मित्रों
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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मज़दूर
सर्द हवाओं का नहीं रहता खौफ मुझे और ना ही मुझे कोई गर्म लू सताती है
आंधी, वर्षा और धूप का मुझे डर नहीं मुझे तो बस ये पेट की आग डराती है
उठाते होओगे तुम आनंद जिन्दगी केयहां तो जवानी अपना खून सूखाती है
खून पसीना बहा कर भी फ़िक्र रोटी की टिड्डियों की फौज यहां मौज उड़ाती है
पसीना सूखने से पहले हक़ की बात ?हक़ मांगने पर मेहनत खून बहाती है
रखे होंगे इंसानों ने नाम अच्छे – अच्छे मुझे तो “कायत” दुनिया मजदूर बुलाती है :- कृष्ण कायत
सर्द हवाओं का नहीं रहता खौफ मुझे और ना ही मुझे कोई गर्म लू सताती है
आंधी, वर्षा और धूप का मुझे डर नहीं मुझे तो बस ये पेट की आग डराती है
उठाते होओगे तुम आनंद जिन्दगी केयहां तो जवानी अपना खून सूखाती है
खून पसीना बहा कर भी फ़िक्र रोटी की टिड्डियों की फौज यहां मौज उड़ाती है
पसीना सूखने से पहले हक़ की बात ?हक़ मांगने पर मेहनत खून बहाती है
रखे होंगे इंसानों ने नाम अच्छे – अच्छे मुझे तो “कायत” दुनिया मजदूर बुलाती है :- कृष्ण कायत
Krishan Kayat
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है आज मजदूर दिवस
है आज मजदूर दिवस
क्यूं न पूरी मजदूरी दें
श्रमिक का दिल न दुखाएं
श्रमिक को सम्मान दें |
वह दिन भर खटता रहता
जो कुछ पाता घर चलाता
काम न मिले तो झुंझलाता
सोचता आज चूल्हा कैसे जले |
असंतोष उसे मधुशाला ले जाता ...
क्यूं न पूरी मजदूरी दें
श्रमिक का दिल न दुखाएं
श्रमिक को सम्मान दें |
वह दिन भर खटता रहता
जो कुछ पाता घर चलाता
काम न मिले तो झुंझलाता
सोचता आज चूल्हा कैसे जले |
असंतोष उसे मधुशाला ले जाता ...
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खिलौने
बच्चे कई तरह के होते हैं,खिलौनों को लेकर उनकी पसंद भी एक सी नहीं होती.
कुछ बच्चों को पसंद होता है,खिलौने तोड़ना,उनसे खेलना नहीं.ऐसे कुछ बच्चे बड़े होकर बदल जाते हैं,छूट जाती है उनकी तोड़ने की आदत....
बच्चे कई तरह के होते हैं,खिलौनों को लेकर उनकी पसंद भी एक सी नहीं होती.
कुछ बच्चों को पसंद होता है,खिलौने तोड़ना,उनसे खेलना नहीं.ऐसे कुछ बच्चे बड़े होकर बदल जाते हैं,छूट जाती है उनकी तोड़ने की आदत....
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गीत
" नवगीत "
हो गयी बिम्बित किसी अनुबन्ध की अभिव्यक्ति सी ।
वासना की ध्वनि सदा गुंजित हुई अतृप्ति सी...
तीखी कलम से पर
Naveen Mani Tripathi
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उद्वेग
अकेले बैठता हूँ, तो विचारों के बवंडर,
शान्त मन को घेर लेते हैं ।
मैं कितना जूझता हूँ, किन्तु फिर डूबता हूँ,
मैं निराशा की नदी में ।
अगर मैं छोड़ता हूँ, स्वयं को मन के सहारे,
आत्म का अस्तित्व खोता हूँ...
Praveen Pandey
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साथ रहना तुम कभी मत छोड़ना जानम आज
अब सिमटते है उजाले थाम कर आँचल
आज फिर सुबह आती
नई खुशियाँ लिये दामन आज …
देख तेरे नैन हम उसमे
समा कर रह गये
बाँध कर तुमने हमें क्यों
कर रखा साजन आज …
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कुछ ना कुछ तो....
चौराहे पर भीड़ लगी है ,
कुछ ना कुछ तो बात हुई है .
कैसे ये खिड़कियाँ खुली हैं ,
कुछ ना कुछ तो बात हुई है ...
गिरिजा कुलश्रेष्ठ
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दिन रात होना प्रकृति की परंपरा है
जाने कितने दिनों के बाद गली में आज चाँद निकला....
जी हाँ इससे पहले बड़े नाज़ुक दौर से गुज़र रहे थे हम...
ये मेरे दोनों स्टेटस के बीच के दिनों में
जब मैं चुप्पी साधे था तो लोगों ने क्या-क्या अर्थ नहीं लगाये....
आज से पांच साल पहले की बात है मैं एक स्टेटस लगाये दिखता था कि
दिन रात होना प्रकृति की परंपरा है
सुख दुःख सहना आना चाहिए बिना इसके कहा सफलता है...
प्रभात
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बालकविता
"मौसम के शीतल फल खाओ"
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सूरज ने है रूप दिखाया।
गर्मी ने तन-मन झुलसाया।।
धरती जलती तापमान से।
आग बरसती आसमान से।।
लेकिन है भगवान कृपालू।
सबका रखता ध्यान दयालू।।
कुदरत ने फल उपजाये हैं।
जो सबके मन को भाये हैं...
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