मित्रों।
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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निरीह निर्विकार
Akanksha पर
akanksha-asha.blog spot.com
--ना रही बुलबुल और ना ही उसका तराना है।
अपनी मंजिल और आपकी तलाश पर प्रभात
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सिसकियाँ सुलग रही
पतंग सी उड़ती आकाश में
पल में कटी धरा पे आन गिरी
बंद कमरों में दीवारों से टकराती
सिसकियाँ सुलग रही..
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi
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तल्खी और तकल्लुफ
जो आज दिखी असहमति नहीं अभिव्यक्ति मात्र है
आज तक सारा नियंत्रण अभिव्यक्ति पर ही रहा
असहमति विद्यमान तो थी सदा-सर्वदा ही
पर रोकी जाती रही...
Smart Indian
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पुराने खत
इस बार तो हद कर दी तुमने,
अपने पुराने खत वापस मांग लिए,
पर ऐसी कई चीज़ें हैं,
जो न तुम मांग सकती हो,
न मैं दे सकता हूँ...
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भटकाव
आख़िर मैं पहुँच ही गया
जहाँ पर राह ख़त्म हो ज़ाती है
यहाँ पर न शहर है न गाँव है
आकाश का धरती की ओर
बस कुछ झुकाव है...
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रिश्तों की परिभाषा !
स्वार्थ ने अपने को पराया कर दिया।
बस एक रिश्ता आज भी जिन्दा है उसी तरह
वो रिश्ता है दर्द का रिश्ता...
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"नमन शैतान करते है"
मधुर पर्यावरण जिसने, बनाया और निखारा है,
हमारा आवरण जिसने, सजाया और सँवारा है।
बहुत आभार है उसका, बहुत उपकार है उसका,
दिया माटी के पुतले को, उसी ने प्राण प्यारा है...
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*इश्क़ इक खूबसूरत अहसास ....*
तुमने ही तो कहा था
मुहब्बत ज़िन्दगी होती है
और मैंने ज़िन्दगी की तलाश में
मुहब्बत के सारे फूल
तेरे दरवाजे पर टाँक दिए थे...
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"खुलूस से कह राम और रहीम"
अल्लाह निगह-ए-बान है, वो है बड़ा करीम।
जाति, धरम से बाँध मत, मौला को ऐ शमीम।।
बख्शी है हर बशर को, उसने इल्म की दौलत,
इन्सां को सँवारा है, दे शऊर की नेमत,
क्यों भाई को भाई से जुदा कर रहा फईम।
जाति, धरम से बाँध मत, मौला को ऐ शमीम...
सराहनीय
जवाब देंहटाएंसराहनीय
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
उम्दा सूत्र |
बढ़िया लिंक्स...मेरी रचना शामिल करने के लिए दिल से शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपको.....मेरी रचना को यहाँ शामिल करने के लिए मैं तहे दिल से आभारी हूँ.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ...आभार!
जवाब देंहटाएंसुन्दर - सार्थक एवं सटीक प्रस्तुति के लिये बधाई एवं मेरी रचना को स्थान देने के लिये मंच का हृदय से आभार !!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा
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