नमस्कार मित्रों, आज के चर्चा में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। आज की चर्चा का शुरुआत आज की ज्वलंत समस्या पर नवभारत टाइम्स में छपी अंबरीश जी की प्रस्तुति से करते हैं।
देश की लड़कियां आज भी है बेबस और लाचार,
निर्भया हादसे के बाद भी किसी ने नही सुनी उनकी दुख भरी गुहार..
आज फिर एक बार हुआ हमारा देश शर्मसार,
हालही में टॅक्सी में हुआ एक लड़की का बलात्कार..
रोज़ाना अनगिनित लड़कियो पर हो रहा है बलात्कार,
उम्मीद है की कुछ तो ज़रूर करेगी हमारी यह नई सरकार..
कहो कब थमेगा महिलाओ पर हो रहा यह अत्याचार,
जल्द ही कानून में कुछ बड़े फेर-बदल करेगी हमारी श्री. मोदी सरकार..
कुछ तो कड़े और ठोस कदम उठाने पडेंगे इस बार,
की कुछ करने से पहले बलात्कारी सोचेगा सौ बार..
सभी नेताओ से हाथ जोड़कर हमारी बिनती है इस बार,
की हमेशा की तरह बेकार की बयानबाज़ी न करे इस बार..
आज भी जिसे देखो वो बेवजह एक दूसरे पर उँगली उठा रहा है,
महिला सुरक्षा का मामला आज हर जगह गर्मा रहा है..
अपने हक के लिये देश की महिलाए लड रही है आज,
इंसाफ पाने के लिये बुलंद की है उन्होने अपनी आवाज़..
बलात्कारियो के खिलाफ देश में एक मुहिम छिड़ गई है आज,
अब आगे और न लूटने देंगे हम भारत की बेटियो की लाज....
डॉ आशुतोष शुक्ला
कभी लोगों को मानहानि से बचाने के लिए सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में सोचते हुए सरकार द्वारा जिस तरह से आईटी एक्ट में धारा ६६-ए जोड़ने का प्रावधान किया था आज उसके अपने निजी हितों के लिए दुरूपयोग दिखाई देने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसे शर्मनाक बताया है.
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अनीता जी
परमात्मा के नाम के सिवा सभी कुछ नश्वर है, इसका बोध होते ही सारा दृश्य बदल जाता है. अस्तित्त्व मुखर हो जाता है. ऐसा बोध आत्मा की गहराई से उपजता है. भीतर जो सत्य, आनंद का स्रोत है वहाँ से.
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जयकृष्ण राय तुषार
इस मुल्क की सूरत को बदलने के लिए आ |
कुछ दूर मेरे साथ में चलने के लिए आ |
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सुमन जी
११ दिसंबर को सद्गुरु ओशो का जन्मदिन होता है ! हम सब ओशो प्रेमी, साधक अपनी अपनी ख़ुशी के अनुसार इस महोत्सव दिन को मनाते है और ख़ुशी के इस उत्सव में आप सब आमंत्रित है !
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सुशील कुमार जोशी
मेरे अपने
खुद के कुछ
खुले आसमान
खो गये
पता नहीं कहाँ
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प्रवीण चोपड़ा
मेरा अपना अनुभव है कि आज से चालीस साल पहले हर तरफ़ एक तरह का सन्नाटा पसरा रहता था..शायद हम लोग इस सन्नाटे के भंग होने की इंतज़ार किया करते थे.....अधिकतर ये भंग होता था..पेढ़ों के पत्तों की आवाज़ों से, पंक्षियों के गीतों से....
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साधना वैध
कितना देते
फल, फूल, सुगंध
वृक्ष हमारे !
खुश होते हैं
हिला कर पल्लव
वृक्ष साथ में !
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चला बिहारी ब्लॉगर बनने
रोम में एक सम्राट बीमार पड़ा हुआ था. वह इतना बीमार था कि चिकित्सकों ने अंतत: इंकार कर दिया कि वह नहीं बच सकेगा. सम्राट और उसके प्रियजन बहुत चिंतित हो आए और अब एक-एक घड़ी उसकी मृत्यु की प्रतीक्षा ही करनी थी और ……
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त्रिपुरेन्द्र ओझा " निशान "
कैसे मै कहूं मै कौन हूँ ,
बस यूँ समझ लो
मिल जाय मुझे गंगा तो सागर हूँ
वरना अविरल बहता पानी हूँ,
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उदय वीर सिंह
तेरे काले धन के साम्राज्य में
छोड़ ईमान सब सस्ता क्यों है -
सहरा को जरूरत है पानी की
बादल जा झील बरसता क्यों है -
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कविता रावत जी
बैल को सींग और आदमी को उसकी जबान से पकड़ा जाता है।
अक्सर रात को दिया वचन सुबह तक मक्खन सा पिघल जाता है।।
तूफान के समय की शपथें उसके थमने पर भुला दी जाती हैं।
वचन देकर नहीं मित्रता निभाने से कायम रखी जा सकती हैं।।
प्रमोद सिंह
उत्सवधर्मी चिंताकर्मी हिन्दी पत्रिका के लिए होगी फालतू
बस ख़्यालों में होगी तैरती कविता, इम्प्रेशंस के लतरी जंगल में उतरती
रह-रहकर दीख जाती कुहरीले बुखारों से उबरती
पुरातन इंजन, औज़ार, डूबी नाव का इस्पात सूंघती
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वीरेन्द्र कुमार शर्मा
जीवन और मृत्यु दो दरवाज़े हैं आपने सामने। जीव आत्मा (जीवा )एक से दुसरे में जाता रहता है इस अस्थाई काया को छोड़ कर जो हमें अपने माँ बाप से मिलती है।
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कुलदीप ठाकुर
भारत विभाजन के बाद
उठी चिंगारी वहां
यहां भी।
ज्वाला बन उसने
हाहाकार मचाया यहां
खाक बनाया वहां भी।
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Khizar Syed
कुछ गीले-शिकवो की गठरीया छोड़ आया था उसी दरख़्त के छाँव मे रखी बेंच पे जहा आख़िरी बार हम मिले थे! सुना है अब वहाँ आता जाता भीनही है कोई! वो जो दरख़्त था ना, वो भी बूढ़ा हो गया है और बेंच पे अब बस धूल ही बैठा करती है!
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राजीव उपाध्याय
अकेले ही अकेले हूँ
ना साथ कोई है मेरे
लोग सारे चले गये
तन्हा मैं ही रह गया।
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डॉ ऐ के द्विवेदी
अनचाहे बाल महिलाओं की एक आम समस्या है। महिलाओं के चेहरे पर पुरुषों जैसे बाल आ जाने से बहुत ही दुखद स्थिति बन जाती है। आमतौर पर ठोड़ी और होंठ के ऊपर बाल आते हैं।
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डॉ ०ज्योत्स्ना शर्मा
ड्योढ़ी पर दीप जला
हँसता उजियारा
तम के मन ख़ूब खला ।
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रविकर जी
पगला बनकर के करें, अगर नौकरी आप ।
सकल काम अगला करे, बेचारा चुपचाप ।
बेचारा चुपचाप, काम से डरना कैसा ।
बने रहो नित कूल, मिलेगा पूरा पैसा ।
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एक शहर है, बहुत विशाल, लोगों से भरा, लोगों से डरा, मकानों से पटा, सटा-सटा। ये शहर 'बड़ा शहर' है। एक है इसका उलट, छोटा सा, आधे घंटे में एक छोर से उस छोर, कम लोग, नीचे मकान, खाली सड़कें, बिलकुल विपरीत, 'छोटा शहर'।
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अमित कुमार
जरुर तुमने वहाँ मुस्कान बोई होगी
जो यह सेवंती इस बार
बेहिसाब फूली है
पात-पात कली झूली है
और जब तुम हँसी होगी
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मनोज कुमार
आज के समय में लैपटॉप का प्रयोग करने वालो की संख्या काफी बढ़ गयी है। अगर आप भी लैपटॉप प्रयोग करते हैं तो कृपया अपने लैपटॉप की बेकार बैटरी को फेके नही और न ही कबाड़ी वाले को दे क्यों कि अब आपके लैपटॉप के बेकार बैटरी से रौशनी की जा सकती
प्रीत और मनुहार की बातें करें।
मतलबी संसार की बातें करें।।
कामनाओं में लगी अब होड़ है,
खाज मे पैदा हुआ अब कोढ़ है,
गुम हुए त्यौहार की बातें करें।
मतलबी संसार की बातें करें।।
आदरणीय सर...सुंदर भूमिका में ज्वलंत प्रश्न पर प्रकाश के साथ सुंदर चर्चा...
जवाब देंहटाएंमुझे भी स्थान दिया आभार।
सात समन्दर पार बसे प्रवासीय भारतीय आदरणीय राजेन्द्र कुमार की लेखनी से निकली आज की चर्चा बहुत उम्दा है।
जवाब देंहटाएं--
आपका आभार आदरणीय।
उम्दा समसामयिक चर्चा और सूत्र |
जवाब देंहटाएंपठनीय सूत्रों से सजी उत्तम चर्चा...आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और बहुत मेहनत से संयोजित चर्चा में 'उलूक' के सूत्र 'कितने आसमान किसके आसमान' को भी जगह देने के लिये आभार राजेंद्र जी ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर ब्लॉग लिंक प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट शामिल करने हेतु आपका आभार!
जवाब देंहटाएंमेरी प्रस्तुति 'सेवंती' को 'चर्चा मंच' के "क्या महिलाए सुरक्षित है !!!" (चर्चा अंक-1825)" में सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार , राजेन्द्र कुमार जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर एवं सम्यक चर्चा ! मेरी प्रस्तुति को सम्मिलित करने के लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार राजेन्द्र जी !
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा -
जवाब देंहटाएंआभार भाई जी -
सभी अच्छी पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा ! मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुन्दर संयोजन ....मेरी रचनाओं को भी स्थान देने के लिए बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर समायोजन। रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआज शुरआत और अंत दोनों धमाकेदार प्रस्तुतियों से हुआ। शुभ रात्रि
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका !
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