आज की चर्चा में आप सबका हार्दिक स्वागत है
चुनावी बिगुल बज चुका है , नेता रैली पर रैली कर रहे हैं और मुलाज़िम चुनावी रिहर्सल में व्यस्त हैं आखिर लोकतंत्र का महापर्व जो आया है, ये बात और है कि सभी पर्वों की भाँति इसे भी दूषित करने वाले लोगों की कमी नहीं | लेकिन अगर चाहें तो सुधार ला सकते हैं क्यों क्या ऐसा नहीं हो सकता ?
चलते हैं चर्चा की ओर














आभार
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"अद्यतन लिंक"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
सिर्फ एक दुआ ...
जब तक आप के बीच रहूँ !!!

आज मैं अपने जीवन के, ७२ बसंत पुरे कर चूका हूँ
और ७३ वें बसंत में कदम रख रहा हूँ ...
सफ़र कहाँ तक है ,कब तक है ,ये भविष्य के गर्भ में छिपा है ...
आप से सिर्फ एक बात का इच्छुक हूँ,
आप के स्नेह का ,आप की दुआ का ,
स्वस्थ रहूँ ..दुआ कीजिये ...
--
क्या भाजपा किसी बहुत बड़ी कंपनी की
एक कंपनी है ?

तेताला प Er. Ankur Mishra'yugal'
--
सेहत के लिए इस दौर का
सबसे बड़ा ख़तरा बन रही है
हमारी गंधाती हुई हवा

आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
--
गीतों में देखें संसार--(भाग--3)

Fulbagiya पर हेमंत कुमार
--
बिगड़ जाएँ....

यही है चाह ख़ामोशी टेढ़ा मुंह कर ले और बातें बिगड़ जाएँ !!
ख्वाब इतने हो बेशक्ल कि रातें बिगड़ जाएँ...
Rhythm of words... पर Parul kanani
--
पुस्तक समीक्षा... शब्द संवाद ....

डा श्याम गुप्त....भारतीय नारी
--
"नन्हे सुमन की वन्दना"
अब ध्ररा पर ज्ञान की गंगा बहाओ,
--
"अद्यतन लिंक"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
सिर्फ एक दुआ ...
जब तक आप के बीच रहूँ !!!

आज मैं अपने जीवन के, ७२ बसंत पुरे कर चूका हूँ
और ७३ वें बसंत में कदम रख रहा हूँ ...
सफ़र कहाँ तक है ,कब तक है ,ये भविष्य के गर्भ में छिपा है ...
आप से सिर्फ एक बात का इच्छुक हूँ,
आप के स्नेह का ,आप की दुआ का ,
स्वस्थ रहूँ ..दुआ कीजिये ...
चर्चा मंच परिवार की ओर से
आपका हार्दिक शुभकामनाएँ..
यादें...पर Ashok Saluja--
क्या भाजपा किसी बहुत बड़ी कंपनी की
एक कंपनी है ?

तेताला प Er. Ankur Mishra'yugal'
--
सेहत के लिए इस दौर का
सबसे बड़ा ख़तरा बन रही है
हमारी गंधाती हुई हवा
आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
--
गीतों में देखें संसार--(भाग--3)

Fulbagiya पर हेमंत कुमार
--
बिगड़ जाएँ....

यही है चाह ख़ामोशी टेढ़ा मुंह कर ले और बातें बिगड़ जाएँ !!
ख्वाब इतने हो बेशक्ल कि रातें बिगड़ जाएँ...
Rhythm of words... पर Parul kanani
--
पुस्तक समीक्षा... शब्द संवाद ....

डा श्याम गुप्त....भारतीय नारी
--
"नन्हे सुमन की वन्दना"
तान वीणा की सुनाओ कर रहे हम कामना।
माँ करो स्वीकार सुमनों की प्रबल आराधना।।
अब ध्ररा पर ज्ञान की गंगा बहाओ,
तम मिटाकर सत्य के पथ को दिखाओ,
लक्ष्य में बाधक बना अज्ञान का जंगल घना।
माँ करो स्वीकार सुमनों की प्रबल आराधना...
नन्हे सुमन
बहुत सुन्दर चर्चा।
ReplyDeleteचर्चा मंच के सबसे विश्वसनीय चर्चाकार
आदरणीय दिलबाग विर्क जी की निष्ठा
और श्रम को नमन करता हूँ।
आभार आपका।
सुंदर सूत्र संयोजन दिलबाग का । उलूक का सूत्र "एक चोला एक देश से ऊपर होता चला जायेगा" शामिल किया आभार ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चर्चा।
ReplyDeleteरोचक व पठनीय सूत्र।
ReplyDeleteबढ़िया सूत्र प्रस्तुति भी बढ़िया , विर्क साहब व मंच को धन्यवाद !
ReplyDeleteबुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ प्राणायाम ही कल्पवृक्ष ~ ) - { Inspiring stories part -3 }
आज मैं अपने जीवन के, ७२ बसंत पुरे कर चूका हूँ
ReplyDeleteऔर ७३ वें बसंत में कदम रख रहा हूँ ...
सफ़र कहाँ तक है ,कब तक है ,ये भविष्य के गर्भ में छिपा है ...
आप से सिर्फ एक बात का इच्छुक हूँ,
आप के स्नेह का ,आप की दुआ का ,
स्वस्थ रहूँ ..दुआ कीजिये ...
चर्चा मंच परिवार की ओर से
आपका हार्दिक शुभकामनाएँ..
यादें...पर Ashok Saluja
सलामत रहो -रोशन तुम्ही से दुनिया रौनक हो तुमही जहां की (ब्लॉग )
विविध रूप रस गंध लिए बेहतरीन चर्चा संक्षिप्त ,सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर है आराधना के स्वर :
ReplyDelete"नन्हे सुमन की वन्दना"
तान वीणा की सुनाओ कर रहे हम कामना।
माँ करो स्वीकार सुमनों की प्रबल आराधना।।
अब ध्ररा पर ज्ञान की गंगा बहाओ,
तम मिटाकर सत्य के पथ को दिखाओ,
लक्ष्य में बाधक बना अज्ञान का जंगल घना।
माँ करो स्वीकार सुमनों की प्रबल आराधना...
नन्हे सुमन
मैं इस उम्मीद पे डूबा के तू बचा लेगा
ReplyDeleteमैं बुझ गया तो हमेशा बुझ ही जाऊंगा ,
कोई चराग नहीं है जो फिर जला लेगा।
सुन्दर बंदिश है
मैं इस उम्मीद पे डूबा के तू बचा लेगा
मैं बुझ गया तो हमेशा बुझ ही जाऊंगा ,
कोई चराग नहीं है जो फिर जला लेगा।
सुन्दर बंदिश है
बहुत सुन्दर बहुत सटीक और चुनाव -गर्भित पोस्ट :
ReplyDeleteWednesday, March 26, 2014
एक चोला एक देश से ऊपर होता चला जायेगा
परिवार के परिवार
जहाँ बने हैं सेवादार
डेढ़ अरब लोगों का
बना कर एक बाजार
अगर लगाते हैं मेला
करते हैं खरीद फरोख्त
भेड़ बकरियों की तरह
कहीं खोखा होता है
कहीं होता है एक ठेला
ऐसे मैं अगर कोई
बदल भी लेता है
अपना चोला
तो तेरा दिल क्यों
खाता है हिचकोला
कुँभ के समय में ही
कोई डुबकी लगायेगा
गँगा मैय्या को
अपने पापों की
गठरी दे जायेगा
खुद सोच
पाँच साल कैसे
एक चोला चल पायेगा
सुन्दर सशक्त अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआशाएँ मुस्काती हैं
राजनीति को देख कर, अक्ल गयी चकराय !
ReplyDeleteकौन मसीहा मिले जों, पी.एम. उसे बने !!
आप की रचना अच्छी है !
shukriya sir ji!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सभी
ReplyDeleteरोचक ...शुक्रिया ....
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