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बुधवार, जून 13, 2012

तेरे घर में माँ बहन नहीं है क्या ? (चर्चा मंच-909)

आज तलक अवकाश रहा-

लौटा बुद्धू घर को आया, लम्बा बहुत प्रवास रहा |
स्नेह-सिक्त पवनों के झोंके, अभिनव बेहद ख़ास रहा |

सुबह सुबह आकर बैठा हूँ, भीषण गर्मी अकुलाये -
कल से नियमित फिर आऊँगा, आज तलक अवकाश रहा ||

चिरकुट-चूहों से बचाओ !

संतोष त्रिवेदी
चिरकुट चूहों की हरकत पर, "चाची"  का *चूँचरा सुना ।
*बहाना/ विरोध 
आज तलक क्या सफ़ेद हाथी, गन्ना खाकर मरा सुना ?? 
 
आज अन्न पर प्रेक्टिस करते, कल अन्ना को धरा सुना ।
  
जनता से सत्ता ना डरती, ज्ञापन से क्या डरा सुना ?? 



क्रांति...


सक्रिय सहभागिता मेरी
जीवन के हर एक
स्पंदन और विचलन में
उच्छृंखलता और नियमन में
चढ़ान और फिसलन में
अवसाद और थिरकन में...
पर साथ-साथ
फन उठाये एक डर भी
उलझाता एक एहसास भी



उफ़ !! धनबाद की गर्मी -

 रविकर फैजाबादी  
झुलसे खर-पतवार हैं, सूख चुकी जब मूंज ।
पड़ी दरारें खेत में, त्राहिमाम की गूँज ।
त्राहिमाम की गूँज, गगन बादल दल खोजे ।
दल-दल घोंघे भूंज, खोलते खाके रोजे ।
सावन सा वन होय, रोय रा-वन की लंका ।
बादल का ना बाज, आज तक मारू  डंका ।।

राधा जैसी इक दीवानी .....

Sharad Singh 

तेरे घर में माँ बहन नहीं है क्या ?

Bloggers Problem उफ़ ब्लागिंग 

जिन्दगी है तो ख्वाव है । ख्वाव है तो मंजिलें हैं । मंजिलें हैं तो फ़ासले हैं । फ़ासले हैं तो रास्ते हैं । 

क्षणिकाएं

चढ़ते चढ़ते - चढ़ गए 
जन्नत की सारी सीढियाँ .
इस तरह से यार - हम 
फिर स्वर्गवासी हो गए.


वहां नहीं हैं - वो जहाँ थे
ढून्ढ रहा हूँ - कब से यार 
आखिर उस वक्त - वो 
यहाँ थे - तब हम कहाँ थे .  satish sharma 'yashomad'

क्षणिका

ए वक़्त !
बस इतना सा एहसान कर दे
धूल के गुबार की तरह
मेरा ज़र्रा ज़र्रा उड़ता जाए
और कहीं खो जाए
ज़मीं पर गिरने से पहले।

©यशवन्त माथुर©

महिलाएं और लड़कियां क्यों लगाती हैं बिंदी....................

किसी भी स्त्री की सुंदरता में चार चांद तब लग जाते हैं जब वह पूर्ण श्रंगार के साथ ही माथे पर बिंदी भी लगाएं। वैसे तो बिंदी को श्रंगार का एक आवश्यक अंग ही माना जाता है और इसी वजह से काफी महिलाएं और लड़कियां बिंदी लगाती हैं। शास्त्रों में सुंदरता बढ़ाने के साथ ही बिंदी लगाने के कई अन्य लाभ भी बताए गए हैं।

ऐहसास

ज़रूरत
Ramakant Singh


बादल छंटते नहीं
सूरज ढ़ल जाता है

चांद दिखता ही नहीं
रौशनी ये कैसी है?
 

हिन्दी साहित्य पहेली 85 परिणाम और विजेता हैं श्री सवाई सिंह राजपुरोहित जी

हिंदी साहित्य पहेली
अशोक कुमार शुक्ला  
*प्रिय पाठकजन एवं चिट्ठाकारों,* पहेली संख्या 85 में आपको हिन्दी में लिखी गयी पहली आत्मकथा के लेखक को पहचानना था *इस सहित्य पहेली 85 का विजेता घोषित करने से पहले आपको सही उत्तर बताते हैं जो है श्री बनारसी दास जैन * *इस पहेली का परिणाम* * बनारसी दास जैन कृत 'अर्धकथानक' हिन्दी की पहली आत्मकथा मानी जाती है। श्रीयुत बनारसी दास जैन द्वारा लिखी गयी 'अर्द्धकथानक' को किसी भी भारतीय भाषा में लिखी गयी पहली आत्मकथा माना जाता है ! इससे पूर्व आत्मकथा लिखने का चलन भारतीय साहित्य में नहीं था ! इसकी रचना सन 1641 में हुयी थी और यह पद्यात्मक है। रचनाकार- श्रीयुत बनारसी दास जैन अर्द्धकथानक में उनके...

जलने और जलने में हीं कितना अंतर आ जाता है

उद्गीत . . .
Alokita


















जलने और जलने में हीं कितना अंतर आ जाता है 

शमा भी जलती चिता भी जलती 
जलती अगन दोनों में है 
औरों को रौशनी देने को शमा जलती,
कतरा-कतरा पिघलती है 
भष्म करके कई खुशियों अरमानो को हीं 
चिता कि लपटों को शान्ति मिलती है 
ज्योत शमा की चमक लाती नयनो में

मार मंहगाई की

Akanksha
Asha Saxena
हुआ मुख विवर्ण 
सारी रंगत गुम हो गयी 
कारण किसे बताए 
मंहगाई असीम हो गयी 
सारा राशन हुआ समाप्त 
मुंह  चिढाया डिब्बों ने 
पैसों  का डिब्बा भी खाली 
उधारी भी कितनी करती

कुछ लपटे तो वहा भी उठ रही थी!.....(कुँवर जी)

kunwarji's
हर और आग थी,
जलन थी,
धुआँ...

बड़ी मुश्किल से एक कोना ढूँढा ...
बैठे,
कुछ अपने दिल में झाँका,
देखा...
कुछ लपटे तो वहा भी उठ रही थी!
अब..?

जान देना यह विकल्प कितना सही है???


बचपन से किताबों में पढ़ते 
और 
लोगों से सुनते आए हैं 

"जीवन संघर्ष है "
"मेहनत करने से सफलता मिलती है"
 
एक साल की तो बात थी

पड़ी जलानी आग, गणेशा ताप रहा है

गंग-चन्द्र तन भस्म है, गले में डाला नाग |

गले में डाला नाग, हुए कैलाश निवासी |
मना रहे आनंद,बने है घट घट वासी |

पर शंकर परिवार, ठंड से कांप रहा है |
पड़ी जलानी आग, गणेशा ताप रहा है ||

Me and my caricature

 

मेरा नाम ऐना है, मैं  6 वर्ष की हूँ और दूसरी कक्षा में पढ़ती हूँ. मैं अपने ब्लॉग को लेकर बहुत उत्साहित हूँ. इसे मेरे अब्बू जी ने मेरे लिए बनाया है, जहाँ मैं अपनी गतिविधियाँ आप लोगो के साथ साझा करुँगी. आज कल गर्मियों की छुट्टी चल रही हैं, इसलिए मेरे पास खेलने और चित्रकारी करने के लिए बहुत सा समय है. चित्रकारी करना  मेरे शौक है, यहाँ आपके साथ अपना बनाया हुआ एक कैरिकेचर शेयर कर रही हूँ.

"पुराने जेवरातों में, नगीने जड़ नहीं सकते" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')



मुहब्बत की इबारत को, कभी वो पढ़ नही सकते।
पुराने जेवरातों में, नगीने जड़ नहीं सकते।।

हमारा रूप देखा है, किसी ने दिल नहीं देखा,
बहुत जज्बात ऐसे हैंजिन्हें हम गढ़ नही सकते।।

16 टिप्‍पणियां:

  1. रविकर जी आपका स्वागत और अभिनन्दन!
    बुधवार की चहकती और महकती चर्चा के लिए आपका आभार!
    आज मा.मुख्यमन्त्री जी सितारगंज में चुनाव के लिए पर्चा भरने आ रहे हैं। वहाँ जाना है। शाम तक आ पाऊँगा। तब तक के लिए शुभविदा।

    जवाब देंहटाएं
  2. रविकर जी बढ़िया सजाई है चर्चा इस मंच पर |
    आभार मेरी कविता के लिए |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत दिनो के बाद
    रविकर दिखा है आज
    अपनी उसी अदा के साथ
    सुंदर चर्चामांच और बेहतरीन
    लिंक्स लिये अपने हाथ
    स्वागत है ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति रविकर जी बहुत बहुत आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन लिंक्स..
    मुझे सम्मिलित करने के लिए आभार...
    बेहतरीन चर्चा मंच....
    :-)

    जवाब देंहटाएं
  6. रविकर जी मेरी पोस्ट को चर्चा मंच में शामिल करके आपने जो सम्मान दिया है और उत्साहवर्द्धन किया है, उस के लिए मैं आपकी हार्दिक आभारी हूं. आपको बहुत बहुत धन्यवाद !

    एक और सुंदर चर्चा प्रस्तुत करने के लिए बधाई....

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत बहुत धन्यवाद सर!


    सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. इतने बेहतरीन लिंक्स के साथ मेरी पंक्तियों को भी आपने चर्चा मंच में शामिल किया... इस उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद,आभार, अब तो मुझे अपनी जिम्मेदारी और भी अधिक बड़ी महसूस हो रही है.,

    कुँवर जी,

    जवाब देंहटाएं
  9. रंग-बिरंगी लिंकों का संयोजन करके रोचक चर्चा किया है आपने..आपको हार्दिक बधाई..

    जवाब देंहटाएं
  10. सुन्दर चर्चा.. बढ़िया लिंक्स...
    सादर आभार.

    जवाब देंहटाएं

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