मित्रों
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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छितराए बादल
मैंने तुझे बंधक बनाया
अच्छा किया
नहीं तो तू भाग जाता
बूँद बूँद के लिए तरसाता
बदरा है तू कितना निष्ठुर
आता है चला जाता है
ज़रा भी तरस नहीं खाता...
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मुझ जैसे बिजली के खम्बे तो आजकल बहुत कम दिखते हैं. इस महानगर में तो मुझ जैसा खम्बा शायद ही आपको दिखे. आदमी ने अब काफी तरक्की कर ली है. अब आपको दिखेंगे सीमेंट या लोहे के खम्बे. पर मेरी बात और है मुझे विधाता ने एक वृक्ष बनाया था. आदमी ने मुझे बिजली का खम्बा बना दिया. है न कितनी अजीब नियति...
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भारत कभी सोने की चिड़िया, रत्नों की खान और ज्ञान का सागर कहा जाता था.
लेकिन हमारी जनसंख्या ने खासकर इस पर बड़ा प्रहार किया. विदेशी जो लूट गए सो तो लूट ही गए किंतु जन,संख्या की मार ने हमारे बीच ही होड़ खड़ी कर दी. संसाधनों के आभाव में हम स्वार्थी होते गए. दाने - दाने को तरसता गरीब अपना ईमान खो बैठा. इसी गरीबी और मजबूरी की आड़ में हमारे नेताओं ने भी ईमान बेचकर अपना स्वार्थ साधा. इस तरह देश का नागरिक और नेता दोनों कौम अपना व्यवहार खो बैठे. उनको अपने व्यवहार की चिंता उनको नहीं होती किंतु अन्यों का वही व्यवहार उन्हें परेशान करता है. ऐसे ही कुछ आदतें लोगों को कलुषित रत्न बनाती हैं. ऐसे ही कुछ वाकए यहाँ उद्धृत किए जा रहे हैं.,,,
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आज उस पुराने झूले को देखकर कुछ बातें याद आ गयी..
कई बरस गुजरे जब वो नया था..
उसकी रस्सियाँ चमकदार थी..
उनमे आकर्षण था..
उन रस्सियों का हर तागा बिलकुल अलग दिखाई देता था..
उस 'हम' में भी अपने 'अहम' को सम्हाले हुए..
उनमे चिकनाहट थी..और उन्हें पकड़ने का सलीका था...
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सोच बदलो , देश बदलो --
सामने एक शानदार गाड़ी चली जा रही थी। अभी हम उसकी खूबसूरती और शान ओ शौकत की मन ही मन प्रसंशा कर ही रहे थे कि अचानक उसकी एक खिड़की खुली और सड़क पर एक पानी की खाली बोतल फेंक दी गई। बोतल जैसे ही हमारी गाड़ी के पहिया के नीचे आई , एक जोर की आवाज़ आई जैसे टायर फट गया हो। हमने घबराकर गाड़ी साइड में लगाकर देखा तो पाया कि पहिया तो सभी सही थे लेकिन वो बोतल पहिया के नीचे आकर फट गई थी...
अंतर्मंथन पर डॉ टी एस दराल
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चुप रहो
‘’ममा, आप आधे घंटे से रसोई में हो और टीवी यूँ ही चल रहा है| आप बन्द करके जाया करो|’’
‘’चुप रहो’’
‘’पापा जी, बिना पंखा बन्द किए आप बाहर चले गए| मैम ने कहा है बिजली बचाना चाहिए|’’
‘’चुप रहो’’...
‘’चुप रहो’’
‘’पापा जी, बिना पंखा बन्द किए आप बाहर चले गए| मैम ने कहा है बिजली बचाना चाहिए|’’
‘’चुप रहो’’...
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महानता के मारे
यह जो ऊपर शीर्षक है –
‘’महानता के मारे’’,
यह इस बात को नहीं बताता कि
किस महानता की बात हो रही।
लिखने वाले चाहें तो लिख ही सकते हैं
संबंधित क्षेत्र-
क्रिकेटर/ वैज्ञानिक/ लेखक/ कवि/फेसबुकिये, आदि आदि...
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आये न मोरे पिया
रिम झिम रिम झिम
गरजत बरसत काले मेघा
आये न मोरे पिया ..
टप टप टिप टिप
बरस रही बूंदे बारिश की
पिया गये परदेस सखी री
मोहे छोड़ अकेला
सूना अंगना बिन पिया
जले जिया
रिम झिम रिम झिम
गरजत बरसत काले मेघा
आये न मोरे पिया ...
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