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शनिवार, नवंबर 08, 2014

"आम की खेती बबूल से" (चर्चा मंच-1791)

मित्रों।
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
मेरी पसन्द के कुछ लिंक देखिए।
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कैसी होगी शाम घनेरी... 

मानसी पर 
Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी 
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आग़ाज मौसम का 

Akanksha पर 
akanksha-asha.blog spot.
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दिल बाग़-बाग़ मुझे करना पड़ा 

A few lines for my loving daughter ...
अपने क़दमों से तूने नापी दुनिया
दिल बड़ा मुझे करना पड़ा
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दूर महकेगी तू किसी शाख पर
दिल बाग़-बाग़ मुझे करना पड़ा 
गीत-ग़ज़लपरशारदा अरोरा
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हमने देखा है 

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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आम की खेती बबूल से करवायी है 

हमने एक और ग़लती अपनायी है 
आम की खेती बबूल से करवायी है 
पिछले मौसम में गर्मी भ्रष्ट थी 
अबके मात्र वादों की बाढ़ आयी है... 
Pankaj Kumar 'Shadab' 
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कथांश - 25. 

सुबह आँगन से आवाज़ दे कर मुझे चाय का कप पकड़ा दिया था सुमति ने . कोई विशेष बात-चीत नहीं हुई . दोपहर में मुझे थाली परोस कर दे गई . एक रोटी और माँगी थी मैंने. सब्ज़ी सिर्फ़ आलू की थी ,माँ का सारा काम सँभाले है और क्या करती .यही बहुत है... 
लालित्यम् पर प्रतिभा सक्सेना
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कौशल कैसा प्रेम में? 

अभिनय कौशल प्रेम का, लेकिन मन में खोट। 
परदा जब सच का हटे, सुमन हृदय में चोट।। 
जीवन चलता प्रेम से, सदा सुमन रख ध्यान। 
प्रेम बहुत अनमोल है, नहीं करो अपमान... 
मनोरमा पर श्यामल सुमन 
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बदकिस्मत कौन 

एक बार यात्रियों से भरी एक बस कहीं जा रही थी। अचानक मौसम बदला धुलभरी आंधी के बाद बारिश की बूंदे गिरने लगी बारिश तेज होकर तूफान मे बदल चुकी थी घनघोर अंधेरा छा गया भयंकर बिजली चमकने लगी बिजली कडककर बस की तरफ आती और वापस चली जाती ऐसा कई बार हुआ सब की सांसे ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे। ड्राईवर ने आखिरकार बस को एक बडे से पेड से करीब पचास कदम की दूरी पर रोक दी और यात्रियों से कहा कि इस बस मे कोई ऐसा यात्री बैठा है जिसकी मौत आज निश्चित है... 
Patali पर Patali-The-Village 
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माँ के संस्कार [हाइकु ] 

हाइकु माँ के संस्कार 
सत्य होता विजयी 
झूठ की हार .... 
जगत यह 
सब है विपरीत 
जीता असत्य ..... 
Ocean of Bliss पर 
Rekha Joshi 
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"गंगास्नान मेला-2" 

नदी शारदा में किया, उत्सव का स्नान।
फिर खिचड़ी खाकर किया, मेले को प्रस्थान।।
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झनकइया वन में लगा, मेला बहुत विशाल।
वियाबान के बीच में, बिकता सस्ता माल।।
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आदिवासियों ने यहाँ, डेरा दिया जमाय।
जंगल में मंगल किया, पिकनिक रहे मनाय।।
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सब्जी बिकती धान से, दाम नहीं है पास।
बिन पैसे के हो रहा, मेला आज उदास।।
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15 टिप्‍पणियां:

  1. ‘ग़ाफ़िल’सुन्दर प्रस्तुति ग़ाफ़िल साहब की हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे कहते हैं कि।

    जवाब देंहटाएं
  2. जिसे प्यार का रोग लगा
    उसको नैन भिगोना है

    जब तक चाहा इससे खेला
    मानों एक खिलौना है

    कौड़ी में नीलाम मुहब्बत
    मँहगा चाँदी-सोना है

    जिस पर नींद चैन की आये
    ये वो नहीं बिछौना है

    थमता नहीं सिलसिला
    जीवनभर का रोना है

    हैवानों की पंचायत में
    आज आदमी बौना है

    “रूप” नहीं है, रंग नहीं है
    बोझ हमेशा ढोना है

    बढ़िया ग़ज़ल किसे कहते हैं

    इसका एक नमूना है

    आज सुख़नवर बौना है।

    जवाब देंहटाएं

  3. उम्दा सूत्र और कार्टून |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  4. अनेक रूपा नारी को पूरा खोलके रख दिया है भ्रतृ ने आपने उसमें कई और नाग जड़ दिए।

    अनेक रूपा नारी को पूरा खोलके रख दिया है भ्रतृ ने आपने उसमें कई और नाग जड़ दिए।

    जवाब देंहटाएं
  5. मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  6. आज की सुंदर शनिवारीय चर्चा में 'उलूक' के सूत्र को भी जगह देने के लिये आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  8. सुंदर चर्चा, उम्दा लिंक्स...बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  9. आदरनीय शास्त्री जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया |अच्छे लिंक्स |

    जवाब देंहटाएं
  10. Sabhi links umda.... Meri rachna ko sthaan dene ke liye aapka aabhar ... Sunder charcha !!

    जवाब देंहटाएं
  11. अच्छे लिंक्स, मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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