मित्रों!
मंगलवार के लिए मेरी पसंद के लिंक देखिए।
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सैलाव विचारों का
भयावह काली रात में विचारों का सैलाव है
एक अजनवी साया चारों ओर से घेरे है |
अनसुनी आवाज बहुत दूर से आती है
एक कहानी लुका छिपी करती
फिर लुप्त हो जाती है...
Akanksha पर Asha Saxena
भयावह काली रात में विचारों का सैलाव है
एक अजनवी साया चारों ओर से घेरे है |
अनसुनी आवाज बहुत दूर से आती है
एक कहानी लुका छिपी करती
फिर लुप्त हो जाती है...
Akanksha पर Asha Saxena
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एक आइना पारदर्शी सा...
...आइना तो सच बोलता है जब,
फ़िर मुझसे कुछ क्यूँ नही कहता है,
आइना तोड़ कर खत्म तो कर दूँ सब,
पर टुकड़ों में मेरा ही अक़्स रहता है।
...आइना तो सच बोलता है जब,
फ़िर मुझसे कुछ क्यूँ नही कहता है,
आइना तोड़ कर खत्म तो कर दूँ सब,
पर टुकड़ों में मेरा ही अक़्स रहता है।
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"ग़ज़ल-आदमी ही बन गये हैं"
बस्तियों में आ गये हैं, छोड़कर वन की डगर
आदमी से बन गये हैं, जंगलों के जानवर
सादगी की आदतें, कैसे सलामत अब रहें
झूठ के वातावरण में, पा गये हैं सब हुनर...
उच्चारण
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पूरी होती एक दुआ ...
कुछ बातों को ज़हन में आने से रोकना
मुमकिन नहीं होता ...
कुछ पल हमेशा तैरते रहते हैं
यादों के गलियारे में ...
कुछ एहसास भी
मुद्दतों ताज़ा रहते हैं ...
स्वप्न मेरे.... पर Digamber Naswa
कुछ बातों को ज़हन में आने से रोकना
मुमकिन नहीं होता ...
कुछ पल हमेशा तैरते रहते हैं
यादों के गलियारे में ...
कुछ एहसास भी
मुद्दतों ताज़ा रहते हैं ...
स्वप्न मेरे.... पर Digamber Naswa
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What is Sleep apnea?
What can be done ?
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आरोग्य और पर्यावरण समाचार :६५ के पार बुढ़ापे का एक रोग होता अल्ज़ाइमर्स जिसमें याददाश्त खासकर शॉर्ट टर्म मेमोरी छीजने लगती है। प्लाक जमा होने से न्यूरॉन विनष्ट होने लगते हैं। पता चला है इसकी आनुवंशिक किस्म लक्षण प्रगट होने के बाद बहुत धीरे धीरे न्यूरॉनों के अपविकास की और बढ़ती है। इस प्रकार चुपके चुपके अंदर खाने मस्तिष क्षतिग्रस्त होता रहता है न्यूरॉन क्षय होता रहता है लक्षणों के पूर्ण प्रगटीकरण से १० -२० बरस पहले न्यूरॉनों की भारी तबाही हो चुकी होती है
आपका ब्लॉग पर Virendra Kumar Sharma
What can be done ?
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आरोग्य और पर्यावरण समाचार :६५ के पार बुढ़ापे का एक रोग होता अल्ज़ाइमर्स जिसमें याददाश्त खासकर शॉर्ट टर्म मेमोरी छीजने लगती है। प्लाक जमा होने से न्यूरॉन विनष्ट होने लगते हैं। पता चला है इसकी आनुवंशिक किस्म लक्षण प्रगट होने के बाद बहुत धीरे धीरे न्यूरॉनों के अपविकास की और बढ़ती है। इस प्रकार चुपके चुपके अंदर खाने मस्तिष क्षतिग्रस्त होता रहता है न्यूरॉन क्षय होता रहता है लक्षणों के पूर्ण प्रगटीकरण से १० -२० बरस पहले न्यूरॉनों की भारी तबाही हो चुकी होती है
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क्यों हिन्दी भाषा नहीं पनप पा रही है Internet पर?
1995 में Internet को आम लोगों के लिए Publicly Open किया गया
और तब से लेकर आज तक लगभग 18 साल हो गए हैं
इंटरनेट को विकास करते हुए।
लेकिन Internet पर आज भी हिन्दी भाषा का अस्तित्व न के बराबर है।
अंग्रेजी व चीनी भाषा के बाद
दुनियां कि तीसरी सबसे ज्यादा बोली, समझी व लिखी जाने वाली
हमारी भाषा ‘हिन्दी’,
फिर भी अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है...
प्रस्तुतकर्ता Kuldeep Chand
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"मच्छरदानी"
नन्हे सुमन
जिसमें नींद चैन की आती।
वो मच्छर-दानी कहलाती।।
लाल-गुलाबी और हैं धानी।
नीली-पीली बड़ी सुहानी।।
छोटी, बड़ी और दरम्यानी।
कई तरह की मच्छर-दानी..
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मिले तज़ुर्बा जो दुनियाँ से
देश के चंद, सियारों से, बचके रहना भाई
आज यही तो लूटते हैं, अपना गहना भाई
देखभाल के ही हमेशा, इस दुनियाँ में चलना,
सफ़ेद लिबास काले लोग ने, है पहना भाई...
हालात-ए-बयाँ
अभिषेक कुमार "अभी"
अभिषेक कुमार "अभी"
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हिंदी साहित्य का अखाड़ा
इस कहानी में उपयुक्त हुए नाम, संस्थाए, जगह, घटनाएं इत्यादि का उपयोग सिर्फ और सिर्फ कहानी को मनोरंजक बनाने के लिए किया गया है। किसी भी व्यक्ति या संस्था से इनका कोई सम्बन्ध नहीं है, कृपया इस कथा को मुक्त हास्य में ले; पर/और दिल पर न ले !!! कथा में निहित व्यंग्य को समझिये ! धन्यवाद !
कहानियों के मन से
vijay kumar sappatti
इस कहानी में उपयुक्त हुए नाम, संस्थाए, जगह, घटनाएं इत्यादि का उपयोग सिर्फ और सिर्फ कहानी को मनोरंजक बनाने के लिए किया गया है। किसी भी व्यक्ति या संस्था से इनका कोई सम्बन्ध नहीं है, कृपया इस कथा को मुक्त हास्य में ले; पर/और दिल पर न ले !!! कथा में निहित व्यंग्य को समझिये ! धन्यवाद !
कहानियों के मन से
vijay kumar sappatti
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तेरे शाह की कंजरी
''ओ अमृता ! देख, तेरे शाह की कंजरी मेरे घर आ गई है । तेरी शाहनी तो खुश होगी न ! उसका शाह अब उसके पास वापस जो आ गया है । वो देख उस बदजात को तेरे शाह से ख़ूब ऐंठे और अब मेरे शाह की बाँहें थाम ली है । नहीं-नहीं तेरी उस कंजरी का भी क्या दोष, मेरे शाह ने ही उसे पकड़ लिया है । वो करमजली तो तब भी कंजरी थी जब तेरे शाह के पास थी, अब भी कंजरी है जब मेरे शाह के पास है ।''...
साझा संसार
डॉ. जेन्नी शबनम
''ओ अमृता ! देख, तेरे शाह की कंजरी मेरे घर आ गई है । तेरी शाहनी तो खुश होगी न ! उसका शाह अब उसके पास वापस जो आ गया है । वो देख उस बदजात को तेरे शाह से ख़ूब ऐंठे और अब मेरे शाह की बाँहें थाम ली है । नहीं-नहीं तेरी उस कंजरी का भी क्या दोष, मेरे शाह ने ही उसे पकड़ लिया है । वो करमजली तो तब भी कंजरी थी जब तेरे शाह के पास थी, अब भी कंजरी है जब मेरे शाह के पास है ।''...
साझा संसार
डॉ. जेन्नी शबनम
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किसे लानत भेजूँ...
किस एहसास को जियूँ आज ?
खुद को बधाई दूँ या
लानत भेजूँ उन सबको
जो औरत होने पर गुमान करती है
और सबसे छुपकर हर रोज़
पलायन के नए-नए तरीके सोचती है
जिससे हो सके जीवन का सुनिश्चित अंत...
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शब्दों के टुकड़े - भाग 5
(आलेख व चित्र: अनुराग शर्मा)
Anurag Sharma
(आलेख व चित्र: अनुराग शर्मा)
विभिन्न परिस्थितियों में कुछ बातें मन में आयीं और वहीं ठहर गयीं। जब ज़्यादा घुमडीं तो डायरी में लिख लीं। कई बार कोई प्रचलित वाक्य इतना खला कि उसका दूसरा पक्ष सामने रखने का मन किया। ऐसे अधिकांश वाक्य अंग्रेज़ी में थे और भाषा क्रिस्प थी। हिन्दी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत है...
* पिट्सबर्ग में एक भारतीय *पर Anurag Sharma
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आज क्या हुआ होगा...
मेरे देश में
इन सबके बीच एक बात सोचने वाली है कि न तो मुझे दिल्ली से कुछ लेना देना, न केजरीवाल से, न कांग्रेस से...न मोदी से...न लोकसभा २०१४ के चुनाव से- टोरंटो में रहता हूँ...कनाडा का नागरिक हूँ मगर मन है कि भारत भागता है हर पल...वहाँ क्या हो रहा है..
उड़न तश्तरी ....
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पिंकी के बिल्ले ---।
Fulbagiyaपरहेमंत कुमार
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कार्टून :- बुरी नज़र वाले तेरा मुँह काला
काजल कुमार के कार्टून
मेरे देश में
इन सबके बीच एक बात सोचने वाली है कि न तो मुझे दिल्ली से कुछ लेना देना, न केजरीवाल से, न कांग्रेस से...न मोदी से...न लोकसभा २०१४ के चुनाव से- टोरंटो में रहता हूँ...कनाडा का नागरिक हूँ मगर मन है कि भारत भागता है हर पल...वहाँ क्या हो रहा है..
उड़न तश्तरी ....
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पिंकी के बिल्ले ---।
Fulbagiyaपरहेमंत कुमार
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कार्टून :- बुरी नज़र वाले तेरा मुँह काला
काजल कुमार के कार्टून
बढ़िया प्रस्तुति व सूत्र , आ० शास्त्री जी व मंच को धन्यवाद
जवाब देंहटाएंप्रतिभागी - श्री राजेश कुमार मिश्रा ( आयुर्वेदाचार्य ) ~ रोग आपका इलाज हमारा ~
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसुन्दर सूत्र संयोजन |
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
सुंदर सूत्र संयोजन । अभिलेख का स्वागत । उल्लूक का सूत्र "आशा और निराशा के युद्ध का
जवाब देंहटाएंफिर एक दौर आ रहा है " को शामिल किया । आभार ।
सार्थक एवं पठनीय सूत्रों से सुसज्जित मंच ! मेरी प्रस्तुति को सम्मिलित किया आभारी हूँ !
जवाब देंहटाएंसुन्दर, रोचक और पठनीय सूत्र।
जवाब देंहटाएंआ० शास्त्री जी व मंच को बहुत बहुत धन्यवाद जो हमारे लोगो को मंच पे स्थान दिया व हिंदी की सेवा करने का मौका दिया , दिल से आभारी हूँ ॥ जय श्री हरि: ॥
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर परिचर्चा में आपने ''कविता/कहानी/ख़बर/ग़ज़ल'' सभी का समावेश करते हुए, लिंक्स संजोये हैं।
जवाब देंहटाएंइस उत्कृष्ट और परिपूर्ण चर्चा हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद।
मेरी ग़ज़लनुमा अभिव्यक्ति ''मिले तज़ुर्बा जो दुनिया से'' को स्थान देने के लिए हार्दिक आभारी हूँ
सादर
rochak pathniya links se saji charcha
जवाब देंहटाएंविस्तृत चर्चा संसार ... आभार मुझे भी शामिल करने का इस सफर में ...
जवाब देंहटाएंMeri rachna ko itna samman dene k liye bahut bahut abhaari hun. Aur is manch par itne achhi rachnaon ko padhkar bahut khush hun..bahut bahut shukriya..!
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन लिंक्स मिले इस चर्चा के माध्यम से---मेरी रचना को यहां स्थान देने के लिये हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंबस्तियों में आ गये हैं, छोड़कर वन की डगर
जवाब देंहटाएंआदमी से बन गये हैं, जंगलों के जानवर
सादगी की आदतें, कैसे सलामत अब रहें
झूठ के वातावरण में, पा गये हैं सब हुनर...
उच्चारण
बहुत सशक्त प्रस्तुति मनोहर झरबेरियों की चुभन लिए
चर्चा में आया है नया निखार फागुन के रंग बासंती बयार
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