अशोक सिंहल ने किया "विश्व हिन्दू परिषद - एक परिचय" का विमोचन
गोली बंदूकें उगा, नहीं जरूरी अन्न ।
खड़ा मुहाने पर जगत, विश्व-युद्ध आसन्न।
विश्व-युद्ध आसन्न, तेल के कुँए लूट ले।
कर भीषण विस्फोट, मार के तुरत फूट ले ।
हिन्दु देखता मौन, करे कम्युनिष्ट ठिठोली ।
दिखे उग्र इस्लाम, ईसाई देते गोली ॥
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pramod joshi
जिज्ञासा -
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त्रिवेणी
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ठण्ड में ठिठुरते नहीं
तसल्ली की घूँट पी जाते हैं
गर्मियों की चिलचिलाती धूप ओढ़ते हैं
लू की सर्द हवा में लहराते हैं
सावन की बारिश में नहाते हैं
पतझड़ के तोलिये से जिस्म सुखाते हैं...
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आज की चर्चा में बहुत सुन्दर और पठनीय लिंक है।
जवाब देंहटाएंआपका आभार रविकर जी।
उप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा सूत्र और संयोजन |
बढ़िया चर्चा प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंआभार!
बढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंअतिसुन्दर लिँक संयोजन,
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी, कुछ दिन पहले मेरे ब्लॉग पर एक पाठक ने टिप्पणी कि कोई ऐसा ब्लॉग हो तो बताये जो केवल फोटोग्रोफी पर ही लेख लिखते हैँ। मुझे तो नहीँ मिला आपको पता हो तो जरूर बताये गा ।
आपका आभारी ।
Reply
बहुत सुंदर सूत्र संयोजन सुंदर मंगलवारीय चर्चा अंक । आभार 'उलूक' का 'खुद को ढूँढने के लिये खोना जरूरी है' को जगह देने के लिये ।
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