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शनिवार, जून 30, 2012

"शनिवार की चर्चा" (चर्चा मंच-926)


चर्चा मंच  ------  अंक : 926
चर्चाकार : डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
ज़ाल-जगत के सभी हिन्दी-चिट्ठाकारों को 
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"" का सादर अभिवादन!
कभी-कभी पुरानी पोस्टों को भी पढ़ना सुखद लगता है।  आइए आज कुछ पुरानी पोस्टों की चर्चा करता हूँ।

"मेरा दिन चुनाव प्रचार के नामं"

इसलिए आज व्यस्तता कुछ ज्यादा ही है-

तेताला
 
ब्लॉग में अपार संभावनाएं हैं : कनिष्क कश्यप
 ब्लॉगप्रहरी एक उम्दा सोच का रिज़ल्ट ही है, आज उस उम्दा सोच के धनी कनिष्क कश्यप से हुई भेंट वार्ता सादर...

अपने वक्त पर साथ देते नहीं यह कहते हुए हम थकते कहाँ है ये अपने होते हैं कौन? यह हम समझ पाते कहाँ है!

आज फिर मन .....


आज फिर मन मचल रहा है,

मदिरालय में जाने को.

दो घूँट पी कर साकी के,

गैरों  संग  झूम जाने को.

रिश्ते नाते दुनियादारी,

चाहता हूँ भूल जाने को.

जिनसे कुछ न लिया दिया,

आते वही गले लगाने को.


बोतलों की शक्ल ही, असली नशा उत्तेजना

बोतलों का नाच-नंगा, न नजर आता कभी 

हाथ धो बदनाम के पीछे पड़े शायर सभी

जाम में होता  नशा तो  नाचती बोतल दिखे

है  सरासर  झूठ  नादाँ  ,   न  नशा दारू चखे

बोतले  कुछ यूँ  पड़ी थी, होस्टल  के सामने  देखने भर से नशे में, सर लगे सर थामने 


कविता तो मुझसे रूठी है!

कुछ बातें हैं तर्क से परे...

कुछ बातें अनूठी है!
आज कैसे अनायास आ गयी मेरे आँगन में...
अरे! एक युग बीता...कविता तो मुझसे रूठी है!! 
नन्हें सुमन
 
‘‘प्यारी प्राची’’ - *** * *इतनी जल्दी क्या है बिटिया, * *सिर पर पल्लू लाने की।* *अभी उम्र है गुड्डे-गुड़ियों के संग,* *समय बिताने की।।* ** *(चित्र गूगल सर्च से साभार)* *मम्मी-प.
JHAROKHA

यकीन - ** * तुम्हारे यकीं का इंतजार करते करते अब थक चुकी हूं मैं फ़िर भी तुम्हें आया नहीं यकीं मुझ पर अब तक उससे तुम नहीं मेरा आत्म सम्मान टूटता है और मै..


*बचपन में पढ़ी गीता का अर्थ मैं जान पाई बहुत देर बाद, मेरे शहर में जहाँ जीवन क्षणभंगुर है और मृत्यु एक सच्चाई है.... 
साहित्य योग
 
"युवाओं से है मेरी पुकार...सरदार भगत सिंह की कुछ पक्तियों से...." - आज आप को मैं कुछ उन पक्तियों से परिचय कराता हूँ जब सरदार भगत सिंह जेल में अपनी मंगेतर के याद में गाया करते थे. आजीवन तेरे फिराक जुदाई विछोट्र, विरह, नामिल...

ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र की जान खतरे में डालकर किसी ने जबरदस्त साजिश करके बदला लेने की कोशीश की है. महाशरीफ़ और निहायत ही नेक इंसान, धर्मपूर्वक ब्लाग प्रजा पालक ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र के साथ.....

आवारा यादें ...

खोखले जिस्म में साँस लेतीं 

कुछ ज़ख्मी यादें 

कुछ लहुलुहान ख्वाब 

जागती करवटों में गुज़री अधूरी रातें ...

उच्चारण
“स्लेट और तख़्ती” - *सिसक-सिसक कर स्लेट जी रही, तख्ती ने दम तोड़ दिया है। सुन्दर लेख-सुलेख नहीं है, कलम टाट का छोड़ दिया है।। 
षटपदीय छंद
आदर्शवादी होकर  ,  बने सिर्फ नाम के
चमचागिरी करके तुम , हो जाओ काम के .
 हो जाओ काम के , होगा तुम्हारा नाम 
करना चाहे उल्टे  ,  सीधे पड़ेंगे काम . 
ज़िन्दगी
तेरे पास - सुन तेरे चेहरे पर गुलाब सी खिली मधुर स्मित नज़र आती है मुझे जब तू दूर -बहुत दूर निंदिया के आगोश में स्वप्नों के आरामगाह में विचरण कर रहा होता है तेरे सीने...
अंधड़ !
अरे भाई जी, किसी ने ये सवाल भी पूछे क्या ? - *जहां तक माया की "माया" का सवाल है,
हमारे उत्तराँचल में पूर्वजों के जांचे-परखे दो बहुत ख़ूबसूरत मुहावरे प्रचलित है,
जो समय की कसौटी पर खरे भी उतरे है ! ...

*सुन्दर-सुन्दर खेत हमारे।
बाग-बगीचे प्यारे-प्यारे।। 
पर्वत की है छटा निराली।
चारों ओर बिछी हरियाली।।
सूरज किरणें फैलाता है।
छटा अनोखी बिखराता है।।
गीत सुनहरे
शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 5 - शहीद - ए - आजम भगत सिंह - 5 देश प्रेम का ज्वार भरा था, रोम रोम अंगार भरा था . मन में शोले भड़क रहे थे, स्वतंत्रता को तड़प रहे थे . प्रचण्ड शक्ति संचित कर भाल...


बुराई रही जीत है , अच्छाई की हार | सब पासे उलटे पड़े , कलयुग की है मार || कलयुग की है मार, राम पे रावण भारी | 
Alag sa
कबीरदासजी और छत्तीसगढ़ - साहेब बंदगी साहेब का स्वर यदि कभी सुनाई पड़े तो जान लीजिए कि कबीर पंथी आपस में एक दुसरे का अभिवादन कर रहे हैं। सत्यलोक गमन के पश्चात कबीर जी की वाणी का संग्...

(१) वक़्त के पन्ने हो गये पीले, जब भी पलटता हूँ होता है अहसास तुम्हारे होने का. (२) तोड़ कर आईना बिछा दीं किरचें फ़र्श पर, अब दिखाई देते अपने चारों ओर अनगिनत चेहरे और नहीं होता महसूस अकेलापन
गत्‍यात्‍मक चिंतन
क्‍या सचमुच हमारे सोने के चेन में उस व्‍यक्ति का हिस्‍सा था ?? - कभी कभी जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं अवश्‍य घट जाती हैं , जिसे संयोग या दुर्योग का पर्याय कहते हुए हम भले ही उपेक्षित छोड दें , पर हमारे मन मस्तिष्‍क को झकझोर ह...

* जय जय जय हनुमान गोसाँई, कृपा करहु गुरुदेव की नाईं * मेरी पोस्ट* ' हनुमान लीला भाग -१' *में हनुमान जी के स्वरुप का चिंतन करते हुए मैंने लिखा था *' हनुमान जी वास्तव में 'जप यज्ञ...

सुबह - शाम वह कुछ सोचता है कौन नहीं सोचता यहाँ ! अपने होने के सवालों को बिन जाने बिन समझे ह़ी शायद इसलिए चुप नहीं की बोलना नहीं आता कुछ अर्थ सहित बोला जाये यही उसकी हर रोज़ की बे - सबब चुप्पी है...

आँखें उसकी नील कमल सी और कशिश उनकी , जब खींचेगीं बाँध पाएंगी होगी परिक्षा उनकी | उनका उठाना और झुक जाना गहराई है झील की आराधना और इन्तजार चाहत है मन मीत की |

ज़िन्दग़ी प्यार का नाम है। प्यार कुदरत का ईनाम है।।
जब तलक चाँद-तारे रहेंगे, नित नये ही फसाने कहेंगे।
कुछ को मिलता खुदा, कोई होता ज़ुदा।
कोई नाहक ही बदनाम है। प्यार कुदरत का ईनाम है...


* * *सोचा था आज तो कुछ कहेंगे लब* 
*पर धडकनों के शोर में * 
*फिर से शब्द खामोश हो गए !!


ख़ारों की हिफ़ाज़त लाज़िम

दिल हमारे जिसे हैवान कहा करते हैं।

हम तो उसको भी मिह्रबान कहा करते हैं।।

अब के और आदिमों के बीच फ़र्क़ बेमानी,

जिस्म से हट रहे बनियान कहा करते हैं।

An Indian in Pittsburgh - पिट्सबर्ग में एक भारतीय
 
आल इज वैल - कुछ न कुछ चलता न रहे तो ज़िंदगी क्या? इधर बीच में काफी भागदौड़ में व्यस्त रहा. न कुछ लिख सका न ज़्यादा पढ़ सका. इस बीच में बरेली के दंगे की ख़बरों से मन बहुत आहत...
जीवन के पदचिन्ह
गम है कि जिन्दा हूँ, वरना खुशियों से तो मर जाता - गम है कि जिन्दा हूँ, वरना खुशियों से तो मर जाता तनहाइयों ने थामे रखा, वरना जमाने में किधर जाता सौ बार हुआ क़त्ल रहा फिर भी धड़कता मेरा दिल माजी की थी चाहत...

जाड़े की कुनकुनी धूप तो वैसे ही सुखदायी होती है। 
गंगा का तट हो, बनारस के घाट हों और जेब में भुनी मूंगफली का थैला हो तो कहना ही क्या ! कदम अनायास ही बढ़ने लगे अस्सी घाट से दशाश्वमेध घाट की ओर.....
काजल कुमार Kajal Kumar द्वारा Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून -1 महीने पहले पर पोस्ट किया गया

Posted by IRFAN
काजल कुमार Kajal Kumar द्वारा Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून -3 महीने पहले पर पोस्ट किया गया
प्रतिभा की दुनिया ...!!!
 
वो कौन था मोड़ पर .... - वो याद ही तो थी जो एक रोज मोड़ पर मिली थी. घर के मोड़ पर. वो याद ही तो थी जो गुलमोहर के पेड़ के नीचे से गुजरते हुए छूकर गयी थी. एक कच्ची सी याद उठी साइकि...

 भूख ने मजबूर कर दिया होगा, आचरण बेच कर पेट भर लिया होगा। अंतिम सांसो पर आ गया होगा संयम, बेबसी में कोई गुनाह कर लिया होगा।

अब दीजिए आज्ञा! धन्यवाद!   नमस्कार!! 

23 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया चर्चा...... बेहतरीन लिनक्स...

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया चर्चा...... बेहतरीन लिनक्स...

    जवाब देंहटाएं
  3. बढ़िया लिंक्स दी है |पढने का आनंद कुछ और ही होगा |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
    आशा

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  4. बहुत ही सुन्दर लिंक्स दिए हैं आपने शास्त्री जी.

    मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा' की पोस्ट 'हनुमान
    लीला भाग-५' को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए
    आपका आभार.

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  5. बढ़िया चर्चा...... बेहतरीन लिनक्स...

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत यादगार संयोजन, सुन्दर लिंक्स.

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  7. शुभकामनायें और धन्यवाद!

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  8. एक अंतराल के उपरान्त छुटियाँ बिताने पर चर्चामंच और ब्लॉग परिवार से जुड़ना संभव हुआ है.. एक नए अंदाज में चर्चा प्रस्तुति देखकर मन को बहुत अच्छा लगा और इसमें आपने मुझे शरीक किया इसके लिए आभार!

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  9. इस लाजबाब प्रस्तुति के लिए आभार शास्त्री जी !

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  10. कुछ पुरानी स्मतियाँ ताजा करती हुई बहुत सुन्दर चर्चा बहुत बहुत आभार मेरी रचना को शामिल करने के लिए

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  11. वाह ... बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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  12. ्वाह खूबसूरत अन्दाज़ चर्चा का।

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  13. सुन्दर लिक्स...बेहतरीन अंदाज़ चर्चा का...आभार

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  14. बहुत बहुत धन्यवाद सर! मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए।

    सादर

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  15. हट के चर्चा ... अच्छे लिंक ... शुक्रिया मुझे जगह देने के लिए ....

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  16. बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,पुराने लिंकों लाजबाब संयोजन,,,

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  17. अतीत के झरोखे से बढ़िया प्रस्तुति .

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