एकाधिक से यौनकर्म, ड्रग करते इंजेक्ट ।
बाई-सेक्सुयल मैन गे, करिए इन्हें सेलेक्ट ।
करिए इन्हें सेलेक्ट, जांच करवाओ इनकी ।
केस यही परफेक्ट, जान जोखिम में जिनकी ।
एच. आई. वी. प्लस, जागरूक बनो नागरिक ।
वफादार हो मित्र , नहीं संगी एकाधिक ।
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संतोष त्रिवेदी
बैसवारी baiswari
हुवे कबूतर क्रूर सब, करें साथ मतदान ।
जब्त जमानत हो रही, बहेलिया हैरान ।
कौवों ने रंगवा लिया, सब सफ़ेद सा पेंट ।
असमंजस में कोयली, गाड़ी खुद का टेंट ।
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जबरदस्त यह शायरी, तेज धार सरकार ।
सावधान रहिये जरा, करवाएगी मार ।
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संगीता स्वरुप ( गीत )
सौ जी.बी. मेमोरियाँ, दस न होंय इरेज |
रोम-रैम में बाँट दे, कुछ ही कोरे पेज | कुछ ही कोरे पेज, दाग कुछ अच्छे दीदी | रखिये इन्हें सहेज, बढे इनसे उम्मीदी | रविकर का यह ख्याल, किया जीवन में जैसा | रखे साल दर साल, सही मेमोरी वैसा || |
Roshi
डालो बोरा फर्श पर, रखो क्रोध को *तोप | डीप-फ्रिजर में जलन को, शीतलता से लोप | *ढककर शीतलता से लोप, कलेजा बिलकुल ठंडा | पर ईर्ष्या बदनाम, खाय ले मुर्गा-अंडा | दो जुलाब का घोल, ठीक से इसे संभालो | पाहून ये बेइमान, विदा जल्दी कर डालो || |
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बढ़िया विश्लेषण करें, टिप्पणियों की आप |
चुन चुन कर देते यहाँ, इस ब्लॉग पर छाप | इस ब्लॉग पर छाप, चितेरे बड़ी बधाई | बड़े महत्व की टीप, पोस्ट पर जितनी आई | सब की सब हैं स्वर्ण, छाँट कर धरो अमोलक | अनुकरणीय प्रयास, बजाओ ढम ढम ढोलक || |
हृदय का संस्कार
प्रतुल वशिष्ठ
दर्शन-प्राशन वर्षों की संख्या तीन हुई, नित दीन-हीन अति-क्षीण हुई | कल्पनी काट कल्पना गई, पर विरह-पत्र उत्तीर्ण हुई || कल पाना कैसे भूल गए, कलपाना चालू आज किया - बेजार हजार दिनों से मैं, क्या प्रेम-प्रगाढ़ विदीर्ण हुई ?? |
सदा
रूप निखारे वित्त-पति, रुपिया हो कमजोर ।
नोट धरे चेहरे हरे, करें चोर न शोर ।
करें चोर न शोर, रखे डालर में सारे ।
हम गंवार पशु ढोर, लगाएं बेशक नारे ।
है डालर मजबूत, इलेक्शन राष्ट्र-पती का ।
इन्तजार कर मीत, अभी तो परम-गती का ।
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अच्छी नींद के लिए....
Kumar Radharaman
स्वास्थ्य
बरसे धन-दौलत सकल, बचे नहीं घर ठौर |
नींद रूठ जाए विकल, हजम नहीं दो कौर | हजम नहीं दो कौर, गौर करवाते भैया | बड़े रोग का दौर, काम का नहीं रुपैया | करिए नित व्यायाम, गर्म पानी से न्याहो | मिले पूर्ण विश्राम, राधा-कृष्ण सराहो |। |
dheerendra
स्वागत करता मित्रवर, शुभकामना प्रसाद |
काव्यांजलि पर धीर को, देता रविकर दाद | देता रविकर दाद, मुबारक हों फालोवर | मिले सफलता स्वाद, सदा ही बम-बम हरिहर | रचनाएँ उत्कृष्ट, बढ़ें नित नव अभ्यागत | बढ़ते जाएँ पृष्ट, मित्रवर स्वागत स्वागत || |
सिल्वर जुबिली समारोह -1987 की मार्मिक यादें
G.N.SHAW
BALAJI चौंतिस साथी जम गए, मिला रेलवे भौन | मिला रेलवे भौन, मटन सांभर आर्केस्ट्रा | धरना भी हो गया, पार्टी होती एक्स्ट्रा | बीता लंबा काल, बहुत कुछ खोया पाया | चलती रोटी दाल, एक परिवार बनाया || |
चर्चामंच अनोखा मंचअरुन शर्मा दास्ताँने - दिल (ये दुनिया है दिलवालों की )आसानी से कह रहे, अरुण तरुण एहसास । ब्लॉग-जगत का कर रहा, चर्चा-मंच विकास । चर्चा-मंच विकास , आस है भारी इससे । छपते गीत सुलेख, विवेचन गजलें किस्से । बहुत बहुत आभार, प्यार से इसे नवाजा । कमी दिखे तत्काल, ध्यान शर्तिया दिला जा ।। कौवे की तरह कावँ-२ करते हैं
खेले नेता गाँव में, धूप छाँव का खेल |
बैजू कद्दू भेजता, तेली पेट्रोल तेल | बैंगन लुढ़क गया || परती की धरती पड़ी, अपना नाम चढ़ाय | बेचे कोटेदार को, लाखों टका कमाय | बैजू भड़क गया || |
बरसों से इसी तरह ज़मीन में धंसी हुई -
श्रापग्रस्त -
तुम्हारी बाट जोहती हुई -मैं !
और तुम ...!!!
मुझसे विमुख -
रुष्ट -
असंतुष्ट -
मेरी पहुँच से कोसों दूर !!!!!
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गीता हरिदास -सतीश सक्सेना
सतीश सक्सेना
मेरे गीत !
कुछ
दोस्त , रिश्तेदारों से भी बढ़कर होते हैं , जिनसे आप अपना कोई भी खुशी और
दुख बाँट सकते हैं , इन मित्रों के लिए एक बार लिखा यह गीत याद आ गया !
धोखे की इस दुनियां में , कुछ प्यारे बन्दे रहते हैं ! ऊपर से साधारण लगते कुछ दिलवाले रहते हैं ! दोनों हाथ सहारा देते , जब भी ज़ख़्मी देखे गीत ! अगर न ऐसे कंधे मिलते,कहाँ सिसकते मेरे गीत ! Read more: http://satish-saxena.blogspot.com/2012/06/30-2012-30-918802015020.html#ixzz1z53J1KMM |
"अन्तरजाल हुआ है तन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')कम्प्यूटर बन गई जिन्दगी, अन्तरजाल हुआ है तन।
जालजगत के बिना कहीं भी, लगता नहीं हमारा मन।।
जंगल लगता बहुत सुहाना, पर्वत लगते हैं अच्छे,
सीधी-सादी बातें करते, बच्चे लगते हैं अच्छे,
सुन्दर-सुन्दर सुमनों वाला, लगता प्यारा ये उपवन।
जालजगत के बिना कहीं भी, लगता नहीं हमारा मन।। |
*
लारला दिनां घणो अळूझ्योड़ो होवणै रै कारण
अर कीं नेट री बीजी समस्यावां कारण
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एकाधिक से यौनकर्म, ड्रग करते इंजेक्ट --250 वीं पोस्ट : इस ब्लॉग कीधरा लूट के यूँ धरा, धनहर धूम धड़ाकअहमक टकराते अहम् , अहम् खेल का दौरा
कवित्त नहीं है
आयशा का तथाकथित, पार्टनर ज्यों पति बना ।
लेंडर से एतराज था, भू-पति को लेती मना ।।
इस्तेमाल सानिया का, चारा जैसा कर रहा ।
पुरुष-वाद आरोप है, प्लेयर ने झटपट कहा ।।
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हमेशा कि तरह सुन्दर चर्चा ....
जवाब देंहटाएंफिफ्टी-फिफ्टी हास्य गज़ल.:
जवाब देंहटाएंआज के एस दौर मे जहाँ लोग सारी समस्या पे तो लिख देते हैं लेकिन हास्य को छोड़ के जैसे कोई परित्कता विधवा हो आजादी के पहले कि जो कभी एक सुन्दर बहु हुआ करती थी, उसमे यदि आप जैसे कुछ हास्य लेखक जिनकी रचनाये पढ़ गुदगुदी होती हो निश्चय ही बिमारी का डाक्टर साबित होते हैं, बिमारी है हँसी का लोप, आजकल हसना और हसाना सबसे दुष्कर कार्य हो गया है , ऐसा नहीं कि लोग नहीं हसते, हँसते हैं, लेकिन दूसरों पे , उनकी मजबूरियों पे , देश पे समाज, और इस प्रकार कि हँसी निश्चय ही घातक है,
बहुत बहुत बधाई अरुण जी
नारद झगड़ा दे लगा, करे अरुण से प्रीत |
जवाब देंहटाएंव्यंग-कमल देता खिला, बढ़िया इसकी रीत |
बढ़िया इसकी रीत, हास्य की महिमा गाता |
फिफ्टी-फिफ्टी गीत, राय अपनी रख जाता |
रविकर कर आभार, कृपा करना हे शारद |
है बढ़िया इंसान, लोकहित करता नारद ||
बरगद बूढ़ा हो गया,सूख गया है आम |
जवाब देंहटाएंनीम नहीं दे पा रही,राही को आराम ||
पीढी दर पीढ़ी हुआ,प्रकृति संग खिलवाड़
थमा नहीं ये सिलसिला,होंगे गायब झाड़.
कोयल कर्कश कूकती,कौए गाते राग |
सूना-सूना सा लगे,बाबा का यह बाग ||
लुप्तप्राय कोयल हुई,गायब होते काग
बाग कटे कोठी बनी,जाग मनुज तू जाग.
अम्मा डेहरी बैठकर ,लेतीं प्रभु का नाम |
घर के अंदर बन रहे,व्यंजन खूब ललाम ||
खाना जैसा भी मिला,सिर पर घर की छाँह
रमिया काकी तो चली,वृद्धाश्रम की राह.
आँगन में दिखते नहीं, गौरैया के पाँव |
गोरी रोज़ मना रही लौटें पाहुन गाँव ||
अब ना वो खपरैल हैं,खुली खिड़कियाँ,द्वार
बंद किले से भवन में,गौरैया लचार.
रामरती दुबली हुई,किसन हुआ हलकान |
बेटा अफ़सर बन गया,रखे शहर का ध्यान ||
बेटे जाते बड़े शहर, शहर लीलते गाँव
वन कटते दिन रात हैं,कहाँ प्रीत की छाँव.
आदरणीय संतोष जी का हर दोहा मन में गहरे उतर गया.मेरी बधाई स्वीकार करें.
अरुणोदय होते हृदय, मिला परम संतोष |
जवाब देंहटाएंआगम-निगम की स्तुति, बजा शंख-शुभ घोष |
बजा शंख-शुभ घोष, रचे दोहे मन-भावन |
सूख रहे थे ग्राम, बरसता झमझम सावन |
माँ की कृपा अपार, करें सेवा साहित्यिक |
दोनों का आभार, क्रमश:करूँ वैयक्तिक ||
आदरणीया संगीता स्वरूप जी की रचना पर....
जवाब देंहटाएंरोज रुलाती सिलवटें , दाग करें उपहास
जीवन में दोनों मिले,पतझर औ मधुमास
पतझर औ मधुमास,ब्लीच बस समय है करता
धुँधलाता हर दाग मगर है अक्स उभरता
जैसी भी है चादर ही तो अपनी थाती
काँधे से टिककर सिलवट है रोज रुलाती.
नये प्रतीकों में स्मृतियों की सुंदर परिभाषा रचने के लिये बहुत बहुत बधाई.
दीदी की रचना सभी, भाव पूर्ण अति-गूढ ।
जवाब देंहटाएंलेकिन अल्प प्रयास से, समझे रविकर मूढ़ ।
समझे रविकर मूढ़, टिप्पणी बढ़िया भाई ।
अरुण-निगम आभार, समझ में पूरी आई ।
मन की चादर चार, अगर हो जाती बोलो ।
दाग दार बेकार, नई वाली लो खोलो ।।
कमल हँसी के खिल गये,हुई कलम भी धन्य
जवाब देंहटाएंतन मन पुलकित हो गया,बुद्धि हुई चैतन्य.
प्रिय श्री कमल कुमार सिंह नारद जी, आपकी सुंदर प्रतिक्रिया हेतु हृदय से आभार.
ऑफिस का टाइम हुआ,क्षमा करें हे मित्र
जवाब देंहटाएंमिलते हैं फिर रात को,देखेंगे हर चित्र.
अरुण जी के रूप में रविकर जी को बढ़िया जोडीदार मिल गया है.दोनों महानुभावों ने अपनी काव्य-प्रतिभा दिखाई है,इसके लिए दोनों का अभार !
जवाब देंहटाएंअपनी रचना देखकर हर्ष हुआ अपार,
जवाब देंहटाएंरविकरजी,आपको बहुत बहुत आभार.
बहुत बहुत आभार, सुन्दर लिंक सजाए
मन करता है की,इन सबको पढते जाए,
निगम जी की टिप्पणी, क्या सुंदर भाई
लगता है,रविकरजी आपकी सामत आई,
रहें सलामत मित्र-गण, सेवें नित साहित्य |
जवाब देंहटाएंदुनिया खूब सराहती, कवियों के शुभ कृत्य |
कवियों के शुभ कृत्य, अरुण संतोष धीर जी |
नारद का आभार, खींचे बड़ी लकीर जी |
बढ़िया छपे कवित्त, नहीं आई है सामत |
रचें सदा उत्कृष्ट, रहें सब मित्र सलामत ||
वाह रविकर SIR सच में मज़ा आ गया.
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा .... चर्चा तो अच्छी है ही टिप्पणियों ने चर्चा को सार्थक कर दिया है
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ... आभार
जवाब देंहटाएंआज के चर्चा मंच के बदले स्वरुप पर मेरी तुक बंदी सादर समर्पित है जय हो चर्चा मंच
जवाब देंहटाएंआज चर्चा मंच का बदला बदला लागे रूप
स्वरुप जी की टिपण्णी कह गई कथ्य अनूप
रविकर कबीरा खडा है ले कुंडलीयों का सूप
सुडक सुडक पी जाइए खाली ना हो ये कूप
अरुण कर रहा किरणों से चर्चा मंच में धूप
ब्लागर अब रस घोलते मत बैठो कोई चुप
कमाल किशोर चर्चा सब कर रहे है आज
सब कवियन की लेखनी करती देखो नाज
संतोष जी आप भी डालो सब पर रंग
धीरेन्द्र जी की टिपण्णी हाट लग गई जंग
हम भी यहाँ ढपली ले करने आये तंग
चर्चा की वास्तविकता देखो सब हैं दंग
चर्चा मंथन कर सभी, करते अमृत पान |
जवाब देंहटाएंविश्लेषण आलोचना, बांटे मंगल ज्ञान |
बांटे मंगल ज्ञान, कभी विष भी तो निकले |
विषपायी श्रीमान, ख़ुशी से सारा निगले |
शंकर का आभार, करे रविकर अभिनन्दन |
करें कृपा हर बार, कीजिये चर्चा मंथन ||
वाह...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चहकती-महकती चर्चा!
आपका अन्दाज सबसे निराला है!
आभार!
रविकर जी की टिपण्णी और विभिन्न सूत्र संयोजन
जवाब देंहटाएंदेख आज की चर्चा सचमुच नाच उठा देखो मेरा मन
आज दर्शक और श्रोता रहें तो अच्छा है ।
जवाब देंहटाएंसुंदरतम !
कलर फुल चर्चा , आभार आपका !
जवाब देंहटाएंछा गए अपने रविकर जी चर्चा मंच सजाय ,सबको दिए रिझाय ...कृपया यहाँ भी पधारें -
जवाब देंहटाएंram ram bhai
शुक्रवार, 29 जून 2012
ज्यादा देर आन लाइन रहना माने टेक्नो ब्रेन बर्न आउट
http://veerubhai1947.blogspot.com/
कहते हो ढपली जिसे, भ्रात उमा ये ताल
जवाब देंहटाएंजीवन में रखता सदा,हर इक को खुशहाल
हर इक को खुशहाल,बताओ क्या है धड़कन ?
धक धक धक की ताल बिना हो सकता जीवन ?
करिये चर्चा खूब ,कहाँ खोये हो रहते
मचा गई है धूम जिसे तुम ढपली कहते.
सुन्दर समायोजन ! गुप्ता जी ! ढेरो बधाई
जवाब देंहटाएंAs the admin of this web page is working, no question very soon it will be well-known, due to its feature
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