मित्रों।
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
आज मेरी पसन्द के कुछ लिंक देखिए।
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जलता दीपक द्वारे द्वारे
...मन के भीतर हो उजियारा
जीवन पथ पर तम भी हारा
ज्ञान ध्यान की लगन लगी है
कहाँ टिकेगा फिर अँधियारा...
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शर्मिंदा हूँ मैं ,
बहुत शर्मिंदा हूँ देशभक्तों !
मेरा गुनाह माफी के काबिल तो नहीं है
लेकिन फिर भी मुझे माफ करना देशभक्तों...
कुमाउँनी चेली पर शेफाली पाण्डे
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*धो*खा जीता ना पराजित हुआ विश्वास,
ना धोखा किसी का ना किसी का विश्वास,
बस, एक अँधा कुँआ
तुम्हारे मेरे बीच रहा आया...
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क्या तुम्हें माँ याद नहीं आई,
जो तुमने इन बच्चो पर गोली चलाई... :
( #YugalVani)
एक माँ तुम्हारी भी तो होगी,
जो रोने पर खुद रो पड़ती थी
आंसुओ को तुम्हारे खुद पोछते पोछते...
तेताला पर
Er. Ankur Mishra'yugal'
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मेरी परेशानी !
उन्हें मेरी परेशानी समझ में आ नहीं सकती
निगाहों की पशेमानी समझ में आ नहीं सकती
ख़ुदा के नाम पर तुमने फ़रिश्ते क़त्ल कर डाले
ख़ुदा को ही ये क़ुर्बानी समझ में आ नहीं सकती...
साझा आसमान पर
Suresh Swapnil
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मेरी बेबशी
लिखता हूँ मिटा देता हूँ
अक्सर तुम्हारा नाम
ताकि
तुझे पता न चले मेरी बेबशी...
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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।।रईसनामा।।
हिन्दी में अरबी-फ़ारसी शब्दों की रच-बस पर गौर करें तो भाषा, समाज, संस्कृति को समझने का नज़रिया व्यापक होने के साथ आसान भी होता जाता है। ‘रईस’ शब्द को ही लें। भाषा को च्युइंगम की तरह इस्तेमाल करनेवालों को इसकी कतई परवाह नहीं होनी चाहिए कि यह कहाँ से आया, कब आया। उनके लिए इतना काफी है कि समृद्ध, धनवान, पैसेवाला, ऐश्वर्यशाली, धन्नासेठ, करोड़पति, अरबपति, अमीर, श्रीमन्त, धनाड्य, मालदार या हीरालाल-पन्नालाल टाईप शख़्सियत के लिए ‘रईस’ शब्द का इस्तेमाल करने से उनका काम चल जाता है। पर बात इससे आगे निकलती है जब हम यह जानने की कोशिश करें कि अपनी मूल भाषा अरबी में इस शब्द के क्या मायने हैं। अरबी में ‘रईस’ अर्थात सर्वोच्च, प्रमुख, नेता, खास, मूल, प्रथम, सरदार, अगुआ, स्वामी, मालिक, अध्यक्ष अथवा सरपरस्त...
अजित वडनेरकर
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संतुष्टि
[कहानी ]
सुशीला गुप्ता ,अपने प्रोफेसर पति गुप्ताजी और अपने दोनों बेटों नीरज और सौरभ के साथ पंजाब के जालन्धर शहर में अपने छोटे से घर में बहुत खुश थी |
हर रोज़ सुबह नहा धो कर ईश्वर की पूजा आराधना कर वह उस परमपिता परमात्मा का धन्यवाद करती और अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए प्रार्थना करती...
Rekha Joshi
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छपवाना एक हिन्दी पुस्तक का.....
[आखिरी क़िस्त-2]
व्यंग्य
पिछले अंक में आप ने पढ़ा कि किस तरह गब्बरनुमा प्रकाशक से या प्रकाशकनुमा गब्बर से मेरा साबका हुआ कि वहाँ से जो भागा तो घर आकर ही दम लिया जान बची लाखों पाये...लौट के बुद्धू घर को आये ..लड़ने का माद्दा छोड़ कर आये । अब आगे पढ़िए....
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''काश न जाते बच्चे स्कूल !''
काश उस मनहूस दिन
सूरज निकलने से
कर देता मना !...
ASSOCIATION पर
shikha kaushik
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आँख-मिचौनी
फिर आँखों को यूँ फिरा लिया,
क्यों आँख-मिचौनी करती हो ।
क्यों गहरी अपनी आँखों में,
कुछ बात छिपाये रहती हो...
न दैन्यं न पलायनम् पर प्रवीण पाण्डेय
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"दोहे"
आयेगा इस बार भी, नया-नवेला साल
आयेगा इस बार भी, नया-नवेला साल।
करता हूँ यह कामना, हो न कोई बबाल।१।
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आशाएँ सब पूर्ण हो, तुमसे नूतन वर्ष।
सबके घर-परिवार में, सरसे फिर से हर्ष।२।...
सुन्दर चर्चा. मेरी पोस्ट को सम्मिलित करने के लिये आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभारत!
बहुत सुन्दर चर्चा ,मेरी पोस्ट को सम्मिलित करने के लिये आभार.
जवाब देंहटाएंआभार गुरू जी।
जवाब देंहटाएंमेरे आलेख को चर्चा मंच मे सम्मिलित करने हेतु।
रोचक सूत्रों की पोटली
सुंदर चर्चा आभार 'उलूक' का सूत्र शामिल करने के लिये ।
जवाब देंहटाएंमेरी व्यथा-कथा पर आनन्द उठाने वाले सभी पाठकगण का धन्यवाद और धन्यवाद इस बात का भी कि चर्चा मंच पर लाकर आप ने इस व्यथा को व्यापकता प्रदान की---
जवाब देंहटाएंसादर