मित्रों।
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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।।डण्डा करना।।
आजकल एक मुहावरा चल पड़ा है- डण्डा करना। इसका लाक्षणिक अर्थ है किसी को डण्डे से आगे ठेलना। भावार्थ हुआ किसी काम में सक्रिय करना। इसका अर्थविस्तार अब किसी काम में व्यवधान डालना, अड़चन पैदा करना या उकसाना भी हो गया है। कुछ लोगों का मानना है कि यह पुलिसिया कार्यप्रणाली से जन्मा शब्द है। लोक-व्यवहार में अतीत से ही डण्डे के ज़रिये उकसाने, ठेलने के काम आदि किए जाते रहे हैं।..
अजित वडनेरकर
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एक और नामकरण
घुघूती बासूती माम काँ छू मालकोट्टी के ल्यालो दूध भात्ती को खालो तन्नी खाली, तन्नी खाली, तन्नी खाली ! तन्नी गा रही है। तन्नी, जानती हो कि घुघूती बासूती कौन है? वह अपनी धुन में अपने को ही बिस्तर पर झूला सा झुलाती गाती जाती है...
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हज़ारों हिन्दुओं का धर्मांतरण कराकर
इस्लाम कबूल करा देते हैं और
किसी को कानोकान खबर भी नहीं होती !
लेकिन अब सब काम
डंके कि चोट पर ही किया जाएगा...
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शीर्षकहीन
*धार्मिक स्वतंत्रता के अर्थ*
*भोजन, आवास, और सुरक्षा जीवन की मूलभूत अत्यावश्यकतायें हैं जिनके लिये संघर्ष होते रहे हैं । इन आवश्यकताओं की सुनिश्चितता के लिये कुछ शक्तिशाली लोग कभी राजतंत्र तो कभी लोकतंत्र के सपने दिखाकर स्वेच्छा से ठेके लेते रहे हैं । सभ्यता के विकास के साथ-साथ अवसरवादी लोगों ने भी धर्म के ठेके लेने शुरू कर दिये...
कौशलेन्द्र
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हे राम !
...।हैरानी की बात तो यह है कि
वास्तविक संकट हो तो उसका तो
निदान कर लिया जाए पर...
आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
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वजह हम तो नहीं ?
क्या वजहें हो सकतीं है.आये दिन होनेवाली आत्महत्याओं की। खासतौर पर तब,जब ये कदम स्कूलों में पढ़ने वाले छोटे-छोटे बच्चों के द्वारा उठाया जाता है। आखिर ऐसी कौन सी परिस्थितियां , किस तरह का मानसिक दवाब या तनाव इन बच्चों को होता है जो कुछ भी जाने समझे बगैर ऐसा भयानक कदम उठाते है। आश्चर्य तो तब और भी अधिक होता है जब यह हरकत एक अच्छे खाते-पीते , सुविधासम्पन्न घर के बच्चे कर बैठते है...
प्रियदर्शिनी तिवारी
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ड्रग फ्री इंडिया बनाना है!
तो बनाओ ना,रोका किसने है?
वो कहते हैं कि ये करूंगा,वो करुंगा,
ये जरुरी है वो जरुरी है?
तो मेरा सवाल ये है कि रोका किसने है...
Anil Pusadkar
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चाहत
मुकम्मल की चाहत किसे नहीं होती..
ज़िन्दगी से मुहब्बत किसे नहीं होती...
दिल से .....पर Sneha Gupta
--इन्तिहा
गम के सिलसिले थमते कहाँ हैं;
न जाने तुम कहाँ हो, हम कहाँ हैं...
अन्तर्गगन पर धीरेन्द्र अस्थाना
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भूख के विरुद्ध भात के लिए ---
रात के विरुद्ध प्रात के लिए ---
शैलेन्द्र 14-12-14
शरारती बचपन पर sunil kumar
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अज़ीज़ जौनपुरी :
सूनी सेज तुम्हरि बिन साजन
कहाँ गयो मेरो प्रीतम प्यारे
अँखियाँ रोअत साँझ सकारे
सूनी सेज तुम्हरि बिन साजन
कब होइहीं धन भाग हमारे...
Aziz Jaunpuri
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सुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा समसामयिक सूत्र |
सुप्रभात...मेरी रचना शामिल करने के लिए हृदय से शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंसमसामयिक सूत्र--
जवाब देंहटाएंआभार गुरु जी-
बहुत ही सुन्दर समसामयिक चर्चा प्रस्तुति, आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा ।
जवाब देंहटाएंsundar charcha sundar links , der se prastuti hetu kshama chahti hoon , abhaar hamen shamil karne hetu
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंचर्चामंच के माध्यम से धर्मांतरण पर अपने विचारों को पाठकों के साथ साझा करने का आपने मुझे जो अवसर दिया इसके लिये आपका आभार शास्त्री जी ! सभी लिंक्स सुन्दर व सार्थक है ! सधन्यवाद !
जवाब देंहटाएंbahut pyare links hai....badhai.
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंविस्तृत चर्चा ... मज़ा आया ...
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