रविकर
"कुछ कहना है"
चढ़े सफलता शीश पे, करे साधु भी गर्व। कलाकार, गृह-स्वामिनी, मान चाहते सर्व।
मान चाहते सर्व, नहीं अपमान सह सके । कलाकार तब मौन, साधु से गुस्सा टपके । सबका अपना ढंग, किन्तु गृहिणी का खलता। रो लेती चुपचाप, कहाँ कब चढ़े सफलता। |
नववर्ष ........इंतज़ार
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चर्चामंच परिवार के समस्त सदस्यों को नववर्ष पर हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteसुप्रभात
ReplyDeleteनव वर्ष के लिए शुभ कामनाएं समस्त चर्चा मंच परिवार के सदस्यों को |
मेरी रचना शामिल की धन्यवाद सर |
पठनीय लिंकों के साथ सार्थक चर्चा।
ReplyDeleteआपका आभार रविकर जी।
इस वर्ष की सुन्दर व सार्थक अंतिम चर्चा हेतु प्रस्तुति आभार!
ReplyDeleteचर्चा प्रस्तुति के सभी चर्चाकारों को नए साल की हार्दिक मंगलकामनाएं!
सार्थक प्रस्तुति .नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें .
ReplyDeleteनव वर्ष के लिए शुभ कामनाएं
ReplyDeleteचर्चामंच परिवार के समस्त सदस्यों को नववर्ष पर हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDelete2014 की अंतिम सुंदर चर्चा में 'उलूक' के सूत्र 'पी के जा रहा है और पी के देख के आ रहा है' को जगह देने के लिये आभार रविकर जी ।
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