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शुक्रवार, मार्च 14, 2014

"रंगों की बरसात लिए होली आई है" (चर्चा अंक-1551)

मैं राजेन्द्र कुमार आज के इस १५५१ वें चर्चा मंच पर आपका हार्दिक स्वागत हूँ। तकनीकि खामियों के चलते आज कम ही लिंको का चुनाव कर  सका।  
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
खुशियों की सौगात लिए होली आई है।
रंगों की बरसात लिए, होली आई है।।

रंग-बिरंगी पिचकारी ले,
बच्चे होली खेल रहे हैं।
मम्मी-पापा दोनों मिल कर,
मठरी-गुझिया बेल रहे हैं।
विजयलक्ष्मी 
"इक दीप जलाया है इंतजार का !
होगी सहर वतन में एतबार का !!

कीचड़ भरी राहे मेरे ही गाँव की !
होगा कभी मौसम खुशगंवार सा !!
अरुन शर्मा अनन्त
जबसे तुमने प्रेम निमंत्रण स्वीकारा है,
बही हृदय में प्रणय प्रेम की रस धारा है,

मधुर मधुर अहसास अंकुरित होता है,
तन चन्दन की भांति सुगंधित होता है,
शिवम मिश्रा 
आज १३ मार्च है ... आज ही के दिन सन १९४० मे अमर शहीद ऊधम सिंह जी ने लंदन मे माइकल ओडवायर को मौत के घाट उतार कर जलियाँवाला नरसंहार का बदला लिया था !
भारत माँ के इस सच्चे सपूत को हमारा शत शत नमन |
सतीश सक्सेना
बेतुल में विवेक जी के आवाहन पर , पहली बार कविमंच पर गया था एवं यह जानकार अभिभूत था कि विवेक जी को यह भरोसा था कि कवि और कविता समाज को बदलने की सामर्थ्य रखती है
राजीव कुमार झा
मानव के सांस्कृतिक उन्नयन का इतिहास संभवतः कृषि के विकास का इतिहास है.आखेट की खोज में भटकते हुए मानव को धरती की भरण क्षमता का ज्ञान ही उसके सांस्कृतिक अभ्युदय का प्रथम सोपान है.यही कारण है कि भारतीय त्यौहार कृषि तथा ऋतुओं से संबंधित रहे हैं.
डॉ आशुतोष शुक्ला 
जिस तरह से पाक के कराँची एटीसी से लन्दन से मुम्बई आ रही भारतीय फ्लाइट एआई-१३० को गलत सूचनाएँ देकर अपने कर्तव्य के प्रति हद दर्ज़े की लापरवाही की गयी है वैसी दूसरी मिसाल वैश्विक उडडयन इतिहास में नहीं मिल सकती है. भारत के साथ जिस तरह से पाक के सम्बन्ध बिलकुल भी सामान्य नहीं हैं तो उस परिस्थिति में आखिर इतनी महत्वपूर्ण ड्यूटी निभाने के लिए किसी ऐसे व्यक्ति को कैसे नियुक्त किया जा सकता है

आशीष भाई


एक था कंजूस सेठ । इतना कंजूस कि अपने-आप पर एक धेला ...


वीरेन्द्र कुमार शर्मा 
दौड़ लगाने से पहले वार्म -अप ज़रूरी है क्योंकि गुडवार्म -अप आहिस्ता 
आहिस्ता ही हमारे दिल की धड़कन बढ़ाता है इस प्रकार दिल पर पड़ने 
वाला दवाब न्यूनतर रह जाता है,तब जब आप दौड़ना शुरू करते हैं।
कविता रावत 
जब से पड़ोसियों के घर विदेशी पग (Pug Dog) आया है, तब से जब-तब झुमरी के दोनों बच्चे उसके इधर-उधर चक्कर काट-काट कर हैरान-परेशान घूमते नजर आ रहे हैं। कुर्सी पर शाही अंदाज में आराम फरमाता लंगूर जैसे काले मुँह वाला प्राणी उन्हें फूटी आँख नहीं सुहा रहा है।
अनुपमा त्रिपाठी 
बिन मौसम भी
बरस जाते हैं नयन कभी ..
फिर भी क्यूँ
झरती हुई बारिश
आँख के कोरों पर रुकी हुई

"अद्य लिंक"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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देख बहारें होली की.... 
नज़ीर अकबराबादी 

मेरी धरोहरपरyashoda agrawal

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१९८४ के दंगों के बारे में राहुल ईमानदारी से कहते हैं मैं उस समय बहुत छोटा था मुझे ठीक से कुछ पता नहीं है। हो सकता है कुछ कांग्रेसियों का भी इनमें हाथ रहा हो। वही राहुल १९४८ में महात्मा गांधी की हत्या के बारे में कहते हैं इसमें संघ का हाथ था। ४८ और ८४ वैसे भी एक दूसरे के विलोम हैं। पूछा जाना चाहिए राहुल से उस समय तो वह पैदा भी नहीं हुए थे क्या वह पूर्व जन्म में भी इसी मनुष्य योनि में थे... 
आपका ब्लॉगपरVirendra Kumar Sharma 
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आयोजनों को हथियाने के लिए 
कोई कवि इतना नीचे भी गिर सकता है, 
यह पहली बार मुझे पता चला 

Albela Khtari

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लो फिर आ गया 

लो
फिर आ गया
धोती -कुर्ता पहन
बेंत से कर
ठक-ठक आवाज़
आज फिर
उसका
कोई अपना
पुलिस ने पकड़ा...
! कौशल ! पर Shalini Kaushik
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''बदचलन कहीं की'' -  
लघु -कथा 

....सुना है उसके बाप ने ही जहर देकर मार डाला उसे 
और चुपचाप मामला निपटा दिया ...
WORLD's WOMAN BLOGGERS ASSOCIATION 
पर shikha kaushik 
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एक पाती श्याम के नाम ... 

साधना वैद
सुधिनामा
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भनवारटंक 

पि*छली किन्हीं गर्मियों के दिनों में, जब आम का मौसम अभी नहीं शुरू हुआ था लेकिन जंगली जामुनें आ गयी थीं तब हम लोग, ऐसे ही सर उठाये और नाक की सीध पकड़ कर भनवारटंक की सैर पर निकल गए थे...
सतीश का संसार
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रंगो का त्यौहार 
क्या कुछ रंगहीन हो गया है 

उल्लूक टाईम्स पर सुशील कुमार जोशी

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तुम आ जाओ (गीत/Nazm) 

आज इक बार, फिर से, तुम आ जाओ 
फिर वही, मधुर बोली, तुम सुना जाओ
.
सुकूँ की नींद, सोने की, है हसरत जागी
मिलन की आस, फिर मन को, है लागी
आ जाओ, तुम सारे, बंधन को तोड़कर 
न आ सको, तो ख्वाबों में, ही आ जाओ...
हालात-ए-बयाँ पर अभिषेक कुमार अभी
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प्रदूषित इंसानियत 
प्रदूषित हो रहा पर्यावरण,
इंसानियत को कुदरत से कैसे यह रंजिश है।
बेहताशा पेड़ों को काट कर,
अब बस्ती नयी ज़िन्दगी है .... 


--
"दूषित हुआ वातावरण" 
सभ्यता, शालीनता के गाँव में, 
खो गया जाने कहाँ है आचरण? 
कर्णधारों की कुटिलता देखकर, 
देश का दूषित हुआ वातावरण...
सुख का सूरज
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उर्दू शायरी में माहिया निगारी : 
एक वज़ाहत [स्पष्टीकरण] 
मित्रो !
  पिछले दिनों इसी मंच पर एक आलेख ’उर्दू शायरी में माहिया निगारी’ लगाया था। 
एक सदस्य को ’माहिया ’-शब्द इतना पसन्द आया कि वो अपनी हर कविता के पहले ’माहिया’ शब्द का लेबल लगाने लगे जो वस्तुत: माहिया नहीं है। 
हमें लगता है कि शायद मैं ’माहिया निगारी’ ठीक से समझा न सका या वो इसे ठीक से समझ नहीं सके...
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक 

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दागियों का भविष्य मतदाताओं के हाथ 

आपका ब्लॉग पर Ramesh Pandey 

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"मेरी पौत्री की वर्षगाँठ" 
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
आज तुम्हारी वर्षगाँठ को,
मिल कर सभी मनायेंगे।
जन्मदिवस पर प्यारी बिटिया को,
हम बहुत सजाएँगे।।
...
दादा-दादी की बगिया की,
तुम ही तो फुलवारी हो,
खुशी-खुशी प्यारी प्राची को,
हँस कर गले लगायेंगे।

17 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    सुन्दर सूत्र संयोजन |मंच होलीमय हो गया है |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  2. आज की खूबसूरत होली की चर्चा में उल्लूक के सूत्र "रंगो का त्यौहार क्या कुछ रंगहीन हो गया है" को शामिल करने के लिये आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  3. सार्थक सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित चर्चामंच ! मेरी रचना को सम्मिलित किया आभारी हूँ !

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर सूत्र संयोजन
    मेरी रचना को सम्मिलित किया आभारी हूँ

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर चर्चा.
    मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर रोचक चर्चा... मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार. ..

    जवाब देंहटाएं
  7. आभार राजेंद्र जी इतनी बढ़िया चर्चा मे आपने मेरी रचना को स्थान दिया ...!!सभी लिंक्स उत्कृष्ट ...!!

    जवाब देंहटाएं
  8. बढ़िया सूत्र व प्रस्तुति , आदरणीय राजेंद्र भाई व मंच को धन्यवाद
    ॥ जय श्री हरि: ॥

    जवाब देंहटाएं
  9. ऐ ताराजी आबे-चश्म ऐ ताक़े- ताबे-तिलस्म..,
    तेरी ताव तुवक्क़ा हो तो हर तारीक़ रौशन है.....

    ताराजी = बर्बाद
    ताक़ = अनूपम अद्वितीय
    ताव-तुवक्क़ा - ताप की आस हो
    तारीक़ = अँधेरा

    जवाब देंहटाएं
  10. सुन्दर रागात्मक कविता :

    सरसों फूली, टेसू फूले,
    आम-नीम बौराये हैं।
    मक्खी, मच्छर भी होली का,
    राग सुनाने आये हैं।
    साथ चाँदनी रात लिए, होली आई है।
    रंगों की बरसात लिए, होली आई है।।

    "रंगों की बरसात लिए होली आई है" (चर्चा अंक-1551)
    मैं राजेन्द्र कुमार आज के इस १५५१ वें चर्चा मंच पर आपका हार्दिक स्वागत हूँ। तकनीकि खामियों के चलते आज कम ही लिंको का चुनाव कर सका।
    "रंगों की बरसात लिए होली आई है"
    (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

    खुशियों की सौगात लिए होली आई है।
    रंगों की बरसात लिए, होली आई है।।

    रंग-बिरंगी पिचकारी ले,
    बच्चे होली खेल रहे हैं।
    मम्मी-पापा दोनों मिल कर,
    मठरी-गुझिया बेल रहे हैं।

    जवाब देंहटाएं

  11. "मेरी पौत्री की वर्षगाँठ"
    (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
    आज 14 मार्च है!
    यानि मेरी पौत्री प्राची की वर्षगाँठ!

    आज तुम्हारी वर्षगाँठ को,
    मिल कर सभी मनायेंगे।
    जन्मदिवस पर प्यारी बिटिया को,
    हम बहुत सजाएँगे।।
    ...
    दादा-दादी की बगिया की,
    तुम ही तो फुलवारी हो,
    खुशी-खुशी प्यारी प्राची को,
    हँस कर गले लगायेंगे।

    मुबारक हो मुबारक दिन जुग जुग जियो पोती संग

    जवाब देंहटाएं
  12. सब कुछ बदल जायेगा
    जिसका चढ़ेगा रंग
    वही बस वही
    बाप हो जायेगा
    रंग को रंग
    ही रहने दे

    चुनावी मौसम के रंग देख तटस्थ होकर

    रंगो का त्यौहार
    क्या कुछ रंगहीन हो गया है

    उल्लूक टाईम्स पर सुशील कुमार जोशी

    जवाब देंहटाएं

  13. राजेन्द्र भाई सुन्दर चर्चा सजाई है हमें आपने स्थान दिया ,आभार।

    जवाब देंहटाएं
  14. होली मुक्त स्वच्छंद हास-परिहास का पर्व है.यह सम्पूर्ण भारत का मंगलोत्सव है.फागुन शुक्ल पूर्णिमा को आर्य लोग जौ की बालियों की आहुति यज्ञ में देकर अग्निहोत्र का आरंभ करते हैं,कर्मकांड में इसे ‘यवग्रयण’ यज्ञ का नाम दिया गया है.बसंत में सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में आ जाता है.इसलिए होली के पर्व को ‘गवंतराम्भ’ भी कहा गया है.



    होली की सांस्कृतिक छटा लिए है यह पोस्ट सुन्दर मनोहर होली मुबारक सभी ब्लोगार्थियों को।


    होली : अतीत से वर्तमान तक
    राजीव कुमार झा

    मानव के सांस्कृतिक उन्नयन का इतिहास संभवतः कृषि के विकास का इतिहास है.आखेट की खोज में भटकते हुए मानव को धरती की भरण क्षमता का ज्ञान ही उसके सांस्कृतिक अभ्युदय का प्रथम सोपान है.यही कारण है कि भारतीय त्यौहार कृषि तथा ऋतुओं से संबंधित रहे हैं.

    जवाब देंहटाएं
  15. रचना बे- हद सुन्दर है चित्र से बिलकुल निरपेक्ष।

    मुकाबला मोदी और कांग्रेस में है "आप "खबरों पर ग़ालिब हैं मोदी तो चुनाव से पहले ही न सिर्फ

    जीत चुके हैं प्रधान मंत्री भी बन चुकें हैं रिहर्सल बाकी है।

    भले "आप "फैक्टर "को अब नकारा न जा सकेगा। पब्लिक का बेरोमीटर बाँचने वाले यही कहते दिखतें हैं शालिनी जी। आप बहुत अच्छा लिख रहीं हैं बस सन्दर्भ बदल की ज़रुरत है।

    एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :http://shalinikaushik2.blogspot.in/

    सरज़मीन नीलाम करा रहे हैं ये

    सरज़मीन नीलाम करा रहे हैं ये
    सरफ़रोश बन दिखा रहे हैं ये ,
    सरसब्ज़ मुल्क के बनने को सरबराह
    सरगोशी खुले आम किये जा रहे हैं ये .
    ..........................................
    मैकश हैं गफलती में जिए जा रहे हैं ये
    तसल्ली तमाशाइयों से पा रहे हैं ये ,
    अवाम के जज़्बात की मज़हब से नज़दीकी
    जरिया सियासी राह का बना रहे हैं ये .
    ..........................................
    ईमान में लेकर फरेब आ रहे हैं ये
    मज़हब को सियासत में रँगे जा रहे हैं ये ,
    वक़्त इंतखाब का अब आ रहा करीब
    वोटें बनाने हमको चले आ रहे हैं ये .
    .....................................................
    बेइंतहां आज़ादी यहाँ पा रहे हैं ये
    इज़हार-ए-ख्यालात किये जा रहे हैं ये ,
    ज़मीन अपने पैरों के नीचे खिसक रही
    फिकरे मुख़ालिफ़ों पे कैसे जा रहे हैं ये .
    .................................................
    फिरका-परस्त ताकतें उकसा रहे हैं ये
    फिरंगी दुश्मनों से मिले जा रहे हैं ये ,
    कुर्बानियां जो दे रहे हैं मुल्क की खातिर
    उन्हीं को दाग-ए-मुल्क कहे जा रहे हैं ये .
    ............................................
    इम्तिहान-ए-तहम्मुल लिए जा रहे हैं ये
    तहज़ीब तार-तार किये जा रहे हैं ये ,
    खौफ का जरिया बनी हैं इनकी खिदमतें
    मर्दानगी कत्लेआम से दिखा रहे हैं ये .
    ..................................................
    मज़रूह ज़म्हूरियत किये जा रहे हैं ये
    मखौल मज़हबों का किये जा रहे हैं ये ,
    मज़म्मत करे 'शालिनी 'अब इनकी खुलेआम
    बेख़ौफ़ सबका खून पिए जा रहे हैं ये .
    .....................................
    शब्दार्थ-सरसब्ज़-हरा-भरा ,सरबराह-प्रबंधक ,मैकश-नशे में ,गफलती-भूल में ,इंतखाब-चुनाव ,फिकरे-छलभरी बात ,तहम्मुल-सहनशीलता ,मज़रूह-घायल ,ज़म्हूरियत-लोकतंत्र ,सरगोशी -कानाफूसी-चुगली,
    ........................
    शालिनी कौशिक
    [कौशल ]

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत सुन्दर उपयोगी चर्चा।
    आपका आभार भाई राजेन्द्र कुमार जी।

    जवाब देंहटाएं

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