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रविवार, नवंबर 02, 2014

"प्रेम और समर्पण - मोदी के बदले नवाज" (चर्चा मंच-1785)

मित्रों!
बहुत दिनों से जो मन में दबी हुई थी 
आज वो बात सार्वजनिक कर रहा हूँ।
चर्चा मंच के खेवनहार
और मैं इनका मात्र सहयोगी ही हूँ।
यह तीन व्यक्ति वो हैं 
जो साझा मंच के साथ
कभी सौतेला व्यवहार नहीं करते हैं।
बल्कि चर्चा मंच को 
अपने ब्लॉग जैसा ही प्यार देते हैं।
अन्य जो सहयोगी हैं उनसे तो 
हमेशा यह डर लगा रहता है कि 
कब चैट या मेल में मुझे सन्देश भेज दें? 
कभी-कभी तो सन्देश 
बिल्कुल ऐन वक्त पर ही आता है 
और मेरी दिनचर्या गड़बड़ा जाती है।
--
खैर कोई बात नहीं 
मेरी तो तलाश जारी ही है
उपरोक्त जैसे तीन सहयोगियों की
जो चर्चा मंच को भार न समझकर
उसे अपना ब्लॉग जैसा ही प्यार करें।
मेरी समझ में एक बात आज तक नहीं आ पायी है कि
जब साझा ब्लॉग हमारे डैशबोर्ड में आ जाता है तो
उसके साथ सौतेला व्यवहार क्यों?
जबकि चर्चामंच तो एक संवेदनशील और नियमित ब्लॉग है
जिसको प्रतिदिन सुबह-सुबह ही देखने की आदत 
पाठकों को पड़ गयी है।
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आइए देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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मेरा सरोकार पर रेखा श्रीवास्तव

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* स्कूल साथ साथ जाते हुए पाही ने नयना से पूछा -- 
"नयना तुम्हारा नया मकान 
बने हुए तो बहुत दिन हो गए, 
उसमें रहने कब जा रही हो ?'' ... 
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आँसू  

गम के आँसू 
ख़ुशी के आँसू 
बनावटी आँसू 
घडियाली आँसू 
रक्त के आँसू 
मुफ्त के आँसू 
महंगे आंसूसस्ते आँसू......
Naveen Mani Tripathi 
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473. तारों का बाग़ 

(दिवाली के 8 हाइकु) 

1.
तारों के गुच्छे 

ज़मीं पे छितराए 
मन लुभाए ! 
2.
बिजली जली  
दीपों का दम टूटा  
दिवाली सजी !.. 
लम्हों का सफ़र पर डॉ. जेन्नी शबनम
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१४४. बुझा हुआ दिया 

बुझे हुए दिए ने कहा, 
मुझे ज़रा साफ़ कर दो, 
थोड़ा तेल डाल दो मुझमें, 
एक बाती भी लगा दो, 
मुझे तैयार रहना है... 
कविताएँ पर Onkar 
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स्वप्न सुनहला 

स्वप्न सुनहला देखा मैंने,
सुन्दर चेहरा देखा मैंने ।
मन में संचित चित्रण को,
बन सत्य पिघलते देखा मैंने... 
न दैन्यं न पलायनम् पर प्रवीण पाण्डेय 
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सरमाएदारों का प्यादा ... 

ख़ुदा को सामने रख कर बताओ, क्या इरादा है 
हमारा दर्द कम है या तुम्हारा शौक़ ज़्यादा है ? 
हमारी अक़्ल पर पत्थर पड़े थे या कि क़िस्मत पर 
मिला जो हमनफ़स हमको, सरासर शैख़ज़ादा है... 
साझा आसमान पर Suresh Swapnil 
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''तेरहवीं'' 

...''पिताजी ने ही कहा था की मेरे कारण पोती की शादी में कोई कमी न करना वर्ना मेरी आत्मा नरक में भटकती रहेगी .''मनोज के ये शब्द सभी मेहमानों के दिल में घर कर गए और सभी उसे सांत्वना दे अपने अपने घर चले गए... 
! कौशल ! पर Shalini Kaushik 
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मोदी सरकार का असली एजेण्डा 

....मोदी सरकार के शुरूआती कुछ हतों के कार्यकाल में ही यह साफ हो गया है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं। अपने हिंदुत्ववादी एजेण्डे को सरकार दबे .छुपे ढंग से लागू करेगी परंतु संघ परिवार के अन्य सदस्य, हिन्दू राष्ट्र के अपने एजेण्डे के बारे में खुलकर बात करेंगे.उस हिन्दू राष्ट्र के बारे में जहां धार्मिक अल्पसंख्यक और कुछ जातियां दूसरे दर्जे के नागरिक बना दी जायेंगी ताकि संघ परिवार की चार वर्णों की व्यवस्था के सुनहरे युग की एक बार फिर शुरूआत हो सके।
-राम पुनियानी
Randhir Singh Suman
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कभी सोचा ना था 
कभी सोचा ना था की रुकना पङेगा !इस जिन्दगी मे पीसना भी पङेगा !!लोग कहते रह गये मै कभी झुका नही !मै सहता रह गया लेकिन कभी टुटा नही !!... 
हिन्दी कविता मंच पर ऋषभ शुक्ला 
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वो निकलती है रोज़ मेरे घर के सामने से 
पीठ पर लादे भारी भरकम सा बस्ता 
जिसके भीतर उसका हर ज्ञान सिमटता 
कभी करती हुई बातें संगी साथियों से 
वो निकलती है रोज़ मेरे घर के सामने से... 
जो मेरा मन कहे पर Yashwant Yash 
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वन्दना वाजपेयी की कविताएँ 

जन्म :२० मई वाराणसी  
शिक्षा : M.Sc (जेनेटिक्स ),B.Ed (कानपुर यूनिवर्सिटी ) 
अभिरुचि: लेखन, चित्रकला, अध्ययन , बागवानी 
सम्प्रति: अध्यापन,  
"गाथांतर" का सह संपादन * 
*विभिन पत्र -पत्रिकाओं में कहानियाँ, 
लेख, कवितायें आदि प्रकाशित हो चुकी हैं*
 *कुछ का नेपाली में अनुवाद हो चुका है*
 *आत्मकथ्य :* 
*अपने बारे में कुछ लिखना बड़ा ही असाध्य काम है 
फिर भी अगर पलट कर देखती हूँ तो ... 
यह आज भी मेरे लिए यह एक प्रश्न ही है कि 
वो कौन सी बैचैनी थी जिसने ९-१० साल की उम्र् में 
मुझसे अपनी पहली कविता लिखवा दी,... 
पहली बार पर
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रेरा चिरइ 
रेरा चिरइ, रम चूं... चूं... चूं
मोर नरवा तीर बसेरा
रोवत होही गदेला, रम चूं... चूं... चूं
रम चूं... चूं... चूं

सब झन खाइन कांदली
मैं पर गेंव रे फांदली, रम चूं... चूं... चूं
मोला सिकारी उड़ान दे
मोर मुंह के चारा ल जान दे, रम चूं... चूं... चूं.... 

सिंहावलोकन
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जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत 
(18) दबे हुये हैं घुटते क्रन्दन ! 
(‘मुकुर’ से) 

लगी हुई हैं कितनी चोटें, 
समाज का तन दुखता !
दबी हुई हैं कई सिसकियाँ, 
दबे हुये हैं क्रन्दन... 
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बात 1975 की है! मैं नया-नया बनबसा में आकर बसा था। किराये का मकान था और कुत्ता पालने का शौक भी चर्राया हुआ था। इसलिए मैं अपने एक गूजर मित्र के यहाँ गया और उसके यहाँ से भोटिया नस्ल का प्यारा सा पिल्ला ले आया।
बहुत प्यार से इसे एक दिन रखा मगर मकान मलिक से मेरा यह शौक देखा न गया। मुझे वार्निंग मिल गई कि कुत्ता पालना है तो कोई दूसरा मकान देखो!
अतः मन मार कर मैं इसे दूसरे दिन अपने गूजर मित्र को वापिस कर आया।
अब तो मन में धुन सवार हो गई कि अपना ही मकान बनाऊँगा...और पिल्ला पाल कर दिखाऊँगा....

15 टिप्‍पणियां:

  1. कितनी मेहनत का काम है ये बात एक चर्चाकार ही जान सकता है आप सब की लगन को सलाम ।
    सुंदर चर्चा ।

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !
    आपने सच कहा....आदरणीय दिलबाग जी,रविकर जी और राजेन्द्र जी चर्चामंच को बेहतरीन तरीके से सजाते है साथ ही आपका योगदान और सहयोग तो अतुल्य ही है।

    अहम सहयोगियों की तलाश हमें भी है हलचल के लिए :)

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. बढ़िया है आदरणीय-
    आपका स्नेह यूँ ही मिलता रहे-
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ...आभार!

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर लिंक्स. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर सूत्र संकलन, सुंदर चर्चा...बधाई

    जवाब देंहटाएं
  7. Yah nirantarta bani rahe .... mera bhi salaam aap teeno ko jiske karan hame itne acche links padhne ko milaate hai nirantar... . meri rachna ko sthaan dene ke liye aapka hardik aabhar !!

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  8. शास्त्री जी,
    सादर.
    आज आपकी टिप्पणी पढ़कर बेहद आहत हूं.चूंकि आपने सार्वजनिक रूप से टिप्पणी की है,इसलिए इसका जबाब मेल में न देकर यहीं दे रहा हूं.मैंने कभी चर्चा मंच को पराया नहीं समझा. व्यस्तता एवं नेट की समस्या के कारण खुद के ब्लॉग पर समय नहीं दे पा रहा हूं,महीने में दो या तीन पोस्ट ही लिख पाता हूं.एक नौकरी पेशा व्यक्ति की कई तरह की व्यस्तताएं होती हैं,रविवार के दिन भी मेरी कक्षा रहती है.आज ही,अभी नेट खोल पाया हूं.कई बार दो तीन दिनों तक नहीं देख पाता.फिर भी,यदि आपको लगता है कि कोई अन्य व्यक्ति इसे अच्छी तरह कर सकता है तो मुझे कोई ऐतराज नहीं.मैंने अनुपस्थिति के संबंध में हमेशा काफी समय रहते सूचित किया है.
    सार्वजनिक रूप से टिप्पणी के बाद अब मेरा अब इस मंच पर बने रहना उचित नहीं है.
    धन्यवाद !

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  9. बेहतरीन चर्चा व चर्चाकर की अपूर्व योगदान ने बनाया इस मंच को महान ,

    जवाब देंहटाएं
  10. आज का संयोजन श्रेष्ठ है ! आज के इस संयोजन में मेरी रचना को सम्मिलित करने हेतु ध्ब्य्वाद !

    जवाब देंहटाएं

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