नमस्कार मित्रों, आज की चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है। अस्वस्थता के कारण आज थोड़े ही लिंक लगा पा रहा हूँ।
दृढ़ विश्वास यानी किसी भी परिस्थिति में इंसान का विश्वास विचलित नहीं होना चाहिए। यह विश्वास किसी अज्ञान के कारण नहीं बल्कि समझ की वजह से है। एक जिम्मेदार इंसान हर घटना को समझ द्वारा देखते हुए, उसका फायदा उठाता है।जब तक मन में विश्वास नहीं जगता तब तक हमें कामयाबी नहीं मिलती। विश्वास की शक्ति पाकर मन कर्मवीर बन जाता है। मन विश्वास में नहाकर दोष मुक्त हो जाता है। विश्वास मन के लिए गंगा नदी का काम करता है, जिससे सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। पवित्र मन, प्रेम और विश्वास से इंसान संपूर्ण जग जीत सकता है।विश्वास की यह शक्ति अप्रकट रखकर आप बहुत सीमित व दु:ख जीवन जीते हैं। बिना विश्वास के जीवन अनुमानों व शंकाओं से भरा रहता है। नकारात्मक शंकाओं से विश्वास टूटने लगता है और उस विश्वास का स्थान डर ले लेता है। डरा हुआ इंसान सिकुड़कर जीता है। आत्मविश्वास से भरा हुआ इंसान खुलकर जीता है और खुलकर जवाब देता है।
===================================
फ़िरदौस खान जी की प्रस्तुति
एक जंगली फूल था. महकता गुलाब का गुलाबी फूल. जंगल उसका घर था. जंगली हवाएं उसे झूला झुलाती थीं. ओस के क़तरे उसे भिगोते थे. सूरज की सुनहरी किरने उसे संवारती थीं. जो भी उसे एक बार देखता, बस देखता रह जाता. राहगीर रुक-रुक कर उसे देखते, उसकी तारीफ़ करते और आगे बढ़ जाते. उसे अपनी क़िस्मत पर नाज़ था.
===================================
वन्दना गुप्ता जी की प्रस्तुति
आज कैसा वक्त आ गया है जहाँ संत शब्द से इंसान का विश्वास ही उठ गया जहाँ कदम कदम पर ढकोसले बाज सामने आ रहे हों वहाँ कैसे इंसान किसी पर विश्वास कर सकेगा ये तो अलग बात है उससे जरूरी बात है कि अब जनता के विश्वास को कोई इस तरह न ठग सके उसके लिए सरकार ठोस और निर्णायक कदम उठाए ताकि आगे कोई खुद को संत कहने से पहले करोडों बार सोचे या संत बनने से पहले ………
===================================
वंदना सिंह जी की प्रस्तुति
मुट्ठी से यूं हर लम्हा छूटता है
साख से जैसे कोई पत्ता टूटता है
हवाओं के हक़ में ही गवाही देगा
ये शज़र जो ज़रा ज़रा टूटता है
===================================
कुँवर कुसुमेश जी की प्रस्तुति
डरना न कभी यारो किस्मत के सितारे से।
मरता नहीं है कोई तक़दीर के मारे से।।
सेहत बनेगी फिर से बीमारे-कैंसर की,।
ताकत मिलेगी इतनी गेहूं के जवारे से।।
===================================
संजय भाष्कर जी की प्रस्तुति
सुनहरी धुप आशा जी का पाँचवा काव्य संग्रह है इस संग्रह में विभिन्न विषयों पर आशा जी के मन के भावो से जुडी अनेको कवितायेँ है श्री मति आशा जी को मैं चार वर्षों से जानता हूँ और अंतरजाल पर लगातार चार वर्षो से जुड़ा हुआ हूँ............!
===================================
सुशील कुमार जोशी जी की प्रस्तुति
बहते हुऐ पानी
को देखती हुई
दो आँखें इधर से
गिन रही होती हैं
पानी के अंदर
===================================
पुरुषोत्तम पाण्डेय जी की प्रस्तुति
एक आदमी सड़क पर चिल्लाता जा रहा था, “ये सरकार निकम्मी है.” पुलिस वाले ने सुना और उसे पकड़ कर थाने ले गया. थाने में ले जाकर सरकार के खिलाफ बगावती बातें करने के आरोप में उसकी ताजपोशी की जाने लगी तो वह अपनी सफाई में बोला
“मैं तो ब्रिटिश सरकार के खिलाफ नारे लगा रहा था.”
इस पर थानेदार उसकी पिटाई करते हुए बोला, “साले, तू झूठ बोल रहा है. हमको भी मालूम है कि कौन सी सरकार निकम्मी है.”
===================================
शारदा अरोरा जी की प्रस्तुति
बड़ी तपस्या पर निकले हो
लेश मात्र भी रोष न करना
अपने हिस्से की छाया पर
सब्र और सन्तोष तुम करना
===================================
रचना त्रिपाठी जी की प्रस्तुति
एक पुरुष किसी स्त्री के साथ जब प्रेम में होता है तो वह उसके साथ “संभोग” करता है और जब नफरत करता है तो उसका “बलात्कार” करता है..ऐसा क्यों? नफरत की स्थिति में भी वह एक स्त्री को देह से इतर क्यों नहीं सोच पाता? अगर समाज का बदलता स्वरूप आज भी वही है जो सदियों पहले था तो यह स्पष्ट है कि पुरुष की सोच आज भी प्रधान है।
===================================
मोनाली जी की प्रस्तुति
तमाम शाम सोचा कि फकत एक रात की बात है
फिर सुबह मुझे भी चल देना है इक राह पकङ कर
हिसाब लगाया घण्टों-मिनटों और निबटाने को पङे तमाम कामों का
ठीक बारह घण्टे और तीस मिनट बिताने थे तुम्हारे बिना इस घर में
===================================
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ जी की प्रस्तुति
लालन-पालन में दिया, ममता और दुलार।
बोली-भाषा को सिखा, माँ करती उपकार।।
हर हालत में जो रहे, कोमल और उदार।
पत्नी-बेटी-बहन का, नारी देती प्यार।।
मत अबला कहना कभी, मातृशक्ति बलयुक्त।
कभी नहीं हो पायेंगे, इसके ऋण से मुक्त।।
===================================
अनुपमा त्रिपाठी
शीत का पुनरावर्तन ,
जागृति प्रदायिनी ,
प्रस्फुटित सुनहली प्रात,.....!!
===================================
प्रवीण चोपड़ा
मुझे इस बात से बड़ी खीझ होती है कि हिंदी फिल्म का कोई आइटम सांग तो पब्लिक को दो दिन में याद हो जाता है लेकिन हम लोगों की बात ही भूल जाते हैं।
दो दिन पहले मैं ट्रेन में यात्रा कर रहा था –एक महिला अपने शिशु को स्तन-पान करवा रही थी और बिल्कुल साथ ही बैठा उस का पति बीड़ीयां फूंके जा रहा था। ऐसा लगा कि बच्चे को अमृतपान के साथ साथ विषपान भी करवाया जा रहा हो।
===================================
संजीव वर्मा 'सलिल'
भाग-दौड़ आपा-धापी है
नहीं किसी को फिक्र किसी की
निष्ठा रही न ख़ास इसी की
प्लेटफॉर्म जैसा समाज है
कब्जेधारी को सुराज है
अति-जाती अवसर ट्रेन
जगह दिलाये धन या ब्रेन
बेचैनी सबमें व्यापी है
===================================
उपासना जी की प्रस्तुति
"मरने का मन करता है , तो मर जाईये !" चौंकिए नहीं ! मैं ऐसा ही कहती हूँ , जो लोग मुझे यह वाक्य कहते हैं। हम बहुत सारे लोगों से कहते सुनते हैं कि 'हम मर …
भारती दास जी की प्रस्तुति
ऐसा पूत युगों में आता
जिस पर गर्व हमें हो पाता
अपनी मूल्य पहचान बनाता
दुनिया में सम्मान बढ़ाता
आत्मबोध से जोड़े खुद को
बन विन्रम समझाये सबको
===================================
धन्यवाद
===================================
आदरणीय राजेन्द्र कुमार जी य़आपने अस्वस्थ होतो हुए भी
जवाब देंहटाएंचर्चा के लिए समय निकाला आपका बहुत-बहुत आभार।
--
आपके जल्दी से स्वस्थ होने की कामना करता हूँ।
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसूत्र और सूत्र संयोजन दोनो ही शानदार |
शीघ्र स्वास्थ लाभ की कामना । सुंदर प्रस्तुति । आभार 'उलूक' के सूत्र 'बहुत कुछ हो रहा होता है पर क्या ? यही बस पता नहीं चल रहा होता है' को आज की चर्चा में स्थान देने के लिये ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स।
जवाब देंहटाएंमुझे शामिल करने के लिए आभार।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसूत्र समायोजित करने में बहुत मेहनत करनी होती है, इस अंक में बहुविध रचनाये बड़े सुन्दर तरीके से सजाई गयी हैं. शास्त्री जी बताते हैं कि आप अस्वस्थ हैं, मैं भी आपके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना क्लारता हूँ.
जवाब देंहटाएंबिना विश्वास के जीवन अनुमानों व शंकाओं से भरा रहता है। नकारात्मक शंकाओं से विश्वास टूटने लगता है और उस विश्वास का स्थान डर ले लेता है। डरा हुआ इंसान सिकुड़कर जीता है। आत्मविश्वास से भरा हुआ इंसान खुलकर जीता है और खुलकर जवाब देता है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बोध देती पंक्तियाँ...तथा सुंदर चर्चा !
बढ़िया चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंआदरणीय आप की चर्चा हमेशा खूबसूरत रहती है।
जवाब देंहटाएंस्वास्थय कुशलता की कामना के साथ आभार।
आभार राजेंद्र जी इस सार्थक सारगर्भित चर्चा में आपने मेरा लिंक भी चयन किया !!उम्दा चर्चा !!
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स।
जवाब देंहटाएंमुझे शामिल करने के लिए आभार....
एक से बढ़कर एक सुन्दर लिंक्सन राजेंदर जी
जवाब देंहटाएंमुझे शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार।
चर्चा मंच सदा ही सराहनीय होता है ,आपने मेरी रचना को भी शामिल किया है .बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंहमारी पोस्ट शामिल करने के लिए शुक्रिया...
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स विविधता समेटे हुए हैं...
शुभकामनाएं
rajendra bhai! abhi to yuva ho. swasthya samhalo. rachna chayan hetu abhar. har ank sargarbhit rachnaon ka guldasta hai.
जवाब देंहटाएं