एक अकिंचन बून्द हूँ। आपके आशीर्वाद की आकांक्षिणी- "श्रीमती वन्दना गुप्ता" इनके ब्लॉग हैं-
ज़ख्म…जो फूलों ने दिये ""मैं" का व्यूहजाल" एक सिमटी वन्दना द्वारा 4:00 AM परदुनिया में जीने वाले हम मैं, मेरा घर , मेरी बीवी, मेरे बच्चे मैं और मेरा के खेल में "मैं" की कठपुतली बन नाचते रहते हैं और तुझे दुनिया का हर उपदेश समझा जाते हैं देश के लिए कुछ कर गुजरने की ताकीद कर जाते हैं मगर कभी खुद ना उस पर चल पाते हैं क्योंकि "मैं" के व्यूहजाल से ना निकल पाते हैं समाज का सशक्त अंग ना बन पाते हैं |
अब चर्चा करते हैं- फरीदावाद, हरियाणा की ब्लॉगर अनामिका की- ये अपने बारे में लिखती हैं- मेरे पास अपना कुछ नहीं है, जो कुछ है मन में उठी सच्ची भावनाओं का चित्र है और सच्ची भावनाएं चाहे वो दुःख की हों या सुख की....मेरे भीतर चलती हैं.. ...... महसूस होती हैं ...और मेरी कलम में उतर आती हैं .....!! इनके ब्लॉग हैं- अनामिका की सदायें ... Tuesday, 24 August 2010 कर्मठ बनें.. उम्मीदें ...उम्मीदें और बस उम्मीदें फिर कुछ तानें बानें सपनों के . कभी सोचा है कि....जब उम्मीदें टूटेंगी तो क्या होगा ? क्या संभाल पाएंगे खुद को ? सपने भी तो उधार के हैं सदा दूसरों पर आधारित ... सदा किसी का आवलंबन किये हुए तो... उधार के ही तो हुए सपनें. कितना आहत होता है अंतस कितना क्रंदन करते हैं जज़्बात और ऐसा तो नहीं कि पहली बार ऐसा होता है कई बार ऐसा होता है फिर भी हम संभल नहीं पाते. बार बार ....हर बार फिर वही उम्मीदें फिर वही स्वप्न ... क्या बिना उम्मीदों के सांसे टूट जाएँगी ? क्या बिना उम्मीदों के रिश्ते छूट जायेंगे ? हमें सीखना होगा बिन उम्मीदों के जीना बिन उधार के सपनो के जीवन यापन करना. हमें बनना होगा कर्म योद्धा अपने बाजुओं की ताकत से पाना होगा आसमान अपने क़दमों की तेज़ी से नापनी होगी ये ज़मीन अपने विवेक बोध से करना होगा हर मुश्किल को आसान. कर्मठ बनें तो क्यों करें झूठी उम्मीदों का व्यापार ? क्यों जिएँ उधार के स्वप्नों की जिंदगी. |
अब मैं चर्चा कर रहा हूँ एक महान कवयित्री श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना "किरण" की सुपुत्री श्रीमती साधना वैद्य की जो Agra : Uttar Pradesh : India की निवासी हैं! ये अपने बारे में लिखती हैं- एक संवेदनशील, भावुक और न्यायप्रिय महिला हूँ । अपने स्तर पर अपने आस पास के लोगों के जीवन में खुशियाँ जोड़ने की यथासम्भव कोशिश में जुटे रहना मुझे अच्छा लगता है । इनके ब्लॉग हैं- Unmanaa * जिज्ञासा * देव तुम्हारी मंजु मूर्ति को लेकर मैंने प्यार किया, दुनिया के सारे वैभव को तव चरणों में वार दिया ! किन्तु अविश्वासी जगती से छिपा न मेरा प्यार महान्, पागल कहा किसीने मुझको कहा किसीने निपट अजान ! कहा एक ने ढोंगी है यह जग छलने का स्वांग किया, कहा किसी ने प्रस्तर पर इस पगली ने वैराग्य लिया ! लख कर मंजुल मूर्ति तुम्हारी मैंने था सौभाग्य लिया , कह दो मेरे इष्ट देव क्या मैंने यह अपराध किया ? किरण |
और अन्त में चर्चा करता हूँ - Ujjain : M.P. : India की ब्लॉगर आशा जी की - ये अपने बारे में लिखती हैं- I am M.A. in Economics& English.Though I was a science student and wanted to become a doctor,I could not. I joined education department as a lecturer in English.I have a little literary taste . इनका ब्लॉग है- Akanksha और इनकी अद्यतन पोस्ट है- स्मृतियां सुरम्य वादियों में दौनों ओर वृक्षों से घिरी , है एक पगडंडी , फूल पत्तियों से लदी डालियाँ , हिलती डुलती हैं ऐसे , जैसे करती हों स्वागत किसी का , चारों ओर हरियाली , सकरी सी सफेद सर्पिनी सी , दिखाई देती पगडंडी , जाती है बहुत दूर टीले तक , एक परिचिता सी , पहुंचते ही उस तक , गति आ जाती है पैरों में , टीले तक खींच ले जाती है , कई यादें ताजी कर जाती है , लगता है टीला, किसी स्वर्ग के कौने सा , और यादों के रथ पर सवार , हो कर कई तस्वीरें , सामने से गुजरने लगती हैं , याद आता है वह बीता बचपन , जब अक्सर यहाँ आ जाते थे , घंटों खेला करते थे , बड़े छोटे का भेद न था , केवल प्यार ही पलता था , कभी न्यायाधीश बन , विक्रमादित्य की तरह , कई फैसले करते थे , न्याय सभी को देते थे , जब दिखते आसमान में , भूरे काले सुनहरे बादल , उनमे कई आकृतियाँ खोज , , कल्पना की उड़ान भरते थे , बढ़ चढ कर वर्णन उनका , कई बार किया करते थे , छोटे बड़े रंग बिरंगे पत्थर, जब भी इकठ्ठा करते थे , अनमोल खजाना उन्हें समझ , गौरान्वित अनुभव करते थे , खजाने में संचित रत्नों की , अदला बदली भी करते थे , बचपन बीत गया , वह लौट कर ना आएगा , वे पुराने दिन , चल चित्र से साकार हो , स्मृतियों में छा जाते हैं , वे आज भी याद आते हैं | आशा अब दीजिए आज्ञा! कल फिर मिलेंगे!! |
सुप्रभात!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिंक्स के साथ सार्थक चर्चा प्रस्तुति
आभार!
खुलें पुराने पृष्ठ जब,मन होता अभिभूत
जवाब देंहटाएंताने - बाने रेशमी , बुन देता शहतूत .
रेशमी स्मृतियों से सुसज्जित चर्चा मंच ,वाह !!!
सुन्दर चर्चा!
जवाब देंहटाएंआभार!
बहुत सुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंबताइये दिल्ली में रहता हूं, दिल्ली के ब्लागर से ही परिचित नहीं हूं।
सार्थक चर्चा बढिया मंच
प्यारी माँ: आमिर की अम्मी की कहानी
जवाब देंहटाएंke liye shukriya.
aabhaar shastri ji
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा का तो अद्भुत रंग है…………खूबसूरत
जवाब देंहटाएंचर्चा ही चर्चा ,चुन लें कुछ भी ,यहाँ सब कुछ व्यंग्य विनोद ,गीत,रीत और प्रीत रोमांस ...बढ़िया और व्यापक चर्चा पोटला,पढ़ते ही जाओ ....
जवाब देंहटाएंकृपया यहाँ भी पधारें -
फिरंगी संस्कृति का रोग है यह
प्रजनन अंगों को लगने वाला एक संक्रामक यौन रोग होता है सूजाक .इस यौन रोग गान' रिया(Gonorrhoea) से संक्रमित व्यक्ति से यौन संपर्क स्थापित करने वाले व्यक्ति को भी यह रोग लग जाता है .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
ram ram bhai
शुक्रवार, 8 जून 2012
जादू समुद्री खरपतवार क़ा
बृहस्पतिवार, 7 जून 2012
कल का ग्रीन फ्यूल होगी समुद्री शैवाल
http://veerubhai1947.blogspot.in/
आज तो आपने वाकई
जवाब देंहटाएंगजब कर डाला
नया एक रंग चर्चामंच
को दे डाला
बहुत से ब्लागरों की
कुंडली को निकाल डाला
जाते जाते ऊल्लूक का
एक अंडा चर्चांमंच के घोंसले
में ला कर रख ही डाला
कृ्तार्थ उसे कर डाला।
सुन्दर, सार्थक एवं सुव्यवस्थित चर्चा के लिए बधाई शास्त्री जी ! पुराने व नए लिंक्स का यह अद्भुत संयोजन बहुत अच्छा लगा ! साभार !
जवाब देंहटाएंvistrat aur sundar charcha
जवाब देंहटाएंmeree rachnaa ko sthaan dene ke liye dhanywaad
बढिया लिंक्स ।
जवाब देंहटाएंअचछी प्रस्तुति ।
apna link dekhkar achchha laga ...bahut dhanyvaad
जवाब देंहटाएंbahut bahut kshama prarthi hun ki main is manch par bahut deri se pahunchi. mujhe aaka sandesh mail bhi aaj hi mila.
जवाब देंहटाएंbahut mehnat se taiyar ki gayi aapki ye charcha adbhut rang-birangi chhata liye khoobsurat hai. aapki mehnat ko naman jo aapne itne purane-purane post aur sathiyon ko yahan ekatrit kar samman diya.
aabhar mujhe yahan samman dene k liye.
आ0 शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर मेरी ग़ज़ल "ऐसी भी हो खबर... को स्थान देने के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद
यह काफी अच्छा मंच है और प्रस्तुति भी स्तुत्य है
यहां काफी रचनओं के लिन्क दिए जाते हैं जिस से आप के पाठकों की पंहुच ज़्यादा से ज़्यादा रचनाओं तक हो सके अच्छा प्रयास है .और अच्छा होता अगर किसी एक रचना पर (जो आप को सबसे अच्छी लगी हो )विस्तृत समीक्षा /आलोचना/गुण-दोष पर चर्चा और विवेचन हो जाता तो रचनाकारों को अपेक्षित सुधार करने का ,एवं पाठको को लाभान्वित होने का भी सुयोग मिलता.....संभवत: लिन्क ही देना काफी नही होगा
यह मेरा व्यक्तिगत विचार है इसे अन्यथा न लिया जाय
सादर
आनन्द.पाठक
09413395592