मित्रों।
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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जानवर पढ़ के इस लिखे लिखाये को
कपड़ा माँगने शायद चला आयेगा
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी
--अभिलाषा
Akanksha पर
akanksha-asha.blog spot.com
--मैं सत्संग में गयी ही क्यूँ ?
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चित्रगुप्त की संतानें ,
कलम की पूजा करती हैं ,
उनका सौदा नहीं करतीं !
कलम यदि चरण-वंदना में
लिप्त हो जाए तो
इससे बड़ा अपमान दूसरा नहीं हो सकता
एक कलम का ...
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आँखों से टपकता हर कतरा
आंसू होगा तुम क्या जानों
आँखों से टपकता हर कतरा
आंसू होगा तुम क्या जानों,
दे खुशियों में भी संग मिरा ,
आंसू होगा तुम क्या जानों...
Harash Mahajan
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(ग़ज़ल )
कभी गाँव था अपनों का ...!
समय की बुरी नज़र से बेहद डर लगता है ,
भीड़ भरे इस शहर से बेहद डर लगता है...
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475. इंकार है...
तूने कहा मैं चाँद हूँ और
ख़ुद को आफ़ताब कहा
रफ़्ता-रफ़्ता मैं जलने लगी और
तू बेमियाद बुझने लगा
जाने कब कैसे ग्रहण लगा
और मुझमें दाग दिखने लगा...
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दर्द भरी आहों से शोर नही निकला,
अबतक यादों से वो दौर नहीं निकला |
इस बस्ती में रहती है तो बस नफरत,
पर हर इंसा आदमखोर नही निकला...
Mera avyakta पर
राम किशोर उपाध्याय
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2029 तक भारत शिखर पर होगा
दुनियां की कोई शक्ति सूर्योदय सूर्यास्त जैसी खगोलीय घटना को रोक नहीं सकता न ही प्रकृति के कार्यकलाप में किसी का हस्तक्षेप हो सकता है ठीक उसी प्रकार भारत की चमक पर किसी का बस नहीं चल सकेगा . आने वाले महज़ 15 वर्षों में भारत को विश्व लीडर बनाने की प्रोसेस के बरस हैं....
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एक मोबाईल नम्बर से चल रहे
व्हाट्स एप्प को
किसी दूसरे मोबाईल फोन से कैसे चलावें
आरंभ पर Sanjeeva Tiwari
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बाबाओं से कब बाज आएंगे हम
कलकत्ता में मेरे कॉलेज में एक लड़का हुआ करता था जो शनैः - शनैः नेता बनने के पथ पर अग्रसर था। पढ़ाई को छोड़ उसका दिमाग हर चीज में तेज था। उसने कॉलेज में यह फैला दिया था कि उसकी पहुँच विश्वविद्यालय में रसूख वाले लोगों तक है और वह वहाँ कोई भी काम करवा सकता है। काम होने पर ही पैसे लगेंगे न होने की सूरत में सब वापस हो जाएगा। धीरे-धीरे उसके पास गांठ के पूरे दिमाग के अधूरे छात्रों का जमावड़ा लगने लगा जो किसी भी तरह पास हो डिग्री पाना चाहते थे। परीक्षा ख़त्म होते ही ये उनसे अच्छी-खासी रकम ले अपने घर जा बैठ जाता था। अब सौ-पचास छात्रों में बीस-तीस तो अपने बूते पर किसी तरह पास हो ही जाते थे। ये उनके पैसे रख बाकियों के लौटा देता था। इस तरह इसने अच्छा-खासा व्यापार शुरू कर रखा था, जिसमें न हरड़ लगती थी नाहीं फिटकरी। पर जैसा कि होता है किसी तरह इसकी पोल खुल गयी, हुआ तो कुछ नहीं पर धंदा बंद हो गया।
ठीक यही कार्य-शैली इन तथाकथित बाबाओं की है...
ठीक यही कार्य-शैली इन तथाकथित बाबाओं की है...
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा
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जरूरत है एक अच्छे से गांव की
भाइयो और बहनो! मैं इन दिनों बड़ा परेशान हूं. मेरी परेशानी का सबब जानने चाहेंगे? जानना चाहेंगे कि नहीं? तो सुनिये.. मैं गांव गोद लेने के लिए परेशान हूं. यह मसला बच्चे को गोदी में लेने जैसा तो है नहीं. ऐसा रहता तो कोई बात ही नहीं थी. वोट मांगने के लिए मैं एक-एक दिन में 20-20 बच्चों को गोद में ले चुका हूं. मैं चाहता हूं कि आप सभी मेरी मदद करें. मुङो कोई ऐसा गांव सुझायें जो देखने में ठीकठाक हो, 24 घंटे बिजली रहती हो, स्कूल-कॉलेज हो, अस्पताल हो, सभी शिक्षित हों, पर कोई बेरोजगार न हो, कोई बूढ़ा न हो, बीमार न हो...
अ-शब्द
भाइयो और बहनो! मैं इन दिनों बड़ा परेशान हूं. मेरी परेशानी का सबब जानने चाहेंगे? जानना चाहेंगे कि नहीं? तो सुनिये.. मैं गांव गोद लेने के लिए परेशान हूं. यह मसला बच्चे को गोदी में लेने जैसा तो है नहीं. ऐसा रहता तो कोई बात ही नहीं थी. वोट मांगने के लिए मैं एक-एक दिन में 20-20 बच्चों को गोद में ले चुका हूं. मैं चाहता हूं कि आप सभी मेरी मदद करें. मुङो कोई ऐसा गांव सुझायें जो देखने में ठीकठाक हो, 24 घंटे बिजली रहती हो, स्कूल-कॉलेज हो, अस्पताल हो, सभी शिक्षित हों, पर कोई बेरोजगार न हो, कोई बूढ़ा न हो, बीमार न हो...
अ-शब्द
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चलो गुलों से चमन आज सजा देते हैं
शबाब फूलों का शबनम में मिला देते हैं
शराब यूं ही हसी रोज बना देते हैं
दुआएं करते हैं हम जब भी अमन की खातिर
कबूतरों को भी हाथों से उड़ा देते हैं...
My Unveil Emotions
शबाब फूलों का शबनम में मिला देते हैं
शराब यूं ही हसी रोज बना देते हैं
दुआएं करते हैं हम जब भी अमन की खातिर
कबूतरों को भी हाथों से उड़ा देते हैं...
My Unveil Emotions
(i).......tripurendra ojha 'nishaan'
आज २३ जून की रात को ८.५० हुए हैं ,
आज साल का सबसे
चमकीला चाँद निकला है ...
खिड़की से देखता हूँ तो
धुंधला नजर आता है...
VMW Team
आज २३ जून की रात को ८.५० हुए हैं ,
आज साल का सबसे
चमकीला चाँद निकला है ...
खिड़की से देखता हूँ तो
धुंधला नजर आता है...
VMW Team
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दूर दूर तक अपनी दृष्टि दौड़ाती सुनहरी धुप
आशालता सक्सेना :)
( C ) संजय भास्कर
शब्दों की मुस्कुराहट
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दूर दूर तक अपनी दृष्टि दौड़ाती सुनहरी धुप
आशालता सक्सेना :)
( C ) संजय भास्कर
शब्दों की मुस्कुराहट
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"ग़ज़ल-मुश्किल हुई है रूप की पहचान"
खुद को खुदा समझ रहा, इंसान आज तो
मुट्ठी में है सिमट गया जहान आज तो
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सन्तों को सुरक्षा की ज़रूरत है किसलिए?
बौना हुआ है देश का विधान आज तो
हर बार की तरह बहुत ही सुन्दर चर्चा प्रस्तुति,आपका आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा, आभार शास्त्रीजी !
जवाब देंहटाएंराजेंद्र जी !
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स बहुत अच्छे हैं...
शुभकामनाएं
उम्दा लिंक्स
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मेरी रचना शामिल करने के लिए |
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा, मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबढियां लिंक्स.....मेरी रचना शामिल करने हेतु आभार ...!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर शनिवारीय चर्चा । 'उलूक' के सूत्र 'जानवर पढ़ के इस लिखे लिखाये को कपड़ा माँगने शायद चला आयेगा' को जगह दी आभार ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा, मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंलाजवाब चर्चा
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