मित्रों!
रविवार क चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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"गीत-महाइन्द्र की पंचायत"
जिनका पेटभरा हो उनको, भोजन नहीं कराऊँगा।
जिस महफिल में उल्लू बोलें, वहाँ नहीं मैं गाऊँगा।।
उस पथ को कैसे भूलूँगा, जिस पथ का निर्माता हूँ,
मैं चुपचाप नहीं बैठूँगा, माता का उद्गाता हूँ,
ऊसर धरती में भी मैंने, बीज आस के बोए हैँ,
शब्दों की माला में, नूतन मनके रोज पिरोए हैं,
खर-पतवार हटा उपवन में, पौधे नये लगाऊँगा।
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कच्चे पक्के रंग
मेरे कदम
तुम्हारा हाथ थामे
क्षितिज तक
चलने का हौसला पाते हैं........
हैप्पी बर्थ डे चैतन्य
तुम्हारा हाथ थामे
क्षितिज तक
चलने का हौसला पाते हैं........
हैप्पी बर्थ डे चैतन्य
Chaitanyaa Sharma
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सोचती हूँ कि
कितना मनभावन लगता होगा
खतो का वो इक अरसे से चलता सिलसिला
उन बंद लिफाफो में गुलाब से महकते जज़्बात
जो आज के आलम में धुआँ-धुआँ है
जिसे अब कोई छू भी नहीं पाता
जिसे महसूस करने कि कोशिश में
लोग उतार देते हैं तन का लिबास
वो रूहो का रिश्ता
शायद !अब नहीं कायम होता...
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नया सफर
फिर शुरू हुआ
चलती साँसों का
एक नया सफर उसी राह से
जिसकी लंबाई
हर पड़ाव पर और बढ़ जाती है...
Yashwant Yash
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एक अपरिचित सन्नाटा
एक अपरिचित सन्नाटा सा पीछे पीछे भाग रहा,
दिन को दिन में जी लेता, पर रात अकेले होता हूँ ।
कृत्रिम मुस्कानों से, मन की पीड़ायें तो ढक लेता,
कहाँ छुपाऊँ नंगापन, जब अँधियारे में खोता हूँ ।
खारे अँसुअन का भारीपन आँखों में ले जाग रहा,
एकटक तकता दिशाहीन, मैं जगते जगते सोता हूँ...
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जब कोह पिघल जाएंगे !
ख़्वाब जिस रोज़ परिंदों में बदल जाएंगे
वक़्त के हाथ से कुछ लोग निकल जाएंगे
तुम उठे भी तो बार-बार लड़खड़ाओगे
हम गिरे भी तो किसी रोज़ संभल जाएंगे...
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कमी रही ......
हुनर के पंख लिए हम तकते रहे आसमाँ
पंखों में परवाज़ के लिए हौसले की कमी रही ।
मन के समंदर में ख्वाहिशों का सैलाब था
सपनों के लिए आँखों में नमी की कमी रही...
संगीता स्वरुप ( गीत
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जाड़े का दिन
जाड़े की सुबह एक दिन
सूरज की किरणें से खेलती तितली
पूछती है दूसरी तितली से
तुम इतनी उदास क्यों है
वो बोली सब तरफ अंधकार है...
aashaye पर garima
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भ्रष्टाचार
यहा हर तरफ है बिछा हुआ भ्रष्टाचार !
हर तरफ फैला है काला बाजार !!
राजा करते है स्पेक्ट्रम घोटाला !
जनता कहती है उफ मार डाला...
हिन्दी कविता मंच पर ऋषभ शुक्ला
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देश की इस धुंधली तसवीर को।
मैंने अपना मत दिया था जिसे,
मतगणना में उसे शिकस्त मिली।
न क्षेत्र देखा न जाति
न हवा की तरफ अपना मत बदला...
मन का मंथन। पर kuldeep thakur
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कार्टून :-
योग का नवीनतम आसन
‘‘करनी-भरनी-काठी का दर्द’’
एक दिन मैं बनबसा गया तो पता लगा कि सुलेमान तांगेवाले की कमर की हड्डी क्रेक हो गयी हैं। पुरानी जान-पहचान होने के कारण मैं उसे देखने के लिए उसके घर चला गया।
वहाँ जाकर मैंने देखा कि सुलेमान भाई की पीठ में काठीनुमा एक बेल्ट कस कर बँधी हुई है।
मुझे देख कर उसकी आँखों में आँसू आ गये वह बोला-
‘‘ करनी भरनी यहीं पर हैं।
बाबू जी! आपने ठीक ही कहा था।
अब मुझे अहसास होता है कि
काठी का दर्द क्या होता है?
कभी मैं घोड़े को काठी कस कर बाँधता था।
आज मुझे कस का काठी बाँध दी गयी है।
सुंदर चर्चा...
जवाब देंहटाएंमुझे भी स्थान दिया आभार।
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा |आज सूत्रों में सभी रस नजर आ रहे हैं |
बहुत सुंदर प्रस्तुति । 'उलूक' का आभार 'आज तो बस चिंगारी आग और राख की बात करनी है' को स्थान देने के लिये आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!
अत्यंत सुन्दर प्रस्तुति.... मेरी रचना को स्थान देने के लिये इस मंच एवं मयंक सर जी का हृदय से आभारी हूं !!!
जवाब देंहटाएंखुबसूरत लिंक्स.... मेरी रचना शामिल करने के लिए हृदय से आभार ...!!!
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स मिले
जवाब देंहटाएंचैतन्य को शामिल किया आभार आपका
बहुत सुन्दर एवं सार्थक सूत्र आज के चर्चामंच में ! मेरी प्रस्तुति को सम्मिलित करने के लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर एवं व्यवस्थित चर्चा....मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंइस ब्लॉग पर मुझे स्थान दिया गया इसके लिए शुक्रगुजार हूँ -- सधन्यवाद
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