चुनाव के इंद्रधनुषी दौर में सभी रंगीन हैं,
कुछ मद में लाल है तो कुछ मामलों से रंगीन है।
उतरेंगे रंग तो असली शक़्ल देखने को मिलेगी,
किसी की शाख बढ़ेगी किसी की इज़्ज़त उतरेगी।
तैयार रहिये मीठे संवादों का लुत्फ लेने के लिये,
चुनाव बाद सभी रंगे सियार की नीयत दिखेगी।
-अभिलेख द्विवेदी
इस रविवार के चर्चा मंच पर उपस्थित हूँ कुछ रचनायें लेकर

इस चुनावी गहमागहमी के बीच कितने मुद्दे होंगे जिपर गौर नही किया जा रहा और कौन नेता कहाँ से खड़े हो रहे हैं इसी बात का झगड़ा ज़यादा महत्वपूर्ण हो गयी है। एक बार फिर जनता चुनाव का जुआ शायद खेलेगी। ऐसे समय पर मार्कण्ड दवे जी कि उतरक्रिस्टा रचना पर ज़रूर गौर करने लायक है
पथिक अंजना जी एक रचना जहाँ वह समाज के प्रति अपना रोष प्रकट किया है बहुत सुंदर भाव के साथ
थके थके कदम चांदनी के
लम्हा लम्हा सरकी रात
बहुत उम्दा तरीके से जज़बातों को शब्दों में ढाला है अलकनंदा जी ने। इनकी हरेक रचना काबिलेतारीफ है।
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कुछ मंज़र आसान नहीं होते उतारना
थोड़ी पड़ जाती हैं सोलह कलाएँ
गुम जाते हैं सारे शब्द कायनात के
दिगम्बर नस्वा जी कि यह रचना भी कोमल भाव का शाब्दिक चित्रण बखूबी करते हैं। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
आशा है आप सब को भी यह रचनायें उतनी ही पसंद आएगी। चर्चामंच पर आप सभी की उपस्थिति बहुत मायने रखती है। रचनाओं का भरपूर आनंद लीजिये...
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"अद्यतन लिंक"
हदों से ज़्यादा , अपना जिन्हें कहते निकले
शक की बेडियों से खुद को जकडते निकले
उन्होंने जब अपनी हया की चादर उतार दी
हर दिन नया जख्म हम सम्भालते निकले
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1
सूखती नमी
मौत से मिलवाती
जल की कमी ।
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प्रेम के मायने, क्यूँ बदल हैं रहे
देख दिल रो पड़ा, लिख ग़ज़ल हैं रहे
इश्क़ की राह में, लोग फिसले बहुत
जानते हैं सभी, पर फिसल हैं रहे..
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हमाम में आते
और जाते रहना
बाहर आकर कुछ और कह देना
आज से नहीं
सालों साल से चल रहा है...
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मित्रों!
आज से आप अपने गीत
प्रकाशित करने की कृपा करें।
मित्रों!
आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है।
कृपया इस मंच में योगदान करने के लिए Roopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। आपका मेल मिलते ही आपको सृजन मंच ऑनलाइन के लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...!
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लोकतन्त्र की जय बोलो!
प्रजातन्त्र की जय बोलो!!
रंगे स्यार को दूध-मलाई,
मिलता फैनी-फैना है।
शेर गधे बनकर चरते हैं,
रूखा-शुष्क चबेना हैं।।
लोकतन्त्र की जय बोलो!
प्रजातन्त्र की जय बोलो!!
प्रजातन्त्र की जय बोलो!!
रंगे स्यार को दूध-मलाई,
मिलता फैनी-फैना है।
शेर गधे बनकर चरते हैं,
रूखा-शुष्क चबेना हैं।।
लोकतन्त्र की जय बोलो!
प्रजातन्त्र की जय बोलो!!
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उड़नतश्तरी वाले समीर लाल जी ने
लगभग 3 वर्ष पूर्व मेरी बालकृति
“नन्हे सुमन” की भूमिका लिखी थी!

एक अद्भुत संसार - ’नन्हें सुमन’
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क्या करोगे विश्व सारा जीत कर
हारती जब जा रही संवेदना !
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जीवन कथा -
अकेला ये मन सोचे हरदम
सुख-दुख का झमेला जीवन
मारे दंश फिर भी सहे जाये
यह ही हृदय का दमखम ।।
नहीं कोई मरहम समय अति निर्मम
खारे आँसू भी न करे दर्द कम ...
कविता
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दुर्दान्तता है
प्रेम की उद्दाम उच्छल आग में चल रहा है
श्वास का स्यंदन
बिना रुके हुए....
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"पढ़ती हूँ जब-जब..तुमको लिखे ख़त बेशुमार..
नमी दीवार-ए-रूह..जाने क्यूँ उभर आती है..
आज दफ़ना दूँगी..बेसबब यादें..जज़्बात..
परत जाने कितनी..आँखों पे जम जाती हैं...
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कल मेरे एक मित्र ने मुझसे संविधान की प्रस्तावना के बारे में पूछा था. उन्हें पूरी याद थी और मैं भूल चुका था. इसमें समाजवादी प्रभुत्व सम्पन्न, बन्धुत्व और गरिमा जैसे बड़े बड़े शब्द थे और आत्मार्पित करने जैसा गुरुतर दायित्व....
सुन्दर और संक्षिप्त चर्चा।
ReplyDeleteआभार अभिलेख द्विवेदी जी।
बहुत खूबसूरत सूत्र संजोये हैं आज के चर्चामंच में ! मेरी रचना को सम्मिलित किया आभारी हूँ !
ReplyDeleteखूबसूरत एवं मोहक चर्चा बहुत आभार ..मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद .
ReplyDeleteप्रिय श्रीअभिलेख द्विवेदी जी, इस मनमोहक चर्चा प्रस्तुति और मेरी रचना को स्थान एवं सराहना के लिए आपका बहुत-बहुत आभार। Have a good day to every one. Thanks Again.
ReplyDeleteआज के इन्द्रधनुषी चर्चा में एक रंग "शब्दों के कपड़े उतार नहीं पाने की जिम्मेदारी तेरी हो जाती है" उलूक का भी शामिल किया आभार ।
ReplyDeleteसशक्त भावाभिव्यक्ति बढ़िया बिम्ब बढ़िया रूपकत्व लिए अप्रतिम रचना नए अर्थ और साज़ लिए नया पैरहन लिए 'नीर 'का
ReplyDeleteख्यालों के अंतर्मन को टटोलती नीरज जी कि रचना बहुत खूब है
ReplyDeleteचर्चा मंच पे ये गज़ल बांचते बांचते पता चल गया था ये पैरहन ये गज़ल आपकी है।
भजन-पूजन, कथा और कीर्तन में
सुधा के बिन अधूरा आचमन है
"ग़ज़ल-बहारों के बिना सूना चमन है"
सुन्दर भूमिका विश्लेषण प्रधान सशक्त भाव गंगाएं नौनिहालों की नौनिहालों के लिए
ReplyDelete"बालकृति 'नन्हे सुमन' की भूमिका"
उड़नतश्तरी वाले समीर लाल जी ने
लगभग 3 वर्ष पूर्व मेरी बालकृति
“नन्हे सुमन” की भूमिका लिखी थी!
एक अद्भुत संसार - ’नन्हें सुमन’
नन्हे सुमन
बहुत सशक्त कही है गज़ल साफ़ लफ़्ज़ों में
ReplyDelete"पढ़ती हूँ जब-जब..तुमको लिखे ख़त बेशुमार..
नमी दीवार-ए-रूह..जाने क्यूँ उभर आती है..
आज दफ़ना दूँगी..बेसबब यादें..जज़्बात..
परत जाने कितनी..आँखों पे जम जाती हैं...
प्रियंकाभिलाषी..
'दीवार-ए-रूह..'
खाकी की महिमा
ReplyDeleteमुर्गा और संविधान में प्रदत्त बन्धुत्व और गरिमा...
कल मेरे एक मित्र ने मुझसे संविधान की प्रस्तावना के बारे में पूछा था. उन्हें पूरी याद थी और मैं भूल चुका था. इसमें समाजवादी प्रभुत्व सम्पन्न, बन्धुत्व और गरिमा जैसे बड़े बड़े शब्द थे और आत्मार्पित करने जैसा गुरुतर दायित्व....
भारतीय नागरिक-Indian Citizen
ReplyDeleteअभ्यास वश जीना भी क्या जीना है ?
जीवन कथा -
अकेला ये मन सोचे हरदम
सुख-दुख का झमेला जीवन
मारे दंश फिर भी सहे जाये
यह ही हृदय का दमखम ।।
नहीं कोई मरहम समय अति निर्मम
खारे आँसू भी न करे दर्द कम ...
कविता
पशु-पक्षी औ इस धरा के प्राणी
गत जीवन मे रची है कहानी
विकार नहीं संवेदना है ये
है हमने भी अब जीने की ठानी ।।
अच्छी कही है गज़ल अशआर भी हैं सभी नए
ReplyDeleteप्रेम के मायने, क्यूँ बदल हैं रहे
ReplyDeleteदेख दिल रो पड़ा, लिख ग़ज़ल हैं रहे
इश्क़ की राह में, लोग फिसले बहुत
जानते हैं सभी, पर फिसल हैं रहे
मैं कहाँ था, कहाँ आज, हूँ आ गया
बात सुन के यहाँ, कर अमल हैं रहे
दौर कैसा चला, किस तरह का चलन
मुंह मुझको चिढ़ा, खिल कमल हैं रहे
जानते एक दिन, मौत आनी मगर
मौत से आज, सारे दहल हैं रहे
हर कदम देख के, अब बढ़ाना 'अभी'
यहाँ जज़्बात, को सब, मसल हैं रहे
--अभिषेक कुमार ''अभी''
अच्छी कही है गज़ल अशआर भी हैं सभी नए
वाह ! अभिलेख भाई बढ़िया प्रस्तुति के साथ बढ़िया लिंक्स , अभिलेख भाई व मंच को धन्यवाद
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिन्दी में जानकारियाँ )
कविता का बहुत सुंदर मंच ......
ReplyDeleteआदरणीय शास्त्री भाई मेरे ब्लॉग पर आते हैं तो मुझे बहुत खुशी होती है
ReplyDeleteअभिभूत हो अनुगृहीत हूँ
बहुत बहुत धन्यवाद _/\_
बड़े ही रोचक व पठनीय सूत्र।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसुंदर रोचक सूत्र...!
ReplyDeleteRECENT POST - प्यार में दर्द है.
very nice links .thanks
ReplyDeleteसादर आभार मयंक साब..!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चर्चा और बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति के लिंक्स
ReplyDeleteमेरी ग़ज़ल को शामिल करने हेतु हार्दिक धन्यवाद।
क्या चर्चा है। उल्लूक टाइम्स का "शब्दों के कपडे" अच्छी थी।
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