मित्रों।
मंगलवार की चर्चा में
आप सबका स्वागत है।
आज की चर्चा में देखिए
मेरी पसंद के कुछ लिंक।
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बिटिया अक्षिता (पाखी) का जन्मदिन

बिटिया अक्षिता (पाखी) का जन्मदिन

चर्चा मंच की ओर से पाखी को जन्मदिन पर
ढेर सारा प्यार, शुभकामनाएँ और आशीर्वाद।
…अब आपका भी तो स्नेह और आशीष इन्हें चाहिए !!
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जानना प्रेम को ...
प्रेम का क्या कोई स्वरुप है?
कोई शरीर जिसे महसूस किया जा सके,
छुआ जा सके ...
या वो एक सम्मोहन है ...
गहरी नींद में जाने से ठीक पहले कि एक अवस्था,
जहाँ सोते हुवे भी जागृत होता है मन ...
स्वप्न मेरे.... पर Digamber Naswa
प्रेम का क्या कोई स्वरुप है?
कोई शरीर जिसे महसूस किया जा सके,
छुआ जा सके ...
या वो एक सम्मोहन है ...
गहरी नींद में जाने से ठीक पहले कि एक अवस्था,
जहाँ सोते हुवे भी जागृत होता है मन ...
स्वप्न मेरे.... पर Digamber Naswa
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ग़ज़ल - लेकर के अपने साथ....

*लेकर के अपने साथ तेज़-तुंद हवाएँ
सूरज के रिश्तेदार चिराग़ों को बुझाएँ...
डॉ. हीरालाल प्रजापति

*लेकर के अपने साथ तेज़-तुंद हवाएँ
सूरज के रिश्तेदार चिराग़ों को बुझाएँ...
डॉ. हीरालाल प्रजापति
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तलाश सम्पूर्ण की ...

'मैं' *रश्मि प्रभा*
एक बार फिर आपके सामने हूँ ...
* कैलाश शर्मा जी* के 'मैं' के साथ ...
मैं ...पर रश्मि प्रभा

'मैं' *रश्मि प्रभा*
एक बार फिर आपके सामने हूँ ...
* कैलाश शर्मा जी* के 'मैं' के साथ ...
मैं ...पर रश्मि प्रभा
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वे यकीन नहीं करते !
आज उतरते हुए गाड़ी से जो उनने देखा ,
कभी मीलों पैदल चलने से पड़े छालों की बात
सुनकर मेरी ही बातों पर वे यकीन नहीं करते।...
hindigen पर रेखा श्रीवास्तव
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"ग़ज़ल-हमको अपना बना गया कोई"
(गुरूसहाय भटनागर बदनाम)
(गुरूसहाय भटनागर बदनाम)
अपना ज़लवा दिखा गया कोई
दिल को हँसकर जला गया कोई
दर्दे ग़म फिर बढ़ा गया कोई
हम को अपना बना गया कोई...
उच्चारण
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मुस्कुराती कलियाँ--
1
शूल बेरंग
मुस्कुराती कलियाँ
विजय रंग
2
बीहड़ रास्ते
हिम्मत न हारना
sapne(सपने) पर shashi purwar
1
शूल बेरंग
मुस्कुराती कलियाँ
विजय रंग
2
बीहड़ रास्ते
हिम्मत न हारना
जीने के वास्ते।...

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निराकार ,निर्गुण ,निर्विशेष ब्रह्म का एक गुण है :वह एक साथ सब जगह मौज़ूद होता है। निर्गुण का मतलब गुणहीना नहीं है बल्कि यह है वह चरम चक्षुओं से दिखलाई नहीं देता है दिव्यचक्षु चाहिए उसे देखने के लिए। हालाकि वह स्वयं सब कुछ देखता है सब कारणों का कारण है लेकिन उसका स्वयं का कोई कारण नहीं है। विज्ञानियों ने उसे गॉड पार्टिकिल नाम दे दिया। हिग्स कण कह दिया। अब कहा जा रहा है इस कण में भी इस से सूक्ष्म संरचनाएं निहित हैं।जिनके संयोग से परस्पर आकर्षण से यह अस्तित्व में आता है। यानी द्रव्य के बुनियादी कण हिग्स पार्टिकिल से भी छोटे हैं।
वीरेन्द्र कुमार शर्मा
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आमन्त्रित करे यार-
*पार जो हो स्वर्गीय आन्नद पा जावे वह भरमार
मानें खुद को मेहमान गर यहाँ आप तो बहार हैं...
पथिक अनजाना
वीरेन्द्र कुमार शर्मा
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आमन्त्रित करे यार-
*पार जो हो स्वर्गीय आन्नद पा जावे वह भरमार
मानें खुद को मेहमान गर यहाँ आप तो बहार हैं...
पथिक अनजाना
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तकनीक दृष्टा ‹ ब्लॉग, सोशल मीडिया,
एसईओ और गैजेट पर
Vinay Prajapati
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"बढ़े चलो-बढ़े चलो"
है कठिन बहुत डगर, चलना देख-भालकर,
धूप चिलचिला रही, बढ़े चलो-बढ़े चलो!!
"धरा के रंग"
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वो जो ढाँप कर नकाब मिलते हैं
वो जो ढाँप कर नकाब मिलते हैं
दोस्त बन कर ही मुझे ठगते हैं
प्याज की परत से जिनके छिलके उतरते हैं
एक चेहरे में उनके हजार चेहरे दिखते हैं ...
ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र
पर vandana gupta
वो जो ढाँप कर नकाब मिलते हैं
दोस्त बन कर ही मुझे ठगते हैं
प्याज की परत से जिनके छिलके उतरते हैं
एक चेहरे में उनके हजार चेहरे दिखते हैं ...
ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र
पर vandana gupta
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बंटवारा
चलो आज जहां बांट लें
तुम मेरे, बाकी सब तुम्हारा
तुम्हारी हंसी मेरी और
जहांभर की खुशियां...
swatikisoch पर swati jain
चलो आज जहां बांट लें
तुम मेरे, बाकी सब तुम्हारा
तुम्हारी हंसी मेरी और
जहांभर की खुशियां...
swatikisoch पर swati jain
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मन समंदर हो चला ---
भर कर पीड़ जग का सारा
मन समंदर हो चला
उच्श्रृंखल विकल लहरें भावावेश में
उठती गिरती तोड़ कर सीमाओं का पाश...
काव्य वाटिका पर Kavita Vikas
भर कर पीड़ जग का सारा
मन समंदर हो चला
उच्श्रृंखल विकल लहरें भावावेश में
उठती गिरती तोड़ कर सीमाओं का पाश...
काव्य वाटिका पर Kavita Vikas
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मित्रों!
अन्त में निवेदन यह है कि
आप अपने कमेंट सम्बन्धित लिंक पर जाकर अवश्य दीजिए।
कुछ लोग अपनी टिप्पणी में लिखते हैं कि
यदि लिंक के बारे में कुछ टिप्पणी भी होती तो
बहुत अच्छा होता।
लेकिन मेरा मानना है कि यदि चर्चाकार ही
लिंक पर टिप्पणी कर देगा तो
पाठक क्या करेंगे?
मेरे विचार से पिष्टपेषण।
अन्त में निवेदन यह है कि
आप अपने कमेंट सम्बन्धित लिंक पर जाकर अवश्य दीजिए।
कुछ लोग अपनी टिप्पणी में लिखते हैं कि
यदि लिंक के बारे में कुछ टिप्पणी भी होती तो
बहुत अच्छा होता।
लेकिन मेरा मानना है कि यदि चर्चाकार ही
लिंक पर टिप्पणी कर देगा तो
पाठक क्या करेंगे?
मेरे विचार से पिष्टपेषण।
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आज के लिए बस इतना ही।
रोचक और पठनीय सूत्र..
ReplyDeleteमेरी और से पाखी को जन्म दिन पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
ReplyDeleteसुन्दर सूत्र संयोजन |
मेरी रचना चुनने के लिए धन्यवाद सर |
सुंदर चर्चा । टिप्पणी देने के यहाँ कौन ब्लागिंग करने आ रहा है ? मेनैं लिख के चिपका दिया है अब पढ़ना है तो आ जाना की सोच । नये ब्लागरों का हौसला आफजाई करने का समय किस के पास है या फिर मेरे यहाँ नहीं की टिप्प्णी तूने तेरे यहाँ मैं क्यों करूँ ? शुरुआत पर लगा था ये शायद नया पेड़ है कोपलें कभी तो फूटेंगी यहाँ भी लेकिन जैसा मैं सड़क और बाजार मैं होता हूँ वैसा ही यहाँ भी रहूँगा क्यों बदलूँगा ? कुछ ब्लागर हैं जो लिखते हैं पढ़ते हैं और टिप्प्णी भी करते हैं । वैसे क्यों करनी है टिप्प्णी अखबार रोज छपते हैं सब पढ़ते हैं टिप्पणी करने कौन कहाँ जाये । जो चल रहा था अच्छा चल रहा था जो चल रहा है अच्छा चल रहा है जो चलेगा आगे को वो दौड़ेगा । तो लिखिये चिपकाइये और भूल जाइये । नारद जी बता के गये हैं । उलूक की समझ में आ गई थी तभी ये बात । अब आप टिप्प्णी करने के लिये मत भड़काइये । नाराज ना होईयेगा किसी से ना कहियेगा :)
ReplyDeleteउलूक का आभार उसके सूत्र "उससे ध्यान हटाने के लिये कभी ऐसा भी लिखना पड़ जाता है" को आज की चर्चा में स्थान दिया ।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletenice charcha aabhar shastri ji
ReplyDeleteबहुत अच्छे व रोचक लिंक्स बढ़िया प्रस्तुति के साथ , मंच व शास्त्री जी को धन्यवाद !
ReplyDeleteनया प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ प्राणायाम ही कल्पवृक्ष ~ ) - { Inspiring stories part -3 }
विस्तृत चर्चा आज की ... आभार मुझे भी जगह देने का ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और प्रभावी लिंक्स...रोचक चर्चा...आभार
ReplyDeleteडॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सार्थक चर्चा संजोई है आपने ....बधाई ...
nice presentation .thanks to give place my post .
ReplyDeleteचर्चा मंच पर अपनी रचना को देख कर बहुत अच्छा लगा क्योंकि एक लम्बे विराम के बाद फिर से कलम उठाई थी। लग रहा था कि कोई देखेगा भी या नहीं लेकिन वाकई ख़ुशी हुई कि कुछ मंच अपने काम को बड़ी ईमानदारी से निभा रहे हैं। बहुत बहुत आभार !
ReplyDeletebahut sundar charcha , khud ko bhi dekhkar accha laga abhaar chacha ji
ReplyDeleteकई नए लिंक्स
ReplyDeleteआभार आपका
बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ..
ReplyDeleteआभार
धन्यवाद ! मयंक जी ! मेरी रचना ''*लेकर के अपने साथ तेज़-तुंद हवाएँ .'' को शामिल करने का
ReplyDeleteअच्छे वैचारिक दृष्टिकोण पर आधारित है आज का चर्चा मंच ! यथार्थवादी युग में कोरी कल्पना का क्या काम !
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