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सोमवार, मार्च 24, 2014

लेख़न की अलग अलग विधाएँ (चर्चामंच-1561)

सर्वप्रथम माँ सरस्वती को प्रणाम और आप सभी को प्रणाम 
मैंने आज की चर्चा में कोशिश किया है, कि ''लेखनी/अभिव्यक्ति'' के अलग अलग आयामों को आप सबके सामने रखूँ।
आज 
''ग़ज़ल/ गीत/ नज़्म/ छंद मुक्त कविता/ दोहा छंद/ कुण्डलिया छंद/ लघु कथा/ कहानी/ ख़बर'' 
लेखन विधाओं को आप सब के सामने, एक जगह रखूँ।
कहाँ तक सफल हुआ, ये आप सबकी प्रतिक्रियाएँ ही बता पाएगी। 
मैं कोशिश कर रहा हूँ।

लेखन की सभी विधाओं में ''छंद'' सबसे पौराणिक विधा है, इसलिए आगाज़ वहीँ से करता हूँ।

चाहे कोई भी विधा हो आदरणीय ''संजय वर्मा 'सलिल' जी और आदरणीय ''रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी, निपुण हैं।
आज इनके कुछ दोहे और छंद, आप सबके सामने
आदरणीय रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी द्वारा दोहा छंद
-२-
कुण्डलिया छंद में जो नाम मेरे दिमाग़ में बहुत तेज़ी से कौंधती हैं, 
आदरणीय ''रविकर'' जी और आदरणीय ''कल्पना रामानी'' जी और आदरणीय ''सरिता भाटिया'' जी 
आज इनके कुछ कुण्डलिया छंद, आप सबके सामने
आदरणीय कल्पना रामानी जी द्वारा कुण्डलिया छंद

सीमा रक्षा हित खड़े सीना तान जवान

-३-
आदरणीय रविकर जी द्वारा कुण्डलिया छंद

रविकर ले हित-साध, आप मत डर खतरे से

-४-
आदरणीय सरिता भाटिया जी द्वारा कुण्डलिया छंद
बैठ अकेले सोचती ,तुमको दिन और रात
-५-

लघु कथा लिखने में कई बार सम्मानित हो चुकी 
आज इनकी ये लघु कथा पढ़ते हैं 
चुल्लू भर पानी ( लघु कथा )
-६-
कहानी/कथा लिखना बेहद कठिन कार्य है क्यूंकि इसमें पाठक रूचि का ध्यान रखते हुए, उन्हें कहानी से बाँधे रखना पड़ता है, अगर जहाँ भी लचीला व्यक्तव्य लगा, वहीँ पाठक पढ़ना छोड़ देते हैं। 
आज कहानी में आदरणीय साधना वैद जी द्वारा ये कहानी पढ़ते हैं
-७-
छंद मुक्त कविता लिखनी भी इतनी आसान नहीं, जितना इसको लिखने की, हम सब आज होड़ देख रहे हैं। दर असल छंद मुक्त कविता लिखने से पहले छंद की जानकारी होना बहुत ही ज्यादा ज़रूरी है। 
छंद मुक्त कविता में जिनकी अभिव्यक्ति ज्यादा आकर्षित करते/करती हैं 
आज उनकी कुछ कवितायें

आदरणीय मीना चोपड़ा जी द्वारा
उन्मुक्त
-८-
आदरणीय सुनीता सराफ़ जी द्वारा 

-९-
आदरणीय कालीपद प्रसाद जी द्वारा 
-१०-
आदरणीय रमा शर्मा जी द्वारा

बचपन

-११-

ग़ज़ल जिसके बिना कोई भी महफ़िल अधूरी सी लगती रहती है
ग़ज़ल लिखने और कहने से शायद ही कोई क़लमकार अपने को रोक पता है
पर ग़ज़ल लिखनी या कहनी आसान नहीं 
आइये कुछ ग़ज़ल पढ़ते हैं 
आदरणीय सिया सचदेव जी, जो आज ग़ज़ल की दुनियाँ में बहुत तेज़ी से उभर रही हैं


-१२-
आदरणीय रघुनाथ मिश्र जी ग़ज़ल में निपुण हैं इनके द्वारा 

-१३-

गीत/नज़्म ये ऐसी लेखनी है जिसमें मन झूमने, श्रद्धा में सर झुकने और जलने लगते हैं 
जहाँ प्रेम गीतों को पढ़के प्रेम रस में सराबोर हो जाते हैं, तो राष्ट्र गीतों को पढ़के भाव विभोर, तो विरह गीत को पढ़के जलने लगते हैं 
आईए एक नज़र इन गीतों पर डालते हैं
आदरणीय कल्पना रामानी जी द्वारा वीर सपूतों की याद रची ये बहुत ही लाज़वाब गीत
-१४-
आदरणीय रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी द्वारा रची ये नज़्म जो तरो-ताज़ा और नया जोश भर रही है
-१५-
एक नज़्म लिखने की मैंने (अभिषेक कुमार ''अभी'') भी कोशिश की है, जिसमें विरह का भाव है 
आप सबकी प्रतिक्रिओं का इंतज़ार 
-१६-

ख़बर या रिपोर्टिंग लिखना एक आर्ट/कला है, क्यूंकि इसमें शब्दों का सटीक चुनाव और संयोजन अहम् होता है।
एक नज़र
आदरणीय वीरेंदर कुमार शर्मा जी द्वारा ख़बर
-१७-
आदरणीय सुगन्धा जी की एक आर्टिकल
-१८-
आदरणीय संजीव चौहान जी द्वारा एक आर्टिकल
-१९-
चलते चलते एक बहुत ही शानदार और जानदार बेवाक अभिव्यक्ति 
आदरणीय सुशील कुमार जोशी जी का उलूक टाइम्स से 

जिसकी समझ में नहीं आती है वही समझा जाता है

-२०-
आज की चर्चा को, अब में अपनी इस मुक्तक से विराम देता हूँ 


लहू का एक कतरा भी, बदन में है, मिरे जबतक
तमन्ना, सर परस्ती की, रहेगी सीने में, तबतक

अदा कर ही नहीं सकते, वतन का क़र्ज़ जो हमपर
करे कोई, गुस्ताख़ी शान में, तो बैठे घर कबतक
-अभिषेक कुमार ''अभी''
--
"अद्यतन लिंक"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
--
.....सियासत के काफिले . 
हमको बुला रहे हैं सियासत के काफिले , 
सबको लुभा रहे हैं सियासत के काफिले . ...
MushayeraपरShalini Kaushik
--
--
एक दिन 

"उठो न अभी भी सोये हो क्या ?" -  
फ़ोन पर उस मीठी सी आवाज़ ने राज के कानो में मिश्री घोल दी...
तमाशा-ए-जिंदगी पर 
Tushar Raj Rastogi 
--
--
रबर बैंड 

कुछ अलग सा पर गगन शर्मा
--
पानी को ठण्डा रखती है,
मिट्टी से है बनी सुराही।
बिजली के बिन चलती जाती,
देशी फ्रिज होती सुखदायी...
--
--

22 टिप्‍पणियां:

  1. वाह, एकदम अलग तरह की चर्चा। आभार!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुन्दर बयार है गज़ल की मौसम पे खुमार छाया है ,

      गज़ल का मौसम छाया है ,चर्चा ने हड़काया है।

      हटाएं
  2. विविध विधाओं के दर्शन, सुन्दर सूत्रों के माध्यम से।

    जवाब देंहटाएं
  3. नयापन लिए हुए सुन्दर चर्चा।
    आपका आभार आदरणीय अभिषेक कुमार "अभी" जी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आप आये चर्चा मंच की रौनक बढ़ाए
      आपका हार्दिक आभार है।

      हटाएं
  4. अत्यंत रोचक एवं अभिनव तरीके से प्रस्तुतिकरण किया है आज के चर्चामंच का ! मेरी प्रस्तुति को भी सम्मिलित किया आभारी हूँ !

    जवाब देंहटाएं
  5. एक नये अंदाज से प्रस्तुत किया है आज की चर्चा को । काबिले तारीफ है अभिषेक की मेहनत । उलूक का अंदाज 'जिसकी समझ में नहीं आती है वही समझा जाता है' शामिल किया जिसके लिये दिल से आभार है :)

    जवाब देंहटाएं
  6. उत्तर
    1. आप आये चर्चा मंच की रौनक बढ़ाए
      आपका हार्दिक आभार है।

      हटाएं
  7. waah charcha ka alag andaaj , bahut pasand aaya sabhi links acche lage badhai

    जवाब देंहटाएं


  8. बहुत मार्मिक व्यंग्य विडंबन हमारे प्रजातन्त्र का

    चुल्लू भर पानी ( लघु कथा )
    चिलचिलाती धूप मे भी तेरह –चौदह वर्षीय किशोर सिर पर मलबे से भरी टोकरी उठाए बहुमंज़िली इमारत से नीचे उतर रहा था । उतरते उतरते उसे चक्कर आने लगा उसने सुबह से कुछ खाया नहीं था । उसके घर मे कोई बनाने वाला नहीं था , उसकी माँ बहुत बीमार थी उसके लिए दवा का बंदोबस्त जो करना था उसी के वास्ते वह काम करने आया था । चक्कर आने पर वह वहीं सीढियों पर दीवाल से सिर टिका कर बैठ गया । ठेकेदार उधर से चला आ रहा था उसे बैठे देख गरजा – “ अबे ओ! कामचोर कहीं के ! जरा सा काम किया नहीं कि बैठ गए मुंह लटका कर ।“ वह धीरे से बोला –“साहब दो घूंट पानी” फिर से वहीं ढेर हो गया । ठेकेदार ने जोर की लात उसके सिर पर मारी, वह लड़खड़ाता हुआ सीढ़ियों से नीचे जा गिरा । उसके सिर व मुंह से खून निकल पड़ा था । ठेकेदार गुर्राया -“जा मर चुल्लू भर पानी मे , एक ढेला भी नहीं मिलेगा तुझे ।“ वह धीरे से बोला –“ साहब दो घूंट पीने को नहीं है ,मरने को चुल्लू भर कहाँ से दोगे ?” सभी उसका मुंह ताकते रह गए । कितनी सटीक चोट मारी थी किशोर ने ।
    बहु-रंगी प्रस्तुति सभी विधाओं की प्रतिनिधिक सेतु लिए हुए है

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहद सशक्त सुन्दर पोस्ट

    लहू का एक कतरा भी, बदन में है, मिरे जबतक
    तमन्ना, सर परस्ती की, रहेगी सीने में, तबतक

    अदा कर ही नहीं सकते, वतन का क़र्ज़ जो हमपर
    करे कोई, गुस्ताख़ी शान में, तो बैठे घर कबतक
    -अभिषेक कुमार ''अभी''

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  10. अति सुन्दर पर्यावरण सम्मत पोस्ट ग्रीन पोस्ट ग्रीन नौनिहालों के लिए

    "देशी फ्रिज"

    पानी को ठण्डा रखती है,
    मिट्टी से है बनी सुराही।
    बिजली के बिन चलती जाती,
    देशी फ्रिज होती सुखदायी...
    हँसता गाता बचपन

    जवाब देंहटाएं
  11. एक नज़्म लिखने की मैंने (अभिषेक कुमार ''अभी'') भी कोशिश की है, जिसमें विरह का भाव है
    आप सबकी प्रतिक्रिओं का इंतज़ार

    विरह की आग ऐसी है, क़ि हम जलते हैं रात-दिन
    ये सोचा, करते हैं अक्सर, कहाँ गये, वो पल छिन
    --अभिषेक कुमार झा ''अभी''

    जल के ख़ाक हुए एक दिन

    सुन्दर मनोहर

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    उत्तर
    1. अभूतपूर्व हौसला अफ़ज़ाई के लिए आदरणीय सर आपका कृतग्य हूँ। बहुत लाज़वाब रूप से अपने हर लिंक्स को पढ़ा और फिर समीक्षा दी है।
      सादर आभार

      हटाएं
  12. सुन्दर बयार है गज़ल की मौसम पे खुमार छाया है ,

    गज़ल का मौसम छाया है ,चर्चा ने हड़काया है।


    आदरणीय रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी द्वारा रची ये नज़्म जो तरो-ताज़ा और नया जोश भर रही है

    अदब को भुलाया है, मन को भटकाया है!
    धुंधलका छाया है, नया गीत आया है!!

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  13. निखार पर हैं इन दिनों आपकी सब प्रस्तुतियां

    चलते चलते एक बहुत ही शानदार और जानदार बेवाक अभिव्यक्ति
    आदरणीय सुशील कुमार जोशी जी का उलूक टाइम्स से

    जिसकी समझ में नहीं आती है वही समझा जाता है

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  14. बढ़िया चर्चा | मेरी कहानी शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद् .....

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  15. वाह.. बहुत खूब links
    धन्यवाद् .....

    जवाब देंहटाएं
  16. अभूतपूर्व हौसला अफ़ज़ाई के लिए आप सभी का कृतग्य हूँ।

    जवाब देंहटाएं

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