मित्रों।
श्री राजीव उपाध्याय के अनुरोध पर
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
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भारत के लौह पुरूष
सरदार वल्लभ भाई पटेल
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जिन्होंने यह मंजर देखा होगा
वही इस रचना का
मर्म समझ सकते हैं
--
काला सा... काला ....
"!! शत्-शत् नमन !!"
"इन्दिरा! भूलेंगे कैसे तेरो नाम!"
राष्ट्र-नायिका श्रीमती इन्दिरा गांधी को
!! शत्-शत् नमन !!
मैंने 31 अक्टूबर, 1984 को लिखी थी यह कविता।
31 अक्टूबर, 1984 को जिन्होंने यह मंजर देखा होगा
वही इस रचना का
मर्म समझ सकते हैं
!! श्रद्धाञ्जलि़ !!
रोयें सारे नगर और गाम।
भूलेंगे कैसे तेरो नाम!
इन्दिरा!
भूलेंगे कैसे तेरो नाम!
लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल !
मेरा सरोकार पर रेखा श्रीवास्तव
--काला सा... काला ....
काला धन काला धन सुन सुन कर कान तक काले हो चुके हैं ।
यूँ मुझे काला रंग खासा पसंद है। ब्लेक ब्यूटी की तो खैर दुनिया कायल है पर जब से जानकारों से सुना है की काले कपड़ों में मोटापा कम झलकता है तब से मेरी अलमारी में काफी कालापन दिखाई देने लगा है।
परन्तु काले धन के दर्शन आजतक नहीं हुए किसी भी नोट या सिक्के में कहीं भी ज़रा सा भी काला रंग नजर नहीं आता। मुझे आजतक समझ में नहीं आया कि बेचारे धन को क्यों काला कहा जाता है। काल धन नहीं काला तो हमारा मन होता है। या फिर नाक, मुंह आदि हो जाता है कभी कभी....
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भूख से व्याकुल हुई मैं जा रही हूँ।
घास के बदले में कूड़ा खा रही हूँ।।
याद आते हैं मुझे वो दिन पुराने।
दूर तक मैदान थे कितने सुहाने।।
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अगर तुमसा कोई होता ...
तुम्हे पढ़ा तो ख्याल आया कि.....
सफर कितना असां हो जाता
इक हमसफ़र तुमसा......
अगर होता तो अच्छा था
कोई होता
जो लिखता नज़्म.. कविता..अशआर..
मेरी याद में
कोई प्यार भरे गीतों से
मुझे भिगोता तो अच्छा था...
Lekhika 'Pari M Shlok'
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यौवन
मदिरा सी मदमस्त ये
यौवन अलसाई अलमस्त
ये यौवन होता स्वच्छंद उन्मुक्त
ये यौवन चिंता-फिकर से मुक्त...
BHARTI DAS
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मानवता के बीज
हायकु गुलशन.. पर sunita agarwal -
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यौवन
मदिरा सी मदमस्त ये
यौवन अलसाई अलमस्त
ये यौवन होता स्वच्छंद उन्मुक्त
ये यौवन चिंता-फिकर से मुक्त...
BHARTI DAS
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मानवता के बीज
हायकु गुलशन.. पर sunita agarwal -
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जो हद चले सो औलिया ,अनहद चले सो पीर ,
हद अनहद दोनों चले ,उसका नाम फ़कीर।
आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
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"आख़िर लाचार कौन था ...??"
महिलाओं की दान प्रवृति और अपाहिजों तथा गरीब ,लाचारों की मदद कर अपना यह लोक और परलोक एक साथ सुधारने की मानसिक संतुष्टि धार्मिक स्थलों पर अपाहिजों , लाचारों और भिखारियों के संख्या में दिनोदिन बढोतरीकरने का एक मुख्य कारक है, हालाँकि इन्ही महिलाओं को अक्सर पसीने से भीगे हांफते रिक्शाचालकों व मेहनत से रोजी -रोटी कमाने वाले सब्जी के ठेले वालों से एक -दो रुपये के लिए सर फुट्टवल करते देख वह आश्चर्य में पड़ जाती है...
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दो सप्ताह से व्यस्त
नजर आ रहे थे
प्रोफेसर साहब
मूल्याँकन केन्द्र पर
बहुत दूर से आया हूँ
सबको बता रहे थे
कर्मचारी उनके बहुत ही
कायल होते जा रहे थे
कापियों के बंडल के बंडल
मिनटों में निपटा रहे थे
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विवेकानंद जी
आपसे कहना जरूरी है
बधाई हो
उस समय जब आपकी सात लाख की मूर्ती
हमने अपने खेत में आज ही लगाई हो...
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सुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा संकलन सूत्रों का \
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
कार्टून बढ़िया है |
सराहनीय संग्रह...
जवाब देंहटाएंसराहनीय संग्रह...
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स
जवाब देंहटाएंसुन्दर सूत्र ! सार्थक चर्चा !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!
बेहतरीन सार्थक पठनीय लिंकों के साथ बहुत ही सुन्दर चर्चा प्रस्तुति, आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ब्लॉग संयोजन .. कुछ नये कुछ पुराने रचनाको को पढने का सौभाग्य मिला ..इनके मध्य मेरी रचनाओ को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार ..सादर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सूत्र ,मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपको धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा । 'उलूक' के एक पुराने सूत्र 'मूल्याँकन का मूल्याँकन ' और एक नये 'विवेकानंद जी
जवाब देंहटाएंआपसे कहना जरूरी है बधाई हो' को स्थान दिया आभार ।
बहुत बहुत धन्यवाद ! मयंक जी ! मेरी कविता ''हत्या'' को स्थान देने हेतु
जवाब देंहटाएंलौहपुरुषसर्दार्बल्लभ भाई पटेल-जयंती और इंदिरा गांधी की पुण्य तिथि के संयोजन ने इस लिंक में जान दाल दी है !
जवाब देंहटाएंबहुत आभार !
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंप्रदूषण महानगरी दिल्ली की बद -हवा की और ध्यान खींचती रचना दिल्ली की हवा में वर्तमान में प्रदूषण स्तर सेहत के लिए बेहद की आफत बन रहा है।
धन को काला कह रहे काले पीले लोग धन अपने आप में बुरा है न अच्छा उसकी और सिर्फ उसकी ही लालसा करते रहना एक रोग है।
समर्थक
SATURDAY, NOVEMBER 01, 2014
"!! शत्-शत् नमन !!" (चर्चा मंच-1784)
मित्रों।
श्री राजीव उपाध्याय के अनुरोध पर
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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प्रार्थना !
मेरे विचार मेरी अनुभूति पर
कालीपद "प्रसाद"
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भारत के लौह पुरूष
सरदार वल्लभ भाई पटेल
VMW Team पर VMWTeam Bharat
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"!! शत्-शत् नमन !!"
"इन्दिरा! भूलेंगे कैसे तेरो नाम!"
राष्ट्र-नायिका श्रीमती इन्दिरा गांधी को
!! शत्-शत् नमन !!
मैंने 31 अक्टूबर, 1984 को लिखी थी यह कविता।
31 अक्टूबर, 1984 को
जिन्होंने यह मंजर देखा होगा
वही इस रचना का
मर्म समझ सकते हैं
!! श्रद्धाञ्जलि़ !!
रोयें सारे नगर और गाम।
भूलेंगे कैसे तेरो नाम!
इन्दिरा!
भूलेंगे कैसे तेरो नाम!
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लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल !
मेरा सरोकार पर रेखा श्रीवास्तव
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काला सा... काला ....
काला धन काला धन सुन सुन कर कान तक काले हो चुके हैं ।
यूँ मुझे काला रंग खासा पसंद है। ब्लेक ब्यूटी की तो खैर दुनिया कायल है पर जब से जानकारों से सुना है की काले कपड़ों में मोटापा कम झलकता है तब से मेरी अलमारी में काफी कालापन दिखाई देने लगा है।
परन्तु काले धन के दर्शन आजतक नहीं हुए किसी भी नोट या सिक्के में कहीं भी ज़रा सा भी काला रंग नजर नहीं आता। मुझे आजतक समझ में नहीं आया कि बेचारे धन को क्यों काला कहा जाता है। काल धन नहीं काला तो हमारा मन होता है। या फिर नाक, मुंह आदि हो जाता है कभी कभी....
स्पंदन पर shikha varshney
जवाब देंहटाएंजूली और मेरे अंदर एक ही चेतना है अंतर पूर्व जन्म की वासनाओं का है उसे भोग योनि मिली मुझे कर्म की अब मेरी मर्जी मैं अच्छा करू या बुरा कबीर बनूँ या ओसामा की औलाद।
"संस्मरण-मेरी प्यारी जूली" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
मेरी प्यारी जूली
Bahut sunder sutr ..meri rachna ko sthaan dene hetu aabhaar aapka !!
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