नमस्कार मित्रों, आज की चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है। आज की शुरुआत एक भावपूर्ण ग़ज़ल से करते है।
ये कौन पूछता है भला आसमान से
पंछी कहाँ गए जो न लौटे उड़ान से
‘सद्भाव’ फिर कटेगा किसी पेड़ की तरह
लेंगे ये काम भी वो मगर संविधान से
दंगाइयों की भीड़ थी पैग़ाम मौत का
बच कर निकल सका न वो जलते मकान से
घायल हुए वहाँ जो वो अपने ही थे तेरे
छूटा था बन के तीर तू किसकी कमान से
पागल उन्हें इसी पे ज़माने ने कह दिया
आँखों को जो दिखा वही बोले ज़बान से
`धृतराष्ट्र’ को पसंद के `संजय’ भी मिल गए
आँखों से देख कर भी जो मुकरे ज़बान से
बोले जो हम सभा में तो वो सकपका गया
`द्विज’ की नज़र में हम थे सदा बे ज़बान से
सादर आभार: द्विजेन्द्र 'द्विज'
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कविता रावत जी की प्रस्तुति
मुगल साम्राज्य की स्थापना के बाद जब तलवार के जोर पर धर्म परिवर्तन का सिलसिला चल पड़ा और समाज में व्याप्त कुरीतियों तथा तरह-तरह की भ्रामक धार्मिक धारणाओं ने सब कुछ अस्त-व्यस्त कर दिया तब भय और अज्ञान के कुहासे को ……।
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मनोज कुमार जी की प्रस्तुति
आज थोड़ा लीक से हटकर पोस्ट लिख रहा हूँ , रोचक लगा इसलिए लिख रहा हूँ उम्मीद रोचक लगेगी। कल जब "हैप्पी न्यू ईयर " देखकर आया तो ये अहसास हुआ कि आज कल बॉलीवुड की फिल्मो ने एक नया फंडा खूब सफल हो रहा है
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आशा सक्सेना जी की प्रस्तुति
गुंजन भवरों सा
उड़ना तितली सा
हर फूल उसे प्यारा
आजा बहार आजा
तेज हवा का झोंका
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रश्मि शर्मा जी की प्रस्तुति
पश्मीने के रंगों सी नरम-गरम हैं अदाएं तुम्हारी ,
वादियों से जैसे चलकर आ रही हो, शुआएं तुम्हारी !!
तेरा ये पैरहन जो मेरे बदन के गिर्द लिपटा सा है ,
प्यार के रेशों में गुँथी ज्यूँ , बेशुमार दुआएं तुम्हारी !!
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फ़िरदौस खान जी की प्रस्तुति
आकर्षण और मुहब्बत में बहुत फ़र्क़ हुआ करता है... आकर्षण उस ओस के क़तरे की तरह है, जो ज़रा-सी धूप की तपिश से फ़ना हो जाता है, जबकि मुहब्बत यही तपिश पाकर दहकने लगते है... इसी तरह हवस और मुहब्बत में भी ज़मीन और आसमान का फ़र्क़ है... हवस ज़िन्दगी तबाह करती है, जबकि मुहब्बत ज़िन्दगी को रौशन किया करती है...
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विष्णु बैरागी जी की प्रस्तुति
1991 के अप्रेल से मैं उधार की जिन्दगी जी रहा हूँ - मित्रों की दी हुई जिन्दगी। तब मैं चरम विपन्नता की स्थिति में आ गया था। मैं पत्राचार का व्यसनी किन्तु पोस्ट कार्ड के लिए ……।
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डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
उम्मीदों को दिल में जगाया तो होता,
ख़ुदी को कभी आज़माया तो होता । 1
छुटकी बहन सी ठुनकती हैं ग़ज़लें ,
बड़े भाई -सा सर पे साया तो होता ।2
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पल्लवी त्रिवेदी जी की प्रस्तुति
पप्पू जब बेरोजगारी से उकता गया ( वैसे नहीं उकताया कि काम करने को मरा जा रहा हो , बल्कि पैसों की जुगाड़ न होने से उकताया था ) तो उसने नाना प्रकार के कामों में हाथ डालना चाहा मगर पप्पू को देखते ही
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वन्दना रमा सिंह जी की प्रस्तुति
सजी दहलीज कंदीलें बुलाती हैं दिवाली में
कतारें नवप्रभावर्ती रिझाती हैं दिवाली में
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यशोदा अग्रवाल जी की प्रस्तुति
बवण्डर उठ गया यादों का,
वक़्त के फ़ासलों से धरती पर
अंकुरित होते अतीत के बीज
और हरियाली के साथ लहलहातीं
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यशवंत यश जी की प्रस्तुति
कभी कभी
बीते दौर की कुछ बातें
यादों के बादल बन कर
छा जाती हैं
मन के ऊपर
बना लेती हैं
एक कवच
रच देती हैं
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डॉ जाकिर अली रजनीश जी की प्रस्तुति
ऑनलाइन हिन्दी कंटेंट को बढ़ावा देने के लिए गूगल काफी समय से प्रयासरत है। इसके लिए वह काफी समय से गम्भीर ब्लॉगर्स से सम्पर्क करके उनकी समस्याओं को जानने का प्रयत्न कर रहा है। इसमें एक ओर निजी भेंट के साथ-साथ, टेलीफोनिक संपर्क भी किये जा रहे हैं, तो दूसरी ओर 'Hindi Enthusiasts' जैसे समूह बनाकर उनकी समस्याओं के बारे में जानने और उनके निवारण के प्रयास भी हो रहे हैं। निजी भेंटों में जहां गूगल के प्रतिनिधि लखनऊ सहित अनेक शहरों में जाकर ब्लॉगर्स से मिल रहे हैं, वहीं उसके बाद भी वे लगातार ईमेल एवं टेलीफोनिक सम्पर्क के द्वारा भी सुझाव प्राप्त कर रहे हैं।
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अरुण साथी जी की प्रस्तुति
ताजिया पहलाम में दो बातों की तरफ मेरा ध्यान गया । एक मुस्लिम समाज के उत्थान तो दूसरा पतन का परिचायक है । पहला यह की ताजिया पहलाम में बड़ी संख्या महिलाएं शामिल थी वो भी वगैर बुर्का के ।
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संगशील सागर जी की प्रस्तुति
जोड़ते न दिल तो टूटा न होता ।
पकड़ते न दामन तो छूटा न होता ।।
तक़दीर मेरी गर अमीर होती ।
सारी दुनियाँ की मुझपे जागीर होती ।।
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सुप्रभात
ReplyDeleteउम्दा सूत्र
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद सर
बहुत २ आभार आदरणीय इन बेहतरीन लिंक्स के साथ मुझे भी स्थान देने के लिए
ReplyDeleteबहुत सुंदर सूत्र संयोजन सुंदर शुक्रवारीय चर्चा राजेंद्र जी ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
ReplyDeleteBahut badhiya charcha manch ..meri rachna shamil karne ke liye aabhar aur dhnyawad
ReplyDeleteराजेन्द्र जी, बहुत ही उपयोगी और सार्थक पोस्टों की चर्चा सजाई है आपने। बधाई।
ReplyDeleteआदरणीय राजेंद्र जी अच्छा लगा चर्चा मंच पर आकर। कविता रावत जी की पोस्ट , जाकिर जी द्वारा दी गयी जानकारी ,अरुण साथी जी की प्रस्तुति , रश्मि जी की पोस्ट ,फ़िरदौस खान जी ने आकर्षण और महोबहत में अंतर अपनी पोस्ट में बड़ी कशिश के साथ बताया है । सभी पोस्ट में सार्थकता है !मेरी पोस्ट को यहाँ स्थान देने के लिए आपका सादर आभार
ReplyDeleteनमस्कार राजेन्द्र जी।
ReplyDeleteचर्चा मंच में मेरा ब्लॉग सम्मिलित करने के लिए मैं आपका आभारी हूँ।
वक़्त की कमी होने पर प्रत्येक दिन की विशेष पोस्टों को चर्चा मंच पर पढ़ा जा सकता है। आपका ये प्रयास सराहनी है।
मेरी सोच मेरी मंजिल
Bahut sunder links... Sunder charcha...!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और मनोयोग के साथ की गयी शानदार चर्चा।
ReplyDeleteहृदय से आभारी हूँ आपका आदरणीय राजेन्द्र कुमार जी।