माँ सरस्वती को नमन करता हूँ
एक बार फिर आप सबके बीच हाज़िर हूँ
अभिषेक कुमार अभी की ''ख्वाहिश''
ये धूप, और इसकी, तपिश मौला
ये मुफ़्लिसी, इसकी, ख़लिश मौला
न जाने किस डगर पे शाम हो जाए
न जाने किस से अपना काम हो जाए
यहाँ पर तुम जरा सम्भल मिलो सब से
न जाने कब यहाँ बदनाम हो जाए
-अभिषेक कुमार ''अभी''
न जाने किस डगर पे शाम हो जाए
न जाने किस से अपना काम हो जाए
यहाँ पर तुम जरा सम्भल मिलो सब से
न जाने कब यहाँ बदनाम हो जाए
-अभिषेक कुमार ''अभी''
आज अपनी इन्हीं पंक्तियों के साथ आगाज़ करता हूँ।
हम सबके जीवन में अभिव्यक्ति के मायने बहुत महत्वपूर्ण हैं।
चाहे वो व्यक्त करने के दृष्टिकोण से हो, या चिंतन मनन करने के
तो आज ऐसी ही कुछ अभिव्यक्तियों पे नज़र डालते हैं :
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बेहद ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति ख़ुद पर ही व्यक्त की है, आदरणीय ''मुकेश कुमार सिन्हा जी'' ने अपनी रचना
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अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम से, स्त्रियों को आवाहन किया है आदरणीय
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आज दौर के में क़लमकारों की जिम्मेदारी बढ़ती जा रही है, अगर वो वाकई क़लमकार हैं तो
अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम से बहुत ही बख़ूबी इस जिम्मेदारी का निर्वाहन आदरणीय
''कैलाश शर्मा जी'' कर रहे हैं
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अंतहीन
ये गाथा अंतहीन है
बनकर मिटने और
मिट -मिट कर बनने की।
प्रलय के बाद
जीवन बीज के पनपने की
और विशाल वट बृक्ष के अंदर
मानव जीवन को समेटने की...
बनकर मिटने और
मिट -मिट कर बनने की।
प्रलय के बाद
जीवन बीज के पनपने की
और विशाल वट बृक्ष के अंदर
मानव जीवन को समेटने की...
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बदलते परिवेश में हर चीज़ के मायने बदल रहे हैं, इसी विषय को लेकर बहुत ख़ूब एक चिंतक के रूप में अपनी अभिव्यक्ति को व्यक्त की है आदरणीय
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अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम से, आशा की किरण लेकर आए हैं आदरणीय
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व्यंगात्मक अभिव्यक्ति की धार बहुत तेज़ होती है
जिसे प्रमाणित किया है आदरणीय ''चन्द्र भूषण मिश्र ''ग़ाफ़िल'' जी ने
मैं भी हूँ, एक नारी-शुदा इंसान
व्यंगात्मक अभिव्यक्ति की धार बहुत तेज़ होती है
जिसे प्रमाणित किया है आदरणीय ''चन्द्र भूषण मिश्र ''ग़ाफ़िल'' जी ने
मैं भी हूँ, एक नारी-शुदा इंसान
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जब ज़िंदगी में चोट लगती है, सुना है तब ग़ज़ल बनती है
ग़ज़ल के माध्यम से शानदार अभिव्यक्ति व्यक्त की है आदरणीय
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इस दुनियाँ में बहुत से लोग मिलते हैं, जिनसे बहुत कुछ सीखने और जानने को मिलता है इसी बात को लेकर ''सुनीता जी'' अभिव्यक्त करती हैं
मिले
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हालातों को देख देखकर कई बार हमारी अभिव्यक्ति में भी कठोर पूर्ण शब्द उभर आते हैं
पर अभिव्यक्ति तो अभिव्यक्ति है
''मनीष कुमार खेड़ावत जी'' ने प्रस्तुत किया है
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सपने तो सपने होते हैं, पर ये अपने होते हैं
दिखाते तुम हो, देखते हम हैं
सपने को लेकर ''डॉ प्रतिभा स्वाति जी'' अभिव्यक्त करती हैं
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वाह वाह वाह क्या व्यंग्यात्मक अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है आदरणीय
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कई बार यूँ ही चलते चलते ही खुद से ही खुद बात करने लगते हैं,
ऐसी अभिव्यक्ति जीवंत अभिव्यक्ति लगती है, जब उसे
''मंजूषा पाण्डेय जी'' व्यक्त करती हैं
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किसी ने सच ही कहा की जहाँ न पहुंचे रवि, वहाँ पहुंचे कवि
ईश्वर को किसी ने देखा नहीं है, पर कोई इस बात से इंकार भी नहीं कर सकता की ईश्वर नहीं हैं
आदरणीय
''कालीपद प्रसाद जी'' ने सुन्दर रचना रची है
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और हाँ ! ईश्वर/ख़ुदा हैं,
इसी बात को प्रमाणित की है आदरणीय
''रूपचन्द्र शास्त्री मयंक'' जी ने आपनी अभिव्यक्ति में
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अभिव्यक्ति कभी नई या पुरानी नहीं होती, न जाने कब, कहाँ कही गई बात हमेशा के लिए अमर हो जाए ''हम में से कोई नहीं जनता''
अपनी आज की अभिव्यक्ति को विराम एक ऐसी ही अभिव्यक्ति से करता हूँ
जो स्व. दुष्यंत कुमार जी ने कही थी
एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है
आज शायर ये तमाशा देख कर हैरान है
कल नुमाइश में मिला था चिथड़े पहने हुए
मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिंदुस्तान है
आज शायर ये तमाशा देख कर हैरान है
कल नुमाइश में मिला था चिथड़े पहने हुए
मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिंदुस्तान है
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हम सभी क़लमकारों का दायित्व है कि अपने इस गुड़िया रुपी हिंदुस्तान को अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम से सजाएँ और संवारें क्यूंकि
क़लम में तलवार से भी ज्यादा धार होती है।
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अगले सोमवार फिर से हाज़िर होउँगा
सादर प्रणाम
-अभिषेक कुमार ''अभी''
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"अद्यतन लिंक"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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चित्र एक भाव अनेक-हाइगा में
नज़रों को भाया नज़ारों का मौसम
बागों में छाया बहारों का मौसम
लरजती हुई गेहूँ की बालियों को
बहुत रास आया बयारों का मौसम..
सबकी ही बारी
क्यों नहीं लगा दी जाती है
बंदर बाँट काट छाँट साँठ गाँठ
सभी कुछ काम में जब लाना ही पड़ता है
बाद में भी तो पहले इतने बंदर बाँट
काट छाँट साँठ गाँठ सभी कुछ
काम में जब लाना ही पड़ता है...
उल्लूक टाईम्स पर सुशील कुमार जोशी
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क्यों नहीं लगा दी जाती है
बंदर बाँट काट छाँट साँठ गाँठ
सभी कुछ काम में जब लाना ही पड़ता है
बाद में भी तो पहले इतने बंदर बाँट
काट छाँट साँठ गाँठ सभी कुछ
काम में जब लाना ही पड़ता है...
उल्लूक टाईम्स पर सुशील कुमार जोशी
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बहुत याद आएगा गुज़रा ज़माना
वो होठों पे चुम्बन, वो धीरे से हंसना
धोकर के कपडे, वो छत पे सुखाना
सहला करके मुझको, गले से लगाना...
ZEAL
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हर कोई है यहाँ अपने मे मशगूल
वो होठों पे चुम्बन, वो धीरे से हंसना
धोकर के कपडे, वो छत पे सुखाना
सहला करके मुझको, गले से लगाना...
ZEAL
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हर कोई है यहाँ अपने मे मशगूल
किसी को बीता कल याद है
और कोई आज मे ही आबाद है
कोई डूबा है आने वाले कल की चिंता में
कोई बेफिकर देखता जा रहा है
मिट्टी के पुतलों के भीतर
छटपटाती आत्माओं की बेचैनी...
जो मेरा मन कहे पर
Yashwant Yash
और कोई आज मे ही आबाद है
कोई डूबा है आने वाले कल की चिंता में
कोई बेफिकर देखता जा रहा है
मिट्टी के पुतलों के भीतर
छटपटाती आत्माओं की बेचैनी...
जो मेरा मन कहे पर
Yashwant Yash
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर भिन्न भिन्न विषयों पर लिंक्स विविधता लिए |
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |
हटाएंआपकी अभिव्यक्ति को स्थान देकर हमें भी ख़ुशी हुई आदरणीय
हार्दिक धन्यवाद और स्वागत है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आज की चर्चा की सूचना मैंने सम्बन्धित लिंको पर दे दी है।
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अभिषेक कुमार "अभी" जी आपका आभार।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हटाएंआदरणीय सर
क्षमा प्रार्थी हूँ, कि मेरे कार्य के लिए आपको क्रियान्वित करना पड़ा। पर अचानक कहीं जाने की वज़ह से कल कमेंट्स में लिंक पोस्ट नहीं कर पाया था।
मैं आपका हार्दिक आभारी हूँ कि आपने मेरी इस त्रुटि को वक़्त रहते ही भाँप लिया और उसे पूर्ण किया।
सादर
वाह बहुत ही कमाल के लिंक्स से आज की चर्चा सजाई है आपने अभिषेक भाई ... सभी पठनीय संग्रह .. बहुत सुन्दर.. मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद ..
जवाब देंहटाएं
हटाएंआपकी अभिव्यक्ति को स्थान देकर हमें भी ख़ुशी है
हार्दिक धन्यवाद और स्वागत है
बहुत बहुत धन्यवाद सर!
जवाब देंहटाएंसादर
हार्दिक धन्यवाद और स्वागत है
हटाएंसुन्दर चर्चा-
जवाब देंहटाएंआभार भाई अभि-
हटाएंआदरणीय सर प्रणाम
आप सभी गुनी जनों के सान्निध्य में सिखने की ललक से प्रयासरत रहता हूँ।
हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपका आभारी हूँ।
कमाल के लिंक ...शानदार चर्चा ....शुक्रिया आदरणीय शास्त्री जी
जवाब देंहटाएं
हटाएंहार्दिक धन्यवाद और स्वागत है आदरणीय
शानदार लिंक्स
जवाब देंहटाएंखुद को पा कर खुशी हुई ...... :)
आपकी अभिव्यक्ति को स्थान देकर हमें भी ख़ुशी है
हटाएंहार्दिक धन्यवाद और स्वागत है
बहुत सुंदर सूत्र संयोजन । उल्लूक का आभार दिखा कहीं उसका सूत्र "बारी बारी से सबकी ही बारी
जवाब देंहटाएंक्यों नहीं लगा दी जाती है" ।
हार्दिक धन्यवाद और स्वागत है
हटाएंकमाल के लिंक्स
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद भाई साहब
हटाएंबहुत सुन्दर और विस्तृत लिंक्स...रोचक चर्चा...आभार
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद और स्वागत है
हटाएंसुन्दर चर्चा.
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद.
हार्दिक धन्यवाद और स्वागत है
हटाएंविस्तार s से की गयी चर्चा ... बहुत लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद और स्वागत है
हटाएंअच्छे पठनीय सूत्र सहेजे हैं ..... आभार !
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद और स्वागत है
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