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Sunday, March 09, 2014

आप रहे नित छेड़, छोड़ता भाई मोटा ; चर्चा मंच 1546

" क़ुछ तो बात थी तेरी  मासूम आँखों  मैं,
जो इनकी  मासूमियत मैं हम खो गए । 
शायद ज्यादा यकीन किया था तुझ पे,
जो तुम भी हमें दगा दे गए।।  "

"हम भी एक दिलजले से 
दिल्लगी कि आस लगाये बैठे थे। 
दिल के टूटकर बिखरने तक 
ख्वाबों के अरमान सजाये बैठे थे। 
मेरे ख्वाब टूटने से पहले पुष्प भी
अपनी खुशबु से गुमान लगाये बैठे थे।। "

--
मोटा भाई व्यस्त है, झक मारें क्यूँ आप |
प्रश्न पुलिंदा बाँध के, सीधा रस्ता नाप |

सीधा रस्ता नाप, भाग बिल्ली खिसियानी |
चौथा खम्भा छाप रहा है गलतबयानी |

नौटंकी अविराम, देख मुद्दों का टोटा  |
आप रहे नित छेड़, छोड़ता भाई मोटा || 


मेरे आशियाने की...!! 
 ईंटें ,क्यूँ उखड़ रही हैं, 
जतन से सम्भाला , 
फिर भी बिखर रही हैं। व
क्त है बेरहम या , 
मेरी किस्मत का खेल है 
है बहारे गुलशन , 
क्यारी नही निखर रही है... 
के.सी.वर्मा ''कमलेश''

तेरे शाह की कंजरी 
''ओ अमृता ! देख, तेरे शाह की कंजरी मेरे घर आ गई है । तेरी शाहनी तो खुश होगी न ! उसका शाह अब उसके पास वापस जो आ गया है । वो देख उस बदजात को तेरे शाह से ख़ूब ऐंठे और अब मेरे शाह की बाँहें थाम ली है । नहीं-नहीं तेरी उस कंजरी का भी क्या दोष, मेरे शाह ने ही उसे पकड़ लिया है । वो करमजली तो तब भी कंजरी थी जब तेरे शाह के पास थी, अब भी कंजरी है जब मेरे शाह के पास है ।''
झिंझोड़ते हुए मैं बोल पड़ी - क्या बकती है? कुछ भी बोलती है.... 

--
किसे लानत भेजूँ...
किस एहसास को जियूँ आज ? खुद को बधाई दूँ या लानत भेजूँ उन सबको जो औरत होने पर गुमान करती है और सबसे छुपकर हर रोज़ पलायन के नए-नए तरीके सोचती है जिससे हो सके जीवन का सुनिश्चित अंत जो आज खुद के लिए तोहफ़े खरीदती है और बड़े नाज़ से आज काम न करने का हक जताती है इतना तो है आज के दिन अधिकार के लिए शुरु हुई लड़ाई ज़रा सी हक़ दे गई कि बस एक दिन भर लूँ साँसें राहत की आख़िर मर्दों ने कर ही दिया एक दिन हम औरतों के नाम और छीन ली सदा के लिए हमारी आज़ादी अंततः हर औरत हार गई हमारी क़ौम हार गई किसे लानत भेजूँ ...
साझा संसार पर डॉ. जेन्नी शबन


इसलिए सुने कथा : 
शान्ति के लिए भागवत 
शान्ति के लिए भागवत भागवत कथा से मन का शुद्धिकरण होता है। इससे संशय दूर होता है और शान्ति एवं मुक्ति मिलती है.... 
कबीरा खडा़ बाज़ार में

चलो देखें कहां से कहां आ गये हम लोग  
( आईने के सामने ) डा लोक सेतिया 
सच कहूं तो अभी समझ नहीं आ रहा कि आज लिखना क्या है। बस यही चाहता हूं कि कुछ नया लिखा जाये सार्थक लिखा जाये। विषय तमाम हैं मन में फेसबुक से लेकर समाज तक , देश की राजनीति से लेकर पत्रकारिता तक। अपनी गली की बात से देश की राजधानी तक। इधर उधर यहां वहां सब कहीं का हाल... 
Expressions by Lok Setia

काश... 
सुमि की हिम्मत नहीं हो पा रही थी कि वह अमर से कुछ कह सके... रुलाई गले में बांधे, आंसुओं को रोके वह खड़ी थी कि अमर कुछ कहे और बात शुरू हो.... 
दिल से .....पर Sneha Gupta 

दिवस नहीं अधिकार मनाएं महिलाएं...
Pallavi saxena 
 

Happy Women's Day
ऋता शेखर मधु

एक अकेली औरत!
Jai Sudhir

समान अवसर आयोग के गठन का निर्णय- आधा कदम आगे, दो कदम पीछे
Randhir Singh Suman

वो मेरी तुमसे पहली पहचान थी
जब मैं जन्मा भी न था
मैं गर्भ में था तुम्हारे
और तुम सहेजे थीं मुझे...

प्रवीण पाण्डेय

तांका : अश्रु
pratibha sowaty 
 

महिला दिवस पर
Ish Mishra

udaya veer singh 
--
"काव्य का मर्म"
 छंद से हृदय को सौंदर्यबोध होता है।
छंद मानवीय भावनाओं को झंकृत करते हैं।
छंद में स्थायित्व होता है।
छंद सरस होने के कारण मन को भाते हैं।
 छंद में गेयता होने के कारण वे कण्ठस्थ हो जाते हैं...

आचार संहिता है 
हमेशा नहीं रहती है 
कुछ दिन के लिये मायके आती है 
आचार संहिता 
कुछ दिन के लिये ही सही 
विकराल रूप दिखाती है 
बहुत कुछ कर लेती है 
नहीं कहा जा रहा है 
पर कुछ चीजों के लिये 
जैसे सुरसा हो जाती है ... 
उल्लूक टाईम्सपरसुशील कुमार जोशी

"नारी दिवस पर कुछ दोहे" 
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
लालन-पालन में दिया, ममता और दुलार।
बोली-भाषा को सिखा, माँ करती उपकार।।

हर हालत में जो रहे, कोमल और उदार।
पत्नी-बेटी-बहन का, नारी देती प्यार...
उच्चारण

महिला दिवस के उपलक्ष्य में 

सिर्फ एक दिन नही 
समस्त सृष्टि ही मेरी है 
या कहो मैं हूँ तभी सृष्टि का विस्तार है ... 
ज़ख्म…जो फूलों ने दिये पर 
vandana gupta
--
मच्छर और आदमी 
वैसे तो मुझे सभी प्यार करते हैं 
मगर सबसे अधिक मच्छर करते हैं। 
मैं किसी को मच्छर की तरह प्यार नहीं कर पाता। 
मैं जब भी किसी को प्यार करने जाता हूँ 
आदमी बन जाता हूँ...
बेचैन आत्मा पर देवेन्द्र पाण्डेय 

--
"पा जाऊँ यदि प्यार तुम्हारा" 

कंकड़ को भगवान मान लूँ, 
पा जाऊँ यदि प्यार तुम्हारा! 
काँटों को वरदान मान लूँ, 
पा जाऊँ यदि प्यार तुम्हारा!
"धरा के रंग"

12 comments:

  1. सुप्रभात
    उम्दा पोस्ट्स |
    आशा

    ReplyDelete
  2. सुंदर सूत्रों के साथ संयोजित एक और सुंदर चर्चा में उल्लूक का "आचार संहिता है हमेशा नहीं रहती है
    कुछ दिन के लिये मायके आती है" को स्थान देने के लिये आभार ।

    ReplyDelete
  3. आपका आभार रविकर जी।
    अब फिर से अपने काम पर लौट आया हूँ।

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  4. बेहतरीन प्रस्तुति , रविकर जी व मंच को धन्यवाद
    ॥ जय श्री हरि: ॥

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  5. आपने जो सम्मान दिया, उससे हम दोनों मित्र अभिभूत हैं! आभार!!

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  6. सश्रम किया संकलन, सुन्दर और प्रभावी सूत्र, आभार।

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  7. मेरी पोस्ट को चर्चा मंच प्रदान करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद् भाई साहब ..

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  8. लाजवाब संकलन एवं प्रस्तुति...

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  9. बहुत सुन्दर प्रभावी सूत्र संकलन...आभार !!

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  10. बहुत बहुत धन्यवाद मयंक सर :)

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