जय मां हाटेश्वरी...
रविवारीय चर्चा में आप का स्वागत है...
स्वामी विवेकानंद जी से एक जिज्ञासु ने प्रश्न किया," माँ की महिमा संसार में किस कारण से गायी जाती है? स्वामी जी मुस्कराए, उस व्यक्ति से बोले, पांच सेर वजनका एक पत्थर ले आओ | जब व्यक्ति पत्थर ले आया तो स्वामी जी ने उससे कहा, " अब इस पत्थर को किसी कपडे में लपेटकर अपने पेट पर बाँध लो और चौबीस घंटे बाद मेरेपास आओ तो मई तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूंगा |"स्वामी जी के आदेशानुसार उस व्यक्ति ने पत्थर को अपने पेट पर बाँध लिया और चला गया | पत्थर बंधे हुए दिनभर वो अपना कम करता रहा, किन्तु हर छण उसे परेशानी औरथकान महसूस हुई | शाम होते-होते पत्थर का बोझ संभाले हुए चलना फिरना उसके लिए असह्य हो उठा | थका मांदा वह स्वामी जी के पास पंहुचा और बोला , " मै इस पत्थरको अब और अधिक देर तक बांधे नहीं रख सकूँगा | एक प्रश्न का उत्तर पाने क लिए मै इतनी कड़ी सजा नहीं भुगत सकता |"स्वामी जी मुस्कुराते हुए बोले, " पेट पर इस पत्थर का बोझ तुमसे कुछ घंटे भी नहीं उठाया गया और माँ अपने गर्भ में पलने वाले शिशु को पूरे नौ माह तक ढ़ोती हैऔर ग्रहस्थी का सारा काम करती है | संसार में माँ के सिवा कोई इतना धैर्यवान और सहनशील नहीं है इसलिए माँ से बढ़ कर इस संसार में कोई और नहीं |
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अब चलते हैं आज की चयनित रचनाओं की ओर...
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गीत "माता से अस्तित्व हमारा"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
ममता से जिसका है नाता।
वो ही कहलाती है माता।।
पाल-पोषकर हमें सँवारा,
माता से अस्तित्व हमारा,
सारा जग जिसके गुण गाता।
वो ही कहलाती है माता।।
जिसने भाषा को सिखलाया,
धरती पर चलना बतलाया,
जिसका रूप हमेशा भाता।
वो ही कहलाती है माता...
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मदर्स डे....
यशोदा
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कौन जगाता
कौन करता चोटी
जो माँ न होती
कहती है माँ
आगे तभी बढूँगी
जो मैं पढ़ूँगी ...
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अक्षरहीन हो चाहे माता
या विद्द्या से हो महान
करुणा-ममता एक सी होती
संवेदनायें होती है समान.
गर्भ में ही अस्तित्व निखरता
इक-दूजे में बसती है जान
विलीन होती रहती है
लहरें सागर में जिस तरह तमाम.
माँ का मतलब ही होता है...
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आसमान पर उड़नेवाला,
औंधे मुँह धरती पर आता।
नाज़ुक शाखों पर जो चढ़ता,
वो जीवनभर है पछताता।
उससे ही सम्बन्ध बढ़ाओ,
प्रीत-रीत को जो पहचाने।
गिले भुलाकर गले लगाओ,
धर्म मित्रता का जो जाने।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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Madhulika Patel
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मैं जुटा रहा हूँ लकड़ियाँ,
सजा रहा हूँ अपनी चिता,
बचा रहा हूँ उसे बारिश से,
पर मौत है कि न आती है,
न बताती है कि कब आएगी...
कविताएँ पर Onkar
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बाधाएँ तो आएंगी ही,
उनसे पार गुजरना है।
ना रुकना है ना थकना है,
बस मंज़िल तक पहुँचना है।
हर आँसू को खुशी में बदलना है,
हर गम को घूंट कर पी जाना है।
एक नयी ऊर्जा का संचार करना है,
Nitish Tiwary
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गज़ब का पहचानता है मुझे
मुझसे ज्यादा जानता है मुझे
हमेशा साथ निभाता है
मेरा आइना
सरिता भाटिया
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फ़र्ज़ करो यह रोह है झूठा झूटी प्रीत हमारी हो
फ़र्ज़ करो इस प्रीत के रोग में सांस भी हम पे भारी हो
फ़र्ज़ करो यह जोग बिजोग का हमने ढोंग रचाया हो
फ़र्ज़ करो बस यही हकीकत बाकी सब कुछ माया हो
Pratibha Katiyar
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तुमसे रौशन मेरी राहें, तेरे दम से खुशियां मेरी
तेरी बाँहे, घर है मेरा, मुझमें बसती दुनिया मेरी
चिराग की मद्धिम लौ सी,ज़िया नही हो सकती हूँ
तेरे जैसी बन पाऊँ, कोशिश मै दिन रात करूँ
डॉ. अपर्णा त्रिपाठी
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यदि आयोजन यहाँ हो रहा होता तो
प्यासे ,सूखा ग्रस्त लोगों के हिस्से का पानी
पेप्सी और कोक के इशारों पर नाचने बाले
तथाकथित खिलाड़ियों के पैरों तले रौंदने बाली घास को
हरा भरा रखने में खर्च हो रहा होता
Madan Mohan Saxena
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कभी सोचा है / धरती अगर सन्यासी हो जाए / तो कैसा हो !
बीज रोपें / तो भी पेड़ ना दे /
कुदाली से खोदें / तो भी पानी ना दे....
बहुत कुछ ऐसा जो अप्रत्याशित है ।
अगर धरती पर होने लगे तो......
वे लिखती हैं कि..
ये सोचते ही / मैं सुन्न होने लगती हूँ
डॉ. मोनिका शर्मा
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वो पुराने पेड़
जिन्हें कहीं नहीं जाना होता
किसी भी मोसम में
छुट्टियों के दरमियां भी
सोयी हुई धूप के चहरे को
निहारते रहते हैं अपलक सिरहाने खड़े
Ravishankar Shrivastava
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हैं पूछते सवाल पर जवाब नहीं हो ,
आसमाँ तो चाहिए आफताब नहीं हो
ये कोयल की कूकें,और बया की काविश
क्यों हमें भी ए खुदा, पायाब नहीं हो
नीलांश
गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर की १५५ वीं जंयती
' जन गन मन ' के रचयिता , भारत माता के लाल , गुरुदेव रविंद्रनाथ ठाकुर को उनकी १५५ वीं जंयती पर शत शत नमन |
बुरा भला
शिवम् मिश्रा
काम नहीं नाम बिकता है...
पर हम नहीं जानते उन्हें
बच्चे भी नहीं पहचानते उन्हें
क्योंकि उनकी लाइव कर्वेज नहीं होती।
वे अभिनय भी नहीं कर रहे हैं।
उनका भाग्य मैदानों में लगने वाले
चौकों छक्कों पर निर्भर नहीं होता।
कहते हैं न,
जो दिखता है, वोही बिकता है।
मन का मंथन [man ka manthan]
kuldeep thakur
मातृत्व दिवस पर विशेष - कविता - माँँ - पं.
ओम व्यास 'ओम
मजबूत कधों का नाम है, माँ…माँ काशी है, काबा है और चारों धाम है, माँ…माँ चिंता है, याद है, हिचकी है, माँ…माँ बच्चे की चोट पर सिसकी है, माँ…माँ चुल्हा-धुंआ-रोटी
और हाथों का छाला है, माँ…माँ ज़िंदगी की कडवाहट में अमृत का प्याला है, माँ…माँ पृथ्वी है, जगत है, धूरी है, माँ बिना इस सृष्टी की कलप्ना अधूरी है, तो माँ
की ये कथा अनादि है, ये अध्याय नही है… …और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है, और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है, तो माँ का महत्व दुनिया में कम हो नहीं
सकता, और माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता, और माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता। इस कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
संवेदनाओं के पंख / दिव्य-दृष्टि
Dr.Mahesh Parimal
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गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर की १५५ वीं जंयती
' जन गन मन ' के रचयिता , भारत माता के लाल , गुरुदेव रविंद्रनाथ ठाकुर को उनकी १५५ वीं जंयती पर शत शत नमन |
बुरा भला
शिवम् मिश्रा
काम नहीं नाम बिकता है...
पर हम नहीं जानते उन्हें
बच्चे भी नहीं पहचानते उन्हें
क्योंकि उनकी लाइव कर्वेज नहीं होती।
वे अभिनय भी नहीं कर रहे हैं।
उनका भाग्य मैदानों में लगने वाले
चौकों छक्कों पर निर्भर नहीं होता।
कहते हैं न,
जो दिखता है, वोही बिकता है।
मन का मंथन [man ka manthan]
kuldeep thakur
मातृत्व दिवस पर विशेष - कविता - माँँ - पं.
ओम व्यास 'ओम
मजबूत कधों का नाम है, माँ…माँ काशी है, काबा है और चारों धाम है, माँ…माँ चिंता है, याद है, हिचकी है, माँ…माँ बच्चे की चोट पर सिसकी है, माँ…माँ चुल्हा-धुंआ-रोटी
और हाथों का छाला है, माँ…माँ ज़िंदगी की कडवाहट में अमृत का प्याला है, माँ…माँ पृथ्वी है, जगत है, धूरी है, माँ बिना इस सृष्टी की कलप्ना अधूरी है, तो माँ
की ये कथा अनादि है, ये अध्याय नही है… …और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है, और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है, तो माँ का महत्व दुनिया में कम हो नहीं
सकता, और माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता, और माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता। इस कविता का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
संवेदनाओं के पंख / दिव्य-दृष्टि
Dr.Mahesh Parimal
आज की चर्चा यहीं तक...
अगले रविवार को एक बार फिर...
धन्यवाद।
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