मेरी आँखें भूरी हैं
उनमें एक भावुकता है
एक चमक है-एक आग सी है...
किंतु ओ माँ !
कहीं कोई भी तो नहीं जो
इन आँखों की काली गहराईयों में
डूबे,उतराये...झाँक सके
आँख की अतल गहराईयों की
व्यथा आंक सके
मेरे हाथ भी कोमल हैं
लेकिन कोई नहीं जो
बढ़कर मुझे आशीष दे
कोई इन्हें छू ले
हाथों में ले ले
कोई नहीं ओ माँ
जो इन्हें चूम ले
प्यार से बहला दे
मेरे इन कोमल हाथों को
सहला दे
मेरे पांव, हलके,तैरते-थिरकते ज्यों
ऐसे पांव.. शायद और किसी के न हों
लेकिन ओ माँ !
कहीं कोई नहीं
जो मेरे पांव में गति भर दे
मुझे नाचने के लिए मजबूर कर दे
नाचे,झूम उठे साथ...!
कोई भी तो नहीं माँ....कहीं?
कहीं कोई भी तो नहीं....
(साभार : यूक्रेनी कवि तारस सेव्चेंको)
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मैं, राजीव कुमार झा,
चर्चामंच : चर्चा अंक : 1566 में, कुछ चुनिंदा लिंक्स के साथ, आप सबों का स्वागत करता हूँ. --
एक नजर डालें इन चुनिंदा लिंकों पर...
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आशा सक्सेना
खेतों के उस पार
अस्ताचल को जाता सूरज
वृक्षों के बीच छिपता छिपाता
सुर्ख दिखाई देता सूरज |
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गौतम राजरिशी
ए-मेजर पे अटकी हुयी है ऊंगलियाँ...जाने कब से, एक सदी से ही तो | न, नहीं खिसक रही हैं...जैसे तीनों स्ट्रींग को बस उन्हीं फ्रेट से इश्क़ हो | छिलीं, कटीं, खून बहा...मगर न, वहीं ठिठकी रहेंगी | वो कौन सी धुन थी ? सुनो तो...
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पूजा उपाध्याय
और जैसे ही मैं जरा सा पीछे मुड़ कर गाने की लिरिक्स को सुनने को हुयी, कागज पर के शब्दों नें झट से मेरे पीठ में खंजर भोंक दिया। शब्द चाकू भी होते हैं, खंजर और आरी भी। इनके कत्ल करने का तरीका अलग अलग होता है, बचपन से सुनने के बावजूद यकीन हर बार मुझे बचाने में पीछे रह जाता है। |
Do you text too much? You may get 'WhatsAppitis'
वीरेन्द्र कुमार शर्मा
प्रोद्योगिकी का चस्का गेजेट से पैदा बीमारियों की और न ले जाए ये कैसे हो सकता है ?
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प्रीति....स्नेह
चलो अपने प्यार को एक नयी संवरी छवि दें
तुम ऐसे मिलो मुझसे जैसे नई-नई मोहब्बत है |
खुले देहातों, खेतों, प्रायः घास चरते जानवरों के झुंड का पीछा करते हुए या टेलीफोन के तारों पर बैठा हुआ इसे देखा जा सकता है। यह एक कीटभक्षी पक्षी है। इसका मुख्य आहार छोटे-छोटे कीड़े और पतंगे हैं।
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मनु त्यागी
खतरनाक चढाई से पेडो की जडो को पकडकर गीली मिटटी पर पता नही कैसे कैसे करके नीचे उतरे जहां पर एक गांव था । यहां पर काफी बडी नदी थी जिसमें गांव से थोडा आगे आकर एक पुल बना था जो नदी पार करता था और हमें इसी पर जाना था ।
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Faith is one of the most significant aspects of human existence, both when it is given and when it is received. The knowledge that someone expects the best from us works wonders in our lives.
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जब तक सोच में कुछ आये इधर उधर हो जाता है
सुशील कुमार जोशी
अपने सपने का
सनीमा बना कर बाजार में खुले आम पोस्टर लगा देने |
मेरी आँखों के सामने
रूका हुआ है
धुएं का एक गुबार
जिस पर उगी है एक इबारत ,
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जब तेरी इक, झलक, दिख जाती है मुझे,
कोई अपना सा, दिल को, लगता है।
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विनीत कुमार
विकल्प, तुम पागल तो नहीं हो गए हो, इस टी को पहनकर जाओगे चायना वॉल डिनर करने ?
क्यों, इस टीशर्ट में क्या प्रॉब्लम है, ब्लू जींस पे ये डार्क यलो, ठीक तो है.
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विभा रानी श्रीवास्तव
मिली ज़िंदगी कोरे कागज की तरह
कुछ लिख भी न सकूँ ..... जला भी न सकूँ
चाहत की कश्ती पर हूँ सवार
डूब भी न सकूँ ..... तैर भी न सकूँ
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क्यों न रवैये , हम ऐसे अख्तियार करें !
बेटी से ज्यादा, दामाद को प्यार करे !
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अनिल कुमार 'अलीन'
गर चिराग मेरे मजार पर जला होता
यकीनन हवा के एक झोंके से बुझा होता |
पुरुषोत्तम पांडेय
डाक्टरी व्यवसाय को परमार्थ का कार्य माना जाता रहा है पर अब इसका बुरी तरह बाजारीकरण हो गया है, इसमें बहुत विद्रूपता आ गयी है.
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सौन्दर्य अभिलाषी कौन नहीं है
चाह सुन्दर की किसे नहीं है
सुन्दरता की भाषा क्या है
दृष्टि की अभिलाषा क्या है |
"सितारे टूट गये हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
क्यों नैन हुए हैं मौन,
आया इनमें ये कौन?
कि आँसू रूठ गये हैं...!
सितारे टूट गये हैं....!!
धन्यवाद !
जीवन की पगडण्डियां......सौरभ श्री अमित पद-चिन्ह संकलन टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियां जड़ सही, जीवन्त फिर भी मिलन-विरह पगडंडियां... मेरी धरोहर पर yashoda agrawal -- ओ पलाश उमंग-उल्लास या फिर जो है उसमें संतुष्ट रहने की चाह नहीं किसी से कोई आस क्या वजह है तेरी खुशियों की ? बता दे मुझको ओ पलाश... Tere bin पर Dr.NISHA MAHARANA -- ///// कुछ दोहे आज के हालात पर ///// Vishaal Charchchit -- कवि का गाँव *'पहली बार ब्लॉग' पर हम एक नया कॉलम 'कवि का गाँव' शुरू कर रहे हैं**। इसके अंतर्गत हम कवि के गाँव के बारे में जानेंगे...
इस कालम के पहले खंड में हम प्रस्तुत कर रहे हैं
युवा कवि नित्यानन्द गायेन के गाँव के बारे में...
पहली बार-- मौन का प्रत्युत्तर जब एक सुप्त रिश्ता जिसे जोर जबरदस्ती थपका के सुलाया गया जाग जाना चाहता हो और जी उठता हो ..... अपनी आँखों को खोल कर मिचमिचा कर देखता है ऐसे जैसे कोई शिशु असमंजस में जानना चाहता है दुनियां को... अमृतरस पर डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति -- श्याम स्मृति- ..असत्य की उत्पत्ति ..एवं हास्य ... असत्य की उत्पत्ति के चार मूल कारण हैं – क्रोध, लोभ, भय एवं हास्य | वास्तव में तो मानव का अंतःकरण असत्य कथन एवं वाचन नहीं करना चाहता परन्तु इन चारों के आवेग में वायवीय मन बहने लगता है और सत्य छुप जाता है... डा श्याम गुप्त....सृजन मंच ऑनलाइन -- कार्टून :- गधे को बाप कहने वाले झाड़ू से डर गए"ग़ज़ल-स्वदेश का परवाना" उच्चारण |
बढ़िया प्रस्तुति व सूत्र संकलन , मेरे पोस्ट को स्थान देने हेतु राजीव भाई व मंच को धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंⓘⓐⓢⓘⓗ ( हिन्दी में जानकारियों का ब्लॉग )
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
बहुत ही सुन्दर चर्चा ... मेरी रचना को शामिल करने का शुक्रिया ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंकों के चयन के साथ बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुतिकरण, धन्यबाद। शास्त्री जी की ग़जल से हम बहुत प्रभावित हुए, रहते हैं परदेश में पर देश के लिए दीवानगी कभी कम न रही। आभार शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सूत्र सुंदर संयोजन सुंदर चर्चा राजीव और उलूक का आभार भी उसके सूत्र "जब तक सोच में कुछ आये इधर उधर हो जाता है" को स्थान दिया ।
जवाब देंहटाएंबड़े ही सुन्दर और पठनीय सूत्र।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
अच्छी रचनाएं पढ़वाई आपने
सादर
सुंदर संकलन. आपका प्रयास सराहनीय है. आभार.
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर बहुत सुन्दर साज-सज्जा से सुशोभित सुन्दर चर्चा सजाई है।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ बेहद खूबसूरत और जानकारियां भी बहुत कारगर।
बधाई
bahut sundar links thanks nd aabhar ,,,,,
जवाब देंहटाएंएक से बढ़ कर सुंदर लिंक्स के साथ मुझे भी स्थान देने के लिए आपकी आभारी हूँ
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपका
बहुत सुन्दर पठनीय सूत्र ...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST - माँ, ( 200 वीं पोस्ट, )
सुन्दर तसव्वुरात की रचना :
जवाब देंहटाएंऔर झांका तुमने जब ,
अंधेरों को रोशनी मिल गई ,
गुमशुदा बैठे थे तन्हा,
लम्हों को ताज़गी मिल गई |
जवाब देंहटाएं"ग़ज़ल-स्वदेश का परवाना"
उच्चारण
देशप्रेम से संसिक्त रचना सशक्त स्वर देश भक्ति के :
ये तो भारत के स्थाई हालात का खुलासा है रोज़नामचा है :
जवाब देंहटाएं--
///// कुछ दोहे आज के हालात पर /////
Vishaal Charchchit
सुन्दर बता कही है अपने ही अंदाज़ में :
जवाब देंहटाएंबढ़िया बात कही है :
जब तक सोच में कुछ आये इधर उधर हो जाता है
अपने सपने का
सनीमा बना कर
बाजार में खुले आम
पोस्टर लगा देने
वाले के बस में
नहीं होती हैं उँचाईयाँ
जब तक सोच में कुछ आये इधर उधर हो जाता है
सुशील कुमार जोशी
My Photo
अपने सपने का
सनीमा बना कर
बाजार में खुले आम
पोस्टर लगा देने
ये ठगी ही अब चिकित्सा कहलाती है। पेनल वालों का तो ये मरने के बाद भी (तक) भी इलाज़ करने की ताक में रहते हैं।
जवाब देंहटाएंकुँवे में भाँग
पुरुषोत्तम पांडेय
मेरे बारे में
डाक्टरी व्यवसाय को परमार्थ का कार्य माना जाता रहा है पर अब इसका बुरी तरह बाजारीकरण हो गया है, इसमें बहुत विद्रूपता आ गयी है.
इतने अच्छे लेखन के संकलन में मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें
The love and acceptance given to people who need it for their growth, is not wasted. There are so many us in whose lives there is at least one person to whom we attribute a key role in our success drama. We can tell them that we are successful because they thought that we could be.
जवाब देंहटाएंvery true film guide was a case in point .very good post .You become what is expected of you .
Hopes and Expectations
Rajeev Kumar Jha
Faith is one of the most significant aspects of human existence, both when it is given and when it is received. The knowledge that someone expects the best from us works wonders in our lives.
often encouragement play a key role .
सुन्दर और सधी हुई चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार भाई राजीव कुमार झा जी।
बहुत ही सुन्दर चर्चा ... मेरी रचना को शामिल करने का शुक्रिया .
जवाब देंहटाएं