नीतू सिंघल जी का खुन्दक खाना वाज़िब है। क्योंकि इनका अपना सृजन कुछ नहीं है। ये हमेशा किसी पुस्तक से नकलमार कर पोस्ट लगाती हैं। जो यदा-कदा ही चर्चा मंच पर ली जाती हैं। रोज-रोज नहीं।
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सुप्रभात |समसामयिक सूत्र |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
ReplyDeleteबहुत आभार ,विर्क जी 1
ReplyDeleteसुंदर चर्चा दिलबाग । आभार 'उलूक' के सूत्र 'कहने को कुछ नहीं है ऐसे हालातों में कैसे कोई कुछ कहेगा' को स्थान देने के लिये ।
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDeleteबढ़िया लिंक्स-सह-चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
ReplyDeleteकाफी अच्छे linksदिए धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लिंक्स |आपका बहुत बहुत शुक्रिया विर्क साहब |
ReplyDeleteबहुत बढियाँ चर्चा
ReplyDeleteबढ़िया चर्चा-
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
आदरणीय दिलबाग सर आप तो चित्रों के माध्यम से ही बोलती हुई सार्थक चर्चा कर देते हैं।
ReplyDelete--
आपके अन्दाज का कायल हूँ मैं तो।
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बहुत-बहुत आभार।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteशुक्रिया चर्चा में स्थान देने के लिए
ReplyDeleteबढ़िया चर्चा
ReplyDeleteएक ये ही असंत है, बाकी तो सारे संत-महात्मा हैं.....बंद करो ये तमाशा.....
ReplyDeleteनीतू सिंघल जी का खुन्दक खाना वाज़िब है।
ReplyDeleteक्योंकि इनका अपना सृजन कुछ नहीं है।
ये हमेशा किसी पुस्तक से नकलमार कर पोस्ट लगाती हैं।
जो यदा-कदा ही चर्चा मंच पर ली जाती हैं।
रोज-रोज नहीं।