जय माँ हाटेश्वरी...
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आज की चर्चा में आप का स्वागत है...
आज सारा विश्व मजदूर दिवस मना रहा है...
संमेलन आयोजित हो रहे हैं...सभाएं हो रही है....जलूस निकाले जा रहे हैं...
आज से नहीं कई वर्षों से पर बेचारे मजदूर की दशा ऐसी ही है....
धूप में वह झुलसता , माथे पसीना बह रहा
विषमतायें , विवशतायें , है युगों से सह रहा.
सृजन करता आ रहा है , वह सभी के वास्ते
चीर कर चट्टान को , उसने बनाये रास्ते.
खेत,खलिहानों में उसकी मुस्कुराहट झूमती
उसके दम ऊँची इमारत , है गगन को चूमती.
सेतु , नहरें , बाँध उसके श्रम से ही साकार हैं
देश की सम्पन्नता का ,बस वही आधार है.
चिर युगों से देखता आया जमाने का चलन
कागजों के आँकड़े , आँकड़ों का आकलन.
अल्प में संतुष्ट रहता , बस्तियों में मस्त है
मत दिखा झूठे सपन वह हो चुका अभ्यस्त है.
तू उसे देने चला, दु:ख सहके जो सुख बाँटता
वह तेरी राहों के काँटे , है जतन से छाँटता.
लग जा गले तू आज ,झूठी वर्जनायें तोड़ कर
वह सृजनकर्ता,नमन कर हाथ दोनों जोड़ कर.--अरुण कुमार निगम
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पेश हैं मेरी पसंद के कुछ चुने हुए लिंक....
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgLOJd7TnQRqFFrjkFzEYvpTC37t6pF444Cu9ZdW4cmKjbFayBSuCGh2SMrT5iEgbiNrCpBe6CrnvxTESCDgIY4JW_0AR5ANtuVSRkqBfZPAw4tb3qzavTuwao5A4vWP0hYP6wz9hus7EU/s320/Untitled-1+copy.jpg)
खरबूजा-तरबूज मँगाओ।
फ्रिज में ठण्डा करके खाओ।।
गाढ़ा करके दूध जमाओ।
घर में आइसक्रीम बनाओ।।
कड़ी धूप को कभी न झेलो।
भरी दुपहरी में मत खेलो।।
शीतल जल से रोज नहाओ।
गर्मी को अब दूर भगाओ।।
उच्चारण रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
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कवि महाकुम्भ उज्जैन 5 मई 2016
![s640/FB_IMG_1461981886764](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8RCURXEeD61LjAJ4KNiv7xsVTRTNoZWVTvLhUrwbpEDkEZmKD1FRBfzzLj68O3VnGmujHvYhmvRMHDDwJ_34fMIimzUuEgDd-VCpGPgrLKDpdNnCvmYbYM-Cjn3q28gYQizdoSoLlOCc/s320/FB_IMG_1461981886764.jpg)
कमजोर नहीं कलम के पुजारी दुनिया को हमें बताना है,
कहने से काम नहीं होंगे अब करके भी हमें दिखाना है,
जन जागरण की मुहीम राष्ट्र भर में हो प्रचारित,
अपनी बातें कह चुकी मैं,अब समझना और समझाना है। ,..प्रीति सुराना
"मेरा मन" Priti Surana
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पेड़ अब तो बच ही जाएंगे यहां - Poem
सड़क के किनारे पर खड़े है फटेहाल जो
लगता है पाई भी नहीं बची अब खजाने में
आग पानी से भी अब बुझती नहीं कभी
बात बिगड़ जाती है बात को समझाने में
लगता हैे पेड़ अब तो बच ही जाएंगे यहां
बेटिया जों काम आने लगी हैे जलाने में
![Ram lakhara vipul poems](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhmDqtVDPzhoT3lWIgT09KxTA5PhKbspHC5ZfqFjx9rRMX4tkQZuUDOENXVSBsUR-U8bHlz5qD3O-MlAHjoDisFZeeIJa-IMxCyQ8RuDtfUkd6f7VSDjb98HKWdpUpY9u4U3ttyNicso5n-/s320/Ram-lakhara-vipul.jpg)
काव्य प्रेरणा - राम लखारा 'विपुल' का कविता संसार
Ram Lakhara
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लो दिन बीता लो रात गयी हरिवंशराय बच्चन
धीमे-धीमे तारे निकले,
धीरे-धीरे नभ में फ़ैले,
सौ रजनी सी वह रजनी थी,
क्यों संध्या को यह सोचा था,
निशि में होगी कुछ बात नई,
लो दिन बीता, लो रात गई
कविता कहानी चर्चा और बहुत कुछ .......
Deepak Chaubey
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तन्हाई
खोने लगा विचारो में
सपने सजने लगे दृष्टि पटल पर
चित्र गुजरने लगे एक के बाद एक
रंगीन स्वप्न होने लगे
यूँ तो मेरा साया भी हुआ मुझसे दूर
मैं सोचने पर बाध्य हुआ
ऐसा क्या होगया
Akanksha Asha Saxena
जरूरी कुछ उदगार होते हैं
पहचानता है
हर कोई समाज
के लिये एक
मील का पत्थर
एक सड़क
हवा में बिना
हवाई जहाज
उड़ने के लिये
भी तैय्यार होते हैं
गजब होते हैंं
कुछ लोग
उससे गजब
उनके आसपास
मक्खियों की तरह
किसी आस में
भिनाभिनाते
कुछ कुछ के
तलबगार होते हैं
![s320/8TA64zepc](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEindvv8ccrOqZsGO4W4HSXSq4kesaW77B42kPvYxgXFQoJG9E6bG8rVVI8rAkqJ0-MZGYPf02YKWJuwB6OQomEmZoSJMYreKOjypCu4Y3TspP6S_W5633PaoX_niCHSjOnwVAvRdyMNl4Y/s320/8TA64zepc.jpg)
उलूक टाइम्स सुशील कुमार जोशी
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जिन्दगी किसी बुरी आदत सी हो चली है ........
दिन रात है लगाये, अदालतों के चक्कर
खुद से भी बड़ी, शिकायत सी हो चली है।
बोझिल सी शाम है अब, डरावनी सी रातें
जिन्दगी किसी बुरी आदत सी हो चली है।
यथार्थ -
Yatharth(Vikram Pratap Singh Sachan)
कमरे में पड़ी हुई एक जीर्ण चारपाई की तरफ़ इशारा करते हुए बैठने को कहा।
इस पर मैने ’क्षेम’ जी का हाथ धीरे से दबाते
हुए मैने कहा -बैठ जाइए नहीं तो पिटने का डर है।
जब हम दोनो बैठ गए तो प्रश्न हुआ- कौन हो तुम लोग?
क्षेम जी ने उत्तर दिया-विश्वविद्यालय के हिन्दू बोर्डिंग हाउस से आए हैं
दूसरा प्रश्न हुआ -क्यों आए हो?
हम लोगो ने बताया कि हम लोगो ने एक कवि-सम्मेलन का आयोजन किया है उसी के सभापतित्व के लिए आप को आमन्त्रित करने आए हैं।
निराला जी ने कहा -ज़माना हुआ मैने कवि-सम्मेलनों में आना जाना छोड़ दिया है ।
सभापति बनने की तो बात ही नहीं । मैं नहीं आऊँगा ।
तुम लोग किसी और को सभापति बना लो।
इस पर क्षेम जी ने दुबारा अनुरोध किया ।
दुबारा भी उसी आशय का उत्तर मिला।
इसके बाद निराला जी असहज हो गए।
कमरे में चहल कदमी करते हुए बड़बड़ाने लगे। कहने लगे.....
जानते हो तुम लोग कि जब गंगा में तैरते तैरते जवाहर लाल डूबने लगे तो किसने बचाया था ?.....मालूम है हिन्दी के प्रश्न पर वायसराय से झगड़ा किसने किया था...?
हमलोगो ने कवि जी की असहजता की अनेक बातें सुन रखी थीं आज प्रत्यक्ष देख भी लिया। थोड़ी देर बाद जब वह सहज हुए तो बोले -कह दिया न कि नहीं जाएँगे।
क्षेम जी ने अन्तिम प्रयास के तौर पर, अन्तिम बार अनुरोध करते हुए कहा -हम लोग विद्यार्थी हैं आप के लड़के के समान है ,आप पिता तुल्य हैं ।लड़को का कहना मान लीजिए .....
इस पर महाकवि निराला जी ने कहा--लड़कों को भी चाहिए कि बाप का कहना मान लें
उन्हें अपने इरादे से हटते न देख हमलोग निराश हो कर छात्रावास लौट आए..।
आपका ब्लॉग आनन्द पाठक
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कहानी - नव अवतार भूपेन्द्र कुमार दवे
‘इस युग में तो उनके अवतरित होने का प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि अणुबम पटके जाने के दिन ही अधर्म पराकाष्ठा पर पहुँच चुका था।’ ‘इस विज्ञान के युग में तो उनके
अवतार लेकर आने से भी कुछ नहीं होने का।’ तिवारीजी ने बहस में नया मोड़ लाने की कोशिश की। पर शर्माजी के धार्मिक-संस्कृति में फले-फूले विचार इससे सहमत नहीं
हो सके। वे कहने लगे कि भगवान ने समय-समय पर मत्स्य, कूर्म, वराह, वामन आदि विचित्र अवतार लिये हैं और आज वे हर व्यक्ति के जीवन में इसी तरह का एक विचित्र अवतार
लेकर प्रकट होते रहते हैं ताकि हरेक मनुष्य अपने निर्धारित पुण्यपथ पर बेझिझक आगे बढ़ता चले। शर्माजी ने कहा कि उन्हें भी भगवान ने पथभ्रमित होने से बचाया था
संवेदनाओं के पंख / दिव्य-दृष्टि
Dr.Mahesh Parimal
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![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgLOJd7TnQRqFFrjkFzEYvpTC37t6pF444Cu9ZdW4cmKjbFayBSuCGh2SMrT5iEgbiNrCpBe6CrnvxTESCDgIY4JW_0AR5ANtuVSRkqBfZPAw4tb3qzavTuwao5A4vWP0hYP6wz9hus7EU/s320/Untitled-1+copy.jpg)
खरबूजा-तरबूज मँगाओ।
फ्रिज में ठण्डा करके खाओ।।
गाढ़ा करके दूध जमाओ।
घर में आइसक्रीम बनाओ।।
कड़ी धूप को कभी न झेलो।
भरी दुपहरी में मत खेलो।।
शीतल जल से रोज नहाओ।
गर्मी को अब दूर भगाओ।।
उच्चारण रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
कवि महाकुम्भ उज्जैन 5 मई 2016
![s640/FB_IMG_1461981886764](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg8RCURXEeD61LjAJ4KNiv7xsVTRTNoZWVTvLhUrwbpEDkEZmKD1FRBfzzLj68O3VnGmujHvYhmvRMHDDwJ_34fMIimzUuEgDd-VCpGPgrLKDpdNnCvmYbYM-Cjn3q28gYQizdoSoLlOCc/s320/FB_IMG_1461981886764.jpg)
कमजोर नहीं कलम के पुजारी दुनिया को हमें बताना है,
कहने से काम नहीं होंगे अब करके भी हमें दिखाना है,
जन जागरण की मुहीम राष्ट्र भर में हो प्रचारित,
अपनी बातें कह चुकी मैं,अब समझना और समझाना है। ,..प्रीति सुराना
"मेरा मन" Priti Surana
पेड़ अब तो बच ही जाएंगे यहां - Poem
सड़क के किनारे पर खड़े है फटेहाल जो
लगता है पाई भी नहीं बची अब खजाने में
आग पानी से भी अब बुझती नहीं कभी
बात बिगड़ जाती है बात को समझाने में
लगता हैे पेड़ अब तो बच ही जाएंगे यहां
बेटिया जों काम आने लगी हैे जलाने में
![Ram lakhara vipul poems](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhmDqtVDPzhoT3lWIgT09KxTA5PhKbspHC5ZfqFjx9rRMX4tkQZuUDOENXVSBsUR-U8bHlz5qD3O-MlAHjoDisFZeeIJa-IMxCyQ8RuDtfUkd6f7VSDjb98HKWdpUpY9u4U3ttyNicso5n-/s320/Ram-lakhara-vipul.jpg)
काव्य प्रेरणा - राम लखारा 'विपुल' का कविता संसार
Ram Lakhara
लो दिन बीता लो रात गयी हरिवंशराय बच्चन
धीमे-धीमे तारे निकले,
धीरे-धीरे नभ में फ़ैले,
सौ रजनी सी वह रजनी थी,
क्यों संध्या को यह सोचा था,
निशि में होगी कुछ बात नई,
लो दिन बीता, लो रात गई
कविता कहानी चर्चा और बहुत कुछ .......
Deepak Chaubey
तन्हाई
खोने लगा विचारो में
सपने सजने लगे दृष्टि पटल पर
चित्र गुजरने लगे एक के बाद एक
रंगीन स्वप्न होने लगे
यूँ तो मेरा साया भी हुआ मुझसे दूर
मैं सोचने पर बाध्य हुआ
ऐसा क्या होगया
Akanksha Asha Saxena
पहचानता है
हर कोई समाज
के लिये एक
मील का पत्थर
एक सड़क
हवा में बिना
हवाई जहाज
उड़ने के लिये
भी तैय्यार होते हैं
गजब होते हैंं
कुछ लोग
उससे गजब
उनके आसपास
मक्खियों की तरह
किसी आस में
भिनाभिनाते
कुछ कुछ के
तलबगार होते हैं
![s320/8TA64zepc](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEindvv8ccrOqZsGO4W4HSXSq4kesaW77B42kPvYxgXFQoJG9E6bG8rVVI8rAkqJ0-MZGYPf02YKWJuwB6OQomEmZoSJMYreKOjypCu4Y3TspP6S_W5633PaoX_niCHSjOnwVAvRdyMNl4Y/s320/8TA64zepc.jpg)
उलूक टाइम्स सुशील कुमार जोशी
जिन्दगी किसी बुरी आदत सी हो चली है ........
दिन रात है लगाये, अदालतों के चक्कर
खुद से भी बड़ी, शिकायत सी हो चली है।
बोझिल सी शाम है अब, डरावनी सी रातें
जिन्दगी किसी बुरी आदत सी हो चली है।
यथार्थ -
Yatharth(Vikram Pratap Singh Sachan)
हुए मैने कहा -बैठ जाइए नहीं तो पिटने का डर है।
जब हम दोनो बैठ गए तो प्रश्न हुआ- कौन हो तुम लोग?
क्षेम जी ने उत्तर दिया-विश्वविद्यालय के हिन्दू बोर्डिंग हाउस से आए हैं
दूसरा प्रश्न हुआ -क्यों आए हो?
हम लोगो ने बताया कि हम लोगो ने एक कवि-सम्मेलन का आयोजन किया है उसी के सभापतित्व के लिए आप को आमन्त्रित करने आए हैं।
निराला जी ने कहा -ज़माना हुआ मैने कवि-सम्मेलनों में आना जाना छोड़ दिया है ।
इस पर क्षेम जी ने दुबारा अनुरोध किया ।
जानते हो तुम लोग कि जब गंगा में तैरते तैरते जवाहर लाल डूबने लगे तो किसने बचाया था ?.....मालूम है हिन्दी के प्रश्न पर वायसराय से झगड़ा किसने किया था...?
हमलोगो ने कवि जी की असहजता की अनेक बातें सुन रखी थीं आज प्रत्यक्ष देख भी लिया। थोड़ी देर बाद जब वह सहज हुए तो बोले -कह दिया न कि नहीं जाएँगे।
क्षेम जी ने अन्तिम प्रयास के तौर पर, अन्तिम बार अनुरोध करते हुए कहा -हम लोग विद्यार्थी हैं आप के लड़के के समान है ,आप पिता तुल्य हैं ।लड़को का कहना मान लीजिए .....
इस पर महाकवि निराला जी ने कहा--लड़कों को भी चाहिए कि बाप का कहना मान लें
उन्हें अपने इरादे से हटते न देख हमलोग निराश हो कर छात्रावास लौट आए..।
आपका ब्लॉग आनन्द पाठक
कहानी - नव अवतार भूपेन्द्र कुमार दवे
‘इस युग में तो उनके अवतरित होने का प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि अणुबम पटके जाने के दिन ही अधर्म पराकाष्ठा पर पहुँच चुका था।’ ‘इस विज्ञान के युग में तो उनके
अवतार लेकर आने से भी कुछ नहीं होने का।’ तिवारीजी ने बहस में नया मोड़ लाने की कोशिश की। पर शर्माजी के धार्मिक-संस्कृति में फले-फूले विचार इससे सहमत नहीं
हो सके। वे कहने लगे कि भगवान ने समय-समय पर मत्स्य, कूर्म, वराह, वामन आदि विचित्र अवतार लिये हैं और आज वे हर व्यक्ति के जीवन में इसी तरह का एक विचित्र अवतार
लेकर प्रकट होते रहते हैं ताकि हरेक मनुष्य अपने निर्धारित पुण्यपथ पर बेझिझक आगे बढ़ता चले। शर्माजी ने कहा कि उन्हें भी भगवान ने पथभ्रमित होने से बचाया था
संवेदनाओं के पंख / दिव्य-दृष्टि
Dr.Mahesh Parimal
महुवा चुवत आधी रैन हो रामा, चईत महिनवां।
महुवा चुवत आधी रैन हो रामा, चईत महिनवां।
रस बरसत आधी रैन हो रामा, चइत महिनवां।
रस बरसत आधी रैन हो रामा, चइत महिनवां। ...
PAWAN VIJAY
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मई महीने के पहला दिन को मे डे के रूप में मनाया जाता है | इसे “अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस” या केवल “मजदूर दिवस” भी कहते हैं | १८६० से ही १० से १६ घन्टे की कार्यावधि एवं कार्य क्षेत्र की प्रतिकूल परिस्थिति के विरुद्ध ८ घन्टे प्रतिदिन कार्यावधि और कार्य क्षेत्र की बेहतर परिस्थिति की माँग उठती रही थी | परन्तु इसकी स्वीकृति यु एस में १८८६ में मिली | पहली मई १८८६ को यु एस के १३००० औद्योगिक संस्थानों से तीन लाख से भी अधिक लोग काम छोड़कर मई दिवस मनाने चले गए | सिकागो में ४०००० लोग हड़ताल पर बैठ गए | तब से मई दिवस मनाये जाने लगा...
अनुभूति पर कालीपद "प्रसाद"
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ग़ज़ल : 186 -
कच्ची-पक्की शराब की बातें ॥
पैर लटके हैं क़ब्र में फिर भी , बस ज़ुबाँ पे शबाब की बातें ॥
लोग हँसते हैं सुनके सब ही तो , शेख़चिल्ली-जनाब की बातें...
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आज बस यहीं तक...
धन्यवाद।
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"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर
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