मित्रों।
चर्चामंच के रविवासरीय अंक में अंक में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसंद के कुछ लिंक।
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यादों के धागे !!!
तुम्हारी यादों के रास्ते चलते-चलते
मैं जब भी अतीत के घर पहुँचती
तुम रख देते एक संदूक मेरे सामने...
SADA पर सदा
तुम्हारी यादों के रास्ते चलते-चलते
मैं जब भी अतीत के घर पहुँचती
तुम रख देते एक संदूक मेरे सामने...
SADA पर सदा
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प्रियतम
खोजता दो नेत्र,
जिनमें स्वयं को पहचान लूँ मैं,
आप आये,
पंथ को विश्राम मिल गया है ।
प्रेम की दो बूँद चाही,
किन्तु सागर में उतरता,
आपके सामीप्य का अनुदान मिल गया है...
न दैन्यं न पलायनम् पर प्रवीण पाण्डेय -
खोजता दो नेत्र,
जिनमें स्वयं को पहचान लूँ मैं,
आप आये,
पंथ को विश्राम मिल गया है ।
प्रेम की दो बूँद चाही,
किन्तु सागर में उतरता,
आपके सामीप्य का अनुदान मिल गया है...
न दैन्यं न पलायनम् पर प्रवीण पाण्डेय -
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जब एकान्त कचोटे और भीड भी
जहाँ न पीढियों की उपेक्षा है
न सदियों का सहवास
न कुंठा के त्रास
न विद्रूपताओं के आकाश
समीप दूर के गणित से परे
जहाँ महकते हों मन के गुलाब...
एक प्रयास पर vandana gupta
जहाँ न पीढियों की उपेक्षा है
न सदियों का सहवास
न कुंठा के त्रास
न विद्रूपताओं के आकाश
समीप दूर के गणित से परे
जहाँ महकते हों मन के गुलाब...
एक प्रयास पर vandana gupta
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एक दिन जलवा दिखायेगा वही रँगे-लहू
तज़्किरा तेरा-मेरा होने लगा है कू-ब-कू
जब से होटों पे है आया आप से तुम; तुम से तू...
काव्य मंजूषा पर स्वप्न मञ्जूषा
तज़्किरा तेरा-मेरा होने लगा है कू-ब-कू
जब से होटों पे है आया आप से तुम; तुम से तू...
काव्य मंजूषा पर स्वप्न मञ्जूषा
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सौ संस्कारों के ऊपर भारी मजबूरी एक -
सौ संस्कारों के ऊपर भारी मजबूरी एक
आचरण बुरा ही सही पर है इरादे नेक...
कुँवर जीकविता मंच पर संजय भास्कर
सौ संस्कारों के ऊपर भारी मजबूरी एक
आचरण बुरा ही सही पर है इरादे नेक...
कुँवर जीकविता मंच पर संजय भास्कर
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ख़्वाब
कभी-कभी ख़्वाब भी
बिखरे पत्तों की
तरह होते हैं
कहीं भी-कभी भी
बहक जाते हैं...
वंदे मातरम् पर abhishek shukla
कभी-कभी ख़्वाब भी
बिखरे पत्तों की
तरह होते हैं
कहीं भी-कभी भी
बहक जाते हैं...
वंदे मातरम् पर abhishek shukla
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बढ़तीं उमर की रईसी
हम हो गए रईस है इस बढ़ती उमर में,
सर पर है चांदी और कुछ सोने के दांत है
किडनी में,गॉलब्लेडर में ,
स्टोन कीमती, शक्कर का पूरा कारखाना ,
अपने साथ है...
*साहित्य प्रेमी संघ* पर Ghotoo
हम हो गए रईस है इस बढ़ती उमर में,
सर पर है चांदी और कुछ सोने के दांत है
किडनी में,गॉलब्लेडर में ,
स्टोन कीमती, शक्कर का पूरा कारखाना ,
अपने साथ है...
*साहित्य प्रेमी संघ* पर Ghotoo
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यह कैसा बाल दिवस !
कितना कुछ है मन के अंदर इस विषय पर कहने को, किसी से अपनी मन की बात कहने को किन्तु हर किसी को नहीं बल्कि किसी ऐसे इंसान को जो वास्तव में इंसान कहलाने लायक हो। जिसके अन्तर्मन में अंश मात्र ही सही मगर इंसानियत अब भी कायम हो। वर्तमान हालातों को देखते हुए तो ऐसा ही लगता है कि बहुत मुश्किल है ऐसे किसी इंसान का मिलना...
मेरे अनुभव पर Pallavi saxena
कितना कुछ है मन के अंदर इस विषय पर कहने को, किसी से अपनी मन की बात कहने को किन्तु हर किसी को नहीं बल्कि किसी ऐसे इंसान को जो वास्तव में इंसान कहलाने लायक हो। जिसके अन्तर्मन में अंश मात्र ही सही मगर इंसानियत अब भी कायम हो। वर्तमान हालातों को देखते हुए तो ऐसा ही लगता है कि बहुत मुश्किल है ऐसे किसी इंसान का मिलना...
मेरे अनुभव पर Pallavi saxena
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बगदादी के बाद
विश्व के बदलते परिदृश्य में आईएसआईएस का मुखिया अबू बकर अल बगदादी मारा गया है या नहीं मारा गया है यह शोध का विषय बन गया है ।आने वाले कुछ दिनों के बाद प्रमाण सहित सच सबके सामने होगा ।आई एस आई एस ने भी ऐलान कर दिया है कि वो बहुत जल्द बगदादी के उत्तराधिकारी का ऐलान कर देगा...
तीखी कलम से पर
Naveen Mani Tripathi
विश्व के बदलते परिदृश्य में आईएसआईएस का मुखिया अबू बकर अल बगदादी मारा गया है या नहीं मारा गया है यह शोध का विषय बन गया है ।आने वाले कुछ दिनों के बाद प्रमाण सहित सच सबके सामने होगा ।आई एस आई एस ने भी ऐलान कर दिया है कि वो बहुत जल्द बगदादी के उत्तराधिकारी का ऐलान कर देगा...
तीखी कलम से पर
Naveen Mani Tripathi
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उनकी मुहब्बत को अपने शेरों में पिरो दिया
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उनकी मुहब्बत को......
अपने शेरों में पिरो दिया,
बे-तकल्लुफी की मैंने....कहा
उसने और रो दिया...
MaiN Our Meri Tanhayii
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उनकी मुहब्बत को......
अपने शेरों में पिरो दिया,
बे-तकल्लुफी की मैंने....कहा
उसने और रो दिया...
MaiN Our Meri Tanhayii
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बेवफा
घर फूटा मन टूटा
बिच्छिन्न हुए अरमान
मैंने पाया विश्वास गया
ठेस लगी टूटा अभिमान
एकाकी जीवन रोता दिल
नासूर बनी खिलती कलियाँ
जल जाएँ न सुन विरह गीत
मिट जाएँ न अभिशप्तित परियां
लूट मरोड़ मुकर क्यों जाते..
BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN
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सभ्यता
(क)
सभ्यता इसी को कहते हैं !
वे इक-दूजे को सहते हैं ||
दोनों में ‘समझौता’ हो जब-
‘सभ्यता’ इसी को कहते हैं...
ग़ज़लकुञ्ज
(क)
सभ्यता इसी को कहते हैं !
‘फूलों’ में ‘काँटे’ रहते हैं |
वे इक-दूजे को सहते हैं ||
दोनों में ‘समझौता’ हो जब-
‘सभ्यता’ इसी को कहते हैं...
ग़ज़लकुञ्ज
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हम बड़े हो गए
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लौटाई बरात
Akanksha पर
akanksha-asha.blog spot.com
डॉ सरस्वती माथुर
सेदोका
1
बाल मन भी
फुदक -फुदकके
बचपन था जीता
पंख लगा के
नभ में था उड़ता
सितारों को गिनता l...
त्रिवेणी--
लौटाई बरात
Akanksha पर
akanksha-asha.blog spot.com
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी चर्चा मंच पर प्रस्तुत सभी रचनाएँ सुंदर.....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मेरी कृति को प्रस्तुतु करने के लिए...|
वाह आस और बस आस के स्वर। बढ़िया पोस्ट ,बढ़िया चर्चा मंच …
जवाब देंहटाएंउच्चारण
बढ़िया लिंक्स
जवाब देंहटाएंUttam charcha hetu aabhar shashtriji !
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा मंच ………आभार
जवाब देंहटाएंमंच पर स्थान देने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सूत्र सुंदर चर्चा ।
जवाब देंहटाएंbahut sunder charcha....sunder sutr..meri rachna ko sthaan dene k liye aabhar
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा। मेरी रचना ख्वाब को शामिल करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी बहुत सुन्दर चर्चा रही ...बिभिन्न विषय शामिल हुयी अच्छा लगा ...
जवाब देंहटाएंमेरी रचना वेवफा को भी आप ने इस चर्चा में स्थान दिया ख़ुशी हुयी आभार
और
बधाई
भ्रमर ५