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शुक्रवार, दिसंबर 05, 2014

"ज़रा-सी रौशनी" (चर्चा मंच 1818)

आज की चर्चा में आप सब का हार्दिक अभिनन्दन है। चलिये देखते हैं कुछ चुनिंदा लिंको को, सर्वप्रथम एक खूबसूरत ग़ज़ल। 
अँधेरे जब ज़रा-सी रौशनी से भाग जाते हैं
तो फिर क्यों लोग डरकर ज़िन्दगी से भाग जाते हैं

हमें मालूम है फिर भी नहीं हम खिलखिला पाते
बहुत से रोग तो केवल हँसी से भाग जाते हैं

निभाने हैं गृहस्थी के कठिन दायित्व हमको ही
मगर कुछ लोग इस रस्साकशी से भाग जाते हैं

यहाँ इक रोज़ हड्डी रीढ़ की हो जाएगी ग़ायब
चलो ऐसा करें इस नौकरी से भाग जाते हैं

लिखा था बालपन का सुख यशोदा-नन्द के हिस्से
तभी तो कृष्ण काली कोठरी से भाग जाते हैं
सादर आभार :ओमप्रकाश यती
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कालीपद "प्रसाद"

 ऐ भौंरें ! सूनो , बाग़ की शान्ति न तुम तोड़ो 
स्वागत है तुम्हारा , फूलों से नेह-नाता जोड़ो|| 
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वन्दना सिंह 
अहम पर लगी चोट 
वक्त भरता नही है 
बल्कि बो देता है 
उसमे जज्बातों के 
'नागफनी'
अरुण साथी 
सोशल मीडिया वौज्ञानिकता का प्रतीक है पर आज यहां घृणा, जाति-धर्म और हिंसात्मकता ही दिखती है। रामजादे-हरामजादे और मरीच के रूप में घृणा के बोल निकल रहे है और उसके समर्थन में एक बड़ा वर्ग सामने आ रहा है।
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रेखा जोशी 
बेटा अपना
बेटी पराया धन
दान कन्या का
प्रबोध कुमार गोविल
पिछले दिनों जबलपुर जाना हुआ। इस शहर में लगभग बीस साल पहले मैं कुछ समय के लिए रह चुका हूँ।मुझे इस शहर की कुछ बातें, शुरू से बहुत अच्छी लगती रही हैं।
अनीता जी 
साधक को कभी भी संतोषी नहीं होना चाहिए. कभी-कभी ऐसा होता है जिस अनुभव को वह उच्च मानता है वह तो भूमिका से भी पूर्व की स्थिति होती है.
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प्रियंका जैन
"दोस्त मिले कुछ ऐसे.. 
ज़िंदादिली दलते रहे.. 
मैं था खाली हो रहा..
 खुशियाँ अपनी मलते रहे.. 
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शिखा कौशिक 'नूतन'

घर का सैप्टिक टैंक लबालब भर गया था .सारू का दिमाग बहुत परेशान था .कोई सफाईकर्मी नहीं मिल पा रहा था .सैप्टिक टैंक घर के भीतर ऐसी जगह पर था जहाँ से मशीन द्वारा उसकी सफाई संभव न थी .सारू को याद आया कि उसके दोस्त अजय की जानकारी में ऐसे सफाईकर्मी हैं जो सैप्टिक टैंक की सफाई का काम करते हैं .उसने अजय को दोपहर में फोन मिलाया तो अजय ने उसे आश्वासन दिया कि वो अपनी जानकारी के सफाईकर्मियों को उसके घर सैप्टिक टैंक की सफाई हेतु भेज देगा .सारू की चिंता कुछ कम हुई
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उदय वीर सिंह 
शाखों पर शहनाई बजती 
अब खामोश परिंदे हैं -

थी पीत वसन पावन मंजूषा 
अब आगोश दरिंदे हैं -
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नीरज कुमार नीर 
चलती अहर्निश 
रूकती नहीं है 
माँ है मेरी वो 
थकती नहीं है
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 (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कुहरा करता है मनमानी।
जाड़े पर आ गयी जवानी।।
नभ में धुआँ-धुआँ सा छाया,
शीतलता ने असर दिखाया,
काँप रही है थर-थर काया,
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लिली कर्मकार
अगर हम मूक दर्शक मात्र है फिर हमें किसी भी घटना के बारे में आलोचना करने का कोई हक नहीं है ।। ( हरियाणा में उन दो लड़किओं ने अगर लड़कों को बेवजह ही पिट रही थी...
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ऋता शेखर मधु
वह प्यारी सी लड़की
भरना चाहती थी
आँचल में अपने
एक मुट्ठी आसमान
ब्रह्म से सांध्य निशा तक
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मेरा नन्हा दोस्त चैतन्य शर्मा 
अरुण चन्द्र रॉय
१,
आटा 

थोडा गीला
फिर भी गीली
तुम्हारी हंसी

२.
मैं 
तुम 
बच्चे , 
गीले बिस्तर की गंध 
कितनी सुगंध
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जी ...वो.... , डर गई थी मैं.... 
-मेडम प्लीज.... बाजू से आवाज आई तो मुड़कर देखा मैंने , एक पुरानी स्टूडेंट की माँ ने मुझे पुकारा था.. - मेडम प्लीज थोड़ा रूकिए , आपसे एक बात करनी है.. मैं रूक गई, - जी कहिए कहते हुए ... उन्हों-मेडम प्लीज.... बाजू से आवाज आई तो मुड़कर देखा मैंने , एक पुरानी स्टूडेंट की माँ ने मुझे पुकारा था.. - मेडम प्लीज थोड़ा रूकिए , आपसे एक बात करनी है.. मैं रूक गई, - जी कहिए कहते हुए ... उन्होंने कहा -दो मिनट.. और उन शिक्षिका से जल्दी-जल्दी बात खतम की... 
मेरे मन की पर अर्चना चावजी 

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||टंटा और ताण्डव|| 
टं टा हिन्दी की प्रचलित शब्दावली का एक लोकप्रिय शब्द है। झगड़ा, फ़साद, दंगा, लड़ाई, अड़चन या बखेड़ा के अर्थ में इसका खूब इस्तेमाल होता है। यही नहीं प्रभावी अभिव्यक्ति के लिए टंटा-फ़साद या झगड़ा-टंटा जैसे युग्म शब्द भी बोले जाते है। टंटा की रच-बस हिन्दी समेत तमाम उत्तर भारतीय भाषाओं में है। जानकर ताज्जुब हो सकता है कि द्रविड़ भाषाओं में भी इसकी व्याप्ति है... 
शब्दों का सफर पर अजित वडनेरकर  

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सत्य जिन्दगी के .... 

VMW Team

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सर-ए-आम यूँ ही जुल्फ संवारा न कीजिये 
 बे-मौत हमको हुस्न से मारा न कीजिये | 
लहराते हैं यूँ गेसू कि दिल भी मचल उठे, 
काँधे को यूँ अदा से उसारा न कीजिए... 
MaiN Our Meri Tanhayii पर 

Harash Mahajan 
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जीत ...... 

आपका ब्लॉग पर Mohan Sethi 

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क्या हम बच्चों से पूछते हैं 
कि हमें कहाँ व किस विभाग में 
नौकरी करनी चाहिए... 
डा श्याम गुप्त 

सृजन मंच ऑनलाइन
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"शीतलता बढ़ गई पवन में" 
IMG_0829
शीतलता बढ़ गई पवन में।
कुहरा छाया नील गगन में।

चारों ओर अन्धेरा छाया,
सूरज नभ में है शर्माया,
पंछी बैठे ठिठुर रहे हैं,
देख रहे हैं घर-आँगन में।
कुहरा छाया नील गगन में... 
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आज के लिए बस इतना ही... 

8 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया लिंक्स-सह-चर्चा प्रस्तुति
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया सूत्र, बढ़िया प्रस्तुति...मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार !!

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह कितने सुन्दर लिंक्स .... हार्दिक आभार.

    जवाब देंहटाएं
  4. हमें मालूम है फिर भी नहीं हम खिलखिला पाते
    बहुत से रोग तो केवल हँसी से भाग जाते हैं

    बहुत सही कहा है...पठनीय चर्चा के लिए बधाई..आभार 'डायरी के पन्नों से' के लिए

    जवाब देंहटाएं
  5. धन्यवाद राजेंद्र कुमार जी..!!

    सादर आभार..!!

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर सूत्र संकलन , चैतन्य को शामिल करने का आभार

    जवाब देंहटाएं
  7. आदरणीय राजेन्द्र कुमार जी।
    व्यस्तता के बावजूद भी आपने बहुत उपयोगी लिंको के साथ
    सुन्दर चर्चा की है।
    आपका आभार।

    जवाब देंहटाएं

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