मित्रों!
रविवासरीय चर्चा मंच में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के निम्न लिंक।
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*सूरज दादा कहाँ गए तुम*
सूरज दादा कहाँ गए तुम,
काह ईद का चाँद भए तुम।
घना अँधेरा, काला - काला,
दिन निकला पर नहीं उजाला।...
Anand Vishvas
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*सूरज दादा कहाँ गए तुम*
सूरज दादा कहाँ गए तुम,
काह ईद का चाँद भए तुम।
घना अँधेरा, काला - काला,
दिन निकला पर नहीं उजाला।...
Anand Vishvas
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ये ठंड भला क्यों हमारी दुश्मन बने ?
....सर्दी या गरमी तभी परेशान करते हैं जब आपके शरीर की इम्यूनिटी कमजोर हो गयी हो। उसको बनाये रखने के लिए आप २-४ चीजों का सहारा लीजिए। एक महीने ६ ग्राम अश्वगंधा चूर्ण रोज पानी से निगलिये ,दूसरे महीने ५ ग्राम हल्दी चूर्ण ,तीसरे महीने ५ छोटी हर्रे का चूर्ण। सुबह सवेरे नाश्ते से ५ मिनट पहले निगलना है। चौथे महीने फिर अश्वगंधा से क्रम शुरू कीजिए। विश्वास कीजिए साल भर में एक बार भी डाक्टर के पास जाने की जरुरत नहीं पड़ेगी। यही नहीं आप सारे मौसमों का भरपूर आनंद उठाएंगे।
ये ठंड भला क्यों हमारी दुश्मन बने ?
....सर्दी या गरमी तभी परेशान करते हैं जब आपके शरीर की इम्यूनिटी कमजोर हो गयी हो। उसको बनाये रखने के लिए आप २-४ चीजों का सहारा लीजिए। एक महीने ६ ग्राम अश्वगंधा चूर्ण रोज पानी से निगलिये ,दूसरे महीने ५ ग्राम हल्दी चूर्ण ,तीसरे महीने ५ छोटी हर्रे का चूर्ण। सुबह सवेरे नाश्ते से ५ मिनट पहले निगलना है। चौथे महीने फिर अश्वगंधा से क्रम शुरू कीजिए। विश्वास कीजिए साल भर में एक बार भी डाक्टर के पास जाने की जरुरत नहीं पड़ेगी। यही नहीं आप सारे मौसमों का भरपूर आनंद उठाएंगे।
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पृथु जीवन के प्रथम वर्ष पर
कृत्य तुम्हारे, हर्ष परोसें,
नन्हे, कोमल, मृदुल करों से,
बरसायी कितनी ही खुशियाँ,
चंचलता में डूबी अँखियाँ,
देखूँ, सुख-सागर मिल जाये,
मीठी बोली जिधर बुलाये,
समय-चक्र उस ओर बढ़ा दूँ,
नहीं समझ में आता, क्या दूँ ?...
पृथु जीवन के प्रथम वर्ष पर
कृत्य तुम्हारे, हर्ष परोसें,
नन्हे, कोमल, मृदुल करों से,
बरसायी कितनी ही खुशियाँ,
चंचलता में डूबी अँखियाँ,
देखूँ, सुख-सागर मिल जाये,
मीठी बोली जिधर बुलाये,
समय-चक्र उस ओर बढ़ा दूँ,
नहीं समझ में आता, क्या दूँ ?...
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इतिहास कभी नया बन जाता
ये दर्द अगर दवा बन जाता
तो तू मेरा ख़ुदा बन जाता |
है मन्दिर-मस्जिद के झगड़े
काश ! हर-सू मैकदा बन जाता |...
साहित्य सुरभि
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कायरता है पुरुष की
समझे बहादुरी है ,
झुलसाई ज़िन्दगी ही तेजाब फैंककर ,
दिखलाई हिम्मतें ही तेजाब फैंककर .
अरमान जब हवस के पूरे न हो सके ,
तडपाई दिल्लगी से तेजाब फैंककर...
दिखलाई हिम्मतें ही तेजाब फैंककर .
अरमान जब हवस के पूरे न हो सके ,
तडपाई दिल्लगी से तेजाब फैंककर...
! कौशल !परShalini Kaushik
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झुलसाई ज़िन्दगी ही तेजाब फैंककर ,
दिखलाई हिम्मतें ही तेजाब फैंककर .
अरमान जब हवस के पूरे न हो सके ,
तडपाई दिल्लगी से तेजाब फैंककर...
भारतीय नारीपरShalini Kaushik
दिखलाई हिम्मतें ही तेजाब फैंककर .
अरमान जब हवस के पूरे न हो सके ,
तडपाई दिल्लगी से तेजाब फैंककर...
भारतीय नारीपरShalini Kaushik
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असम
असम के बारे में न्यूज़ देखते देखते
मन रुआँसा हो गया।
कौन है यह बोडो ?
क्यों चाहिए बोडो लैंड ?
कितने नरसंहार और कब तक...
Nivedita Dinkar
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"दोहे-ब्लॉगिंग के पश्चात ही,
फेसबूक को देख"
फेसबूक पर आ गये, अब तो सारे मित्र।
हिन्दी ब्लॉगिंग की हुई, हालत बहुत विचित्र।१।
लगा रहे हैं सब यहाँ, अपने मन के चित्र।
अच्छे-अच्छों का हुआ, दूषित यहाँ चरित्र।२।...
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआज की दौड़ती-भागती जिन्दगी में बेवश इंसान के पास अपने और अपने परिवार के लिए ही समय निकाल पाना बेहद मुश्किल होता है और ऐसी विकट परिस्थिति में भी दूसरों के लिए समय और श्रम जुटा पाना तो कोई आदरणीय शास्त्री जी से ही सीखे।
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी की सेवाभावी लगन को नमन,
शत्-शत् नमन।
....आनन्द विश्वास
सुप्रभात |
जवाब देंहटाएंआपने पढ़ने के लिए आज बहुत सारी लिंक्स दी हैं धन्यवाद शास्त्री जी |
बहुत सुंदर चर्चा सुंदर प्रस्तुति । 'उलूक' के सूत्र 'इसके जाने और उसके आने के चरचे जरूर होंगे' को शामिल करने के लिये आभार ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा.
जवाब देंहटाएं'देहात' से मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.
बहुत सही बात कही है....
जवाब देंहटाएंफेसबूक पर आ गये, अब तो सारे मित्र।
हिन्दी ब्लॉगिंग की हुई, हालत बहुत विचित्र।
अच्छा संयोजन.
आभार
अनिल साहू
बहुत बढ़िया सार्थक चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ! मयंक जी ! मेरी रचना ' नवगीत ( 11 ) ' एक सिंहिनी हो चुकी जो भेड़ थी ॥'' को शामिल करने हेतु !
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सार्थक चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार आदरणीय !
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