मित्रों!
मंगलवार की चर्चाकार बहन राजेश कुमारी जी
थोड़े दिन के लिए बाहर हैं। इसलिए मंगलवार की चर्चा में
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बस एक सलाम और तुझे
ऐ साल जाते जाते
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मनाइये इक्क्तीस दिसम्बर
थ्री चियर्ज के साथ साल तो
अगले साल का भी जायेगा
एक साल बाद इसी तरह
नये साल की शुभकामनाओं के साथ ...
उल्लूक टाईम्स पर सुशील कुमार जोशी
ऐ साल जाते जाते
मनाइये इक्क्तीस दिसम्बर
थ्री चियर्ज के साथ साल तो
अगले साल का भी जायेगा
एक साल बाद इसी तरह
नये साल की शुभकामनाओं के साथ ...
उल्लूक टाईम्स पर सुशील कुमार जोशी
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"राम सँवारे बिगड़े काम"
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राम नाम है सुख का धाम।
राम सँवारे बिगड़े काम।।
असुर विनाशक, जगत नियन्ता,
मर्यादापालक अभियन्ता,
आराधक तुलसी के राम।
राम सँवारे बिगड़े काम।।
सुख का सूरज
राम नाम है सुख का धाम।
राम सँवारे बिगड़े काम।।
असुर विनाशक, जगत नियन्ता,
मर्यादापालक अभियन्ता,
आराधक तुलसी के राम।
राम सँवारे बिगड़े काम।।
सुख का सूरज
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*ॐ* *अलविदा 2013....
शुभागमन 2014
वर्ष 2013 दरवाजे पर जाने को आतुर खड़ा है...
इस वर्ष ने हमें कितना रुलाया पर हँसाया भी
इस वर्ष ने हमने कितना कुछ खोया पर पाया भी ...
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अंतर्मन की लहरें पर Dr. Sarika Mukesh
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*ॐ* *अलविदा 2013....
शुभागमन 2014
वर्ष 2013 दरवाजे पर जाने को आतुर खड़ा है...
इस वर्ष ने हमें कितना रुलाया पर हँसाया भी
इस वर्ष ने हमने कितना कुछ खोया पर पाया भी ...
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अंतर्मन की लहरें पर Dr. Sarika Mukesh
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अब शब्द नहीं मिलते
लिखने की कोशिश की
तो लिख भी न पाई
कि इस दिल में
ख्वाब नहीं रहते ...
Pratibha Verma
लिखने की कोशिश की
तो लिख भी न पाई
कि इस दिल में
ख्वाब नहीं रहते ...
Pratibha Verma
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दो साहिल नफरत व मुहब्बत
---पथिक अनजाना ---
कहा था -
मौत का एक पल मुएयन है ,
नींद क्यों रात भर नहीं आती।
आपका ब्लॉग पर वीरेन्द्र कुमार शर्मा
---पथिक अनजाना ---
अपनी सारी जिन्दगी में ये इंसान
दोनों साहिलों से चाहे अनचाहे वह
कर्मों व किस्मत से किसी न किसी
कारणवश रूबरू या अन्य कोण से
अन्तत: बेचारा टकरा ही जाता हैं...
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कुछ लिंक "आपका ब्लाग" से
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(हेमा पाल)
आज के ज़माने को देख कर ऐसा लगता है जैसे दोड़ लगी पड़ी है एक दुसरे को पछाड़ कर आगे निकलने की। पूछने पर लोग कहते हैं यही तो समझदारी है लोग आगे हो जाने को समझदारी की पराकाष्ठा मानते हैं इसके लिए साम ,दाम ,दण्ड ,भेद की नीति को भी लगा देते हैं।मानो की आगे निकलना एक लड़ाई है।इस दोड़ में अव्वल आने के लिए अपना-पराया,मान-अपमान,उचित-अनुचित का भेद भी भुला देते हैं ...
आज के ज़माने को देख कर ऐसा लगता है जैसे दोड़ लगी पड़ी है एक दुसरे को पछाड़ कर आगे निकलने की। पूछने पर लोग कहते हैं यही तो समझदारी है लोग आगे हो जाने को समझदारी की पराकाष्ठा मानते हैं इसके लिए साम ,दाम ,दण्ड ,भेद की नीति को भी लगा देते हैं।मानो की आगे निकलना एक लड़ाई है।इस दोड़ में अव्वल आने के लिए अपना-पराया,मान-अपमान,उचित-अनुचित का भेद भी भुला देते हैं ...
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यही मृत्यु है चिकित्सा विज्ञान की शब्दावली में
इसे नैदानिक मृत्यु (Clinical death )कह लो।
इ दम दा मैनु कि वे भरोसा ,
आया आया, न आया ,न आया।
जीवन की नश्वरता।
इ दम दा मैनु कि वे भरोसा ,
आया आया, न आया ,न आया।
जीवन की नश्वरता।
मृत्यु की शाश्वतता की ओर संकेत है
इन पंक्तियों में।
मौत के बारे में ग़ालिब साहब ने कहा था -
मौत का एक पल मुएयन है ,
नींद क्यों रात भर नहीं आती।
आपका ब्लॉग पर वीरेन्द्र कुमार शर्मा
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हवा यूं तो हर दम भटकती है....
मुहम्मद अलवी साहब
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ये दुनिया अश्क से ग़म नापती है...
प्रखर मालवीय 'कान्हा'
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मेरी धरोहर पर yashoda agrawal
मुहम्मद अलवी साहब
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ये दुनिया अश्क से ग़म नापती है...
प्रखर मालवीय 'कान्हा'
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मेरी धरोहर पर yashoda agrawal
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आकलन
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विकासशील देशों की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएं
15 साल बाद दुनिया के
वित्तीय परिदृश्य पर डंका बजाएंगी...
KNOWLEDGE FACTORY
पर मिश्रा राहुल
विकासशील देशों की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएं
15 साल बाद दुनिया के
वित्तीय परिदृश्य पर डंका बजाएंगी...
KNOWLEDGE FACTORY
पर मिश्रा राहुल
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कितने ही रंग...!
उदासी के कितने ही रंग...
सब एक साथ मुझे मिल गए...!
उन रंगों में जाने क्या था ऐसा...?
मन के अनगिन तह छिल गए...
अनुशील पर अनुपमा पाठक
उदासी के कितने ही रंग...
सब एक साथ मुझे मिल गए...!
उन रंगों में जाने क्या था ऐसा...?
मन के अनगिन तह छिल गए...
अनुशील पर अनुपमा पाठक
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मेरा रहबरा
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ओ रे मितवा,
तू है मेरा रहबरा बन रहा है,
तुझसे मेरा राबता
दिल से मेरे है अब...
तमाशा-ए-जिंदगी पर
Tushar Raj Rastogi
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ओ रे मितवा,
तू है मेरा रहबरा बन रहा है,
तुझसे मेरा राबता
दिल से मेरे है अब...
तमाशा-ए-जिंदगी पर
Tushar Raj Rastogi
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दिल क्या चाहे - एक कविता
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दुश्मनों का प्यार पाना चाहता है
हाथ पे सरसों उगाना चाहता है ...
* पिट्सबर्ग में एक भारतीय * पर
Anurag Sharma
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नयी करवट
(दोहा-गीतों पर एक काव्य)
(६)
ढोल की पोल
(घ)
अधर्म-अफ़ीम
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अब और तो चारा नहीं
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ग़ाफ़िल की अमानत पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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दिसम्बर की आखिरी पूरी रात
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Rhythm पर नीलिमा शर्मा
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आज यह खूंटी पर टंगा कलेंडर
खामोश सा है
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Shabd Setu पर
RAJIV CHATURVEDI
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दिल क्या चाहे - एक कविता
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दुश्मनों का प्यार पाना चाहता है
हाथ पे सरसों उगाना चाहता है ...
* पिट्सबर्ग में एक भारतीय * पर
Anurag Sharma
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नयी करवट
(दोहा-गीतों पर एक काव्य)
(६)
ढोल की पोल
(घ)
अधर्म-अफ़ीम
इनके ‘झाँसे’ में फँसे, भोले कई “प्रसून” |
समाज भटका ‘भ्रष्ट पथ’, पनपे ‘पाप’ असीम ||
--अब और तो चारा नहीं
ग़ाफ़िल की अमानत पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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दिसम्बर की आखिरी पूरी रात
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Rhythm पर नीलिमा शर्मा
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आज यह खूंटी पर टंगा कलेंडर
खामोश सा है
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Shabd Setu पर
RAJIV CHATURVEDI
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"टोपी हिन्दुस्तान की"
आम आदमी लेकर आया, टोपी हिन्दुस्तान की।
ये तेरी भी, ये मेरी भी, ये मजदूर किसान की।।
उच्चारण
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2014 कल तुम आओगे
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Good Bye 2013
तुमको दुलारने लगूंगा पुकारने लगूंगा
तुम्हारी राह बुहारने लगूंगा
शुभकामनाओं के फ़ूल बिखेर बिखेर
अपने तुपने संबंध को
मेरे अनुकूलित करने
किसी पंडित को बुला
पत्री-बांचने दे दूंगा उसे ...
या तुम्हारे कालपत्रक पंचांग को पाते ही
पीछे छपे राशिफ़ल को बाचूंगा..
नुक्कड़ पर Girish Billore
--
2014 कल तुम आओगे
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Good Bye 2013
तुमको दुलारने लगूंगा पुकारने लगूंगा
तुम्हारी राह बुहारने लगूंगा
शुभकामनाओं के फ़ूल बिखेर बिखेर
अपने तुपने संबंध को
मेरे अनुकूलित करने
किसी पंडित को बुला
पत्री-बांचने दे दूंगा उसे ...
या तुम्हारे कालपत्रक पंचांग को पाते ही
पीछे छपे राशिफ़ल को बाचूंगा..
नुक्कड़ पर Girish Billore
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नया वर्ष !
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मेरे विचार मेरी अनुभूति पर
कालीपद प्रसाद
--
नये साल की गंध। …… २०१४
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नये छंद से, नये बंद से
नये हुए अनुबंध
नयी सुबह की नयी किरण में
नए सपन की प्यास
नव गीतों के रस में भीगी
मन की पूरी आस
लगे चिटकने मन की देहरी
शब्दों के कटिबंध...
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मेरे विचार मेरी अनुभूति पर
कालीपद प्रसाद
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नये साल की गंध। …… २०१४
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नये छंद से, नये बंद से
नये हुए अनुबंध
नयी सुबह की नयी किरण में
नए सपन की प्यास
नव गीतों के रस में भीगी
मन की पूरी आस
लगे चिटकने मन की देहरी
शब्दों के कटिबंध...