मित्रों
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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गरमी का मौसम आया है!
लीची के गुच्छे लाया है!!
दोनों ने गुच्छे लहराए!
लीची के गुच्छे मन भाए!!
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एक मित्र की अंतिम संस्कार में भाग लेने हेतु मुझे उसके गाँव, अमीरपुर जाना पडा. हम दोनों एक साथ सेना में थे. सन इकहत्तर की लड़ाई में हम दोनों ने ही भाग लिया था. उस युद्ध में वह बुरी तरह घायल हो गया था. उसकी दोनों टांगें काटनी पडीं थीं. सेना से उसे सेवानिवृत्त कर दिया गया. अमीरपुर गाँव में उसकी पुश्तैनी ज़मीन थी. वह अपने गाँव चला आया. पर साधारण खेती करने के बजाय उसने बीज पैदा करने का काम शुरू किया...
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अलंकार
बिना अलंकार श्रंगार अधूरा
बिना उसके साहित्य भी सूना
निखार रूप में
तभी आता जब रूपसी
सजी हो अलंकारों से...
बिना उसके साहित्य भी सूना
निखार रूप में
तभी आता जब रूपसी
सजी हो अलंकारों से...
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इक जैसा होना जरुरी नही है.....!!!
कहाँ मिलती थी हमारी सोच,
हमारे ख्याल,
कुछ भी तो, एक जैसा नही था हमारे बीच....
फिर भी ना जाने क्या था हमारे बीच,
जो हमे जोड़ता था....
जो इक-दूसरे के करीब रखता लाता था...
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तुमसे मैंने हवा ही हवा पाया
प्रभात
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जादूगर अनि,
जन्मदिन मुबारक!
Pratibha Katiyar
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बाद गिरने के संभलना आए
टूट कर बिखरा तो वजूद क्या
टूट कर संवरना आए -
गिरे पेड़ से भी कल्ले निकलते हैं
बाद गिरने के संभलना आए...
udaya veer singh
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कौन
वे चुप हैं जिनसे उम्मीद थी ख़िलाफ़त की,
कहीं और चलते हैं, यहाँ अब बचाएगा कौन ?
पहचाना सा लगता है मुझे हर एक चेहरा,
कौन यहाँ दोस्त है, दुश्मन है कौन...
कविताएँ पर Onkar
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उन्ही राहों पर हम तन्हा चले हैं
कदम के निशाँ तेरे मेरे पड़े हैं ॥
वही रंग हैं और वही रूप भी है
मगर मेड नज़रें झुकाए खड़े है...
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