पांवों में रोली की मेहंदी कत्थई,प्रभु
कुंडलिनी में कैसा गूंजा यह शंखनाद
किसने मन-मंदिर की घंटी आ छुई,प्रभु
रोम-रोम में पिघली यादों के कोरस-सा
जगा गया कौन मधुर-मधुर सामगान नया
ऐसे क्यों बिना झिझक,बच्चों सा पांव पटक
मचल गई इच्छा की बेल,छुईमुई,प्रभु
आंधी है,यह कैसी आंधी है बेमतलब
झटके,बेखटके से आयी-सी,छाई-सी
बदली यह संस्कार थी फन फैलाये-सी
शिवलिंगों पर सुलगी बाती की रूई,प्रभु
गंगाजल,दूध-शहद,पान-फूल डालो तो
यह लौ ऊँची लेकिन ठंढी कर डालो तो
चुप्पियां अगरबत्ती-सी धीरे जलती हैं
बर्फीले दीये की हालत क्या हुई,प्रभु
(साभार : अनामिका)
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मैं, राजीव कुमार झा,
होली की शुभकामनाओं के साथ चर्चामंच : चर्चा अंक : 1552 में, कुछ चुनिंदा लिंक्स के साथ हाजिर हूँ. --
एक नजर डालें इन चुनिंदा लिंकों पर...
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आशा सक्सेना
बाट जोहती
टेसू के रंग बना रंगती उसे गुलाल लिए साथ कि फागुन आया रे | |
कितने सांचों में यूँ ढलता है समाज भठ्ठी ई ओट में छूपा सेंकता है आज |
डॉ. निशा महाराणा
हौले-हौले झूम के कलियाँ
नववधू सी शरमा रही है … |
प्रीति सुराना
अच्छा लगता है जब कोई मेरी वजह से खुश होता........ |
कुलकलंकित इतिहास के वारिस :दिग्पराजयसिंह
वीरेन्द्र कुमार शर्मा
औरंगज़ेब की सोच के लोग हैं ये जिसने अपने पिता को नंगा करके जेल
में डाल दिया था खुद शासन करने के लिए। |
गिरिजा कुलश्रेष्ठ
मेरे मिष्ठान्न--प्रेम को मेरे सभी परिजन जानते हैं । ताऊजी के परिवार में किशोर भैया को और हमारे बीच मुझे ,दोनों को बचपन में ही चींटों की उपाधि मिल चुकी थी ।
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दुबई। मंदिर के बाहर फल-प्रसाद की दुकान तो आम बात है, लेकिन अगर ये दुकान एक मुस्लिम परिवार लगा रहा हो, तो चौंकना लाजमी है। बुर दुबई इलाके में मंदिर के बाहर एक मुस्लिम परिवार ऐसी ही एक दुकान चला रहा है, जिसमें फूल-माला और फलों से लेकर पूजा-पाठ का हर सामान मिलता है।
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होली...एक ऐसा शब्द जो श्रवण करते ही कितने सारे भाव उपज आते हैं मन की भूमि पर जो बंजर बन चुके मस्तिष्क पर भी रंगों की बौछार करने से नहीं चूकते| होली में बहार है,होली में खुमार है, होली में श्रृंगार है,
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मनु त्यागी
उसी ड्राइवर ने बताया कि मेघालय लडकी का राज्य है । यहां पर जीवन पुरूष प्रधान नही है । यहां का समाज घर के मुखिया के रूप में लडकी को मान्यता देता है । यहां पर माता का उपनाम नाम के आगे लगाया जाता है । यहां पर सब दुकानो पर लडकी ही बैठी मिलेंगी ।
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इस बार भी चढ़ जायेगा रंग कहाँ कुछ नहीं बतायेगा
सुशील कुमार जोशी
होली के
रंगो के बीच भंग की तरँगो के बीच रंग में रंग मत मिला |
आने वाले हैं अब मतदान
आयेगा नेताओं को तुम्हारा ध्यान,
करेंगे वोही, जो अब तक किया,
जागो जंता, सोचो विचारो,
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स्याही सी है ज़िन्दगी
लिखती मिटाती उकेरती कुछ भी ये कह जाती कागज़ों पर बसती ज़िन्दगी |
अंकुर जैन
अबकी होली
हमने भी कुछ उन्हें रंगने का मन बनाया था |
नीरज पाल
तुम्हें जाना था चली गयी ,
मुझे अभी रुकना है प्रिय,
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शादी का माहौल हो
तो मस्ती छा ही जाती है
कितना छुपाओ चेहरे से
ख़ुशी झलक ही जाती है
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सुमन
हर साल की तरह मौज,मस्ती,रंग,तरंग लिए होली हमारे द्वार पर दस्तक दे रही है ! सर्द हवाओं की सिहरन सूरज की तप्त होती किरणों से जैसे बौखलाई सी लगने लगी है और पहाड़ों के आँचल में छुपने का प्रयास कर रही है !
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सदा
रंग आतिशी हो गए हैं सारे
गुलाल भंग के नशे में है
तभी तो हवाओं में
उड़ रहा है
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कितना कुछ घटित होता जीवन में
कितना कुछ कितना कुछ खोता जाता आदमी कितना कुछ और जो कुछ वह पाता है |
"दूषित हुआ वातावरण" (
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') सभ्यता, शालीनता के गाँव में, खो गया जाने कहाँ है आचरण? कर्णधारों की कुटिलता देखकर, देश का दूषित हुआ वातावरण।
धन्यवाद !
होली आई रे !! नूतन ( उद्गार) पर Annapurna Bajpai -- आरोग्य समाचार : यदि खाना खाने के फ़ौरन बाद सोने की तलब होती है तब समझियेगा आपका भोजन मधुमेह सहाय है डायबिटीस -फ्रेंडली है कबीरा खडा़ बाज़ार में पर Virendra Kumar Sharma -- रंग उल्लास हायकु गुलशन.. परs unita agarwal -- होलिका - शक्ति सम्पन्न सत्ती : प्रजापति वर्तमान में कुड़ा-करकट इकट्ठा करके होलिका दहन करना नितान्त आवश्यक है। होलिका दहन के समय दुषविचारों, दुष्कर्मों को जलाने व सत्कर्मों को अपनाने की भावना रखनी चाहिये। होलिका दहन से विशेष तौर से महिलाओं को शिक्षा लेनी चाहिये कि शक्ति सम्पन्न सत्ती होलिका भी असत्य का साथ देने से जल जाती है। सत्य फिर भी जीवित रहता है... मिसफिट Misfit -- "फागुन सबके मन भाया है"
होली आई, होली आई।
गुजिया, मठरी, बरफी लाई।।
सृजन मंच ऑनलाइन-- "जब-जब मक्कारी फलती है, आजादी मुझको खलती है" उच्चारण -- "नटखट प्राची" इतनी जल्दी क्या है बिटिया, सिर पर पल्लू लाने की। अभी उम्र है गुड्डे-गुड़ियों के संग, समय बिताने की।। नन्हे सुमन -- आरोग्य समाचार : आफटर सेक्स पिल की तरह अब आफ्टर सेक्स वैजिनल जैल उपलब्ध है जो आपकी एचआईवी -एड्स से हिफाजत कर सकेगा। यह जैल अलग किस्म की एंटी -एचआईवी दवा से संसिक्त है जो विषाणु पर संक्रमण के थोड़ा बाद में हल्ला बोलता है हमला करता है वीरेन्द्र कुमार शर्मा -- लिखित या व्यक्त उदगारों से राह—
बुद्धिमान की पहचान शांत खोज निगाहें व मुस्कान
वे लिखित या व्यक्त उदगारों से राह बना ही लेते हैं
सोच व विचार अन्य के चिन्तक तो यह कहलाजाते
नहीं सजाते दीवालों या आलों में न पूजते राहों को हैं...
पथिकअनजाना-- झाड़ू झूमे अर्श पर, पंजे में लहराय-
होली की शुभकामनायें- रविकर प्रवास पर
झाड़ू झूमे अर्श पर, पंजे में लहराय |
लेकिन कूड़ा फर्श पर, कैसे बाहर जाय...
"लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर -- ऋतुचर्या यदि पृथ्वी २३.४ डिग्री पर झुकी न होती तो इतनी ऋतुयें न होतीं, तापमान सम रहता। यह हमारा भाग्य है कि हमारे यहाँ ६ ऋतुयें हैं और संसार में जितनी भी प्रकार की जलवायु है, वे किसी न किसी अंश में हमारे देश में उपस्थित है। व्यक्ति की कफ, पित्त, वात प्रकृति, दिन रात का परिवर्तन और ऋतुओं का परिवर्तन, ये तीनों कारक शरीर को विशिष्ट रूप से प्रभावित करते हैं और इसे समझाने के लिये वाग्भट्टजी ने ऋतुचर्या के नाम से एक पूरा अध्याय लिखा है। ऋतुसंबंधी बातों पर ध्यान देंगे तो याद आता है कि हमारे पूर्वजों ने ऋतु के अनुसार खाद्य अखाद्य की एक लम्बी सूची हमें बतायी है, आइये उनके आधार जान लें... -- कार्टून :- चाह मिटी, चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह कबीरा काजल कुमार के कार्टून |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंपूरा चर्चा मंच होली मय हो गया है |गुजिया की मिठास मुंह में घुल रही है | आप सब को होली पर अग्रिम शुभ कामनाएं |
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |
बेहतरीन पठनीय लिंकों के चयन के साथ बहुत ही सुन्दर होली मय प्रस्तुतिकरण,आभार।
जवाब देंहटाएंअत्यन्त रोचक व पठनीय सूत्र। आभार।
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति राजीव भाई , व अच्छे सूत्र , मंच को धन्यवाद
जवाब देंहटाएंनया प्रकाशन -: उपग्रह क्या है ? { What is the satelite ? }
सुंदर शनिवारीय होली चर्चा । उलूक का सूत्र "इस बार भी चढ़ जायेगा रंग कहाँ कुछ नहीं बतायेगा" शामिल करने पर आभार राजीव।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सुन्दर रचनओं का संकलन है
जवाब देंहटाएंमुझे शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार आपका
भाई, गलतीसे आपकी टिपण्णी मेरे ब्लॉग पर से हट गयी है
मुझे खेद है माफ़ी चाहती हूँ !
बहुत सुन्दर और सुगठित सूत्र में लिंक्स संयोजन।
जवाब देंहटाएंसुन्दर पठ्नीय विषयों का समावेश कर बढ़ियाँ प्रस्तुति।
आदरणीय राजीव जी, हार्दिक बधाई।
सभी बंधुओं को होली की शुभकामनायें।
बहुत उम्दा रोचक सूत्र ...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST - फिर से होली आई.
बहुत सुन्दर होलीमय चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार भाई राजीव कुमार झा जी।
बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंसबको होली की हादिक शुभकामनायें!
बहुत बढ़िया ..होली की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा ..हर लिंक एक नए रंग को प्रस्तुत करती हुयी .. इनके मध्य मुझे स्थान देने के लिए हार्दिक आभार .. होली की हार्दिक शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन । इन रचनाओं में से कुछ तो पहले ही पढी हुई हैं । बाकी सभी पढी जाएंगी
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान दिया आभार ।
हटाएंसुन्दर चर्चा मंच सजाया ,
जवाब देंहटाएंउसमें हमको भी बिठलाया।
जवाब देंहटाएंVirendra Kumar Sharma16 March 2014 00:44
“And you?”
“Me……
The man was hesitant
but then
he mumbled slowly,
“Friend…..
I am in search
of my identity.
very true today there is crisis of existentialism .True depiction of once search for once identity .
--
जवाब देंहटाएंऋतुचर्या
यदि पृथ्वी २३.४ डिग्री पर झुकी न होती तो इतनी ऋतुयें न होतीं,
तापमान सम रहता। यह हमारा भाग्य है कि
हमारे यहाँ ६ ऋतुयें हैं और संसार में जितनी भी प्रकार की जलवायु है,
वे किसी न किसी अंश में हमारे देश में उपस्थित है।
व्यक्ति की कफ, पित्त, वात प्रकृति,
दिन रात का परिवर्तन और ऋतुओं का परिवर्तन,
ये तीनों कारक शरीर को विशिष्ट रूप से प्रभावित करते हैं
और इसे समझाने के लिये वाग्भट्टजी ने
ऋतुचर्या के नाम से एक पूरा अध्याय लिखा है।
ऋतुसंबंधी बातों पर ध्यान देंगे तो याद आता है कि
हमारे पूर्वजों ने ऋतु के अनुसार खाद्य अखाद्य की
एक लम्बी सूची हमें बतायी है,
आइये उनके आधार जान लें...
प्रवीण पाण्डेय
मोती ही मोती हैं जानकारी के इस श्रृंखला में चुन के देखें।
हेमन्त और शिशिर में शीत वात की चादर और गर्म कपड़े शरीर की ऊष्मा को बाहर जाने से रोकते हैं, जिससे जठराग्नि बढ़ती है। जब जठराग्नि बढ़ी हो तो उस समय ऐसा भोजन करना चाहिये जो गरिष्ठ हो और उसे पचने में अधिक समय लगे। ऐसा नहीं करने पर किया हुआ भोजन शीघ्र ही पच जाता है और शेष बची अग्नि रसादि धातुओं को भी पचाने का कार्य करने लगती है, जो वातकारक होता है। उस समय वात बढ़ने से अग्नि को और बल मिलता है और वह और भड़कती है, जब तक वह शमित न हो जाये। इस ऋतु में भूखे रहने से शरीर की हानि होती है। यही समय होता है कि हम अपने शरीर का अधिकतम पोषण कर सकते हैं, इस समय का खाया सब पच जाता है। कितने सुखद आश्चर्य की भी बात है कि प्रकृति भी इस समय मुक्त हस्त से सब लुटाती है, खेत, खलिहान, पेड़, पौधे आदि बस जीवों के पोषण में रत दीखते हैं।
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर विवरण प्रकृति और शरीर के बीच लया ताल का।अनुनाद का।
सुधरी हुई जीवन शैली ,लाइफ स्टाइल डिज़ीज़ीज़ से छुटकारे का बढ़िया सूत्र है। बढ़िया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुधरी हुई जीवन शैली ,लाइफ स्टाइल डिज़ीज़ीज़ से छुटकारे का बढ़िया सूत्र है। बढ़िया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
"जब-जब मक्कारी फलती है, आजादी मुझको खलती है"
उच्चारण
बहुत सुन्दर बिम्ब
जवाब देंहटाएंकिसी के समझ
में आ पायेगा
रेडियो कुछ कहेगा
टी वी कुछ दिखायेगा
रंगों का गणित
बहुत सरल तरीके
से हल किया हुआ
अखबार भी बतायेगा
हर कोई कहेगा
जायेगा तो “आप”
के साथ ही
इस बार जायेगा
अत्यन्त रोचक व पठनीय सूत्र। आभार।
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